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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 17, 2013

क्या निर्वाचन आयोग इस प्रचारों पर ध्यान देगा ?

    क्या निर्वाचन आयोग  इस प्रचारों पर ध्यान देगा  ?
                                                                                   निर्वाचन आयोग ने पैड न्यूज़ पर  नज़र रखने के लिए  तो अनेक शिंकंजे कसने शुरू कर दिया हैं , परंतु धर्म की राजनीति की दूकानों पर निगाह के लिए अभी ताक़ कुछ नहीं किया हैं | ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आजकल  चुनावी राजनीति मे जिस प्रकार धर्म का इस्तेमाल किया जा रहा हैं , वह क्या उतना ही ''गैर कानूनी "" नहीं हैं जितना की पैड न्यूज़ ?  योग शिक्षक जो अपने को ''बाबा''' कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं , उनका कहना हैं की  मोदी मे राम जैसी प्रतिभा और बल हैं | इतना ही नहीं , विश्व हिन्दू परिषद  के  आद्यकष  अशोक सिंघल ने तो मोदी को पहले ही राम की शक्ति का प्रतीक कह दिया हैं | मध्य प्रदेश के एक मंत्री कुसमरिया ने तो उन्हे भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार बता दिया हैं | दो दिन पूर्व ही इलाहाबाद  मे कपूर नाम के कलाकार ने """ रेत""" के ऊपर ब्रम्हा -विष्णु- महेश  की त्रिमूर्ति मे मोदी का चेहरा  बनाया हैं |  यह तो हुई कुछ धर्म की राजनीतिक दूकाने जो चुनाव के समय ही सक्रिय हो जाते हैं | अब इनको निर्वाचन आयोग की नज़र मे क्या कहा जाये ? क्या यह जो किया जा रहा हैं उसे """सही""" कहा जा सकता हैं ?  क्या धर्म की भावनाए उभार  कर लोगो की  रॉय  को प्रभावित करना कहा  तक  उचित हैं ?अगर पैसा देकर  अपने  पछ मे खबर छपवाना  तो इन '''हरकतों''' से कनही ज्यादा  अनुचित और ''अवैधानिक'' हैं |

                                 अभी मध्य प्रदेश मे  योग शिक्षक रामदेव  ने मालवा मे अपने '''योग शिक्षा शिविरो ""'मे अध्यात्म अथवा पतंजलि के योग सूत्र की जगह  वे  लोगो को  यह समझा रहे हैं की ""काँग्रेस  तो अंग्रेज़ो की जासूस थे """ अब उनसे कोई यह पूछे की स्वतन्त्रता  संग्राम की किस किताब मे यह सब लिखा गया हैं ? क्योंकि  अभी तक तो अंग्रेज़ो के काल  के दस्तावेज़ो के अनुसार तो सावरकर ने ही  ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी |  यह तो दस्तावेजी सबूत हैं |  दूसरा आरोप उन्होने यह कहा की काँग्रेस '''चरित्रहीन और अपराधियो''' की पार्टी हैं | यह आरोप कोई राजनीतिक दल के नेता  द्वारा लगाया जाता तो , समझ  मे आता हैं , परंतु कोई   भगवा वस्त्र धारी  - तथाकथित सन्यासी  यह '''आरोप'' लगाए जो पूर्णतया ''राजनीतिक'' बयान हो  कितना उचित  हैं ?

                हमे और निर्वाचन आयोग को यह तय करना होगा की क्या इस प्रकार के प्रचार को ''जायज'' कहा ज़ सकता हैं ? चुनाव संहिता मे भी धर्म  से संबन्धित  प्रचार को ''अयोग्यता'' निर्धारित किया गया हैं | यहा तक की  चुनाव के प्रचार बंद हो जाने के बाद   आयोग ने  अखंड रामायण  आदि के नाम पर पार्टी द्वारा  किए जाने वाले कार्यक्रमों पर पूर्णतया रोक लगाने का फरमान जारी किया हैं | जब इस प्रकार के आयोजनो को  ''अवैधानिक'' माना जा रहा है |तब फिर संहिता लगने  के बाद भी क्या इस प्रकार  के """धर्म की पैकिंग  मे किया जा रहा राजनीतिक प्रचार """ जारी रहेगा ? तब  कितना नियमो के अधीन ""स्वतंत्र और निसपक्ष " चुनाव संभव हो पाएंगे ?

चुनावी शाम मे मुसलमा होते नेता और उनका हश्र

 चुनावी  शाम  मे  मुसलमा  होते नेता और उनका  हश्र
                                                                                  वैसे तो हर एक चुनाव मे ही ''नेता '' दल बदलू होते हैं , यह कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं | परंतु समझ मे यह नहीं आता की सैकड़ो मतदाताओ का प्रतिनिधित्व करने वाला ''पार्षद'' हो चाहे विधान सभा का चुनाव ही अथवा लोकसभा के  चुनाव हो , यह ''परंपरा'' दुहराई  ही जाती हैं | महत्वाकांचा  राजनीति मे आने वालों की पहली शर्त होती हैं , यह सभी जानते हैं ,परंतु अधिकतर ''नेता'' जो  ""अति महत्वाकांछी "" होते हैं उन्हे सदैव  अपनी पार्टी और उसके कर्र्न्धारों से यह शिकायत रहती हैं की  ''उनकी ''महत्ता को वे लोग पहचान नहीं रह रहे हैं | भले ही ऐसे नेता अक्सर ''बिना दल'' या निर्दलीय हो कर भी अपना भाग्य आज़मा चुके होते हैं , और सौ मे से अस्सी पराजय क्का स्वाद भी चख चुके होते हैं परंतु फिर भी जनहा काही बैठे की नहीं और शुरू हो गए ""परनिंदा""पुराण लेकर और लगे उसका वाचन करने | उनसे जब भी तर्क या तथ्य की बात करो तो वे एक ही बात कहते हैं की ''फला ""फला" ने हरवा दिया अथवा विरोधी पार्टी की ""बयार"" चल रही थी इसलिए जमानत ज़ब्त हो गयी नहीं तो धूल चटा देता "" |

                                            कुछ ऐसा तो नहीं परंतु इसके विपरीत भी इस बार विधान सभा चुनावो के समय लोग काँग्रेस छोड़ कर अथवा निर्दलीय ---सत्तारूद दल मे शामिल हो रहे हैं | ऐसा क्यो हो रहा हैं -इसका जवाब तो वे लोग ही दे पाएंगे , हम तो सिर्फ कयास ही लगा सकते हैं | भारतीय जनता पार्टी मे जो लोग शामिल हो रहे हैं ज़रूरी सी बात हैं की वे चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के ''प्रत्याशी'' बनना चाहते हैं | परंतु क्या जिस स्थान से वे टिकट चाह रहे हैं उस स्थान की पार्टी इकाई उनके नाम का समर्थन कर रही हैं ? नब्बे फीसदी मामलो मे तो पार्टी इकाइयां  ऐसे दलबदलून के विरोध मे ही रहती हैं | ऐसे मे अगर पार्टी ने उन्हे प्रत्याशी बना भी दिया तो ''विजय श्री ''' की उम्मीद कम ही रहती हैं |  फिर क्यों सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव की वेला मे बाहरी व्यक्तियों या लोगो को अपने यहना शरीक करती हैं ?

                                                      शायद ऐसे लोगो को शामिल करने के लिए कुछ ''बड़े नेताओ''' का अहंकार ही कारण होता हैं , जिसके फलस्वरूप ऐसे लोग दल मे आकार """खलबली '' मचा देते हैं | इस श्रेणी मे रींवा राजघराने का नाम लेना समीचीन होगा , क्योंकि जंहा महाराजा  पुष्प राज सिंह  काँग्रेस मे शामिल हुए वनही उनके युवराज  आदित्य राज भारतीय जनता पार्टी मे शामिल हुए | यह घटनाए एक सप्ताह के अंदर हुई | हालांकि पुष्प राज सिंह  काँग्रेस से विधायक एवं मंत्री रह चुके हैं बाद मे वे पार्टी छोड़ कर चले गए थे |   अब कौन सा मोह उन्हे वापस ले आया -कहना मुश्किल होगा | काँग्रेस विधायक दल के उप नेता राकेश सिंह चतुर्वेदी ने भी पार्टी द्वारा लाये गए अविसवास प्रस्ताव पर अपने दल के नेत्रत्व  का विरोध किया | परिणामस्वरूप  उन्हे पार्टी से निलंबित भी किया गया | शायद तकनीकी कारणो से उन्हे पार्टी से '''बर्ख्ख़स्त ""नहीं किया गया | लेकिन जिस स्वागत - सत्कार से उन्हे पार्टी  मुख्यालय मे  लाया गया ,उस से यह तो साफ हो गया की उन्हे भिंड की उनकी ही सीट से बीजेपी प्रत्याशी बनाने का मन बना चुकी हैं | छतरपुर के निर्दलीय विधायक मानवेंद्र सिंह ने भी सत्तारूद दल का दामन थाम लिया हैं , अब पार्टी उन्हे वनहा से   टिकेट दे पाएगी यह कहना मुश्किल हैं | वैसे वे काँग्रेस की सरकार मे मंत्री रह चुके हैं | रीवा  के सीधी ज़िले से निर्दलीय विधायक  के के सिंह  ज़रूर अपने छेत्र मे लोकप्रिय हैं ,इसलिए बीजेपी ने उनका इस्तेमाल नेता प्रति पक्ष अजय सिंह को चुनौती देने के लिए करने की मंशा है | ऐसा इसलिए भी संभव हो पाएगा की भले ही कम परंतु वे भी स्वर्गीय अर्जुन सिंह की राजनीतिक विरासत  के भागी दर हैं | जैसे मेनका गांधी और वरुण गांधी  श्रीमती इन्दिरा गांधी की विरासत का दावा करते हैं | महत्वाकांचाओ और  विरासतों  की साझेदारी का क्या परिणाम होगा यह तो चुनाव मे ही सामने आएगा ?