क्या निर्वाचन आयोग इस प्रचारों पर ध्यान देगा ?
निर्वाचन आयोग ने पैड न्यूज़ पर नज़र रखने के लिए तो अनेक शिंकंजे कसने शुरू कर दिया हैं , परंतु धर्म की राजनीति की दूकानों पर निगाह के लिए अभी ताक़ कुछ नहीं किया हैं | ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आजकल चुनावी राजनीति मे जिस प्रकार धर्म का इस्तेमाल किया जा रहा हैं , वह क्या उतना ही ''गैर कानूनी "" नहीं हैं जितना की पैड न्यूज़ ? योग शिक्षक जो अपने को ''बाबा''' कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं , उनका कहना हैं की मोदी मे राम जैसी प्रतिभा और बल हैं | इतना ही नहीं , विश्व हिन्दू परिषद के आद्यकष अशोक सिंघल ने तो मोदी को पहले ही राम की शक्ति का प्रतीक कह दिया हैं | मध्य प्रदेश के एक मंत्री कुसमरिया ने तो उन्हे भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार बता दिया हैं | दो दिन पूर्व ही इलाहाबाद मे कपूर नाम के कलाकार ने """ रेत""" के ऊपर ब्रम्हा -विष्णु- महेश की त्रिमूर्ति मे मोदी का चेहरा बनाया हैं | यह तो हुई कुछ धर्म की राजनीतिक दूकाने जो चुनाव के समय ही सक्रिय हो जाते हैं | अब इनको निर्वाचन आयोग की नज़र मे क्या कहा जाये ? क्या यह जो किया जा रहा हैं उसे """सही""" कहा जा सकता हैं ? क्या धर्म की भावनाए उभार कर लोगो की रॉय को प्रभावित करना कहा तक उचित हैं ?अगर पैसा देकर अपने पछ मे खबर छपवाना तो इन '''हरकतों''' से कनही ज्यादा अनुचित और ''अवैधानिक'' हैं |
अभी मध्य प्रदेश मे योग शिक्षक रामदेव ने मालवा मे अपने '''योग शिक्षा शिविरो ""'मे अध्यात्म अथवा पतंजलि के योग सूत्र की जगह वे लोगो को यह समझा रहे हैं की ""काँग्रेस तो अंग्रेज़ो की जासूस थे """ अब उनसे कोई यह पूछे की स्वतन्त्रता संग्राम की किस किताब मे यह सब लिखा गया हैं ? क्योंकि अभी तक तो अंग्रेज़ो के काल के दस्तावेज़ो के अनुसार तो सावरकर ने ही ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी | यह तो दस्तावेजी सबूत हैं | दूसरा आरोप उन्होने यह कहा की काँग्रेस '''चरित्रहीन और अपराधियो''' की पार्टी हैं | यह आरोप कोई राजनीतिक दल के नेता द्वारा लगाया जाता तो , समझ मे आता हैं , परंतु कोई भगवा वस्त्र धारी - तथाकथित सन्यासी यह '''आरोप'' लगाए जो पूर्णतया ''राजनीतिक'' बयान हो कितना उचित हैं ?
हमे और निर्वाचन आयोग को यह तय करना होगा की क्या इस प्रकार के प्रचार को ''जायज'' कहा ज़ सकता हैं ? चुनाव संहिता मे भी धर्म से संबन्धित प्रचार को ''अयोग्यता'' निर्धारित किया गया हैं | यहा तक की चुनाव के प्रचार बंद हो जाने के बाद आयोग ने अखंड रामायण आदि के नाम पर पार्टी द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों पर पूर्णतया रोक लगाने का फरमान जारी किया हैं | जब इस प्रकार के आयोजनो को ''अवैधानिक'' माना जा रहा है |तब फिर संहिता लगने के बाद भी क्या इस प्रकार के """धर्म की पैकिंग मे किया जा रहा राजनीतिक प्रचार """ जारी रहेगा ? तब कितना नियमो के अधीन ""स्वतंत्र और निसपक्ष " चुनाव संभव हो पाएंगे ?
निर्वाचन आयोग ने पैड न्यूज़ पर नज़र रखने के लिए तो अनेक शिंकंजे कसने शुरू कर दिया हैं , परंतु धर्म की राजनीति की दूकानों पर निगाह के लिए अभी ताक़ कुछ नहीं किया हैं | ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि आजकल चुनावी राजनीति मे जिस प्रकार धर्म का इस्तेमाल किया जा रहा हैं , वह क्या उतना ही ''गैर कानूनी "" नहीं हैं जितना की पैड न्यूज़ ? योग शिक्षक जो अपने को ''बाबा''' कहलाना ज्यादा पसंद करते हैं , उनका कहना हैं की मोदी मे राम जैसी प्रतिभा और बल हैं | इतना ही नहीं , विश्व हिन्दू परिषद के आद्यकष अशोक सिंघल ने तो मोदी को पहले ही राम की शक्ति का प्रतीक कह दिया हैं | मध्य प्रदेश के एक मंत्री कुसमरिया ने तो उन्हे भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार बता दिया हैं | दो दिन पूर्व ही इलाहाबाद मे कपूर नाम के कलाकार ने """ रेत""" के ऊपर ब्रम्हा -विष्णु- महेश की त्रिमूर्ति मे मोदी का चेहरा बनाया हैं | यह तो हुई कुछ धर्म की राजनीतिक दूकाने जो चुनाव के समय ही सक्रिय हो जाते हैं | अब इनको निर्वाचन आयोग की नज़र मे क्या कहा जाये ? क्या यह जो किया जा रहा हैं उसे """सही""" कहा जा सकता हैं ? क्या धर्म की भावनाए उभार कर लोगो की रॉय को प्रभावित करना कहा तक उचित हैं ?अगर पैसा देकर अपने पछ मे खबर छपवाना तो इन '''हरकतों''' से कनही ज्यादा अनुचित और ''अवैधानिक'' हैं |
अभी मध्य प्रदेश मे योग शिक्षक रामदेव ने मालवा मे अपने '''योग शिक्षा शिविरो ""'मे अध्यात्म अथवा पतंजलि के योग सूत्र की जगह वे लोगो को यह समझा रहे हैं की ""काँग्रेस तो अंग्रेज़ो की जासूस थे """ अब उनसे कोई यह पूछे की स्वतन्त्रता संग्राम की किस किताब मे यह सब लिखा गया हैं ? क्योंकि अभी तक तो अंग्रेज़ो के काल के दस्तावेज़ो के अनुसार तो सावरकर ने ही ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी | यह तो दस्तावेजी सबूत हैं | दूसरा आरोप उन्होने यह कहा की काँग्रेस '''चरित्रहीन और अपराधियो''' की पार्टी हैं | यह आरोप कोई राजनीतिक दल के नेता द्वारा लगाया जाता तो , समझ मे आता हैं , परंतु कोई भगवा वस्त्र धारी - तथाकथित सन्यासी यह '''आरोप'' लगाए जो पूर्णतया ''राजनीतिक'' बयान हो कितना उचित हैं ?
हमे और निर्वाचन आयोग को यह तय करना होगा की क्या इस प्रकार के प्रचार को ''जायज'' कहा ज़ सकता हैं ? चुनाव संहिता मे भी धर्म से संबन्धित प्रचार को ''अयोग्यता'' निर्धारित किया गया हैं | यहा तक की चुनाव के प्रचार बंद हो जाने के बाद आयोग ने अखंड रामायण आदि के नाम पर पार्टी द्वारा किए जाने वाले कार्यक्रमों पर पूर्णतया रोक लगाने का फरमान जारी किया हैं | जब इस प्रकार के आयोजनो को ''अवैधानिक'' माना जा रहा है |तब फिर संहिता लगने के बाद भी क्या इस प्रकार के """धर्म की पैकिंग मे किया जा रहा राजनीतिक प्रचार """ जारी रहेगा ? तब कितना नियमो के अधीन ""स्वतंत्र और निसपक्ष " चुनाव संभव हो पाएंगे ?
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