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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 27, 2012

NEEYAT-NITI SAY LEKAR NIUKTI KI RAJNITI

               नीयत -नीति  से लेकर नियुक्ती  की राजनीती    यह सवाल  हॉल मेंही  सी .ब़ी आइ  के निदेशक पद पर रंजित कुमार सिन्हा की पद स्थापना  के फैसले को लेकर हुई  । हर  राजनीतिक  दल की ""नीयत ""उसके सिधान्तो और घोस्नापत्र मैं स्पष्ट होती हैं ।     इस पूरे प्रकरण को  देखने पर लगता हैं की संसद में बैठे डालो को यह आधारभूत बात नहीं मालूम हैं ,अथवा वे जान कर भी अनजान  बन रहे हैं ।संविधान के सत्ता विभाजन के आधार पर  संसद एअक विधायी निकाय हैं , जो सरकार के  लिए    विधि निर्माण  का  कार्य करने की उत्तरदायी  हैं ।आब इस मामले ,में  एक  अधिकारी की नियुक्ति   होनी थी ।जो की पूरी तरह से प्रसासनिक कारवाई हैं ।अब इस मामले में या तो उस अधिकारी के चरित्र पर कोई दोष सिद्ध होताथ्वा कोई और कमी होती ,तब ऐतराज वाजिब होता , पर ऐसा कुछ नहीं था ,फिर भी सदन में शोर था और हैं ।मतलब दो दिन संसद के हल्ला-गुल्ला में बर्बाद हुए ।।अब इस मुद्दे को लेकर भा .ज पा  में बात इतनी बड़ी हो गयी की उन्हे आपने फायरब्रांड  नेता ""राम जेठमलानी  जो की सांसद हैं उन्हे भी पार्टी से निलंबित करना पड़ा . इतना ही नहीं पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और फ़िल्मी कला कर शत्रुघ्न सिन्हा को  भी चेतावनी देनी पड़ी ।अब  इसके दो ही आर्थ हो सकते हैं --या तो यह कारवाई  आपसी गुटबाजी का नतीजा हैं अथवा इसमें कोई "" अनजाना  फैक्टर हैं ?अब वह किया हैं यह भी साझ पाना  कोई कैलकुलस की प्रॉब्लम नहीं हैं जिसे हल करने में दांतों तले  पसीना आ जाए ।

                                                 सीधी सी बात हैं की भा  ज  पा  को कोई ऐसा मुद्दा चहिये जिस के बलबूते पर वह राजनितिक  आकाश पर एक अलग तारे की तरह चमके , ।अब इसके लिए पिचली बार संसद के अधिवेसन को शोर - ओ - गुल की भेंट चदा दिया था , और इस बार भी लग रहा हैं की वह उसी दिशामें अग्रसर हैं ।आख़िरकार एक अधिकारी की नियुक्ति को लेकर देश का एक दल क्यों इतना विचलित हैं ?यह प्रश्न उठता हैं ।     जंहा  तक उम्मीद हैं की राजनितिक मजबूरियों के अलावा भी पर्दे के पीछे भी कुछ ऐसा गोपनीय रहस्य हैं जिसे  नेतृत्व  ना ही कह सकता हैं और बर्दास्त  हो नहीं पा रहा हैं ।अब इस स्थिति में  ""चरम""क़दम उठाने का फैसला ही उनके  पास विकल्प के रूप में बचा  हैं , और वह हैं ''सदन की करवाई को बाधित कर कर  विरोधी दल हनी का सबूत डे जिस से सरकार  को संदेह के कटघरे में लाया जा  सके ,ऊँगली उठाई जसके ,एक बयां भी दिया जा सके ।क्योंकि अन्य कोई रास्ता बचा नहीं हैं ।
                                   
                                                  परन्तु भा जा पा के इस रुख से जेंह एक और संवैधानिक मर्यादा टूटी हैं  वही यह भी सवाल उठने लगाहें की  की अब सदन सिर्फ अधिनियम ही नहीं बनाएगा वरन विनियम भी बनाएगा ,जो अभी तक सम्बंधित  विभाग द्वारा बनाये जाते थे ,और वह भी सरकारी बाबुओ द्वारा '''न की राजनितिक ''सत्ता '' द्वारा ।     वैसे  यह स्थिति पूरी तरह संकट में डालने वाली नहीं हैं , क्योंकि इस से एक बात  तो ठीक हो  जाएगी ---वह यह की फिर शकल देख कर विभाग काम नहीं कर सकेगा ।क्योंकि एक बार सदन ने विनियम को  पारित कर दिया तब उनमें ---संशोधन --परिवर्तन --छूट आदि के मामले उन्ही नियमो से तय होंगे, नाकि '''मुंह देख कर कानून बताने का सिलसिला ख़तम हो जायेगा ।वह इसलिए की कानून तोडने पर तो सजा का प्राविधान  भी  करना  होगा । अभी भूमि अधिग्रहण के मामले मैं  अथवा मास्टर प्लान के मामले में गरीब की  जमीन  कब्जे में ले ली जाती हैं और अफसर और बिल्डर माफिया की जमीन  को ''मॉल ''बनाने के लिए  या कारोबारी - धंधे के लिए छोड़ दिया जाता हैं ।ऐतराज़  उठाने पर ''यू  शो में फेस विल शो यू रूल ''के सिधान्त   के अनुरूप करवाई की जाती हैं ।अभी इंदौर और भोपाल के अनेक मामलो में जमीं के ट्रान्सफर के मामलें सुर्खी में आये हैं  ,वे इसी कारन हैं की विनियम सबके लिए लाभकारी नहीं हैं ।अगर भा जा  पा  की संसद रोक की इस करवाई से ऐसा कुछ हो सकता हैं तो फिर यह ''विरोध'' सर माथे पर .