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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 26, 2023

 

आशियाना तो बच गया पर बस्ती बदरंग हो गयी हुजूर !

 

  मुख्य मंत्री द्वरा  प्रदेश की “”अवैध “” कालोनियों या कहे बस्तियो को  “”वैध” करके  नगर विकास की गोदी में एक  “”जारज “ को “”औरस “”  बनाने का काम किया हैं |  कहा जा सकता है की आगामी विधान सभा चुनावो को देखते हुए ही यह राजनीतिक फैसला किया गया होगा | अन्यथा  सैकड़ो सहकारी भवन समितियों के करता –धर्ताओ द्वरा  हजारो लोगो से पैसा लेकर  उनको भूमि का भाग भी नहीं दिया गया ! वनही भ्रष्ट  बिलडरो  द्वरा बिना  नक्शा पास कराये – बिना जल –बिजली – और निकास का प्रविधान किए बिना ही  ---अब उनके पाप कर्मो को  पुण्य का दर्जा मिल गया !   अब होगा यह की इन बस्तियो के लोगो की मांग अपने इलाको में  सड़क – पानी – बिजली और निकास के साधनो के लिए स्थानीय नगर निकायो पर बिल्डर और दबंग नेता  इन सुविधाओ को जन आकांछ बता कर आंदोलन और धरना प्रदर्शन करेंगे | अब यह कितना  “”विकास “” करेगा यह समझा जा सकता है |

        आसियाना बनाना  सभी का सपना होता है , जैसे सभी महिलाओ का सपना होता है –“” माँ”” बनना | परंतु सामाजिक  व्ययस्था में यह  विवाह नामक संस्था  के पश्चात  जायज़ या वाइड होता हैं | विवाह के पूर्व  बच्चे का जनम  उसे  “”अवैध” या जारज  ही मानता हैं | उसी प्रकार  शासन व्यवस्था  में भी  आबादी की बसाहट  एक व्यवस्थित  प्रकार से ओ इसी लिए  भवन निर्माण  के लिए  कुछ सरकारी संस्थाए है , जो  बस्ती की जरूरतो का आंकलन कर के एक विस्तरत नक्शा पास करती है | तभी आबादी को नागरिक सुविधाए मिलती है |  अब यह सब  मुख्य मंत्री की घोसना से व्यर्थ  हो गयी हैं | सवाल यह है की इसे  “”मंगलकारी “माना जाए अथवा “”अमंगलकारी “” ? तात्कालिक लाभा के लिए आबादी की बसाहट जैसे  विषय पर जान कारो  की राय – विपरीत ही है | कारण  पेयजल  सुलभ करना  और निकास  का प्रबंध करना  किसी भी बसाहट के लिए जरूरी है | मोहंजोदड़ों  की खुदाई में मिले घरो में भी पेयजल संग्रहण और निकास की व्यसथा  हुआ करती थी | तब भी अगर ग्राम और नगर नियोजन  निकाय नहीं रहे होंगे तब भी शासको द्वरा कुछ नियम तो बनाए ही गए होंगे | फिर आज 21 वी सदी में  इन मूल प्रश्नो का समाधान किए बिना , सभी बसाहटों को  जायज़ करार दिया जाना  ,अनेक सवाल पैदा करता है ---भविष्य में भी यह  परेशानी करेगा |  इसका उदाहरन  हमारी राजनीति में है --- स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी का , उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे फिर उतराखंड के भी मुख्यमंत्री बने –परंतु  एक गलती ने उनके स्वर्णिम जीवन की उपलब्धियों को अंधरे से ढाँका दिया | किस प्रकार उनके पुत्र ने अपने “”जारज” होने के कलंक को मुकदमा लड़ कर  मुक्ति पायी और तिवराइ जी का “”औरस “” पुत्र होने का गौरव प्रापत  किया | यद्यपि  उसके जीवन का भी कारुणिक  ही अंत हुआ , और अपनी पत्नी के हाथो म्रत्यु को प्राप्त  हुआ |  यह है परिणाम एक गलती का !

                 अगर देखा जाये तो इन “अवैध “” बस्तियो के वोट शासक दल को ही मिलेंगे –इसकी कोई गारंटी  नहीं हैं | क्यूंकी इन बस्तियो को बसने वालो में सभी डालो के दबंग नेताओ का हाथ होता हैं | नम्र पालिका अथवा नगर निगम   के वार्डो  की इन बस्तियो को स्थानीय  नेताओ का संरक्षण होता हैं | वे ही सरकारी भूमि पर अतिक्रमण  कराने के जिम्मेदार होते हैं |  वे ही बिलडरो से मिलकर  पार्क या खेल के मैदान में निर्माण करा देते हैं | फिर खेल चलता है की इसे कैसे  “””कम पाउंड  “” कराया जाये !

अगर हम सरकार के इस फैसले को सही माँ ले –तब हमे सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलो को “”गलत “” मानना होगा जिसमे उन्होने नोएडा और केरल में त्रिसुर  में बीस और तीस मंजिली  इमारतों को –इस आधार पर  बारूद लगवा कर नेस्तनाबूद करा दिया ,क्यूंकी “”” उन्होने भवन निर्माण के नियमो की अनदेखी “”” की थी !!!!  अगर खेल के मैदान पर इन बहू मंजिली  इमारतों को इस लिए ढहा  दिया गया ---की जरूरी अनुज्ञा  नहीं ली गयी थी | अब इस परिदराश्य  में हम अगर मुख्यमंत्री की घोसना को ले –तब पाएंगे  “”फैसला कानूनी तौर पर सही नहीं हैं “”

 

   हक़ीक़त यह हैं की सरकार की अपनी  एजेंसिया जो भवन निर्माण करती है ---वे भी टाउन अँड कंट्री प्लानीनिंग  विभाग की श्रतों की अनदेखी करती हैं | एवं   नियोजन विभाग इन पर इसलिए कारवाई करने से “”बचता “” है की ये शासकीय निर्माण हैं | सवाल यह है की क्या शासकीय निर्माण को मनमानी करने की छूट है ?? भोपाल नगर  में तात्या टोपे नगर में  स्मार्ट सिटी  के नाम पाए हो रहे निर्माणों  में भवन निर्माण के नियमो का पालन हो रहा है ? उत्तर है नहीं !  दसहरा मैदान में  खड़ी बहू मंजिली सात इमारते  विगत  आठ माह से  अपने रहवासियो का इंतज़ार ही कर रही हैं ! क्यूंकी   अभी तक सरकार को इतनी फुर्सत नहीं मिली इतने उद्घाटनों  के बीच इन आवासीय इमारतों का उदघाटन कर सरकारी सेवको को रहने का मौका दिया जाये !!!!  पर ऐसा क्यू हो रहा हैं --- स्मार्ट सिटी के पी आर ओ  के अनुसार  इंका निर्माण अनुबंध की सीमा हो गया है –परंतु   पानी के निकास का प्राविधान  नहीं हो पाया है , इसलिए इमारत को राज्य संपदा विभागा को  नहीं सौंपा जा सका है | अब सवाल हैं की जब  सरकारी एजेंसी ही भवन निर्माण के नियमो की अनदेखी कर रही है -----तब छुटभैये  बिल्डरो को क्या दोष देना |