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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 21, 2014

धार्मिक कुरीतियों पर कुठराघात के लिए खुद लोग आगे आ रहे है ना कोई नेता नाही संगठन है तैयार



धार्मिक कुरीतियों पर कुठराघात के लिए खुद लोग आगे आ रहे है ना कोई नेता नाही संगठन है तैयार

जैसे उन्नीसवी सदी मे बाल -विवाह ,सती प्रथा आदि कुरीतियो को राजा राम मोहन राय ने एक आंदोलन
चला कर तत्कालीन शासको को इन समस्याओ को हल करने पर विवश किया था | अंग्रेज़ो के समय मे दोनों ही बुराइयों पर रोक लगी
शारदा विवाह कानून बना कर उन्होने केवल ''ब्रामह विवाह''' को ही मान्यता दी | वेदिक धर्म मे बताए गए विवाह के अन्य तरीको
को कानूनी मान्यता नहीं दी | वरन""राक्षस"" और ""पैशाच"" प्रकारो को गैर कानूनी ठहराया | "राक्षस"" विवाह मे कन्या
खिला --पिला कर उसे बलपूर्वक उठा लाना ""पैशाच"" विवाह मे तो धोखे से नशा करा कर बलात्कार करने को भी विवाह की
मान्यता दे दी थी |मनु संहिता मे भी इन्हे स्वीकार किया गया हैं | जिनहे आज भारतीय दंड संहिता मे इन्हे ''भगाने'' और ''
बलात्कार का अपराध माना है | एवं उसे गर्हित अपराध माना गया है |

देश मे विधवा -विवाह को कानूनी मंजूरी मिल जाने के बाद भी एक -दो -
प्रकरण ही देखने को मिलते है | जबकि वेदिक - जैन धर्म के मानने वालों मे ""तलाक"" की काफी घटनाए सुनने मे आती है |जबकि
इस ""स्थिति"""का कोई हवाला नहीं मिलता है | राम चरित मानस मे सुग्रीवा की पत्नी को बल पूर्वक बाली द्वारा अपन्बे रनिवास मे
रखने का ज़िक्र आता है \हालांकि इस क्र्रतया को पाप बताते हुए बालि -वध को वैधानिकता दी गयी | 21स्वी सदी मे भी विधवा को
""हेय" द्रष्टि से देखा जाता है |परंतु अंध -विश्वास और रुडियो से ग्रष्त समाज मे भी कुछ ऐसी पहल देखने को मिलती है जो यह
सिद्ध करती है की वेदिक धर्म की सनातन परंपरा को मानने वाला हिन्दू के नाम से जाने जाना वाला समूह मे भी परिवर्तन की चेतना
है , एवं कुछ बेहतर करने की ओर ""समाज के अंजाने लोग ही इस परिवर्तन के वाहक बने है |ना की कोई अपने को सामाजिक
संगठन कहने वालों की भीड़ स्वे निकाल -कर आता है ना ही कोई राज नेता इस ओर कोई पहल करता है|

कन्या पक्ष को हेय और छोटा मानने वाले समाज की धारणा तथा दहेज की "कुप्रथा"के विरुद्ध ऐसी ही एक
पहल उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के घानापुर गाँव के भूट्पुर्व ग्राम प्रधान महेंद्र यादव के घर मे उनके बेटे अरुण को ब्याहने के लिए
फूलपुर कलाँ की कुमारी निशा ""बारात"" ले कर आई | विवाह की सारी रष्मे लड़के के घर पर ही सम्पन्न हुई , फेरे भी लड़के के घर
पर लिए गए , और "बारात""की विदाई हुई जो बिना दुल्हन के वापस चली गयी |बरतियों की खातिरदारी लड़के वालों द्वारा की गयी ,
""विदाई""रशम को खतम कर दिया गय | विवाह मे यादव समाज के लोग कागी संख्या मे शामिल हुए |कोई दहेज भी नहीं लिया गया || यह तो एक शुभ अवसर पर होने वाली कुरीतियो को खतम करने वाली पहल थी | दूसरी घटना मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर की है ,
जनहा बलदेव बाग मे रहने वाली श्रीमती अरुणा अवस्थी का देहावसान हो गया | उनके पुत्र का कुछ समय पूर्वा देहांत हो चुका था | घर
मे विधवा बहू प्राची ही थी | सबकी सहमति से प्राची ने अपनी सास को मुखाग्नि दी | प्राची वन विभाग मे कार्यरत हैं |

इन घटनाओ मे यादव जिनहे वर्णाश्रम मे पिछड़ा माना जाता हैं उन्होने दहेज का बहिसकार करके और कन्या पक्ष को
प्रतिष्ठा देते हुए वधू को बारात की अगुवाई करने का श्रेय दिया |दूसरी ओर रुदीवादिता और अनवस्यक रीति -रिवाजो से ग्रसत ब्रामहन
जाति ने भी स्त्री को बराबरी का दर्जा देने की पहल की | ऐसे ही प्रयासो से हम यह बता सकेंगे की अब दोनों ही बराबर है --क्या
लड़की या क्या लड़का |