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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 6, 2021

 

रूल ऑफ ला या रूल बाय ला ? क्या देश पुलिस राज्य बन गया हैं

84 साल के मानवतावादी कार्यकर्ता फादर स्टेंस्वामी की बंदी गृह में मौत अनेकों सवाल उठाती हैं | सबसे पहला सवाल तो यही हैं की क्या एन आई ए अपने आरोपो को साबित कर सकती थी ? यदि हाँ तो तीन साल तक मुकदमा क्यू नहीं चलाया ? क्या प्रधान मंत्री की हत्या की साजिश में एक परकिनसन बीमारी से ग्रसित 84 साल का व्यक्ति ,जो आदिवासी इलाके झारखंड में लोगो के कल्याण की लड़ाई लड़ रहा था ,ऐसा करने में समर्थ हो सकता हैं ? एन आई ए द्वरा अनलाफूल कारवाई पृवेंशन कानुन { यू ए पी ए } के तहत सैकड़ो बेगुनाह लोगो को सालो से जेलो में बंद रखा हैं | एनआईए की विशेस अदालते के न्यायधीश भी भूल जाते हैं की वे उन बेगुनाहों को बंदी गृह में रख कर ना केवल उनके मौलीक अधिकारो का उल्लंघन करने के दोषी हैं वरन "”काठ "” की भांति कानून की धाराओ का पालन भर कर रहे हैं , वे न्याया नहीं कर रहे !

देश के प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने अपने एक उद्बोधन में कहा था की अदालतों को न्याय करना चाहिए ---नाकी सिर्फ कानून की धाराओ के आधार पर फैसला सुनाना ! उन्होने आगे स्पष्ट किया की अनेकों बार कानून के आधार पर अन्याय होता हैं | उनका यह कथन यू अ पी ए के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए लोगो पर बरसो - बरस बिना मुकदमा चलाये सलाखों के भीतर रखा कर उनके आज़ादी के मौलिक अधिकार को कुचला जाता हैं |प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने यह कह कर अदालतों में बैठे जजो को सोचने पर तो मजबूर ही किया होगा |

1`- प्रधान मंत्री की हत्या की साजिश का भी आरोप था स्टेंस्वामी पर , इस देश में दो प्रधान मंत्रियो की हत्या हुई हैं , परंतु उन घटनाओ के लिए बेक़सूर लोगो को अनिश्चित काल तक जेलो में बंद नहीं किया गया ?अभियुक्तों पर आई पी सी और सीआर पी सी की की धाराओ के तहत ही मुकदमा चला और सज़ा मिली ! यानहा तो सामाजिक कार्यकर्ताओ को आपराधिक मामलो में आरोपी बना दिया गया |

जितनी सुरक्षा का बंदोबस्त वर्तमान प्रधान मंत्री का किया जा रहा है ------उसका आधा भी इन्दिरा जी और राजीव जी का नहीं हुआ करता था |

क्यू मोदी सरकार शरीर से कमजोर और बीमार स्टेंस्वामी से दर कर उनको बंदी बनाया ? भीमा कोरेगाओं के केस में भी जिन लोगो को बंदी बना कर जेल में रखा हैं , उन पर भी मुकदमे की कारवाई शुरू नहीं हुई है ! स्वामी को बीमाऋ की हालत में भी अदालत द्वरा जमानत नहीं दिया जाना , भी एक विचारणीय सवाल हैं | क्यूंकी जब सरकार की एन आई ए मुकदमा नहीं शुरू कर रही तब क्या "”अन्नत काल तक किसी को शक के आधार पर "”हिरासत "” में रखा जा सकता है ब भले ही वह उस अपराध की सज़ा से ज्यड़ा ही हो ? क्या सरकार की एजेंसी से अदालत को यह नहीं पूछना चाहिए की किसी भी नागरिक की आज़ादी छिनने का आपके पास क्या सबूत हैं ?

यू अ पी ए नामक इस कानून के तहत सरकारी एजेंसी पर ऐसा कोई "”दबाव "” नहीं हैं की पुलिस की भांति 90 दिन में वह चार्ज शीट दाखिल करे | उसे तो छूट हैं की वह "””खरामा खरामा सालो लगा दे -पर आरोपी को ना तो जमानत मिले और ना ही मुकदमा जल्दी शुरू हो !

जुस्टिस रमन्ना के कथन का अर्थ हैं की कानून हमेशा जन हितकारी नहीं होते| एवं जो जन या नागरिक के लिए हितकारी नही हो वह विधि न्याय नहीं दे सकती , भले ही सत्ता के लिए वह सुविधाजनक हो |

2- अदालतों के आदेश का अनुपालन नहीं किया जाना सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच द्वारा जिस प्रकार आई टी एक्ट की धारा 66-2015 में '’अवैधानिक घोसीत किए जाने के बाद भी पुलिस आज तक उनही धाराओ में पत्रकारो और सामाजिक कार्यकर्ताओ पर मुक्द्मेन चल भी रहे और दर्ज़ भी करे जा रहे हैं | शरम आती है 90 साल के महान्यायवादी वेणुगोपाल पर ----उन्होने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी की "” कानून के रद्द होने की जानकारी फूटनोट में महीन अक्षरो में है जिसे पुलिस वाले समझ नहीं पाते !!! अब यह तो हद्द ही हो गयी \ यह धारा गैर कानूनी गतिविधि [रोकथाम [ अधिनियम या यूएपीए के तहत भी इस्तेमाल की जाती है

\ जिसमे "” भड़काऊ भाषण या पोस्ट लिखने बोलने अथवा आतंकी संगठन के समर्थन पर कारवाई हो सकती हैं | अब पुलिस के हाथ में है की आप को इस कानून के डायरे में ले आए |बस आप जेल में और जमानत हो नहीं सकती |यानि अब नागरिक के जान -माल की रक्षा वाली पुलिस "””सरकार में बैठे लोगो के हुकुम की ताबेदार हो गयी | इन अफसरो और मंत्रियो की आलोचना करने वाले और उनसे सवाल पूछने वाले पत्रकारो को "””ठीक "” करने में यह कानून -औज़ार की तरह काम में आता हैं |


3- योगी जी की उत्तर प्रदेश की पुलिस ?

वैसे तो अदालत में गवाही शपथ पर होती हैं अथवा दस्तावेज़ो के आधार पर होती हैं | परंतु योगी जी अपने आलोचको को "”ठीक कर राह पर लाने "”के लिए पुलिस का इस्तेमाल करते हैं | उन्नाव के विधायक द्वरा जिस प्रकार पुलिस से मिलकर एक परिवार की लड़की से बलात्कार किया और उसके पूरे परिवार को थाने में रखा ,जनहा उसके पिता की पुलिस प्रताड़णा से मौत हो गयी \ फिर एक ट्रक दुर्घटना में दो लोगो की मौत हुई | आखिर में यह मुकदमा न्याय की खातिर दिल्ली की कोर्ट में भेजा गया ,हाइ कोर्ट के आदेश से |बिकरू कांड के आरोपी को उज्जैन से गिरफ़्तार करके कानपुर लाते समय जिस प्रकार से आरोपी का "”मुठभेड़ "” में गोली मारी गयी गयी , वह योगी जी की पुलिस ही कर सकती है | बिना मुकदमे और सुनवाई के सीधे गोली मार कर मुठभेड़ से न्याय ----की यह कारवाई पुलिस स्टेट की ही निशानी है |




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