कोरोना -पेगासास पर मोदी सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ? ----------------------------------------------------------------------------
वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आपदा नियंत्रण कानून के तहत सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं | जब कोरोना के प्रकोप से देश में हाहाकार मचा हुआ था और हजारो लोग की मौत अस्पतालो और घर में हो रही थी , उस समय रोगियो की मौत का "””कारण महि लिखा जा रहा था "” ! अब ऐसा क्यू हुआ इसका जवाब ना तो केंद्र ने और नाही राज्यो ने दिया | जबकि दुनिया भर में यह दस्तूर है की मरीज की मौत जरूर लिखी जाती हैं | पर मोदी सरकार के निर्देश जो की मौखिक ही रहे हजारो लोग बिना मौत के स्पष्ट कारण के ही जलाए जाते रहे अथवा दफनाये जाते रहे |
जब सुप्रीम कोर्ट ने इस व्ययस्था का कारण केंद्र सरकार से जानना चाहा तब जवाब यही था की ऐसा कोई निर्देश नहीं हैं ! तब सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश रमन्ना ने निर्देश दिया की सभी कोविद मरीजो की मौत के कालम में कारण साफ साफ लिखा जाये | जब कोविड मरीजो के मौत सेर्टिफिकेट पर कारण लिखा जाने लगा | फिर सर्वोच्च न्यायालय ने इन प्रभावित लोगो को मुआवजा दिये जाने की याचिका पर मोदी सरकार से सवाल किया और पूच्छा की सरकार की क्या रॉय हैं ? तब सरकार ने कहा की कोविड मरीजो की मौत पर मुआवजा देने का कोई प्रविधान नहीं हैं | जब न्यायालय ने कहा की आपदा प्रबंधन कानून में मुआवजा का प्रविधान हैं , तब कोविड वालो को क्यू नहीं दिया जा सकता ? तब सरकार ने राज्यो की वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए कहा अगर मुआवजा देना पड़ा तो वित्तीय संकट खड़ा हो जाएगा | परंतु सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुआवजा नहीं दिये जाने के जवाब पर आशंतोष व्यक्त किया | तब अगली पेशी पर केंद्र सरकार ने कोविड मरीजो की मौत पर 50.000 रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया | शर्त यह थी की अस्पताल में भर्ती होने के तीस दिन के अंदर मौत को कोइड से मौत माना जाएगा !
मुआवजे पर सवाल उन लोगो के बारे में स्थिति अभी भी साफ नहीं हैं जिनकी मौत के कारण का "”कालम "” खाली रखा गया हैं ! क्यूकी सरकार की इस घोसना से पहले ही हाजरों लोग कोरोना से काल कवलित हो चुके थे | लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ही पहल पर मोदी सरकार को जनता की आवाज को अमली जमा पहनाया जा सका हैं |
2- मसला था की "”पेगासास " नमक इज़राइली सॉफ्टवेअरसे मोदी सरकार ने राजनीतिक विरोधियो और पत्रकारो तथा संवैधानिक पदो पर बैठे लोगो की जासूसी करवाने के लिए उपयोग किया | जो ना केवल निज स्वतन्त्रता का हनन है वरन गैर कानूनी भी हैं | समाचार पात्रो में देश - विदेश मेय मसला उठाया गया | तब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस कोशिस को राष्ट्र विरोधी और शत्रु देशो की चाल निरूपित किया |
जब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला आया तब सरकार ने इस सवाल को राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ा हुआ बताया | तब अदालत ने कहा की सरकार यह बताए की क्या उसने पेगासास सॉफ्ट वेययर खरीदा है या नहीं ? तब भी केंद्र सरकार कोई संतोष जनक जवाब नहीं दे पायी | अदालत ने बार बार कहा की हम यह नहीं जानना चाहते हैं की इसका उपयोग कैसे और किन लोगो के पर किया गाय , हम तो सिर्फ यह जानना चाहते हैं की सरकार ने इस सॉफ्टवेयर को खरीदा हैं अथवा नहीं ? जब एटर्नी जनरल सरकार की ओर से निर्देश की बात करते रहे | तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर एक एक्सपर्ट कमेटी बनाने का ऐलान किया | अब स्थिति सरकार के लिए अजीब बन गयी हैं | क्यूंकी कमेटी के सदस्यो के सवालो के जवाब तो देने होंगे |
मोदी सरकार के अनेक निर्णयो को जिस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने समीक्षा में रख कर कारवाई करने के आदेश दिये हैं , ,उनसे यह स्पष्ट हैं की लोकतन्त्र की रीति -नीति की रक्षा संविधान के तीसरे खंबे द्वरा ही हो रही हैं | जनता जनहा पेट्रोल और बदती मंहगाई से त्रस्त है , वनही जन आंदोलन की अनसुनी का सबसे बड़ा उदाहरण दस माह से अनवरत चल रहे किसान आंदोलन हैं | देश के अनेक खेमो से संदेह की यह आवाज़ उठाई जा रही हैं की राष्ट्रीय संपति को "”किराए पर अथवा गिरवी रख कर आय उपार्जन की कोशिस की जा रही है - वह जन विरोधी और देश के लिए वांछित नाही हैं "” टेलेफोन निकाय हो अथवा भेल हो या हिंदुस्तान एरोनाटिक्स हो अथवा रक्षा उत्पादन में लगी दर्जनो इकाइयो को निजी हाथो में वह भी अदानी और अंबानी जैसे उद्योगपतियों के हाथ जिनकी आम लोगो मे छवि अछि नहीं है |
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने वैबसाइट पर "” मोदी जी जी का घिसा पिटा नारा "”सबका साथ सबका विकास "” का नारा और मोदी जी के चित्र को तत्काल हटाने का आदेश देते हुए मात्र सुप्रीम कोर्ट भवन का चित्रा लगा ने का आदेश दिया | इस्स से साफ होता है , की भूतपूर्व प्रधान न्यायाधीश रबजन गोगोई जिस तरह से सरकार के "” मुखापेक्षी "” रुख रखते थे , वैसा अब नहीं होगा | गोगोई जी ने अपने टिवेट से जिस प्रकार हिन्दू परचम को बड़ा रहे है वह किसी भी प्रकार उचित तो क्या अच्छा भी नहीं कहा जा सकता हैं