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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 1, 2023

 

 ना जान बचेगी और ना जंगल  बचेगा  ऐसा कानून बनेगा !

 

जन विश्वास बिल – देश ही नहीं मानवता से धोखा है !

                       लोकसभा में बहुमत  कितना जन अपघाती हो सकता है ,इसका उदाहरण  मंगलवार को अहली अगस्त को हुआ , जब ध्वनि मत से  मोदी सरकार ने  मिलावट और अमानक दवाओ और खाद्य पदार्थो  में –जेल की सज़ा को समाप्त  करने की अपनी नियत को उजागर कर दिया !  मोदी सरकार ने यह विधेयक लाकर यह साफ  कर दिया की उसे “”जन या जनता “”की परवाह   नहीं वरन  ‘’अपने  दान दाताओ की ज्यादा है | बड़े उद्योगपतियों के अरबों रुपए के कर्ज़ो को माफ करने वाली सरकार , अब  अपने छोटे छोटे और मझोले उदुगपतियों  को “”कवच प्रदान “”” कर रही है |  एक मज़ाक  राजनीतिक हलको में  कहा जाता था की  बीजेपी यानि भारत के  बनियो और जैन {माफी साहित}}  की पार्टी है | यह आम लोगो के हिट की बात  करती तो है पर फैसले  सरमायादारों  के हित में होते है |  अब इस विधेयक  का भविषय  ही यह निशय करेगा की  या जन हितकारी है अथवा  सरमायादारों के लाभ का है

 लोगो का अनुमान है की  यह विधेयक  दवा  बनाने वाली कंपनियो  और खाद्य पदार्थ निर्माताओ के समूह के “”दबाव “” मे लाया गया है |   इस विधेयक की व्यापकता  का अंदाज़ केवल इस टाठी से लगाया जा सकता है की  42 मंत्रालयों के 42 कानूनों के 182 प्रविधानों ,में  आरोपियों को सज़ा के प्रावधान को समाप्त किया जाना है |  राजनीतिक हल्के में कहा जा रहा है की सरकार की यह पहल  सत्ताधारी दल को “”नोट भले ही दिला दे पर वोट “” नहीं मिलेंगे !

       एक व्यक्ति की तथाकथित “”मानहानि “” के मामले में दो साल की सज़ा तो मैजिसटेँट फटाक से सुना देते है ---पर अब वे भोजन –दवा  और  मिलावटी शराब  के मामलो में जनहा अनेकों लोगो की मौत भी हो चुकी हो वनहा  वे केवल  लाख का अधिकतम जुर्माना ही सुना सकेंगे | है ना अजीब बात | कानून एक आदमी की हत्या पर फांसी और “बिना नियत की हुई मौत “” की सज़ा  तो सात साल या अधिक की दे सकता है , परंतु अगर यह विधेयक राज्य सभा में भी पास हो गया तब   किसी दवा निर्माता , होटल और हलवाई  अथवा सुंदरता के प्र्सधन बनाने वालो के सामान से किसी मौत भी हो जाए ---तब भी उसे  कारावास की सज़ा नहीं दे सकेगा |

 

     नरेंद्र मोदी जी  विदेश यात्रा के बहुत शौकीन है , वे अमेरिका हो कर आए है ---उन्हे क्या मालूम नहीं की वनहा दवाओ की गुणवत्ता और उसके अच्छे –बुरे प्रभाव की जांच कड़ाई से की जाती है | तभी भारत मे  अमेरिकी दवा कंपनीय  अपने उत्पाद  चार सौ से अधिक मुनाफे में बेचती है | जबकि भारत की देसी  दवा निर्माता खांसी का कफ सिरप भी  “”हानिरहित “” नहीं बना पाते | यही कारण है की  संयुक्त राष्ट्र संघ ने अफ्रीका के अनेक देशो में भारतीय द्व निर्माताओ  के कफ सिरप को “”जहरीला “ मानते हुए इन उत्पादो और उनको बनाने वालो अन्य उत्पादो के प्रयोग को “”प्रतिबंधित “” कर दिया है |  दुबई –जनहा की यात्रा कर के और वनहा का राष्ट्रिय सम्मान  पा  कर मोदी जी अभी हाल में लौटे है – वनहा तो कानून इतना सख़त  है की  खाने –पीने की वस्तुओ में मिलावट या खराब किस्म होने पर तो  सीधे मौत की सज़ा ही है | इसी  लिए वनहा फिरंगी कंपनीया  बहुत ज्यादा एहतियात बरतती  है , की खाने की वस्तुए  एक्सपारी  डेट के पहले ही खतम हो जाए , वरना बची हुई सामाग्री उन्हे नष्ट करनी होती है | 

     

      विश्व गुरु की प्रतिमा की चाह  रखने वाले  लोगो को  ईमानदारी  और सच्चाई का व्यवहार न केवल रखना होगा वरन ऐसा दुनिया को लगे की हम  ईमानदारी बरत रहे है यह भी दिखाना होगा | इस बिल के पास होने की दशा में  इल्ली लगा चावल और बदबूदार गेंहू  को बेचने वाला  ----- सिर्फ जुर्माना बाहर कर छूट जाएगा !!!   15 मंत्रालयों  के 42 कानूनों के  182 प्रविधानों को संशोधित करने का प्रस्ताव सरकार ने सदन में किया है-----  जिसमे प्रिवेनशन  ऑफ मनी लांडरिंग  कानून भी है , अब ई डी ,जो की सभी मोदी विरोधियो पर छापे मारने और गिरफ्तार करने के लिए बदनाम है ---उसका भी काम बस ट्राफिक सिपाही क तरह चालान काटना भर रह जाएगा | अब वह पुंछ ताछ ही करेगी जांच के लिए  हिरासत में नहीं लेगी ,क्यूंकी  जिन अपराधो में केवल का  जुर्माना का प्रविधान होता है –उनमे  क़ैद नहीं होती अमूमन |

 

     संयुक्त संसदीय समिति  में इस विधेयक पर अधिकान्श का मत यह था की दूध – दही , या समोसे कचौड़ी चाय और हलवाई के निर्मित सामानो पर जेल की व्यसथा समाप्त की जानी चाहिए | क्यूंकी इन छोटे छोटे व्यापारियो का रोजगार तो श्रम कानून के तहत भी नहीं आता |  परंतु  वन अधिनियम 1927 के  तहत पेड़ काटने पर 00 रुपए के जुर्माना  तो अत्यंत  धोखा है | क्यूंकी जंगल का कोई भी पेड़  की कीमत तो जुर्माने की रकम से कई गुना  होती है | अब इससे वन माफियाओ की बन आएगी , वे किस्तों में पेड़ काटेंगे  और वन रक्षक  कुछ भी नहीं कर सकेगा !  हाँ  जंगल में मवेशी चरने पर यह जुर्माना  जायज कहा जा सकता है | क्यूंकी  जंगल के किनारे बसे आदिवासी या दूसरे लोगो   “ चरनोई की जमीने खतम हो जाने के कारण  अपने मवेशियो को जंगल में चराने  के लिए मजबूर है | अब ऐसे में   उनके हिट के साथ  पर्यावरण का ध्यान रखना  बहुत जरूरी है |

 

       पर्यावरण और वायु प्रदूषण  के कानूनों में संशोधन करके  भी जेल की सज़ा को खतम कर दिया गया है , अब उद्योगपति   हवा –पानी को गंदा या प्रदूषित करके --- शासन के मुंह पर “चांदी का जूता “” मार कर छूट जाएँगे , उन्हे डर तो सिर्फ जेल जाने और वनहा की कष्टो  का था | जो उन्हे कानून और नियमो का पालन करने  को मजबूर करता था | अब फैकट्री  और मिललों का गंदा पानी और सामान आसानी से  बसाहट  में डाला जा सकेगा , और वह भी बिना किसी सज़ा के भय के | इस विधेयक  में जो सबसे  अजीब संशोधन है है वह है रेलवे एक्ट 1989  जिसमे रेल के डब्बे में भीख मांगने वालो को अब ना तो जेल होगी और नाही कोई जुर्माना –क्यूंकी अगर वे जुर्माना अदा करने लायक होते तो भीख क्यू मांगते | हाँ  अब चलती ट्रेन में  सामान बेचने वालो को छूट मिल जायेगी ,लेकिन उसे रेलवे से पर्मिट लेना होगा , परमिट नहीं होने से भी कुछ नहीं होगा | शायद मोदी सरकार नौजवानो को पकौड़े  समोसा बेचने और चाय के स्टाल लगाने तथा  धार्मिक नगरो में गाइड की भूमिका निभाने को प्रेरित कर रहे  है |

     यह विधेयक  अगर राज्य सभा में भी पास हो गया तो इसके कुफ़ल  जल्दी ही दिखाई पड़ेंगे |

 

 

ज्ञानवापी की गलती को सुधारने के पहले शंबूक वध का जवाब होगा !

 सत्ता के  लड़खड़ाते पैर दंगो की लड़ाई से जीत हासिल कर सकेंगे !

 

 मणिपुर से  शुरू हुई अशांति का हरियाणा तक फैलना , संयोग तो नहीं , हाँ सत्ता का प्रयोग ही हो सकता है |  आज  नब्बे दिन से अधिक हो गए पूर्वोतर में जन  जातीय समुदायो में हो रही हिंसा ,और उनमे  मरने और विस्थापित होने वालो  की संख्या में लगातार बढोतरी  , केंन्द्रिय सरकार के लिए चिंता से ज्यदा राजनीति में “वनअप  मैनशिप “ की बात है | उनके सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब और सरकारी पैरोकारों की दलीलों से तो यही लगता हैं !

       इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के भगवधारी  मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ  भी इस  “ धरम युद्ध “ में आहुती देने से बाज़ नहीं आ रहे है | ज्ञानवापी को मुसलमान शासको  की गलती बताते हुए  योगी नामधारी  का सुझाव है की मुसलमान पूर्वजो की गलती को  सुधारने के लिए  समुदाय को माफी मंगनी चाहिए |  आशय यह है की मुसलमान  ज्ञानवापि मस्जिद  पर अधिकार छोड़ दे –जिस प्रकार बाबरी मस्जिद  पर उनका अधिकार लिया गया |   इन गोरखनाथ मठ के प्रमुख और राजय के मुख्यमंत्री  के अनुसार  वनहा ज्यूतिर्लिंग है  देव प्रतिमाए है  और दीवारों पर  देवताओ के चित्र है !  अब कुछ सवाल ---किस प्राचीन मंदिरो की की दीवालों पर देवी – देवताओ के चित्र पाये गए है ,क्या बताएँगे ? 

    मुख्यमंत्री   आदित्यनाथ  क्या कोई ऐसा ऐतिहासिक अथवा वेदिक द्र्ष्टांत  बता सकते है , जनहा काषाय वस्त्र धारी  शासक रहा हो ??  भगवा वस्त्र  भौतिक जगत से संबंधो को तोड़ने का प्रतीक है , यानहा तक की यह बना धरण करने वाले को अपने माता पिता –परिवार  से संबंध खतम कर स्वयं का श्राद्ध करके ही इस परंपरा में प्रवेश पाया जा सकता है | तब किस  धार्मिक अथवा नैतिक आधार पर वे भगवा वस्त्र धरण कर के  राज्य चला रहे हैं ??  इसे कहते है खुदरा फजीहत दिगरा नसीहत |  हाँ  187 में सन्यासियों ने शस्त्र  उठाए थे फकीरो ने भी हथियार लिए थे –परंतु वह  विदेशी शासको  के खिलाफ था | परंतु आज जिस प्रकार लोकतन्त्र में  भगवधारी  मुख्यमंत्री   राज्य के एक समुदाय को निशाना बन रहे है –वह धरम सम्मत तो कतई नहीं है | अगर है तो बताए |

    अब ऐतिहासिक भूल की बात करे तो  योगी जी  राम राज्य में ही शंबूक का वध हुआ था –क्यूंकी वह वेदपाठ करने का अधिकारी ,इसलिए नहीं था क्यूंकी वह  निम्न वर्ण में जन्मा था ? क्या उसके लिए आप माफी मांगेंगे , क्यूंकी आप तो  शक्ति उपासक के कनफ़डवा संप्रदाय से है | जो मूर्ति पुजा नहीं करता है परंपरा से |  इतिहास  में  सनातनी समाज में ऊंच–नीच के भेदभाव तथा छुवाछुत  के कारण  महान सम्राट अशोक के काल में ही  बौद्ध और जैन धरम  का उदय हुआ | बहुत बड़ी संख्या में   देश में  बौद्ध संघाराम  बने लोगो ने मूर्ति पुजा छोड़ कर अष्टांगिक मार्ग अपनाया | दक्षिण में सनातनी लोगो के अत्याचार से पीड़ित होकर  लोगो ने ईसाई धरम अपनाया , अब इन सब के लिए ----- कौन गलती का जिम्मेदार और कौन भूल सुधार करेगा ? जवाब दीजिएगा |

 राजनीतिक  कयास _--- हाल ही में कश्मीर समेत अनेक राज्यो में राज्यपाल का पद सम्हालने वाले  नेता सतपाल मालिक  ने सोशल मीडिया पर एक आशंका जाहीर की है की  , आगामी  चुनाव जीतने के लिए   श्री नरेंद्र मोदी जी “” कोई भी  कदम उठा सकते है “” |  मणिपुर की हिंसक घटनाओ पर बोलते हुए उन्होने  आशंका जताई की  राम मंदिर में बम विस्फोट कराया जा सकता है , अथवा किसी नेता की हत्या हो सकती है { यह गुजरात के गृह मंत्री हरेन्द्र पाण्ड्या की हत्या की याद दिलाता है }  या फिर युद्ध  हो सकता है | मतलब यह की  इन घटनाओ से उपजी सहानुभूति से वे अपनी गद्दी  बचा सके | अब  सतपाल मालिक  खुले आम यह बात कह रहे है , परंतु ना तो बुलडोजर मुख्यमंत्री  आदित्यनाथ  की हिम्मत है और ना ही केंद्रीय एन आई ए और उसके मालिक अमित शाह जी कोई कारवाई नहीं कर प रहे है | वे यालगर परिषद के  आरोपियों को “”राष्ट्र द्रोह “ में जमानत  पाये दो आरोपियों को  को एन आई ए की अदालत ने न्यायिक   अनुशासन से अधिक  ही  वफादारी बताई है | उसने सुप्रीम कोर्ट की सात  शर्तो के साथ  दस आफ्नो ओर से नयी शर्ते  जोड़ दी ! इतना ही नहीं  उन्होने नकद जमानत को भी अस्वीकार कर दिया | यह उदाहरण  यह इंगित करता है की किस प्रकार निचली  अदालते भी केंद्रीय सरकार  के इशारो को समझ कर फैसले करती है | यानहा राहुल गांधी के मामले को भी समझा जा सकता है |