राष्ट्रपति
के धन्यवाद प्रस्ताव पर प्रधान
मंत्री का वक्तव्य ?
देश
और उसकी समस्या पर नहीं -
काँग्रेस
और नेहरू पर !
पंडित
नेहरू -
इन्दिरा
गांधी और राजीव गांधी ही समस्या
रहे !
सदन
मे लगा वे जन सभा को संबोधित
कर रहे है !
राष्ट्रपति
रामनाथ कोविद के संसद के
संयुक्त अधिवेशन मे दिये गए
उनके प्रथम भाषण मे जिन खास
मुद्दो का उल्लेख किया गया
था -उनका
संदर्भ अथवा विस्तार प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी के धन्यवाद
भाषण मे पूर्णतया "”अभाव
"”था
|
जबकि
उनके वक्तव्य को -
लिखा
'मोदी
सरकार ने ही था |
उन
विषयो मे विकास का उल्लेख था
---
जो
मोदी जी के कथन से 'गायब
'था
!
हाँ
जिन मुद्दो का ज़िक्र महामहिम
कोविद ने नहीं किया -मोदी
ने उनही को ज्यादा ज़ोर दिया
?
क्यो
-
वस्तुतः
राष्ट्रपति ने संसद को संभोधित
किया था |
जबकि
प्रधानमंत्री ने सामने बैठे
सांसदो को "”जनसभा
की भीड़ समझ लिया "””
!
काँग्रेस
के प्रधान मंत्रियो की तुलना
मे उनको ''हमेशा
एहसासे -
कमतरि"”
रहता
है -
अब
ऐसा क्यो यह वे ही बता सकते है
|
वे
भूल गए है की जिस कुर्सी पर वे
तीन साल से बैठे है ---
उस
पर उनसे पहले 17
लोग
रह चुके है !
वे
कोई "विलक्षण
नहीं है "”
|
उनके
कुछ कथन तो ऐतिहासिक दस्तावेज़ो
के ''नितांत
विपरीत '''है
|
जैसे
देश का विभाजन नेहरू ने --या
संघ की माने तब महात्मा ने
कराया |
विगत
तीन सालो मे मोदी जी के सार्वजनिक
भाषणो मे स्थान --नाम
की गलतिया तो छम्य हो सकती है
,
परंतु
दस्तावेजी प्रमाणो की अवहेलना
तो उनके तथा उनका भाषण लिखने
वाले के अज्ञान को ही उजागर
करती है |
उदाहरण
के तौर पर देश की सीमा से पहली
बार पैर निकाल कर भूटान की
विदेश यात्रा पर गए तो स्वागत
सम्बोधन मे उसे सिक्किम बता
दिया !
देश
के विभाजन के लिए राष्ट्रीय
स्वयं सेवक संघ और -
भारतीय
जनता पार्टी के नेता -
राष्ट्र
पिता महात्मा गांधी को और
पंडित जवाहर लाल नेहरू को
जिम्मेदार बताते है |
उनके
ज्ञान के अनुसार ऐसा इसलिए
हुआ क्योंकि नेहरू को प्रधान
मंत्री बनने की जल्दी थी !
इन
विद्वानो ने अगर ब्रिटिश संसद
द्वारा पारित ''India
Independence Act “” नहीं
देखा और पढा होता तब वे ऐसा
नहीं "””बोल
"””
सकते
थे |
ब्रिटिश
सरकार ने ही अपने ''आधिपत्य
वाले इलाको को दो देशो मे
विभाजित कर दिया था |
जिसका
नामकारण भी कर दिया था – इंडिया
यानि भारत एवं पाकिस्तान |
रेडक्लीफ़
मिशन को दोनों देशो की सीमाए
-
हिन्दू
और मुसलमान बहुल इलाको के
आधार पर करनी थी !!
अब
दो ही निष्कर्ष हो सकते है की
ब्रितानी संसद को किसने इतना
प्रभावित किया -जो
वे ऐसा करने पर मजबूर हुए ?
दूसरा
यह की उन्होने "”धर्म
के आधार पर देश को विभाजित
किया "”
? मोदी
जी और उनकी पार्टी तथा मात्
संस्था को यह ''सत्य''
अगर
नहीं मालूम तो वे राष्ट्रीय
अभिलेखागार मे दस्तवेज़ों को
"पढ"
सकते
है |
वैसे
आज देश मे कौन सी संस्थाए
"”धर्म
"”
की
राजनीति कर रही है ---यह
सड़क चलता हुआ आदमी भी बता सकता
है |
वैसे
विभाजन के लिए दोष लगाने से
पहले इन लोगो को "””
स्वतन्त्रता
की लड़ाई मे अपने योगदान को
खोजना चाहिए |
कुछ
क्रांतिकारियो के नाम उछलने
से संघ या बीजेपी उनकी "”
अभिभावक
"”
नहीं
बन जाती |
दर्जनो
संगठन 'हिंसात्मक
'
तरीके
से अंग्रेज़ सरकार को भयभीत
करने का प्रयास कर रहे थे |
परंतु
उसकी प्रतिकृया बहुत भयानक
और पीड़ादायक हुई है |
सान्डेर्स
की हत्या के बाद जालियानवाला
बाग की लोमहर्षक घटना हुई -
जब
लोग टेलीफोन के तार काट देते
थे – तब हुकमरान उन सभी घरो
के रहवासियों पर "”जुर्माना
"”
लगा
देते थे जिनके सामने से होकर
तार गुजरा |
इन
हालातो मे रहवासी परेशान हो
जाते थे |
बहुत
से लोग -
कुछ
लोगो की करनी का दुष्परिणाम
भोगते थे |
भगत
सिंह को अक्सर सरकार समर्थित
तत्वो द्वरा गांधी और काँग्रेस
के विरोध मे "बतौर"
सबूत
लिया जाता है |
परंतु
जुमलेबाजी
और तुकबंदी वाली टकसाली
बयानबाजी का आधार नितांत
सतही होता है "
भगत
सिंह ने अपने खत मे दक्षिण
पंथियो की काफी लानत मलनत की
है |
वे
पूरी तरह से ''वामपंथ
''
के
समर्थक थे !
अब
यह तो वैसा ही है की गोडसे के
समर्थक महात्मा गांधी के भी
आराधक हो !!
यही
पाखंड है |इसके
बरक़स संघ और उनके सहयोगीयो
का आज़ादी की लड़ाई मे योगदान
"”शून्य''
रहा
है |
जिन
लोगो ने आज़ादी की लड़ाई मे भाग
नहीं लिया वे भी उस लड़ाई मे
"”
क्रांतिकारी
"”
बनने
की असफल की कोशिस कर रहे है |
मोदी
जी के सहायकों को जानना चाहिए
की "”
लोकतन्त्र
"”
और
गणतन्त्र मे अंतर है |
ब्रिटेन
-
जापान
और स्पेन -
नार्वे
तथा स्वीडन जैसे राष्ट्रो
मे लोकतन्त्र
है परंतु वे गणतंत्र नहीं है
----
क्योंकि
वंहा सत्ता के लिए सरकार का
चुनाव होता है ---परंतु
राष्ट्र की एकता का सूत्र
सम्राट होता है |
जो
वंशानुगत होता है |
मोदी
जी ने बारंबार कहा की "नेहरू''
ने
लोकतन्त्र नहीं दिया --हमारे
यानहा लिछ्च्वी '''गणराज्य
''
था
|
एक
बार फिर माननीय से '''चूक
''
हुई
|
मोदी
और उनके "”भक्त
"”
चाहते
है की लोग प्रधान मंत्री को
"”सम्मान
दे उनका नाम आदर से ले !!
परंतु
मोदी जी खुद और उनके समर्थक
"”
दूसरों
को सम्मान और आदर नहीं करते
|
पार्टी
के प्रमुख अमित शाह महात्मा
गांधी को "”चतुर
बनिया "”
कहते
है सार्वजनिक मंच से !!
वेदिक
काल से ही राजा का शासन चलाने
के लिए दो सभाए होती थी |
पहली
इलाकाई आधार पर और दूसरी पेशागत
आधार पर होती थी |
परंतु
पौराणिक काल मे दैवी सिधान्त
का प्रतिपादन हुआ |
तब
कुछ राजतंत्र निरंकुश हो गए
थे |
तब
इन दोनों सभाओ ने राज्य प्रमुख
के चुनाव की अवधारण का आविष्कार
किया |
प्रमुख
का चुनाव एक नियता अवधि के लिए
होता था |
परंतु
सिकंदर के आक्रमण के दौरान
कठ और अन्य गणराज्यो को समाप्त
कर आधिपत्य कर लिया |
जिस
प्रकार सम्राट अशोक के
उत्तराधिकारी अजातशत्रु ने
लिक्ष्वी और वैशाली आदि
गणराजयों कोसमाप्त कर दिया
|
तो
वह गणतंत्र था लोकतन्त्र नहीं
!!!
भारत
यानि की इंडिया राज्यो का एक
गणतन्त्र संघ है ||
मोदी
जी और
उनके सहयोगी अमित शाह अपने
को गर्व से गुजराती बनिया
कहते है ---
परंतु
वे बही के एक ओर यानि की ''लेनदारी
''
पर
ही नज़र रखते है |
''देनदारी
"”
के
खाते को भूल जाते है |
जबकि
ईमानदार हो या ना हो बनिया "”
बही
खातो '''
मे
बेईमानी सरकार और टैक्स वसूलने
वालो से करता है ,,
परंतु
बिरादरी और आम जन से नहीं करता|
क्योंकि
वे ही उसकी '''साख
'''
है
|
60 सालो
के देश के इतिहास मे इतना कुछ
हुआ है मोदी जी की '''आप
और आपके आनुशागिक संगठन भी
उसे मिटा नहीं पाएंगे "”
! गुजरात
के आनंद मे अमूल डेरी जिस
सहकारी आंदोलन का प्रतिफल है
---
वह
ना तो संघ और नहीं भारतीय जनता
पार्टी के प्रयासो का फल है
!!
आप
को खुद को विदेश मे परिचय देना
पड़ता है -----परंतु
अमूल उत्पाद को नहीं |
एक
दावा संघ और बीजेपी नेताओ
द्वरा बार -
बार
किया जाता है --की
पंडित नेहरू ने पटेल को प्रधान
मंत्री "”
नहीं
बनने दिया "”
| हालांकि
इस बारे मे कोई सबूत कभी पेश
नहीं किया |
मोदी
जी ने लोकसभा मे कहा की सोलह
मे से चौदह समितियों ने पटेल
के नाम की सिफ़ारिश की थी ?
अब
वे किन समितियों की बात कर रहे
है --यह
नहीं स्पष्ट नहीं किया |
संविधान
सभा मे समितियों का गठन हुआ
था |
इन
समितियों का उद्देश्य विभिन्न
मुद्दो पर विचार कर के अपनी
रिपोर्ट सभा के सामने "”
पेश
करना था |
इन
समितियों की ज़िम्मेदारी
"”प्रधान
मंत्री "”
चुनना
नहीं था ?
रही
बात पंडित नेहरू के प्रधान
मंत्री बनने की तो वह महात्मा
गांधी का सुझाव था |
इसका
प्रमाण सरदार पटेल का वह पत्र
है -जो
उन्होने पंडित नेहरू को लिखा
था |
जिसमे
उन्होने स्पष्ट किया था की
वे महात्मा की इच्छा के अनुसार
मंत्रिमंडल नेहरू मंत्रिमंडल
मे शामिल होंगे |
वे
महात्मा के निर्णय का सम्मान
करेंगे !!
शायद
इस पत्र को मोदी जी नए नहीं
देखा होगा !!!
विभाजन
हो अथवा पंडित नेहरू के प्रधान
मंत्री का मसला हो उसके लिए
ब्रिटिश संसद और महात्मा ही
जिम्मेदार थे !
अब
क्या मोदी जी राष्ट्र पिता
को भी "”कलंकित
"”
करने
की कोशिस जारी रखेंगे ??
प्रधान
मंत्री नरेंद्र मोदी देश को
सुखद भविष्य की योजनाए को
क्रियान्वित करने की जगह देश
के इतिहास को अपने "”अनुसार
बदल कर पेश करना चाहते है "”
| जो
ना तो तथ्यात्मक है और नाही
ऐतिहासिक है |
उनकी
सोच और शक्ति सिर्फ चुनाव
लड़ने के गिरोह के मुखिया भर
बन के रह गये है |
जो
नितांत अवांछनीय है |
भारत
ऐसे विकसित राष्ट्र के लिए
यह "”घातक
"”
साबित
होगा |