लोकतंत्र के लिए दिल और दिमाग में कट्टरता खतरा हैं !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यू तो अपने देश के प्रमुख हैं , परंतु दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्र होने के नाते उनके फैसले विस्व व्यापी होते हैं | पर्यावरण - विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका के अलग हो जाने से दुनिया मे प्रदूषण और स्वास्थ्य के मसले खड़े ही जाएंगे | हाल ही में सैन्य संगठन "”नाटो "” के अधिकारी ने भी ट्रम्प के रुख से यूक्रेन को सैन्य सहायता में कमी की आशंका जताई थी | ट्रम्प का मानना है की नाटो सदस्य अपने वित्तीय जिम्मेदारियों को नहीं निभाते है और अमेरिका की ओर मुंह कर देते हैं | परंतु अब ऐसा नहीं होगा | देर सबेर फिर एक बार पहले जैसी स्थिति आ सकती हैं , जैसा की ट्रम्प के प्रथम राष्ट्रपति काल में हुआ था | उनका मानना है की अब अमेरिकन सेना केवल अपने देश के दुश्मनों से लड़ेगी , किसी और की लड़ाई को अपने सिरे नहीं लेगी | इसस रुख से यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद की खर्च करना होगा | जो उनके विकास को अव रूढ करेगा | दूसरे अब अन्तराष्ट्रिय सैन्य संगठनों की जिम्मेदारियों पर भी सवाल लगेगा | अमेरिका को सीधे किसी भी राष्ट्र से चुनौती नहीं हैं | अतः वह चहहे तो अपनी सेना का बजट काम कर सकता हैं | उसे अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं हैं | रूस और चीन से उसे कोई खतरा नहीं है | परंतु अमेरिका से संधि से जुड़े देशों को अब सोचना होगा ---अथवा ट्रम्प की शर्तों के सामने झुकना होगा | पनामा नहर का मसला अब वे कैसे सुलझाएंगे यह देखना होगा | अगर उन्होंने सेना के सहारे कब्जा किया ---तब भी दुनिया वैसी ही "”गूंगी"” बनी रहेगी जैसी इजराइल द्वरा फिलिसतींन पर हमले के समय थी | भविष्य काफी अंधकार पूर्ण हैं |
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दो वित्तीय संस्था है पहली आई एम एफ और वर्ल्ड बैंक , इनमे भी अमेरिका का काफी दख़ल है | जिस प्रकार ट्रम्प अपने देश की कंपनियों के हितों के लिए "आयात"” पर शुल्क बदोतरी "” की बात कर रहे हैं , वह विकासशील देशों के लिए भारी पद सकती हैं | तब यूरोपीय देशों को अपनी - अपनी सोचनी पड़ेगी | क्यूंकी इन राष्ट्रों की तेल की जरूरत तथा अनाज की जरूरत एशिया के देशों से होती हैं , उक्रेन का गेंहू अगर नहीं भेज जाए तो अनेक राष्ट्र एन के संकट से घिर जाएंगे |
किस्सा कोताह लोकतान्त्रिक देशों के लिए भविष्य बहुत सुंदर नहीं हैं |
वर्तमान मे लगभग दो दर्जन से अधिक देशों में हिंसा का तांडव मचा हुआ हैं , परंतु विश्व मे शांति और व्यवस्था के लिए बने संस्थान "”संयुक्त राष्ट्र संघ " जितना लाचार आज दिखाई पद रहा हैं -उतना पहले कभी नहीं रहा था | दूसरे महा युद्ध के समय में भी युद्ध स्थलों में रेड क्रॉस का निशान पवित्र माना जाता था | यंहा तक की हिटलर की नाजी सेनाए भी इस निशान की इज्जत करती थी | परंतु इज़राइल द्वरा गाजा में जिस प्रकार यूएनओ की मेडिकल एजेंसियों को भी "”शत्रु समझ कर "” व्यवहार किया है उसका उदाहरण यूएनओ के लगभग 400 से अधिक लोगों की इजराइली हमले मे मौत हैं ! | शायद यही कारण रहा होगा की अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने देश को इन विश्वव्यापी संस्थाओ से अलग कर लिया हैं | यूएनओ आज सुरक्षा परिषद , स्थायी सदस्यों के अहम का अखाड़ा बन के रह गया हैं | गाजा मे हुए नरसंहार में इन सदस्यों की चुप्पी इस बात का संकेत हैं की अब "”राष्ट्रीय और मानवीय मूल्य "” का कोई अर्थ या मोल नहीं हैं !
पर्यावरण और वैश्विक स्वास्थ्य की चिंता करने वाले यूएनओ के संगठन से अमेरिका का अलग होना , यह संकेत हैं की अब दुनिया के सभी देशों को अपनी - अपनी ढांकनी होगी | वैश्विक सहयोग और विकासशील तथा विकसित देशों मे अब मात्र कूटनीतिक संबंध ही बचेंगे ! हो सकता हैं की अब प्राकर्तिक आपदा अथवा महामारी का दंश अब राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओ में ही खोजना होगा ---वह भी उस देश के सरकार और संस्थाओ द्वरा | जिस प्रकार कोरोना के बाद एसियाई मुल्कों मे सामाजिक स्तर पर परिवार और सामाजिकता बिखर गई थी --- अपनी अपनी जान बचाने के चक्कर मे , वैसा ही कुछ अब विश्व के देशों के साथ हो रहा है |
अफ्रीका महाद्वीप में कांगो -दसूदन -मलावी आदि अनेक देश आंतरिक --कबीलाई संघर्षों मे उलझे है ,उससे वनहा की आबादी के सामने भुखमरी और महामारी मुंह फैलाए खड़ी हैं | परंतु ट्रम्प के निकाल जाने से जो वित्तीय मदद इन संस्थानों को मिलती थी वह बंद हो जाएगी |