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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 11, 2018


क्या त्रिपुरा मे माणिक सरकार की हार ने देश से वामपंथ को समुद्र मे विसर्जित कर दिया? क्या माणिक सरकार की सादगी 25 वर्षो तक एक ढोंग थी

कुछ अति उत्साही लेखको ने त्रिपुरा मे सीपीएम की माणिक सरकार की विधान सभा चुनावो मे बीजेपी गठबंधन से 5000 मतो से पराजय ने देश मे वामपंथ की विचारधारा को ही भारत के लिए गैर ज़रूरी बताया है !! हेरे एक अनुज समान जयराम शुक्ल ने तो विप्लव दास की तारीफ करते हुए उनकी तुलना माणिक सरकार से भी कर डाली , जबकि वे अभी कुछ ही दिन हुए पदासीन हुए है | उनकी सादगी और ईमानदारी अभी परखी जानी है | यह प्रतिकृया काफी जल्दबाज़ी मे की गयी है |
भारतीय जनता पार्टी ने "”एक तथाकथित सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के छदम प्रचार की जमीन पर भारतीय जनता पार्टी गठबंधन की सरकार बनी है "” | इस सत्य को अनदेखा नहीं नहीं करना चाहिए | एक गणित के अनुसार सीपीआई और सीपीएम का अगर गठबंधन होता तो दोनों के मत मिलकर बीजेपी को मिले मतो से 14000 अधिक होते ---तब की कल्पना कीजिये !! इस जमीनी सच्चाई को भूल कर सिर्फ विजय के मद मे ऐसे ''फतवे देना'' उचित नहीं है |

हमारे दूसरे मित्र ने तो माणिक सरकार की जीवन शैली को मुगल बादशाह और्ङ्ग्ज़ेब से तुलना कर डाली !! जो टोपी सीकर और कुरान लिख कर अपना निजी खर्च चलाता था !! उनका आरोप है की औरंगजेब ने "”बेगुनाही की हत्या करवाई | माणिक सरकार लोकतन्त्र मे चुनाव जीत कर पाँच बार सत्तासीन हुए थे | उन्होने बेगुनाहों की हत्या करवाकर जीत हासिल नहीं की थी | जन जातियो और बंगाली समुदाय के बीच संतुलन रख कर उन्होने 25 साल शासन किया | उनके कार्यकाल मे कोई ऐसी हिंसक वारदात नहीं हुई जिसकी स्म्रती देशवासियों को हो | किसी भी राज्य मे अपराध अथवा सामूहिक अपराध का होना वनहा की सरकार के लिए चुनौती तो होता है | परंतु साधारण बीमारी और कैंसर का अंतर अपराधो मे भी होता है | त्रिपुरा मे ऐसा कोई कैंसर नहीं था | हाँ चुनव जीतने के बाद जिस प्रकार लेनिन की मूर्ति ढहायी गयी और जिस प्रकार 15 नगरो मे दूकानों और घरो मे विजय के मद मे उत्तेजित भीड़ ने लूटपाट की और आगजनी की वह "””साधारण अपराध की बीमारी से ज्यादा संक्रामक व्याधि ही है "”” |

जिन लेखको और स्तंभकारों को लगता है की वामपंथ तिरोहित हो गया है उन्हे अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले नासिक से मुंबई पैदल मार्च कर रहे 30,000 हज़ार किसानो के अनुशासित "”लाँग मार्च "” को देखना और समझना चाहिए | उनका उद्देस्य क़र्ज़ माफी और भूमि से संबन्धित कब्जे और सिंचाई की मांगो पर महाराष्ट्र सरकार का ध्यान खीचना है | वे तप्ति धूप मे पैदल चल रहे है | परंतु ना तो कोई टीवी चैनल अथवा कोई अखबार उनके आंदोलन की खबर को ना तो दिखा रहा और ना ही इस बारे मे लिखा जा रहा है | इतना ही नहीं प्रदेश सरकार की अनदेखी इस बात से साफ है की तीन दिन बीत जाने के बाद भी उनका कोई नुमाइंदा प्रदर्शनकारियो से मिलने नहीं गया है | कहने का तात्पर्य यह है की वामपंथ समुद्र मे नहीं डूबा वह अभी भी अरब सागर के तट पर जाग्रत और क्रियाशील है |

अब पुनः आते है माणिक सरकार की सादगी और निजी तथा आधिकारिक जीवन के बारे मे ----जिसे दरिद्रता का रुदन बताया है |
1- क्या माणिक सरकार की भांति विप्लव दास दो कमरे के घर मे निवास करेंगे ? वैसे विप्लव तो संघ की अविवाहित कार्यकर्ता है उन्हे तो एक कमरा ही पर्याप्त है |
2- क्या वे भी बिना सुरक्षा कर्मियों के ताम-झाम के अगरतला की सडको पर
आम जनता से मिल कर उनकी शिकायतों को सुनेंगे ??

3- माणिक तो निजी जीवन मे साइकल पर चलते थे ---सिर्फ दफ्तर के कारी होने पर ही कार का इस्तेमाल करते थे – क्या विप्लव ऐसा करेंगे ??

4- हाल ही मे उनके इंटरव्यू मे जिस घर मे उन्हे भोजन करते हुए दिखाया गया है ----वह इन सभी संभावनाओ को नकारता है |
अभी बहू के पैर घर मे पड़े है आगे यह देखना होगा की नरेंद्र मोदी जी का यह हीरा सजता है अथवा लोगो के लिए ख़ुदकुशी का औज़ार बंता है ? भविष्य ही बताएगा | परंतु लिखने वालो को इन मुद्दो पर भी विचार करना चाहिए था
आखिर यह वामपंथ पर बीजेपी गठबंधन की संकरी सी जीत ही है ज्यादा कुछ नहीं |