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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 13, 2016

क्यो खफ्फा खफ्फा से है अरुण जेटली सुप्रीम कोर्ट से

क्यो खफ्फा खफ्फा  से है अरुण जेटली सुप्रीम कोर्ट से ?

लोकसभा मे न्यायपालिका द्वरा सरकार के कामो मे हस्तक्षेप के आरोप से वित्त मंत्री ने अपनी पीड़ा और छोभ को सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर दिया | मज़े की बात यह है की जेटली का वजूद ही सुप्रीम कोर्ट मे उनकी वकालत है | करोड़ो रुपये की सालाना आय और ठाठ -बाट सब कुछ उसी की बदौलत है | तब इस स्थ्ति मे अदालत को कठघरे मे खड़े करने का यह तरोका क्यो ?

इसके दो - तीन कारण है | पहला तो है उत्तराखंड मे राष्ट्रपति शासन के केंद्र के फैसले को जिस प्रकार सार्वजनिक रूप से दलीय लाभ का फैसला निरूपित किया ,,वह उन्हे शूल सा चुभ रहा है | क्योंकि मंत्रिमंडल मे उन्होने ही इस प्रस्ताव को रख कर पारित कराया ,फिर खुद ही फाइल लेकर राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी से दस्तखत कराये | इस प्रकार ना केवल उन्होने अपने कानूनी ज्ञान को एक असंवैधानिक कारी के लिए इस्तेमाल किया वरन देश के मुखिया को भी लज्जित कराया |

दूसरा मामला सूखे की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह कहे जाने से उद्भूत हुई की "”राज्य ने अपने कलयंकारी स्वरूप को तिलांजलि दे दी है "”” कोर्ट ने केंद्र से इस बाबत अविलंब एक कोश बनाने का ''निर्देश'''दिया है | वित्त मंत्री का कहना है की बजट पारित हो चुका है ऐसे मे अब सरकार क्या करे ? काफी मासूम सवाल है --परंतु प्राकरतीक आपदाए वित्तीय कलेंडर के अनुसार नहीं होती है | दूसरा प्रधान मंत्री जब कनही जाते है तब उस प्रदेश को करोड़ो -अरबों रुपये की सहता घोसीत करते है ---तब क्या वह पूर्व अनुमानित होती है ?बाढ और सूखा प्रक्रतिक आपदा है और वह अचानक तो नहीं वरन मनुष्य की अवहेलना से होती है |

तीसरा उनका दुख है की जीएसटी कराधान कानून पर अगर राज्य और -केंद्र मे मतभेद हुआ तो सुप्रीम कोर्ट उस मामले मे केंद्र के वीरुध फैसला दे सकती है | अचरज होता है की इतना बड़ा वकील संवैधानिक उपचार के मूलधीकर को "”बाधित "” करने की वकालत कर रहा है | सुप्रीम कोर्ट मूलतः अपीलीय अदालत है | परंतु उसका प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार है [1] राज्य और दूसरे राज्य के मध्य के विवाद {2] एक राज्य और केंद्र के मध्य के विवाद [3] राज्यो के समूह तथा दूसरे राज्यो के बीच के विवाद | अब इस अधिकार को जेटली जी भार और अड़ंगा बता रहे है |


अंत मे जो अरुण जेटली आज न्यायपालिका को तकलीफ देह बता रहे है उन्होने ने ही काँग्रेस के सलमान खुर्शीद द्वारा अदालतों द्वारा गैर ज़रूरी दखलंदाज़ी किए जाने के बयान पर 14 मार्च 2014 को अपने फेस्बूक की पोस्ट मे लिखा था की इन संवैधानिक सस्थाओ मसलन अदालत - निर्वाचन आयोग की निश्पक्षता पर सवालिया निशान नहीं लगाए जाने चाहिए | वे खुद आज अपने लिखे को '''भूल गए है "” या फिर विपक्ष मे और सत्ता मे रहकर '''बोल बदल जाते है ''''

राजनीति की रूडाली बनाम ---सुब्रामानियम स्वामी

राजनीति की रूदाली बनाम सुब्रामानियम  स्वामी

अंधड़ मे उडी लकड़ी के समान -भारतीय राजनीति मे 1977 मे जनसंघ के अदना सिपाही बनकर भारतवर्ष आए सुबरमानियम स्वामी तब से अब तक एक दर्जन से ज्यादा राजनीतिक पहचान बना चुके है | हावर्ड मे अध्यापक रहे स्वामी को आज उनके "”कारनामो "” के कारण विश्व की कोई भी विश्व विद्यालय अपने यानहा "”अतिथि प्रवक्ता"” बनाने को तैयार नहीं है |

कारण उनके ''उल - जलूल बोल ही है "” | हालांकि नेहरू -गांधी परिवार से उनका विरोध --किसी वैचारिक प्रतिबद्धतता के कारण नहीं है | क्योंकि मोरार जी भाई की सरकार मे मंत्री नहीं बनाए जाने पर वे अपनी ही पार्टी के खिलाफ आग उगलने लगे थे | बाद मे मुंबई मे भारतीय जनता पार्टी के निर्माण मे जब उन्हे मनचाही जगह नहीं मिली तो उन्होने विघटित जनता पार्टी को पुनः मूषको भाव के अंदाज़ मे जीवित कर दिया |

इस पार्टी के उपाध्यक्ष नामी -गिरामी शौकीन और अय्याश सरी विजय माल्या थे | जिनको लेकर वे सारे देश मे घूमते थे | कहा जाता है की यू बी ग्रुप और माल्या ही इनके देशी और विदेशी दौरो का इंतेजाम करते थे | फिलहाल जब उन्होने नरेंद्र मोदी सरकार की कई नीतियो और फैसलो की आलोचना की तब उन्हे राज्य सभा मे "”मनोनीत"” सदस्य बना दिया गया | हबकी मनोनयन की श्रेणी के लिए उनके पास विशेषता नहीं है |पर सत्तारूद पार्टी ने इस राजनीतिक रुदाली को चुप रखने के लिए उन्हे यानहा पहुंचा दिया ,, और राज्य सभा मे सरकार की ओर से काँग्रेस नेत्रत्व पर हमला करने का काम सौप दिया ||

राजनेताओ पर हमला तो उनका समझ मे आता है --परंतु रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन को शिकागो भेजे जाने के बयान से उनकी नीयत पर शक गहरा जाता है | उनके अनुसार राजन देश मे बदती मंहगाई पर रोक नहीं लगा पाये | अब उन्हे कौन याद दिलाये सौ दिन मे मंहगाई दायाँ को नियंत्रित करने का वादा नरेंद्र मोदी ने लोक सभा चुनावो मे किया था रघुराम राजन ने नहीं | विश्वस्त सूत्रो के अनुसार माल्या से क़र्ज़ वसूली के लिए राष्ट्रिय बैंकों पर दबाव बनये जाने से वे काफी नाराज़ है | क्योंकि अब उनका रातिब बंद हो गया है \ दूसरा वित्त मंत्री अरुण जेटली भी राजन की बेबाक बयानी से बहुत परेशान है | उन्हे लगता है की देश का केन्द्रीय बैंक उनके मंत्रालय के अधीन है और वनहा भी उनका "”हुकुम"” चलना चाहिए | जबकि रिज़र्व बैंक का प्रशासन लोकसभा के अधिनियमित कानून के अनुसार चलता है | जिसके कारण मंत्री की "”सिफ़ारिशे "” वनहा नहीं चल सकती | बैंक मे अध्पक्ष और प्रबंध निदेशक की नियुक्ति मे वित्त मंत्रालय का दख़ल तो रहता है ,,परंतु उन्हे काम रिज़र्व बैंक के कायदे कानून से करना पड़ता है |


बस यही तकलीफ वित्त मंत्री और स्वामी की है की वे अपने चहेते पूंजीपतियों को कर्जे नहीं दिला पा रहे है | फिलहाल उन्हे उपक्रत करने का काम बीजेपी की राज्य सरकारे कर रही है

विरोध ना अवरोध सिर्फ हुकूमत --मोदी सरकार का फंडा

विरोध ना अवरोध सिर्फ हुकूमत -मोदी सरकार का फंडा
उत्तराखंड मे राष्ट्रपति शासन लगाने की मोदी सरकार के फैसले को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया --उस से केंद्र सरकार के नेताओ मे काफी नाराजगी है | और वित्त मंत्री अरुण जेटली तथा गडकरी ने तो सदन मे यानहा तक कह दिया की "””अब सरकार के पास सिर्फ बजट बनाने और टैक्स वसूलने भर का ही काम बचा है "”” | गडकरी ने तो एक बयान मे यानहा तक कह दिया की जज इस्तीफा देकर चुनाव लड़े और फिर मंत्री बनकर शासन करे | जेटली के बयान को इसलिए गंभीरता से लेना चाहिए की वे खुद भी एडवोकेट है और विगत दो वर्षो से वे सर्वोच्च न्यायालय पर '''लगाम '''लगाने के लिए दो प्रयास सरकार के स्तर पर कर चुके है |

सरकार के गठन होते ही उन्होने जजो की नियुक्ति की वर्तमान प्रक्रिया को रद्द करने और एक आयोग बनाने की कोशिस की थी | इसके प्रविधानों मे प्रधान न्यायधीश एवं सुप्रीम कोर्ट का एक वारिस्ठ जज तथा दो स्वतंत्र व्यक्ति जो कानून के विधिवेत्ता हो और कानून मंत्री | इस आयोग द्वारा ही जजो का चयन किया जाने की व्यवस्था थी | इस मे साफ तौर पर सरकार अपनी मर्ज़ी चलाना चाहती थी | बहुमत के आधार पर निर्णय होना था | साफ था की सरकार तीन मतो को नियंत्रित कर ---जजो को "””अपनी मर्ज़ी पर चलना चाहती थी "””
सरकार के इस प्रस्ताव को अदालत ने खारिज कर दिया |तब नाय फंडा लाया गया की कालेजियम द्वारा सरकार को भेजे गए नामो को "” राष्ट्रिय हित"”” मे अमान्य कर सकेगी | इस राष्ट्रिय हित के फंदे का जनम "””भोपाल मे हुए Judges Retreat से हुआ था | राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी ने जजो को संभोधित भी किया था | सबसे "””अनुपयुक्त "”” उपस्थिती थी --सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की ? एवं उस से भी ज्यादा आपतिजनक था उनके द्वारा बंद कमरे मे जजो के साथ विचार - विमर्श | सवाल है जिस व्यक्ति के वीरुध सुनवाई किए जाने की संभावना हो -वह कैसे सुप्रीम कोर्ट के जजो से मुखातिब हो सकता है और किस हैसियत से ?
विगत दिनो "”राजनीतिक "” विरोधियो के खिलाफ "”राष्ट्र द्रोह "” के आरोप लगा कर विरोध की आवाज को चुप करने की गैर कानूनी कोशिस देश भर मे हुई | सबसे चर्चित मामला जे एन यू मे गिरफ्तार किए गए छात्र नेताओ के खिलाफ मुक़दमे चालने का था |कन्हैया जिसमे मुख्य आरोपी था |

हम देखते है की छात्रो के विरोध और अदालत द्वारा मोदी सरकार के फैसलो को "” गलत "” साबित किए जाने से इनके मंत्रियो मे काफी "”बेचैनी "”” है | क्योंकि उन्हे लाग्ने लगा है की उनके फैसले अगर "”कानून की कसौटी "”” पर खरे नहीं उतरे {{जो की नहीं उतरेंगे क्योंकि वे स्वार्थवश किए गए है }}}तो सरकार और संगठन दोनों ही बदनाम हो जाएंगे |
अब सवाल यह उठता है की ऐसा करने की ज़रूरत क्यो आन पड़ी ? तो वजह यह है की केंद्र को जिन मुद्दो पर "”कमजोर या गलत "”' का आरोप लगाते थे ---अब उन मुश्किलों का सामना करना पड रहा है | जिस धारा 370 की बात और एक विधान एक निशान की बात करते थे --काश्मीरी ब्रांहनों के पुनर्वास मे देरी के लिए डॉ मनमोहन सिंह को दोष देते थे ---अब उनही सवालो के घेरे मे खुद खड़े है | केंद्र द्वारा कश्मीरियों को "”एक साथ "” बसाये जाने के प्रस्ताव को उनके सहयोगी दल की नेता मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ठुकरा दिया है |


तो ये थी विरोध -अवरोध के कारण हुकूमत {{मनमरज़ी की } चलाने मे नाकामयाबी | जिसके कारण जेटली कार्यपालिका को संविधान मे "”सर्वोच्च "”” बनाए रखना चाहते है | अब उनसे कोई पूछे की सुप्रीम कोर्ट का ''अधिकार छेत्र"” संविधान के 32 अनुकछेद मे वर्णित है | तब तकलीफ क्यो भाई ?