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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

May 29, 2019


चुनाव अब प्रतिस्पर्धा नहीं रहा -अब यह युद्ध का स्वरूप ले चुका हैं !!


लोकसभा चुनावो मैं जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव लड़ा हैं , उससे कुछ बाते स्पष्ट हो जाती हैं | पहले की भांति अब यह भिन्न -भिन्न राजनीतिक दलो मैं एक निसपक्ष एम्पायर की निगरानी मैं -कुछ नियमो के तहत होने वाली प्रतियोगिता नहीं रह गयी हैं ! अब यह युद्ध की भांति -येन -केन प्र्कारेण विजय प्राप्त करने का लक्ष्य हो गया हैं ! मात्र इस तरीके ने ही लोकतन्त्र की आत्मा को खतम कर दिया हैं ! क्योंकि जब प्रतियोगियो को समान अवसर और साधन नहीं होंगे ,तब किस प्रकार इसे प्रतियोगिता माना जा सकता हैं ?
अब अगर हम इस चुनावी प्रतिस्पर्धा के एम्पायर की भोमिका पर विचार करे तो पाएंगे की "”रेड कार्ड "” प्रभावी रूप से सिर्फ और सिर्फ गैर बीजेपी दलो के ही प्र्त्यशियों को दिखाया जाता रहा ! भले ही "””कितना बड़ा फ़ाउल बीजेपी की ओर से हुआ हो "” उसको चुनाव आयोग ने नज़रअंदाज़ कर दिया | राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने अपने पुत्र के चुनाव प्रचार मैं जिस प्रकार बीजेपी को जिताने और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने का सार्वजनिक बयान दिया ---- वह आयोग की आचार संहिता का खुला उल्लंघन था ! संवैधानिक पद पर आसीन लोगो द्वरा राजनीतिक दल का खुले -आम समर्थन उनहे अपने पद पर बने रहने से "”डिसकवाली फ़ाई "” करता हैं | परंतु आयोग से शिकायत किए जाने पर मामले को केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास जांच के लिए भेज दिया गया ! जिस पर चुनाव संपान्न हो जाने ----आचार संहिता के प्रभाव हिन हो जाने के उपरांत भी कोई कारवाई नहीं की गयी ! अब यह है चुनाव आयोग की ईमानदारी !!

खैर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी वाराणसी मैं मतदाताओ का क्र्त्ग्यता ज्ञापन करते हुए कहा की --””” चुनाव मैं अंक गणित ही निर्णायक होती हैं ----पर इस बार "”केमेस्ट्री "” ने अंकगणित को हरा दिया !! सार्वजनिक रूप से तो उनका इशारा जाति और समाज तथा धरम के आधार पर थोकबंद वोटो की राजनीति को को "असफल " कर दिया ---उनकी पार्टी की रणनीति ने !! अब यह कथन कई अर्थो मैं परिभाषित हुआ हैं | जिसमै इवीम मशीनों पर व्यक्त संदेह भी हैं | हालांकि अमित शाह का यह कहना भी सही है की "”इसी इवीम मशीनों से काँग्रेस जब छतीसगढ - मध्य प्रदेश और राजस्थान मैं जीती तब तो इन मशीनों पर संदेह व्यक्त नहीं किया गया ! टीवी चैनलो पर एक प्रतिभागी ने कहा था "” लोकसभा जीतने के लिए बीजेपी ने अपनि तीन राज्य सरकारो की बलि दे दी | जिससे की मशीन की "” स्पष्टता पर शंका न की जा सके "” , अब इन तीनों राज्यो मैं जिस प्रकार की छिछलती जीत मिली है वह इस संकेत को सिद्ध करता हैं | वरना पाँच माह बाद इनहि राज्यो मैं काँग्रेस को "””मात्र दो साइट प्रपट हुई !!!!!! इस असफलता को कैसे नापा जा सकता हैं ?


इसके दो कारण हैं , पहला खुद नरेंद्र मोदी ! सात चरणों मैं चुनाव कराने के आग के फैसले ने उन्हे दो माह तक देश मैं तूफानी दौरा करके माहौल बनाना | माहौल बनाने के लिए साम - दंड -भेद आदि सभी हथकंडो का उपयोग किया | कलकत्ता मैं ईश्वर चंद्र विद्यासागर कालेज मैं उनके मूर्ति के बस्ट को तोड़ा जाना , जब अमित शाह का रोड शो निकाल रहा था , चैनलो पर उस समय के विडीओ मैं यह साफ तौर पर देखा जा सकता हैं | परंतु रोड शो के नाम पर शिव बारात और उन्के गणो की जुलूस मैं मौजूदगी ----इसे राजनीतिक से धार्मिक आयोजन बना दिया था | जबकि चुनव प्रचार मैं धरम और मतो का नाम लेने पर - अयोग्यता साबित होती हैं !! परंतु आयोग ने क्लीन सीट देकर बीजेपी की लाज रख ली | हाँ , एक मामले मैं उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री भगवा धारी "”योगी आदित्य नाथ "” के मुंह पर भी 72 घंटे के लिए ताला जड़ दिया था , बस | हालांकि रामपुर की मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी की हीरोइन उम्मीदवार जयाप्रदा लाख आरोपो और बेचारा वाद की अपील के बावजूद आजम खान से हार गयी !

अब मुख्य मुद्दे पर बात करते हैं ---- राजनीति मैं वंशवाद , जिसकी भीसण भर्तसना मोदी जी ने अपनी सभाओ मैं की हैं ! देश – दुनिया का इतिहास सिर्फ राजवंशो और सम्राटों के वंशो के युद्ध और वंशो के उत्त्थान और पतन की ही कहानी ही तो हैं | फिर चाहे वह राजा रामचंद्र जी की हो या कृष्ण की हो – नन्द वंश के नाश की हो या मौर्य वंश के उद्भव की ! इसी वंशनुगत राजनीति का परिणाम ही "”देवानामप्रिय अशोक हो "” अथवा मकदूनिया का विश्व विजेता अलेकजेंडर या सिकंदर हो --- जिसने इतिहास मैं सिंधु और सतलज के मध्य मैं बस्ने वालो को इतिहास मैं नयी पहचान दी – "”हिन्दू "” | जिसे बाद मैं बीसवी सदी मैं कुछ संगठनो ने वेदिक धर्म और सनातन परंपरा का पर्याय बन दिया ! आज भी कश्मीर से कन्या कुमारी तक इस शब्द को धरम बन दिया हैं | भले ही इस धर्म का उल्लेख हमारे वेदो या पुराणो मैं नहीं हो | परंतु चुनाव के समय वेदिक धर्म के मानने वालो को तो राजनीतिक ताकते इसी हिन्दू धर्म का ब्रांहाशास्त्र का उपयोग , समाज को विभाजित करने के लिए होता हैं !

राजनीतिक रूप से 1952 ----से 2014 तक ,देश मैं हुए चुनावो मैं दलबदल के लिए '’’ सरकारी पार्टी साम - दाम और दंड के साथ भेद का प्रयोग '’’’उपलब्धि के रूप मैं कर रही है '’’’ वह वाकई दुखद और लोकतन्त्र के लिए खतरा हैं |

अप्रत्याशित चुनाव परिणामो का कारण जो भी हो --- परंतु समाज मैं सवाल पूछने वाला वर्ग आज भी '’’इस द्वंद युद्ध मैं कुछ पौराणिक संदर्भों की याद दिलाता है , बाली और सुग्रीव का तथा दुर्योधन और भीम के गदा युद्ध का ! एक मैं मर्यादा पुरुषोतम राम ने तथा दूसरे मैं योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध की मर्यादाओ को '’’’भंग किया था '’’ !!! इसलिए लोकसभा निर्वाचनों मैं पूर्ण नियमो और मर्यादाओ की आचार संहिता का पालन किया गया होगा ---- ऐसा विचार करना भी व्यर्थ है !!!! परंतु ऐसी अनेक घटनाए हमारे धरम ग्रंथो मैं है – जो एक पक्ष '’’ देव और मानवो "” के लिए मर्यादाओ को भंग किए जाने का उदाहरण हैं ! सर्व प्रथम है '’’’ अमृत मंथन '’’ की उपलब्धि को समान रूप से दोनों पक्षो मैं वितरित किए जाने का आस्वाशन त्रि देवो की ओर से दिया गया था | परंतु हम सभी जानते है की ---अमरत के वितरण मैं कितनी निसपक्षता से मर्यादा निभाई गयी |

खैर , उस युद्ध के बाद भी देवता इंद्रपुरी का सुख भोग हमेशा के लिए नहीं कर पाये | बार - बार दैत्यो और राक्षसो द्वारा "”” तपस्या कर के ब्र्म्हा - विष्णु और देवधिदेव शिव को प्राषण्ण किया गया , और फिर देव और मनुज उनके कोप का शिकार हुए | अनादि काल से आर्य आशीर्वाद रहा हैं "”” सौ वर्षो तक जीवन का भोग करो और सौ संतानों के पालक बने ! मानव इतिहास मैं राजवंशो का उथान -और पतन होता रहा हैं | इसलिए अगर आज एक वर्ग भारत की राजनीति मैं '’’ वंशवाद को '’’ एम अयोग्यता मानता है तो यह उसकी समझ पर प्रश्न चिन्ह हैं | क्योंकि राजनीति हो अथवा व्यापार मैं लगा परिवार अपनी विरासत आगे की पीढी को सौपने की इच्छा रखता हैं | कहते है दुष्यन्त और शकुंतला के पुत्र महाराज भरत ने राजगद्दी देने मैं --- योग्यता को विरासत और पुत्र से बेहतर मानते हुए , राजगद्दी परिवार के बाहर सौपि थी | इस संदर्भ मैं कोई अन्य उदाहरण नहीं पाता हूँ | तब कैसे कोई भारतीय समाज मैं वंशवाद का विरोध कर सकता है !!!! आज जब डाक्टर और वकील मटा - पिता अपने कौशल को अपने परिवार मैं बनाए रखना चाहते हैं , तब राजनीति मैं यह परंपरा गाली कैसे हो गयी ??? बड़े - बड़े औद्योगिक घराने भी विरासत के उदाहरण हैं | तब यह कहना की राजनीति मैं वंशवाद उचित नहीं है ------मेरी समझ से उचित नहीं | यदि को इसको तर्क और तथ्यो से गलत बता सके तब मैं आभारी होउन्गा !