योगी
जी बहुत हुआ -पर्मिट
क्लर्क के अड़ंगे -मजदूरो
को प्रयाण करने दे !
मजबूर
मजदूरो की मैराथन पद यात्रा
मैं भूखे -
प्यासे
स्त्री पुरुषो का कष्ट आपको
नहीं दिखता -बस
आपकी राजनीति फ़ेल ना हो जाए
,इस
भय से आप बाबू टाइप एतराज़ लगा
रहे है |
और
राजनीतिक विरोधियो पर झूठ
बोलने आ आरोप लगा रहे है ,
कभी
पलट कर अपने बयानो पर गौर
कीजिएगा की कितना "”सच"”
उनमे
था !
आप
की सरकार मजबूर मजदूर और मरीजो
की मौत की संख्या पर आपका सत्य
किसी दिन अगर होगा --उस
दिन आप अपने मठ की प्रतिस्ठा
को कलंकित कर चुके होग्ङ्गे
!
यह
समय भी निकाल जाएगा -आप
अमरता नहीं लिखा कर लाये हैं
,
ना
ही अनाड़ी काल तक आप पदासीन
रहेंगे |
गीता
में श्री कृष्ण ने कहा है की
जो "”शासक
सत्या की अनदेखी कर सत्ता से
चिपका रहता है उसकी अवनति
निश्चित हैं |
आपके
आदि गुरु गोरखनाथ ने राज्य
त्यागा था-सत्या
की खोज के लिए ,
और
आप सत्य से अंखे मूँद रहे है
|
आज
भी लाखो लोग उत्तर प्रदेश के
निवासी आगरा -
गाजियाबाद
-झाँसी
-
चाक
घाट पर अटके पड़े हैं ,
रेल
की सुविधा से वंचित ,इन
लोगो के पास खाना खरीदने को
भी पैसा नहीं है ,
बिस्कुट
खा कर सैकड़ो मील की मरथन यात्रा
कर के ये लोग अपने घर जाना छाते
हैं |
| आप
इन्हे रोके नहीं मदद करे |
खुद
बसे नहीं भेज सकते तो जो भी इस
काम में सहायता कर रहे हैं
--उसे
मंजूरी दीजिये ---राजनीति
मत करिए आप के राज्य में अभी
तक 40
मजदूरो
की मौत हो चुकी हैं ,
उनकी
आत्मा के लिए ही उनके परिवार
वालो को घर जाने दीजिये |
कोरोना
के संक्रामण के लिए आप इनकी
जांच करे -
संक्रमित
पाये जाने पर -उन्हे
क़्व्रंटाइन या एकांतवास में
रखे ,गाव
-गाव
में स्कूल अथवा पंचायत भवन
में उन्हे रखा जा सकता हैं |
पर
आप सरकार हैं कुछ करिए !
पैदल
चलते हुए इन लोगो के बच्चो की
दयनीय हालत देख कर किसी भी
माता पिता का दिल और आँख भर
आती है ,
यह
वात्सल्य शायद आपको नहीं
मिला इसलिए आप कठोर हो रहे
हैं !
यह
अनुचित हैं |
करोड़ो
लोगो की सड्को पर पदयात्रा
को लेकर भी आपने अपनी डांडा
मार पुलिस को कह दिया हैं की
कोई सड्को पर पैदल न चले -अथवा
ट्रक या अन्य साधन से प्रदेश
की सीमा मै नहीं प्रवेश करने
दिया जाये !
क्या
सड़क सिर्फ कार वालो के लिए और
ट्रको के लिए ही सुरक्शित हैं
?
इसलिए
की पैदल चलने वाले रोड टैक्स
नहीं देते !
अथवा
उनको भी हिटलर के जर्मनी की
भांति अनुज्ञा पत्र लेकर चलना
चाहिए !
अभी
तक कोरोना मर्ज का कोई अक्सीर
इलाज नहीं मिला है ,
कहते
हैं कोई वैक्सीन अमेरिकी
कंपनी ने निकाली है --पर
वह आम आदमी की हैसियत से बहुत
दूर हैं |
वह
तो कुछ बड़े और विशिस्त लोगो
को ही संभव होगी |
आप
तो इन परदेश कमाने गए मजदूरो
को उनके घर जाने दे |
जब
वे 1400
किलोमीटर
पैदल चले है --तो
थोड़ा और चल लेंगे |
पर
आप का भासन की "””प्रवासी
मजदूरो को सम्मान और सुविधा
से उनके घर पहुंचाएंगे "””
किस
तरीके से संभव होगा ?
जो
आप कर रहे हैं --उससे
तो संभव नहीं |
आज
बड़े -
बड़े
अखबार भी विज्ञापन के डर से
इन मजदूरो की बेबसी पर बस एक
फोटो भर छाप देते हैं ,
उनकी
व्यथा -
कथा
लिखने का साहस उनमें भी नहीं
बचा हैं |
देश
विभाजन के समय रिफ़्यूजी कैसे
आए और उन्होने कैसे अपने को
इस देश की आबो -
हवा
में ढाला हम सबने देखा हैं |
तब
इनके दुख दर्द पर साहित्य लिखा
गया ----हो
सकता है ,
आने
वाले दिनो में इनकी व्यथा भी
लिखी जाये ,
तब
आप सभी की भूमिका पर भी कलम
चलेगी |
सआदत
हसन मंटो की टोबाटेक सिंह
उस बँटवारे की पीड़ा को उजागर
करता हैं |
जो
घर के उजाड़ जाने की होती हैं
|
यानहा
तो अपने घरो को वापस लौटने की
त्रासदी -वह
भी अपने ही देश में कितनी होगी
यह कल्पना ही की जा सकती हैं
|
आज
ये मजदूर कोरोना से भयभीत नहीं
हैं -डरते
है तो पुलिस के डंडे की मार से
जो न यह देखता हैं की सामने
महिला है हैं अथवा -पुरुष
या बच्चे|
आपके
क़्व्रनटिन या एकांतवास की
हक़ीक़त तो रायबरेली में उजगर
हो चुकी हैं ,
जनहा
डाक्टरों ने भी रहने से मना
कर दिया था,
तीन
दिन बाद आपको फैसला बदलना पड़ा
और सही स्थान पर मरीजो को
भेजना पड़ा |
हम
कोरोना वीरो का सम्मान जरूर
करे ---
पर
इन मजबूर मजदूरो की शौर्य
गाथा की अनदेखी ना करे |
क्योंकि
जिस प्रकार इन लोगो ने मुंबई
-
सूरत
राजकोट तथा दिल्ली और राजस्थान
से पैदल निकाल कर घर की ओर
प्रयाण किया वह असधारण हैं
|