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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 8, 2019


ना केवल न्याय किया जाये वरन एहसास भी हो की न्याय किया गया !

तुरंत -फुरत किया गया फैसला न्याय नहीं हो सकता – प्रधान न्यायाधीश


राज्य सभा में जया बच्चन और लोकसभा में मंत्री स्म्रती ईरानी तथा मीनाक्षी लेखी द्वरा हैदराबाद में चारो बलात्कारियों को "”लिंचिंग "” करने के सुझाव ,,, को अपराध के स्थल पर जिस प्रकार तेलंगाना पुलिस द्वरा "”भीड़ की मांग पर न्याय "”किया गया उस पर न्यायपालिका और विधायिका में साफ तौर पर विभाजक रेखा खींच गयी है !! भारत के प्रधान न्यायाधीश शरद बोवड़े ने जोधपुर में घटना पर प्रतिकृया देते हुए कहा "”” बदला और जल्दबाज़ी में की गयी कारवाई कभी "” इंसाफ "” नहीं हो सकती " | उन्होने कहा की न्याया में विलंब को दूर करने के प्रयास करने होंगे | हैदराबाद पुलिस की इस कारवाई के बाद भारत सरकार ने देश में "” 1023 फास्ट ट्रैक "” अदालतों की स्थापना किए जाने के आदेश जारी कर दिये हैं | जिससे की बलात्कार के मामलो में "”त्वरित तो नहीं परंतु शीघ्र न्याय की प्रक्रिया सम्पूर्ण हो सके !
हैदराबाद की घटना ने जनहा "”निरभ्या "” कांड की बीभत्सता को लेकर उपजे जन आक्रोश की याद दिला दी थी ---- वनही सांसदो और विधायकों और राजनीतिक दलो को संविधान और उसके द्वरा स्थापित व्यवयसथा की रक्षा करने की शपथ लेने वाले अपने - अपने समर्थको को समझाने के स्थान पर खुद उनकी "”भीड़ के अगुवा "” बन कर कानून को हाथ में लेकर त्वरित कारवाई और न्याया की मांग करने लगे !! सत्तासीन दल बीजेपी और काँग्रेस के कतिपय नेता तथा बहुजन समाज पार्टी की अध्याक्ष मायावती और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने भी पुलिस की कारवाई का समर्थन किया !!! ये लोग भूल गए जब इनके समर्थक नेता विरोधी पार्टी की सरकारो द्वरा पुलिस कारवाई में फंसाए जाते हैं – तब ये संविधान और कानून के राज्य की बात करते हैं ----परंतु आज भीड़ के आक्रोश को देख कर ये नेता भी अपनी गोट लाल कर रहे हैं | बीजेपी और काँग्रेस के भी वकील नेता भी जब इस घटना का समर्थन करते है ---तब चिदम्बरम की जेल यात्रा और कुलदीप सिंह सेंगर और स्वामी नित्यानन्द के मामले पर विरोध जाताना कितना जायज़ होगा ??
उन्नाव में बीजेपी विधायक सेंगर की पीड़िता और चार युवको द्वरा जलायी गयी बलात्कार की शिकार को जिस प्रकार जलाकर मारा गया उसका भी यही इलाज क्यो नहीं हो रहा ? क्योंकि पहले में अभियुक्त सत्ता धारी दल का एमएलए है --और दूसरे में चार अभियुक्तों में सभी ब्रामहन हैं इसलिए उनके लिए "”””सामान्य न्यायिक प्रक्रिया अपनायी जाएगी "” ? इन दोनों मामलो में कोई विधायक और सांसद "” हैदराबादी इलाज "” नहीं मांग करेगा ?

जिस प्रकार लोकसभा में सांसदो ने उत्तेजना पूर्वक आरोपियों को अपराधी मानकर उनकी "”लिंचिंग "” किए जाने की मांग की ----वह ना केवल गैर कानूनी हैं वरन लोगो को उकसाने वाली भी हैं | हैदराबाद के पोलिस कमिश्नर सज्जनार ने जिस प्रकार "”मुठभेड़ "” का द्र्श्य बताया हैं वह भोपाल में कुछ महीनों पूर्व "”सिमी "” के चार आरोपियों को जिस प्रकार जेल से भागने और उसके बाद उनका भी "””एङ्कौंटर "” करने की घटना हुई थी ---- शासन और पुलिस द्वरा बतायी गयी "”कहानी "” पर विश्वास करना मुसकिल था | कहा गया की टूथ ब्रुश से ताला खोला गया -लकड़ी से प्रहरी की हत्या की गयी -चादरो की रस्सी बना कर जेल की दीवार फाँदे – मौत के समय सभी मरने वालो के शरीर पर नए कपड़े और नए जूते भी थे ! पुलिस की कहानी पर भरोषा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि चारो एक साथ मुठभेड़ में मारे गए !!! जो संभव नहीं लगता ! घटना की न्यायिक जांच भी तुरत -फुरत की गयी ---और उसमें भी "””मुठभेड़ "” को वास्तविक घोषित किया गया | अब न्यायिक प्रक्रिया भी "”सत्य"”” को नहीं उजागर कर पायी या -दबाव में करना नहीं चाहा |

इस घटना से बंगाल में सिधार्थ शंकर रे के मुख्य मंत्रित्व काल में भी नक्सली कह कर काफी मुठभेड़ हुई ---जिसमे अनेक बेगुनाह लोगो की जाने गयी | मानवधिकार संगठनो ने इन की जांच की मांग की ---जब सरकार ने उनकी मांग अनसुनी कर दी तब – जन सुनवाई कर के अमेनेस्टी इंटर नेशनल ने अपनी रिपोर्ट में पुलिस की बर्बरता और कानून से खिलवाड़ को उजागर किया | पंजाब में आतंकवाद के चलते भी "”सुपर काप "”के पी एस गिल ने भी पुलिस को "”अतिवादियों "” के खिलाफ एक्शन लेने की छूट दी थी | कुछ खास लोगो को स्पेसल पुलिस आफिसर बना कर उन्हे भी आरोपियों को गिरफ्तार करने और विरोध करने पर "””ताकत का इस्तेमाल "” करने की छोत दी थी | बाद में आने वाली सरकारो ने भी उनके निजाम में हुई मुठभेडो की थोड़ी --बहुत जांच की | पर इंसाफ नहीं मिला | कानून रोता ही रह गया !!
अभी छतीस गढ़ में जुस्टिस अग्रवाल की बस्तर में इंडो तिब्बतन पोलिस फोर्स द्वरा 2012 में नक्सल के नाम पर 17 लोगो को गोली मारने -जिनमें चार बच्चे थे --की घटना की अदालती जांच में कहा गया की पोलिस की कहानी की आदिवासी लोग जंगल में एकत्र हो कर हमले की तैयारी कर रहे थे | जबकि मरने वालो के पाससे किसी भी प्रकार के हथियार नहीं मिले ! अब भूपेश बघेल की सरकार दोषियो के वीरुध कारवाई करने का फैसला किया

तेलंगाना पुलिस द्वरा बलात्कार और हत्या के आरोपियों को भीड़ की उतेजना को देखते हुए जिस सफाई से उनका "” एनकाउंटर "” करके इंसाफ किया -----उस को लेकर देश दो भाग में विभाजित हैं | भीड़ के भाग और संविधान और न्याया प्रक्रिया से अंजान लोग इसे "”त्वरित न्याय "” बताते हुए पुलिस पर फूल बरसा रहे हैं ! ऐसा द्र्श्य सदियो में दिखाई पड़ता हैं | दिल्ली में जब अदालत परिसर में वकील पुलिस और उनके अफसरो की पिटाई कर रहे थे तब --जरूर लोगो की सहानुभूति वर्दी वालो के प्रति जागी थी | परंतु उस घटना के महीने भर बाद ही---- फिर भीड़ ने उनपर फूल बरसा दिये !!
पर जिस तरह "” तुरंता भोजनालय "” मैं सत्तू और नमक अथवा "”लिट्टी और चोखा "” मिलता हैं जो भूख तो खतम कर देता है ---पर उसे "”भोजन "” की परिभाषा में नहीं रखा जा सकता , उसी प्रकार पुलिसिया मुठभेड़ कभी भी न्याय नहीं हो सकता !
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बॉक्स
भारत में रूल ऑफ लॉं है --- जिसमें हर अभियुक्त को निर्दोष माना जाता है ---जब तक की अभियोजन [पुलिस] उसको सबूतो के आधार पर दोषी करार करने की कोशिस को अदालत मंजूर नहीं करे | अपराध की जांच और सबूतो के लिए विवेचना का अधिकार पुल्स को "”अपराध प्रक्रिया संहिता "” के प्रावधानों से मिलता हैं | अदालतों के लिए भारतीय दंड संहिता "’है जिसमें विभिन्न अपराधो के लिए क्या न्यूनतम सज़ा होगी और क्या अधिकतम सज़ा होगी |
इसका अर्थ यह हुआ की विवेचना करने वाली एजेंसी चाहे वह राज्य की पुलिस हो अथवा केंद्रीय जांच एजेंसी हो --उनकी सीमा विधि द्वारा तय हैं | बिना सबूतो के के किसी की सज़ा नहीं दी जा सकती | और प्रत्येक अभियुक्त को अदालत में अपनी बात कहने के लिए --- एक वकील भी दिये जाने का विधान हैं | अदालतों से उम्मीद की जाती हैं की वे ---- मात्र संदेह के आधार पर दंड नहीं देंगे --------महात्मा गांधी हत्या मम्म्ले में भी नाथुरम गोडसे और नारायण आपटे के अलावा 14 अन्य आरोपी भी थे | परंतु सज़ा सैट लोगो को दी गयी | और उसमें महात्मा की हत्या करने वाले और गोडसे और उसे पिस्तौल उपलब्ध कराने वाले आपटे को ही फांसी की सज़ा दी गयी |

जब देश के राष्ट्र पिता की हत्या के अपराध के लिए {जिसे सैकड़ो लोगो ने देखा था } भी न्यायिक प्रक्रिया पूरी की गयी थी -----जब की उस समय देश "”बापू "” की मौत से विवहल था भीड़ का पारावार सभी नगरो में था | लाखो लोगो ने शोक स्वरूप अपने सर मुंडवा लिए थे | फिर भी शासन और तत्कालीन राज नेताओ ने "””कानून के राज का सम्मान किया "”” | इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के बाद भी किसी सांसद और विधायक ने पुलिस को न्यायिक प्रक्रिया की "”अनदेखी "” करने के लिए उकसाया नहीं ---नाही कोई बयान दिया |\
परंतु हैदराबाद में पुलिस की गैर कानूनी कारवाई के लिए जिस प्रकार संसद में और सड़क पर भीड़ ने {राजनीतिक } नारेबाजी की और प्रदर्शन किया उसको हैदराबाद पुलिस ने "”” जनमत की चाहत '’ मान कर कानून को अपने हाथ में लेकर अदालत का काम {सज़ा } देने का वह भी घटना के चार दिन के अंदर | अब राष्ट्रीय मानवअधिकार आयोग जांच करे अथवा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की "”मुठभेड़ "” के लिए जांच के 16 बिन्दुओ की अवहेलना हो तो हो | भीड़ की वाहवाही तो मिली ---------इसी को भीड़ न्याया ना कहे तो क्या कहे ????
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