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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 8, 2023

 

फिलिस्तीन – इज़राइल टकराव !

ना तो ये युद्ध है ना ही आक्रमण –यह है नस्ल संहार !

 

          संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गाज़ा पट्टी पर इज़राइल की फौजी कारवाई  ने अब तक  17000 { सत्रह हज़ार } और 700 {सात सौ } फिलिस्तीनी  लोगो की मौत /हत्या / वध का जिम्मेदार है ! यूक्रेन  और रूस के दरम्यान पिछले “”साल भर से चल रहे युद्ध “” में भी इतने लोगो की मौत नहीं हुई ---जितनी इज़राइल की  अहंकारी नेत्न्याहु सरकार ने “ एक माह मे भी  निहथे नागरिकों को मौत की नींद सुला दिया हैं |  भारत के संदर्भ में  ने इतनी मौते  बंगला देश युद्ध में भी नहीं हुई थी | शायद  दूसरे महायुद्ध में  बर्लिन के घेरे के समय  भी दोनों पक्षो ने इतनी “”जन हानी  “ नहीं उठाई होगी !  जितनी इज़राइल की ज़िद्द  बेगुनाह फिलिस्तीनी  लोगो को  मार रही है | इज़राइल ने  अपनी कारवाई के पहले ही  “यह साफ कर दिया था की वह अपनी कारवाई के लिए किसी नियम या अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होगा !  यानि गाज़ा में उसकी फौजी कारवाई ना तो युद्ध है ना आक्रमण है  यह “बस कारवाई है “ जो हमास  को मिटा कर ही खतम होगी ! 

             अब हमास एक आतंकवादी संगठन  है ,जैसा इज़राइल कहता है ---परंतु  बीबीसी ऐसे चैनल  और उदरवादी खबरों के संस्थान  चाहे  वे रेडियो हो या फिर चैनल हो या अखबार हो सभी इसे आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे सशस्त्र  संगठन  ही माना है | यानहा तक की बीबीसी को  ब्रिटिश प्रधान मंत्री सुनक की सार्वजनिक फटकार भी सुन नी पड़ी !  अब ऐसे संगठन से कोई भी राष्ट्र  कैसे लड़ सकता है !  अमेरिका  ने  भी ओसामा बिन लादेन  के लिए ना तो सऊदी अरब में और ना ही पाकिस्तान पर फौजी  कारवाई की थी | क्यूंकी बिन  लादेन एक आतंकी संगठन चला रहा था ----जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं थी | जैसी हमास की कोई सीमा ना ही उसका सिक्का किसी निश्चित भू भाग मे चलता हैं |

           इन तथ्यओ के बावजूद  अमेरिका के राष्ट्रपति  बाइडेंन  गाज़ा पट्टी में हो रहे “फिलिस्तीनी नस्ल संहार “ को रोकने के लिए कड़ी कारवाई  नहीं कर रहे है !! वैसे  सुपर पावर  का अपना दर्जा  वे सुरक्षा परिषद में  “” ही दिखाते  रहते है “”इसलिए अमेरिका अपने अहंकार और हथियार निर्माण करने वाले बहु राष्ट्रीय कंपनियो  के मुनाफे के लिए वियतनाम  में  सालो साल युद्ध करते रहे | भले ही वनहा से “”बड़े बेआबरू “” हो कर निकले ! जिन  मनवाधिकारों की रक्षा के लिए  सालो साल युद्ध किया ----उनके निकलने के बाद उत्तर और दक्षिण  वियतनाम  डॉ हो ची मिनह के नाम पर एक हो गए |

      अफगानिस्तान मे गए थे  “”तालिबान “ का वंश नाश  करने ----और राष्ट्रपति ट्रम्प की सनक के चलते  उनही को सैनिक सामान सहित  देश सौंप आए !  सुपर पवार राशतों में फ्रांस ने इज़राइल को साफ –साफ कह दिया की गाज़ा में नागरिकों के खिलाफ उनकी कारवाई का वह विरोध करता है|  ब्रिटेन और अमेरिका  यहूदी धन कुबेरो  के प्रभाव  और उनके चुनावी चंदे की लालच में  इज़राइल का आंखमुंद कर  हाँ जी हाँ जी कर रहे हैं |

हालत यह है की संयुक्त राष्ट्र संघ  और विश्व स्वस्थ संगठन  के बार – बार अपील करने पर भी नेत्न्यहु अपना प्रधान मंत्री पद बचाने के लिए गाज़ा की  फिलिस्तनी बच्चो और निहथे नागरिकों का  “”कत्ले –आम “” कर रहे है | जो मरने वालो की संख्या से  ज़ाहिर है |  कुछ ऐसा ही काम  म्यांमार  का  “ सैनिक  जुनटा “”  चिन जन जातियो का नर संहार कर रहा है | इनमे अधिकान्स्तः  मुसलमान है ,जिनहे बंगला देश ने अपने यानहा शरण  दिया है | और जो ईसाई है उन्हे मिज़ोरम  और मणिपुर  मे शरण लिया है |   अफ्रीका के कई देशो में जातीय  द्वंद के लिए  विरोधी जन जातियो के गाँव के गाँव  जला कर आबादी का संहार कर दिया जाता है | बोको हराम एक उधारण है |

      जनहा  संयुक्त राष्ट्र संघ  के सदस्यो  से यह अपेकषा  की जाती है की वे उसकी अपील को स्वीकार करेंगे ---इज़राइल  यूएनओ के कर्मचारियो को भी गाज़ा  मे  शरनार्थियों  की मदद के ल्ये भी नहीं जाने दे रहा है | जैसे उत्तर कोरिया के तानाशाह  किम उल सुन  करते है | क्या इज़राइल भी  भी अनियंत्रित  राष्ट्र नहीं बन रहा है !

Dec 5, 2023

 

विधान सभा चुनाव  परिणाम बनाम  महाभारत  की द्यूत क्रीडा  !

 

        जब कुछ ऐसा घटित होता हैं  जो असामान्य  या असंभावित हो तब – तब  शकुनि के पाँसो की चमत्कार  की याद आती है !  जिस प्रकार  जुए  में हार –जीत होती है  , परंतु यदि एक पक्ष  की ही विजय हो तब कुछ असंभव को संभव कला  का संदेह  होता हैं |   जिस प्रकार पांडवो  की लगातार द्यूत में  शकुनि के “” मंत्र अभिसिक्त “ पाँसो ने अपने “मालिक “ के कहे को सत्या किया ---कुछ उसी प्रकार  चुनावो में शायद  

ईवी एम मशीनों ने भी चुनाव परिणाम उगले है |  क्यूंकी विरोधी दलो उम्मीदवारों को उनके ही गाँव  में फक्त  40 से 50 वोट मिलना  आश्चर्य की बात है !

      परंतु जब  गंगा पुत्र  भीष्म  जिस प्रकार कौरव सभा में मजबूर हो गाये थे इस अन्याय को रोकने में  उसी प्रकार भारतीय  न्यायालया  भी मजबूर दिखाई दिये | आखिर वे कर भी क्या सकते थे राजसत्ता के सामने |, जैसे महामहिम  होने के बाद भी वे ना तो शकुनि और दुर्योधन  के षड्यंत्र को  नहीं रोक सके , और अपनी आंखो के सामने द्रौपदी  का चीर हरण  होने दिया कुछ – कुछ वैसा ही   विपक्ष के साथ ईडी और सीबीआई का अत्याचार  देखते रहने  का दुर्भाग्य भी भारतीय अदालते  देखती रही --- कानून का हवाला दे कर  भी वे “” न्याय “ नहीं कर सके |  द्रोणाचार्य  जैसे अनुशासन  की मूर्ति  भी   चुनाव आयोग  के समान ही थे | जो सिर्फ  कमजोर भील बालक का अंगूठा  गुरु दक्षिणा मे लेकर  अपने शिष्यो के प्रतिद्व्न्दी  को खतम  किया –कुछ वैसा ही हमारे  निर्वाचन  आयोग ने किया |  सत्ता के पक्ष में वे सदैव  ही खड़े रहे –भले ही वह न्याययोचित  रहा हो अथवा नहीं |  जिस प्रकार चुनाव प्रचार के दौरान  प्रधान मंत्री और गृह मंत्री द्वरा  राजस्थान और छतीसगरह  में वनहा की सरकारो को  बदनाम करने के प्रयास  हुए , वह कुछ कुछ  एक्लवय  से गुरु दक्षिणा  में हाथ का अंगूठा  काट कर मांगने जैसा ही था | परंतु जो भी हो  द्यूत क्रीडा में पराजित  “”पांडवो  को वनवास झेलना पड़ा था , कुछ – कुछ वैसा ही  अब वर्तमान राजनीतिक परिद्र्श्य  दिखाई पद रहा है |   उससे यह  भान होता है की मशीनी मतदान  के चमत्कार से स्टारूद दल को ही सफलता मिलेगी | जब तक कोई  बरबरिक  इस व्यव्स्था  को धराशायी न कर दे और मानवीय  मतदान  से देश और सत्ता सूत्र का निश्चय ना हो !

         परंतु इसके लिए महाभारत  ही होना पड़ेगा , अन्यथा  वनवास और अज्ञातवास  ही झेलना होगा !  आखिर क्या उपाय हो सकता है जिसमे इस असामान्य  स्थिति को  सामान्य किया जा सके जिसमे  सत्तारूद दल  भी दूसरे राजनीतिक दलो की बराबरी  से ही रतियोगिता में उतरे ------उसके विशेसाधिकार  उससे छिन जाये ?  अभी तो कोई  समीकरण सामने नहीं है –परंतु कुछ तो करना होगा , अन्यथा संसद के बहुमत  के रोड रोलर के तले  लोकतन्त्र पिस्ता ही रहेगा | एवं एकतंत्र  को ओर  बदता रहेगा |

Nov 28, 2023

 

पिछड़ी जातियो के वोटो की राजनीति !

मोदी की शतरंज के चौथे शिकार क्या  योगी होंगे ?

        नाइन इयर  के कार्यकाल में  प्रधान मंत्री ने अनेक परदेशो के नेत्रत्व को झटका  दिया है | पहला झटका उत्तराखंड  फिर गुजरात और  महाराष्ट्र  और मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्रियो  को लगा |  इन लोगो को जिस प्रकार  बेबस  कर के पैदली मात दी वह उनके “”अपराजेय “  व्यक्तित्व का विज्ञापन ही है | अब इस बार  उनका निशाना  उत्तर प्रदेश  के  भगवा धारी मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ है !   हाल में ही हुए पाँच राज्यो  मे से चार  में  “”अपनी पार्टी  की गिरती साख और आसन्न  पराजय  का आभास मिलते  ही , राहुल गांधी के एजेंडा “ पिछड़ी जातियो की जन गणना “ के सामने झुकते हुए   बीजेपी शासित राज्यो में इनहि वर्गो का नेत्रतव  देने की कवायद में जुट गए है |  इसका पहल प्रयोग उत्तर प्रदेश से शुरू  होगा , जनहा लोकसभा  की सर्वाधिक सीटे है | जो मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने के लिए “बेहद जरूरी है  “” |

         इसीलिए  नवंबर माह की गृह विभाग की बैठक की अधच्यता  उप मुख्य मंत्री  केशव प्रसाद मौर्य द्वरा लिया जाना   ---इस बात का संकेत है , की बदलाव की घंटी बज चुकी है |  गौर तलब है की  विभागीय मंत्री ही ऐसी बैठको की अध्याछता करता है | योगी जी सरकार के गठन के समय से ही गृह मंत्री है | ऐसे में  जबकि मुख्य मंत्री भी राज्य में ही है ---तब किसी दूसरे मंत्री द्वरा  बैठक लिया जाना   भरी परिवर्तन का सूचक ही है | आम तौर पर ऐसा तब हो है जब  मुख्य मंत्री बाहर हो अथवा  अस्वस्थ  हो तब होता है | परंतु इस बार योगी जी  भी लखनऊ  में ही है  और  स्वस्थ्य भी है |  तब ऐसा होना  निश्चित रूप से उनकी विदाई का संकेत देता है |  जो की बीजेपी की सरकार और संगठन के लिए कोई शुभ  संकेत नहीं लगता |

       अब अगर इस  संभावित परिवर्तन के प्रष्ठ भूमि में  बात करे  तब --- पार्टी के लिए लाभा से ज्यादा हानि की संभावना ज्यादा इंगित करता है , | साथ ही प्रदेश में वोटो के ध्रुवीकरण  को भी  प्रभावित करेगा |  अभी तक बीजेपी को सवर्णों के वोटो की गारंटी  - उसके हिन्दू और रामलला  के मंदिर के वादे पर  ही है |  अब उसका पिछड़ी जातियो का वोट पाने के लिए   नेत्रत्व परिवर्तन  कितना सफल होगा ---कहा नहीं जा सकता | क्यूंकी मौर्य  जाति प्रदेश के मध्य भाग  में ही बहुतायत से है | पूर्वञ्चल  और  मेरठ  आदि में इस जाति के गोलबंद वोट नहीं के बराबर है | आम तौर पर इस जाति को सब्जी भाजी का उत्पादन करने वाला माना जाता है | वे सब्जी का व्यापार भी करते है | सब्जी मंडियो में इनके साइन बोर्ड देखे जा सकते है |  परंतु संख्या बल मे ये वोट बैंक बन सके  ऐसी  गिनती इनके पास नहीं है | व्यक्तिगत रूप से   ये राजनीति में जगह बना सकते है , परंतु मौर्य साम्राज्य  जैसा  दम अब नहीं है |

             यह भी है की यादव और कुर्मी वोटो की निर्णायक स्थिति के सामने  मौर्य वोट  बैंक नगणय ही है | जनहा तक केशव प्रसाद मौर्य को  पिछड़ी जातियो  का नेता  घोषित तो मोदी जी कर सकते है ----परंतु यादव और कुर्मी मतदाता  उन्हे नेता तो मान ही नहीं सकते |जो की प्रदेश की राजनीति की एक धुरी है |  रहा अनुसूचित जाति के मतो को प्रभावित करने का --- तो इस वर्ग के वोटार मौर्य नेत्रत्व को “”सहज “” और स्वीकार  हो सकते है ,क्यूंकी ना तो यह वर्ग  कोई बड़ा खेतिहर  है  और ना ही कोई ऐसा इलाका है जनहा “”मात्र  इनके वोटो से चुनाव फल निर्णायक होता हो |  कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की यह चाल भी कोई सुखद परिणाम देने वाली नहीं है |

 क्या इस बदलाव से सरकार में कोई परिवर्तन होगा ?

      अगर यह मान भी ले की मोदी  जी की इस शतरंजी चाल  को अमली जमा पहनाया जाता है ----तब क्या द्राशय  होगा ? यानहा योगी आदित्यनाथ  के मुख्यमंत्री बनने के समय हुए घटना क्रम को समझना जरूरी है | उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनावो  में बीजेपी की जीत के बाद जब मुख्य मंत्री बनाने का सवाल हुआ तब योगी जी मोदी की लिस्ट में नहीं थे|   परंतु नेता के चुनाव की सरगर्मी के बीच ही  योगी जी की “”हिन्दू वाहिनी “”  ने गोरखपुर और अगल बगल के ज़िलो में   योगी जी के समर्थन  मे रैली –जुलूस  निकालना शौरी कर दिया था | इस वाहिनी में  “दबंगों “” का ही नेत्रत्व था | जिसमे  ठाकुर लोगो की बहुलता थी |   ऐसा कहते है की योगी जी ने आरएसएस के सूत्रो से  मोदी जी तक यह संदेशा भिजवा दिया की अगर उन्हे मुख्य मंत्री नहीं बनाया जाता  है , तो वे उनकी हिन्दू समर्थन की हवा निकाल देंगे | बताते है की प्रधान मंत्री  इस चाल से बहुत नाराज़ थे | परंतु आरएसएस नेत्रत्व की सियारिश पर उन्होने  हामी भर दी | परंतु  यह भी साफ कर दिया की उन्हे दिल्ली के आदेशो का पालन करना होगा |    कई साल तक यह चलता रहा , परंतु गोरखपुर के राज्यसभा सांसद डॉ अगरवाल को विधान सभा में पराजित करवाने से वे मोदी जी के कोप भजन बन गए | फलस्वरूप अग्रवाल को गोरखपुर की राजनीति में मोदी जी की आवाज माना जाने लगा | जो योगी की हैसियत को काटता  रहता है |  मोदी जी को  अगरवाल का राज्यसभा में जाना बहुत अखरा  परंतु  वे काशमाशा के रह गए –आखिर कर भी क्या सकते थे | उसके बाद कई ऐसे मामले हुए , जैसे मोदी जी के आईएएस  सहायक को  योगी जी मंत्रिमंडल में रखने से इंकार कर दिया | इस बात से  अमित शाह तक ने योगी जी को खरी खोटी सुना दिया था }| कहते है की जब उन्हे विधान परिषद  में भेजा जाना था –तब भी योगी जी बहुत आड़े , परंतु केंद्र समर्थक विधायकों की मदद से  वे परिषद पहुँच  गये |  कहते है की गृह सचिव  के  पद को लेकर भी  तनातनी हुई थी | मसला यह की योगी जी  अपने खिलाफ  16 आपराधिक मुकदमो  को हाइ कोर्ट से खारिज करा लिया | तब हजारो  संघ और बीजेपी कार्यकताओ  ने अपने वीरुध चल रहे मुकदमो  को वापस लिए जाने की बात नेत्रत्व से उठाई थी | परंतु  सिर्फ ठाकुर नेताओ के मामलो पर विचार तो हुआ | इस मामले को लेकर बीजेपी कार्यकर्ताओ में योगी के नेत्रत्व  को लेकर आशंतोष  बड़ा |

 

 

          

 

Nov 20, 2023

 

न्याय का मज़ाक उड़ाता – बुलडोजर  कारवाई !!

आरोपी को अपराधी बनाने  की कारवाई है  प्रशासन द्वरा   आरोपियों  के घरो को गिराना , भले ही वह घर या मकान  किसी और की मिल्कियत हो !  अब ऐसे मे   अगर परिवार के कोई लड़का  कोई  अप्र्ध करता है , तब सज़ा उसके परिवार को प्रशासन  देता है ! अब  ऐसी कारवाई पर इलाहाबाद  हाइ कोर्ट  का यह कथन की “ हम  इस कारवाई को नहीं रोक सकते है ! “ न्याय के सिधान्त “ का मखौल  ही उड़ना ही तो है |  यह  

मधयुगीन  काल के सुल्तानों  की कारवाई की याद दिलाता  है –जब  हुकुमरान की  नाराजगी  परिवार को नेस्तनाबूद  कर देती थी | आज कल हम संविधान  के प्रदत्त  अधिकारो  के तहत  “नागरिक “ है कोई “ प्रजा “” नहीं | फिर किस कारण  देश की जिला या ऊंची अदालते  अफसरो की इस कारवाई पर कोई दंड नहीं सुनती | अभी हाल मे केवल  गुरुग्राम में  अफसरो की इमारतों को गिराने  की कारवाई पर हरियाणा पंजाब  हाइ कोर्ट की डबल बेंच ने  अफसरो से यूएनआई कारवाई पर सवाल उठाए थे और  गिराई गयी इमारतों  के

मालिकाना हक़  और उनकी तामीर कराये जाने की तारीख के बाबत  जानकारी बुलाई थी | परंतु इस फैसले के बाद यह मामला  उनकी बेंच  से मुख्य न्यायाधिपति  ने हटा दिया था !! अब इस फैसले को क्या कहा जाये !

         बुलडोजर कारवाई कुछ वैसे ही  “” न्याय “ के बजाय  अन्याय कर रहा है ---जैसे घरेलू हिंशा या दहेज प्रताड़ना  के मामले मे पहले आरोपी को  अपराधी मानकर कारवाइकी जाती थी | ह्त्या  और –बलात्कार के मामले मे  भी पुलिस जांच के बाद चार्जशीट अदालत मे दाखिल करती है ---तब अदालत  न्याय करती है |  बाद में सुप्रीम कोर्ट और अनेक हाइ कोर्ट  भी  दहेज प्रताड़ना  के मामलो में “निर्दोष “ रिश्तेदारों को आरोपी बनाने  की मामलो मे पुलिस को  निर्देश दिया की ऐसे मामलो की जांच उप पुलिस अधीक्षक  द्वरा की जाये | फिर भी पुलिस कई बार  अपने पुराने ढर्रे  पर ही कारवाई कर रही है |

         न्याय का सूत्र वाक्य है की “ किसी को तब तक अपराधी नहीं माना जाये –जब तक  उसका अपराध बिला शक  सिद्ध नहीं हो जाए “ , अब इस सूत्र वाक्य को देश की अदालतों  को  एक बार फिर से  याद दिलाने की जरूरत हैं |  वैसे  देश के प्रधान न्यायाधीश  चंद्रचूड़  का कहना है की  प्रत्येक प्र्शसनिक फैसले की न्यायिक  जांच  संभव नहीं है ! परंतु जिस प्रकार  आईएएस  और उनके पुलिस बंधु  मनमानी कारवाई करते है  -----उसका प्रतीकार  एक नागरिक किस प्रकार करे ? क्यूंकी अव्वल तो ये नौकरशाह  नागरिक  की शिकायत को अपनी हैसियत  पर उंगली उठाना मानते है , इसलिए वे  बदले की भावना से  “”सबक “ सिखाने  के लिए कानुन के प्रविधानों  का आसरा लेते हैं |   

               ऐसे कई मामले अफस्रान  अपने राजनीतिक मालिको को खुश करने के लिए भी करते है | अभी प्रदेश में चुनवी हिंसा  में कई मौते भी हुई , राजनगर  विधान सभा छेत्र  में कांग्रेस  के एक कार्यकर्ता को मोटर से दबा कर मार दिया गया |  पुलिस से शिकायत  की गयी तो उन्होने रिपोर्ट लिखने पहले जांच करने  की बात की | जब पूर्व मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ने पुलिस थाने के सामने  रात भर धरना  दिया तब पुलिस अधीक्षक  ने कारवाई का भरोसा दिलाया | वनही शिवपुरी के पोहरी  विधान सभा  छेत्र मे बीजेपी समर्थको  पर हमला हुआ और तीन लोगो की मौत हो गयी ----पुलिस ने  आरोपियों के घरो को  ढहा दिया !  अब एक जैसी चुनावी हिंशा  में पुलिस का दोहरा  व्यवहार  , उनकी कर्तव्य परायणता  पर तो सवालिया निशान लगाता ही है |

         रीवा में  बीजेपी विधायक के प्रतिनिधि  द्वरा  एक आदिवासी पर पेशाब करने की घटना  ने काफी तूल पकड़ा तब ज़िला अधिकारी ने आरोपी के घर को ढहा  दिया |  मुख्य मंत्री शिवराज सिंह ने भी उसको भोपाल बिला कर छमा याचना की और सरकारी सहता भी सुलभ कराई |  इस घटना के कारण उस विधायक को पार्टी ने विधान सभा चुनाव में टिकट नहीं दिया | इस कारवाई की प्रतिकृया स्वरूप इलाके के ब्रांहनों  ने गहर बनवाने के लिए  लाखो रुपये देने की घोसना की | उधर बीजेपी के पूर्व विधायक ने पार्टी से इस्तीफा देकर  आज़ाद उम्मीदवार के रूप मे चुनाव लड़ा है | अब इस कारवाई से सत्तारूद दल को क्या लाभ होगा यह समय बताएगा |

       उज्जैन में एक नाबालिग कन्या से बलात्कार हुआ – वह रात भर रक्त रंजीत  लोगो से “”मदद मांगती रही  पर महाकाल नागरी में वह बेबस  बेहोस पड़ी रही | बाद में  सुबह को पुलिस ने  जब  बालिका  को अस्पताल में भर्ती कराया  तब  मीडिया ने इस घटना को  उजागर किया तब हल्ला  मचा  और इसे उज्जैन का निरभया  कांड बताया तब पुलिस ने आरोपी ऑटो ड्राइवर को गिरफ्तार किया |  जनता के रोष से घबड़ा कर  जिला  प्रशासन  ने ने आरोपी के  पिता के घर को ढहा  दिया | जबकि वह खुद  भी अपने बेटे की करतूत से शर्मिंदा था , और उसे सज़ा देने की मांग कर रहा था !! तब भी अफसरो ने उसका टापरा उजाड़ दिया !   यानि मुकदमे के पहले ही आधी सज़ा सुना दी वह भी बेगुनाह  माँ पिता  को |

   

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Nov 9, 2023

 

सत्ता स्वयंबर के इस महा भारत में  , इज़राइल के समान कोई भी नियम  मान्य  नहीं है !!

         पाँच राज्यो में  सत्ता के स्वयंबर  के दावेदारों  में  पूर्व की भांति ना कोई नियम मान्य है ,और ना ही  चुनाव आयोग  के निर्देश !   एक ओर सत्ता खुद इस मे  दावेदार है तो दूसरी ओर  बिना बैसाखी के विरोधी दल !  जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव  गुटरेस  के बार –बार निर्देशों की  इज़राइल और अम्रीका तथा यूरोपियन यूनियन  के देश   उसी प्रकार न्याय की अवहेलना कर रहे है जैसे  देवव्रत उर्फ भीष्म पितामह की सलाह को  कौरव नकारते  रहे !  कुछ वैसा ही इस भारत धरा पर “””वाचिक रूप से महाभारत लड़ा जा रहा हैं ! “ !   इज़राइल  ने अमेरिका के  गाज़ा मे बच्चो और अस्पतालो पर बमबारी  पर एतराज़ जताया , तो इज़राइली प्रधान मंत्री  नेत्न्याहु  ने अमेरिका को हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले की याद दिला दी !! जिसमे लाखो  बच्चे और नर – नारी मारे गए थे |  इसका मतलब यह हुआ की  इज़राइल  विश्व युद्ध मान रहा है “हमास “” के वीरुध लड़ाई को | गज़ब है की म्यूनिख ओलंपिक में जब यहूदी खिलाड़ियो की हत्या हुई थी तब  तटकलाईं प्रधान मंत्री गोल्ड मायर  ने लेबनान और अन्य राष्ट्रो पर तो हमला नहीं किया था ! उन्होने केवल  हत्या में शामिल आतंकवादियो को खोज –खोज कर मार गिराया था | जनरल आईखमन  को अर्जेन्टीना  से  जब  मोसाद  द्वरा पकड़  कर के लाया गया था  तब भी , इज़राइल के दोस्तना संबंध  बरक्रार रहे थे |  जब  यहूदी यात्रियो के हवाई जहाज को अरब आतंकवादियो  द्वरा  अगवा कर  यूगांडा के एनटेबी  हवाई अड्डे पर रखा गया था ---तब भी  कोई हमला नहीं किया गया था और अगवा किए गए सभी मुसाफिरो  को सकुशल  

तेल अबिब  हवाई अड्डे पर उतार लिया गया था | पूरे प्रकरण  में एक इज़राइली  अफसर शहीद हुआ था |  

     

          तो आज  क्या हो गया उस तंत्र को जो “”निहथे  बच्चो और अस्पतालो पर बम गिरा कर अपनी बहादुरी  दिखा रहा है ?? यह वही इज़राइल है जिसने एक साथ  मिश्र –सीरिया और लेबनान  के संयुक्त हमले का  करारा  जवाब दिया था !  जिसके फलसरूप  गाज़ा और वेस्ट बैंक के इलाको पर “”” कब्जा””  किया था | जिसको लेकर ही आज तक अशांति है | इज़राइल की स्थापना 1948 मे  मित्र राष्ट्रो [ अमेरिका –ब्रिटेन – फ्रांस ] की कूटनीति और यहूदी  अरबपतियों के दबाव में वालफोर संधि के रूप में आई , फलस्वरूप  बेघर  यहूदियो को उनका देश  मिला नाम इज़राइल पड़ा | परंतु इस संधि के पहले  यहूदियो ने अपने संबंधो  और  धन के बल से हथियार और साजो सामान   एकत्र कर गाजा पट्टी मे बसे अरब  बाशिंदों  को ज़ोर – ज़बरदस्ती कर के उनके खेतो और घरो पर कब्जा किया | इसलिए जब  इज़राइल की सीमा बनाने की बात आई तब  उन इलाको में बाशिंदों  की नस्ल के अनुसार फैसला किया गया | एक यहूदी इतिहासकार जो होलोकास्ट के भुक्त भोगी थे , उन्होने एक किताब में लिखा है की जब उन्हे जर्मनी  से आने के बाद  यहूदी अधिकारियों  ने उन्हे  उनका “”घर “ दिखाया तब उसमे अरब बाशिंदे के बर्तन और खून के छीटो  भरी दीवार  देख कर  उन्होने कहा की मुझे किसी दूसरे के घर पर कब्जा नहीं करना है | और आखिरकार वे ब्रिटेन चले गए |

        तो यह थी इज़राइल की स्थापना की तथा कथा , यहूदियो के तत्कालीन नेता बेन गुरियन  ने  काफी मेहनत –मशक़्क़त से इज़राइल  राष्ट्र की स्थापना  कराई थी , उन्होने मित्र राष्ट्रो  के जिम्मेदार नेताओ  और  अन्य  संबंधितों  को पाउंड और डालरो  से उपक्रट किया था , जिसका दोनों राष्ट्रो द्वरा  खंडन किया गया | नेत्न्यहु के पहले के  नेत्रत्व  ने  अरब आबादी और यहूदी जनो के मध्य शांति संबंधो की पहल की थी |  जैसा की पूर्व प्रधान मंत्री बराक ने एक सार्वजनिक बयान में कहा भी है |  फिलिस्तीन राष्ट्र  के निर्माण को लेकर अमेरिका  हमेशा  खिलाफ रहा है | जबकि इज़राइल की एक छोटी आबादी  इसे  समाधान के रूप मे देखती है | आखिर लाखो फिलिस्तीनी नागरिकों  को भी  तो राष्ट्र चाहिए ---- जैसे हजारो वर्ष तक  यहूदी  दर – दर भटकते रहे , क्या  यहूदी नेत्रत्व  अपने श्राप  को अरब लोगो पर थोपना चाहता है !

           येरूशलम का मुद्दा  

  फिर एक मुद्दा  है  तीन ध्रमों – यहूदी –ईसाई और इस्लाम के  धरम स्थल येरूशलम का , जनहा तीनों ही ध्रमों के लोग आराधना करने जाते है | अरब लोगो की काफी सालो से शिकायत रही है की उनके मस्जिद  में शुक्रवार की नमाज़  अदा  करने  में बाधा डालते है |  अन्तराष्ट्रिय  संधि के अनुशार  जॉर्डन को यह ज़िम्मेदारी दी गयी थी की वह तीनों ध्रमों के लोगो की यात्रा और उपासना  को निर्विघ्न  करने का प्रबंध करेगा | परंतु  इज़राइल ने इस  व्यवस्था को मानने के बाद भी  अपने सैनिको की तैनाती कायम रखी , फलस्वरूप जॉर्डन के कहने के बाद भी इज़राइली सैनिक  उनके निर्देशों को नहीं मानते थे | ऐसा वे अपनी सरकार के अफसरो के इशारे पर ही करते थे |  थक हार कर जॉर्डन ने संयुक्त राष्ट्र संघ  को सूचित कर दिया की वह अपना कर्तव्य  पूरा नहीं कर पा रहा है | सुरक्षा परिषद मे मित्र राष्ट्रो ने इन हालातो पर कोई  खोज खबर नहीं ली | परिणाम स्वरूप  ईसाई और मुसलमान  लोगो को  इज़राइली सैनिको के दुर्व्यवहार  का शिकार होने का सतत  अपमान सहना पड़ रहा हैं |

           आज हालत यह है की  इज़राइल अपने “”नर संहार “” की कारवाई को विश्व युद्ध से तुलना कर रहा है , और संयुक्त राष्ट्र संघ की पूरी तरह से  “”अन देखी”” कर रहा है | यह हालत  उसी  स्थिति का द्योतक है जैसा की “” लीग ऑफ नेशन “” की स्थापना  के बाद  जर्मनी की ज़िद्द के कारण  उसका  अस्तित्व ही  समाप्त हो गया था | क्या विश्व शांति के लिए किसी तीसरे प्रयास की जरूरत है , जिसमे  पाँच बड़े राष्ट्रो का वर्चस्व नहीं हो वरन तथ्य और कारणो के आधार पर  कोई फैसला हो |

              

        

 

           

Oct 28, 2023

 

ना काम उम्मीदों का दंगल !

हम चुने जन प्रतिनिधि –लेकिन तुम उम्मीदवार कैसे चुनो !

 

        मध्य प्रदेश में  2023 के विधान सभा चुनावो में पार्टी के टिकट यानि की उम्मीदवारी  का “बी” फार्म  पाने के लिए जैसा घमासान  मचा है , वैसा विगत  चालीस सालो मे नहीं देखा गया | यह बात मई खुद के अनुभव से कह रहा हूँ |  सवाल उठता है की ऐसा क्यू ?  कांग्रेस्स और बीजेपी  दोनों ही पार्टियां  इस में फांसी हुई है ,  इन पार्टी के “”बड़े  नेताओ को भरोसा है की  नाम वापसी तक सब –ठीक कर लेंगे !  लेकिन जिले स्टार के जिन नेताओ को  जनता में अपनी जमीन  की पकड़  का भरोसा है , वे तो नामांकन भी दाखिल कर आए है | इसी उम्मीद में की  पार्टी का चुनाव चिन्ह  पर वे ही चुनाव लड़ेंगे | और अगर ऐसा नहीं हुआ तब वे आज़ाद उम्मीदवार  बन कर मैदान में अपनी किस्मत आज़माएँगे |

       अब नाम वापसी के पूर्व  तक तो पिक्चर साफ होती नजर नहीं आती | फिर भी दोनों पार्टी  दिन –रात मशक्कत कर रही है इस बगावत को काबू पाने के लिए |  इन दोनों पार्टियो को खतरा यह भी है की  , इस राज्य में जनहा सदैव से दो ही पार्टी चुनाव के खेल की खिलाड़ी रही है , उनका खेल बिगड़ने के लिए राजी के बाहर के दल भी मैदान में आ गए है | मसलन  केजरीवाल की आप ,  मायावती की बसपा  और अखिलेश की समाजवादी पार्टी  और अब नीतिस कुमार की जदयु  भी बगावती लोगो को टिकट  दे कर उन्हे  राजनीति में औरस संतान का ओहदा दे रही है | अब यह बात अलग है की जनता उनके इस हैसियत को कितना  मानती है , यह तो उनको मिले  समर्थन से पता चलेगा | वैसे इन लोगो की जमात  से कांग्रेस्स और बीजेपी द्नो ही दलो  को खतरा अपने “”वोट “ कटने का है | मतलब  लबो तक प्याला आने के पहले उसके छ्लक जाने का है |  1977 से हरियाणा में भजन लाल द्वरा जिस आया राम –गया राम की परंपरा की शुरुआत हुई थी , वह अब खूब फल – फूल रही है |  अनेकों टिकतारथी  , जिनकी जन्म कुंडली  बताती है की वे एक से अधिक बार  अपनी राजनीतिक “”निष्ठा”” बदल चुके है | इनमे काँग्रेस और बीजेपी दोनों के ही लोग है |  मजे की बात है की आप और समाजवादी तथा  बसपा ने जिन लोगो को अपने उम्मीदवार होने का ऐलान किया है --- उनमे से कितने लोगो पार्टी “”बी” फोरम देकर नवाजेगी  , यह भी अनिश्चित है | क्यूंकी इन टिकट अभिलाषियों को जिस “धन “ की मदद की आशा है वह कितने हद्द तक पूरी होगी ,यह कहना मुश्किल है |  बसपा के लिए तो यह आरोप भी लग चुका है की वनहा उम्मीदवारी खरीदी जाती है ! अब कितना सच या गलत है यह बहस् का मुद्दा  है , जो यानहा  पर नहीं है | रही बात इन पार्टियो के  जन समर्थन की यानि की इलाके में इनके कितने “वोट “ है  वह तो बहुत ही अनिश्चित है | मसलन  केजरीवाल की आप पार्टी को राजनीतिक रूप से एक ही  स्थान मिला हुआ है –वह है सिंगरौली के मेयर पद का | परंतु  उनके पंजाब के मुख्य मंत्री   चंबल इलाके में प्रचार भी कर आए है | बात इतनी सी है की इस इलाके में विभाजन के बाद  काफी लोग पाकिस्तान के पंजाब से यानहा आकार बसे है |  उनमे से एक नाम सुनहरे अक्षरो में लिखे जाने योग्य है  आज़ाद हिन्द फौज के कर्नल ढिल्लन का , उन्होने यही आकार किसानी शुरू की थी |  उनका फार्म आज भी ग्वालियर के पास है | इस इलाके में  इनकी बसाहट तो है , पर ये सिख कितना  पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत सिंह मान  की अपील का मान रखेंगे  यह अनिश्चित है |  रही बात समाजवादी और जदयु पार्टियो की  तो उनका बेसिक आधार तो पिछड़ी जातियो के वोट माने जाते है | परंतु क्या वे उम्मीदवार की जाति को देख कर वोट नहीं देंगी ! क्यूंकी ग्रामीण इलाके में  जातियो की पंचायत का प्रभाव तो है |  क्यूंकी इन दलो की राजनीतिक विचारधारा  तो उनके चुनाव घोसना पत्र तक ही सीमित होते है | बाकी सब जाति पर ही निर्भर करता है |

                 इन फुटकर राजनीतिक दलो का की एक निर्णायक  भूमिका  से दोनों ही यानि की कॉंग्रेस  और बीजेपी  आशंकित रहते है , वह है इनकी वोट काटने की छमता !  क्यूंकी विगत चुनावो मे देखा गया है की जिन सीटो पर हार – जीत का अंतर कुछ हजार का रहा है वनहा  इनको मिले वोट ही निर्णायक बने है विजयी उम्मीदवार के लिए | यह  खतरा काँग्रेस को ज्यादा हुआ है  , बीजेपी को इस  बात से कम ही नुकसान हुआ है | क्यूंकी कमोबेश  उनका वोट बैंक भी जातियो पर  निर्भर है , परंतु उसके साथ ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के समर्थन से उनकी नैया  पार हो जाती है | परंतु इस बार  संघ के कुछ पुराने स्वयं सेवको ने अपनी मातर् संगठन  के वीरुध मोर्चा खोल कर  चकित कर दिया है | ऐसा मालवा छेत्र में हुआ है | परंतु  ऐसा भीकहा जा रहा है की यह भी एक सुनियोजित  रणनीति के तहत किया जा रहा है | मोदी के नौ साल के कार्यकाल मे  अनेकों बार संघ के लोगो को  सत्ता धारी  दल के कुछ फैसलो  से गहरा अशन्तोष हुआ है | यह  जमीनी स्तर तक महसूस किया गया है | अपने इस समर्थन वोट को  दूसरे दलो की झोली में जाने से बचाने  के लिए  अपनी दूसरी झोली  में गिरने का प्रयास है | इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता , क्यूंकी संघ व्यक्ति  से निजी स्तर पर जुड़ा होता हो | दल बदल कर सरकार बनाने की मोदी –शाह  की कोशिसों को काफी समर्थक  नाराज़ है | उनकी नजरों में जिस प्रकार  व्यापारियो  पर छापे  मारे जा रहे वह भी उनकी नाराजगी का एक कारण है |  वे हिन्दू राष्ट्र के समर्थक है , परंतु मणिपुर  क घटनाओ  से उनमे बेचैनी है | क्यूंकी उत्तर – पूर्व में  व्यापारियो का वर्ग आखिर है तो  ऊँह का समर्थक | परंतु  स्थानीय आक्रोश का शिकार नहीं होना चाहते है | परंतु मोदी जी नीति जमीन पर हिन्दुओ और खासकर  व्यापारियो  और उनके प्रतिस्थानों  पर हमले  उन्हे  असुरक्षा  ही दे रहे है |

               खबर लिखे जाने तक  काँग्रेस  और इंडिया गठबंधन के आप –समाजवादी  और जदयु से “” अण्डरस्टैंडिंग “”  होने की खबर आई है | जिसके परिणाम स्वरूप  ज्यादा  खतरनाक उम्मीदवारों की जगह  कुछ कमजोर उत्साही लोगो को उम्मीदवार  बनाया गाय है | वनही मोदी सरकार के संकट मोचक  गृह मंत्री अमित शाह  भी राज्य में बीजेपी  की गंभीर हालत को देखते हुए  अशन्तुष्ट  नेताओ से मुलाक़ात कर  उनको आशवश्न दे कर संतुष्ट  कर रहे है | उनकी समझाइश  का असर भी हो रहा है |  अब चुनावी तस्वीर  नाम वापसी  के बाद ही साफ होगी | तब तक इंतज़ार रहेगा |

======================================================================================बॉक्स

       सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी  का   राम मंदिर का मोह और पाकिस्तान तथा मुस्लिम विरोध  उनके चुनावी राग का संपुट  समान है | मोदी राग में  काँग्रेस और पाकिस्तान तथा मुस्लिम एक ही सुर में लगते है |  वनही राम मंदिर उनका लंबा आलाप सरीखा है | जो गाहे – बगाहे  पंचम सुर में गूँजता है |  अब चूंकि अयोध्या में  राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि की घोषणा  हो चुकी है – जो गणतन्त्र  दिवस  से पूर्व की है |  इसलिए  बीजेपी  इस मुद्दे को  एक बार फिर भुनाने  की कोशिस  कर रही है | इस नुस्खे  की आजमाइश इतनी बार हो चुकी है , की अब इसके  लाभ की गुंजाइश  कम है | परंतु  फिर भी बीजेपी के लिए  लोगो को   धरम के नाम पर जोड़ने की कोशिस  तो है ही |  इसीलिए बीजेपी चुनाव आचार संहिता लाग्ने के बाद भी  इस उदघाटन  के पोस्टर जगह – जगह लगा रही है | वनही  बीजेपी उनके विरोध को राम का विरोध बता रही है |  गनीमत है की काशी की ज्ञानवापी मस्जिद को प्राचीन शिव मंदिर  और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि  मे बनी मस्जिदों का मसला नहीं प्रचारित कर रही है | क्यूंकी काशी वाले मसले को हाइ कोर्ट  के मुख्य न्यायधीश  ने  पूरी सुनवाई को ही रोक दिया है | क्यूंकी जिन जज साहेबन ने इस मामले की सुनवाई की थी  उनको  यह मामला  कोर्ट के रजिस्ट्रार  की लिस्ट से आवंटित ही नहीं हुआ था | अब यह तो गजब ही है की जज साहब  इस बेसिक  बात की जांच किए बिना ही मुकदमा सुनने बैठ गए |  दूसरी ओर मथुरा के मामले को भी आगे किसी भी कारवाई से सुप्रीम कोर्ट ने रोक दिया है | इस लिए बीजेपी डरती है की अदालत की रोक के बाद  अगर प्रचार हुआ तो मामला अदालत के पास पनहुक जाएगा | और पार्टी का अनुभव  इस मामले मे  अच्छा नहीं रहा है |

            रही बात आढ्य में राम मंदिर की तो  उसको लेकर तो अमित शाह  जी ने  तीन दिवाली मनाने का सुझाव दिया है | 1- कार्तिक मास की दीपावली  2—प्रदेश में  बीजेपी की [ शिवराज की नहीं ]  सरकार के गठन के समय और 3--- अयोध्या मे राम मंदिर में मूर्ति स्थापना के दिन |  अब इन्हे कौन समझाये की दशहरा  -दीपावली  तिथि पर मनाए जाते है |  लंका विजय  पर दशहरा  और अयोध्या आगमन पर दीपावली होती है | सरकारो के बनने और बिगड़ने पर नहीं बनती है | यह कोई निजी समारोह नहीं है की  घर पर दिये जला लिए और बिजली के बलब  लगा लिए | उनको  मालूम होना चाहिए की जन विश्वास है की   पर्व की प्रतिस्था  तिथि से है , नाकी बीजेपी की जय – पराजय से | दीपावली तो एक ही होगी योगी जी चाहे  तो अयोध्या में सरकारो खर्चे  से  दिये जलवा सकते है ----पर वह दीपावली तो नहीं होगी |

 

Oct 27, 2023

 

 मंदिर  का परिचय  उसके देवता से या की उसे बनवाने वाले से

                   प्रधान  मंत्री नरेंद्र मोदी ने चित्रकूट में मफ़तलाल के मंदिर में हुए समारोह में भाग लिया , उनकी कुछ घंटो की यात्रा का खर्च  सिर्फ 90 से 97 लाख का खर्च ज़िला प्रशासन को आया है !  वैसे अयोध्या के राम मंदिर  का  निर्माण संभव हुआ सुप्रीम कोर्ट के फैसले से , पर निर्माण का खर्च  भारत सरकार  दे रही है | पर निर्माण कार्य में विश्व हिन्दू परिषद का ही बोलबाला है ! वैसे इसकी स दारत  एक आईएएस अफसर नृपेन्द्र मिश्रा कर रहे है , जिनहे अपनी सेवा मे लाने के लिए मोदी जी ने  नियुक्ति के नियमो को ही बदल डाला था !!  तो यह है अयोध्या में मंदिर के निर्माण की तथा –कथा !

    देश के प्रमुख तीर्थ स्थानो में  औदोगिक घराने बिरला समूह  के राधा कृष्ण  के मंदिर है – परंतु इन मंदिरो को उनके देवता के नाम से नहीं वरन  निर्माण करता के नाम से ही जाना जाता है | कानपुर में  भी ऐसा ही एक मंदिर है जो अभी भी  बन ही रहा है – उसका भी परिचय  उद्योग समूह  जेके के नाम से जाना जाता है ! राधा कृष्ण ही इस मंदिर के मुख्य देवता है ! देश के मशहूर  मंदिर तिरुपति   में देवता बालाजी है परंतु कहलाते वे भी है तिरुपति के बाला जी !  हालांकि अब तो तिरुपति मंदिर प्रबंध स्थानम  ने देश के दस से अधिक स्थानो पर  बालाजी के मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण कार्य कर लिया है , और इन सभी स्थानो को तिरुपति के बालाजी के ही नाम से जाना जाता है |  इस मंदिर की श्रंखला  की ही भाति  अहमदाबाद के प्रसिद्ध  स्वामी नारायण  मंदिर  की भी शाखाये  बी देस – विदेश तक में है | अभी अमेरिका  में बहुता भव्य  मंदिरा का समारोह पूर्वक उदघाटन हुआ है , कहते है इसके निर्माण में  करोड़ो रुपये नहीं वरन डालर  खर्च हुए है | इनके मंदिरो की विशेस्ता यह है की इनके मुख्य देवता इस पंथ के प्रवर्तक  है | बताते है की इनके प्रवर्तक  उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के एक स्थान छपिया  से घनश्याम पांडे  लगभग सौ वर्ष पूर्व गुजरात चले गए थे | एवं वनहा उन्होने अपने “” पंथ” की स्थापना की | जिसे आज स्वामी नारायण के नाम से जाना जाता है | इनकी भी गुजरात में अनेक शाखाये है , जिनके प्रबंध में अहमदाबाद मुख्यालय का नियंत्रण रहता है | हाल ही में सूरत में इनके मंदिर के पुजारी को  एक अपराध के सिलसिले में बंदी बनाया  गया था | जिसे बाद में अहमदाबाद  मुख्यालय एनआर निकाल दिया था | वैसे दुबई में भी इनके मंदिर को वनहा के शासन से भूमि प्रदान की थी, जिस पर भव्य  मंदिर का निर्माण हुआ है | जिसे हिन्दू मंदिर के रूप मे  जाना जाता है | वैसे इनके मंदिरो में  देवताओ की भी मूर्तिया होती है , जिनको श्रद्धालु  पुजा – अर्चना करते है |

        अपने देवताओ के नाम से जिन मंदिरो को जाना जाता है , उनमे अधिकान्स्तः  दक्षिण में है | जनहा  भक्तो के अनुसार गैर सनातनी लोगो का बाहुल्य है | जिसको लेकर  द्रविड़ मुनेत्र कडगम के नेता बहुत आलोचक रहते है | उनके अपने कारण है , वे सनातन धर्म में ब्रांहनों के वर्चसव  और परिणामस्वरूप पिछड़े और दलित वर्ग के साथ हुए भेदभाव और अन्यायपूर्ण  बर्ताव को लेकर आज भी अशन्तुष्ट है |  परंतु आंध्र में मीनाक्षी मंदिर को उसकी देवी के नाम से जाना जाता है | चिदम्बरम  जिले में अनेक मंदिर है जो अपने देवता के नाम से ही जाने जाते है , ना की अपने निर्माणकर्ता के नाम से  |  इसी प्रकार  देश के सबसे धनी  मंदिर  पदनाभ स्वामी मंदिर  का नाम लिया जा सकता है , त्रिवेन्द्रम स्थित इस मंदिर का निर्माण   वनहा के राजाओ द्वरा  सदियो पहले कराया गया था | जिसमे  अकूत धन और सोना और जवाहरात  है | इसके तहखाने में एक द्वार ऐसा है जिसको किसी छ्भि द नहीं खोला जा सकता | वरन  केवल किस मंत्र के उच्चारन  से ही खुल सकता है ---परंतु उस मंत्र की जानकारी मंत्री के अरचको और पुजारियो को नहीं है | सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस मंदिर  का अधिकार पुनः त्रिव्ङ्कुर  के राजघराने  को दे दिया है | पहले अन्य बड़े मंदिरो की ही भांति  इस का प्रशासन राज्य सरकार के  पास था |  कहते है इस मंदिर में इतनी संपाती है की देश के रिजर्व बैंक के पास भी उतना सोना नहीं होगा | अब आप अंदाज़ लगा सकते है की धरम मे कितना दम है | इसीलिए हिन्दू –हिन्दू किया जा रहा है और मंदिर मंदिर  किया जा रहा है | पर क्या इससे देश की असिक्षा  और गरीबी को मिटाने मे कोई मदद  मिल सकती है ? शायद नहीं , क्यूंकी  मूर्ति और मंदिर के प्रति यह श्रद्धा  प्रातः कालीन  दर्शन  के समय के  बाद तो आम आदम रोजी –रोटी और कपड़ा तथा मकान  के सवालो  से जूझने मे लग जाता है |