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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 5, 2015

क्या एक सांस्कृतिक संगठन का दल और सरकार पर नियंत्रण हो ?

क्या एक सांस्कृतिक संगठन का दल और सरकार पर नियंत्रण हो ??

                  राष्ट्रिय स्वयं सेवक संगठन ने सदैव अपने को सान्सकृतिक संगठन ही घोषित किया है | जो शिक्षा – श्रमिक –और आदिवासियो मे एक ‘’गैर सरकारी संगठन ‘’’’के रूप मे काम करता रहा है |महात्मा गांधी की हत्या के उपरांत गोडसे – आपटे और सावरकर के संबद्ध होने के कारण , सरदार पटेल ने इस संगठन पर ‘’प्रतिबंध ‘’’लगा दिया था | तब संघ की ओर से एक शपथ पत्र दे कर कहा गया था की “”वो कभी भी राजनैतिक गतिविधियो मे भाग नहीं लेगा “”” | परंतु 67 वर्ष बाद  अब यह सिद्ध हो गया की ---वह शपथ पत्र की स्याही सूख गयी अथवा उसकी आत्मा  मर चुकी है |
                      तीन दिवसीय  संघ और मोदी सरकार की तीन दिवसीय समन्वय बैठक पर  कुछ प्रश्न उठे है | आजतक  संघ के स्वरूप को सार्वजनिक नहीं किया गया | सभी सान्स्क्रतिक संगठन का एक संविधान होता है | उनके उद्देस्य और कार्य प्रणाली का विवरण दिया जाता है | प्रबंधन कैसे होगा –- सदस्यता के नियम – कोष का प्रबंधन  आदि आवश्यक नियम होते है | वैसे सभी गैर सरकारी संगठन  के लिए ‘’’’’’राजनीति ‘’’ से संबंध और दखलंदाज़ी  “””गर्हित  अपराध “””होता है | अभी कल ही केंद्र सरकार ने ग्रीन पीस  जैसे अंतर्राष्ट्रीय  संगठन के  क्रिया कलापों  पर प्रतिबंध लगा दिया | क्योंकि वे सरकार की परियोजनाओ का पर्यावरण के कारण विरोध कर रहे थे | एक ओर मात्र उन परियोजनाओ के विरोध के कारण  ‘’प्रतिबंध’’’ लगे चूंकि वे सरकारी परियोजनाओ से होने वाले पर्यावरण की जानकारी देश और दुनिया को दे रहे थे साथ उनके विरुद्ध जन तांत्रिक रूप से विरोध प्रदर्शित कर रहे थे | क्या यह राजनीतिक हस्तछेप है ? नहीं |
              एक और सवाल है की संघ मे सदस्य अथवा कार्यकर्ता  की भूमिका क्या है ? क्या वह अपने पदाधिकारियों  के चयन प्रक्रिया मे कोई भूमिका होती है ?? सदस्यता की कोई सूची होती है  अथवा कोई शुल्क होता है ?? यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है चूंकि कोई भी संगठन बिना धन के कैसे चल सकता
है ?इसलिए उसके वित्तीय स्तोत्र तो निश्चित होने ही चाहिए – क्योंकि दान पर आधारित  धार्मिक संगठन होते है –जो भक्तो की श्रद्धा और उनकी निधि से चलते है |भले ही वे सामाजिक काम करे  परंतु उन्हे प्रदेश के ‘’’धार्मिक न्यास आयुक्त ‘’’ को वार्षिक हिस्साब –किताब देना होता है | परंतु क्या संघ पर यह नाचीज़ कानून लागू होता है ?? जहा तक मेरी जानकारी है – की संघ के कार्यकर्ता //सदस्य केवल  “”””गुरु पूर्णिमा””  के दिन अपना चेहरा उजागर करते है | वर्ष के मात्र एक दिन !!  
मुझे स्मरण है की मंदिर –मस्जिद  के बाद जब केंद्र सरकार ने संघ समर्थित  प्रदेश सरकारो  को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया तो ,, प्रदेश मे सुंदर लाल पटवा मुख्य मंत्री थे | घोषणा के बाद उन्होने पत्रकार वार्ता बुलाई और कहा की राज्य मे भारतीय जनता पार्टी की सरकार है ,, जिसका संघ से कोइ लेना –देना नहीं है | यह प्रश्न उठाए जाने पर की सरकार के मुखिया और अन्य लोग तो सदस्य है ? उन्होने कहा था –की संघ मे  सदस्यता  होती ही नहीं है –फिर यह साबित नहीं किया जा सकता की कौन संघ का सदस्य है | यह एक प्रकार से  सरकार को हटाने के केंद्र के फैसले को “”” आधारहीन “”” बताने का प्रयास था | परंतु जब मैंने कहा की संघ की सदस्यो का पता  उजागर होता है परंतु सिर्फ  “”गुरु पूर्णिमा’’’”” को | अगर उस दिन सभी शाखाओ  मे “””गुरु दक्षिणा””” देने आने वालो की सूची ही संघ की सदस्यता  है | इस पर हतप्रभ  मुखी मंत्री ने कटाक्ष  किया था की आप ज़रूर गए होंगे तभी आप को कारी प्रणाली के बारे मालूम है |
                       जब सदस्यता सूची ही नहीं है तब तो पदाधिकार्यों  का चयन “”एक काकस “”” ही करता है | जिसके सदस्य ही ‘””सर संघ चालक “” और सर कार्यवाह “”” बनते है | जो संघ से जुड़े 18 आनुषंगिक संगठनो को दिशा देते है | उनका मुखिया कौन होगा –उनका वित्त पोषण कैसे होगा आदि भी नागपूर के संघ कार्यालय से ही निश्चित होता है | मज़े की बात है की इन संगठनो मे भारतीय जनता पार्टी का नाम नहीं है | जबकि यह सर्वाधिक ताकतवर संगठन है |
क्योंकि संघ “”राजनीतिक गतिविधियो “”” मे भाग नहीं ले सकता | यदि ऐसा करेंगे तो उन्हे  निर्वाचन आयोग मे पंजीकरत होना होगा | जनहा संगठन मे चुनाव और वित्त का हिसाब देना अनिवार्य है | अब इनके पास ना तो सदस्यता सूची है  -ना ही दान का हिसाब |और ना ही पदाधिकारियों के चयन की ‘’’चुनाव प्रणाली |
          यूं तो  संघ और उसके संगठन पृथक-पृथक काम करते है | इसीलिए वे अपने को “”स्वयंभू “” बताते है | परंतु हक़ीक़त मे ऐसा नहीं है | भारतीय जनता पार्टी के नेता और विश्व हिन्दू परिषद तथा बजरंग दल –दुर्गा वाहिनी  का सम्मिलित  “””प्रयास या मुहिम “”” बाबरी मस्जिद को गिराने  और राम मंदिर को बनाने के समय स्पष्ट हो गया | जब इन संगठनो के बड़े – बड़े नेता हिरासत मे लिए गए | इतना ही नहीं तत्कालीन मुख्य मंत्री और मौजूदा राज्यपाल राजस्थान कल्याण सिंह ने –सुप्रीम कोर्ट मे मस्जिद को  “”” हिफाज़त करने का आश्वासन “”  का शपथ पत्र दिया था | जो झूठा साबित हुआ | उस मुकदमे पर अभी सुप्रीम कोर्ट को अंतिम फैसला देना है |