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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 24, 2017

धर्म के हाथो मे राजदंड --- क्न्हा -क्न्हा और फलित

वैसे भगवा वस्त्र सन्यासी का वस्त्र है ---जो आदिगुरु शंकराचार्य के अनुसार संसार से वैराग्य और मोह त्यागने के बाद पहना जाता है | सन्यास की दीक्षा लेने के पहले व्यक्ति को परिवार से नाता तोड़ना पड़ता है | शास्त्रो के अनुसार अपना पिंड दान भी स्वयं कर के गुरु द्वारा दिये गए नाम की ही पहचान होती है | आदित्यनाथ योगी गोरखनाथ मठ के प्रमुख है | जो नाथ संप्रदाय अथवा जिसे आम भोजपुरी -अवधी भाषा मे कनफ़टवा जोगी कहा जाता है | गोरखपुर का नाम भी इसी मठ के कारण ही हुआ |

वैसे विश्व मे तीन राष्ट्र है जिनके प्रमुख भी अपने - अपने धर्म के प्रमुख भी भी है | इस श्रंखला मे सर्वप्रथम है रोमन कथोलिक के मुखिया पोप| उन्हे राष्ट्र प्रमुख का दर्जा दुनिया भर के देश देते है | उनका राष्ट्र वैटिकन सिटी है | जिसका छेत्रफल 0.44 वर्ग किलो मीटर है | परंतु वे धार्मिक और सम्प्र्भु सत्ता है | दूसरा उदाहरण ईरान के आयतोल्ला का है जो निर्वाचन से परे है परंतु वे दुनिया भर मे फैले इस्लाम के शिया समुदाय के धर्मगुरु है | आम तौर पर सुन्नी समुदाय मे "”फतवा"” आदि मौलवी देते है | परंतु शिया समुदाय मे किसी स्थानीय मौलवी द्वरा ऐसा नहीं किया जाता है | विवाद होने पर दुनिया के किसी भी कोने से उस मसले को ईरान भेज दिया जाता है | उनकी सत्ता राजनीतिक और प्र्शासन से ऊपर है | उनका चुनाव धर्म गुरुओ की काउंसिल करती है |

तीसरा उधारण है ग्रेट ब्रिटेन का एलीज़ाबेथ प्रथम के समय से राजगद्दी पर बैठना वाला चर्च ऑफ इंग्लंड का प्रमुख भी होता है | साथ ही वह राजसत्ता का प्रतीक है | संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनके धार्मिक सलहकार को लॉर्ड ऑफ कैन्टरबरी की उपाधि मिलती है | उनका खर्चा भी राजकोष से मिलता है |
मज़े की बात है की इस्लाम के 73 फिरको मे से सुन्नी संप्रदाय सबसे बड़ा है | सऊदी अरब मे मक्का और मदीना को दुनिया के सभी इस्लाम के अनुयाई अपना तीर्थ मानते है | | परंतु दूसरे विश्व युद्ध मे तुर्की मे खलीफा का तख़्ता पलट करने के बाद ---इस्लाम की दुनिया मे किसी भी एक धरम गुरु का वर्चस्व नहीं रहा | भारत मे दाऊदी बोहरा है - फ्रांस मे खोजा मुस्लिमो के प्रमुख आग़ा खान है | कादियानी और अहमदिया संप्रदाय के अलग अलग धरम गुरु है |
दाखिला प्रायमरी मे फीस मेडिकल कालेज की ?

क्रांतिकारी भगत सिंह एवं राजगुरु और बटुकेस्वर दत्त की शहादत के दिन पर शिक्षा मंत्री विजय शाह ने स्कूल के प्रबन्धको और छात्रों के पालको की संयुक्त बैठक बुलाई | परंतु समानता के लिए प्राण उत्सर्ग करने वालो का बलिदान मानो व्यर्थ ही गया --जब सरकार ने कहा की साधन और सुविधा के आधार पर पाँच श्रेणी मे सभी निजी स्कुलो को बांटा जाएगा और ----परीक्षा -परिणाम के आधार पर नहीं ड्रेस और संस्थान के भवन और तड़क -भड़क के अनुसार फीस तय होगी |??
प्रदेश मे सरकार के 83हज़ार प्राथमिक और 30 हज़ार से अधिक माध्यमिक विद्यालय है |15 हज़ार हायर सेकेन्द्री स्कूल है | जो सभी पढाई और परीक्षा मे सुविधाओ मे एक ही स्तर के है और छात्रों की फीस और अध्यापको का वेतन भी एक जैसा है | फिर इन निजी स्कूलो मे इतनी फीस और काशन मनी और चंदे की बीमारी क्यो ?
बैठक मे उस समय हंसी का फ़ौहरा फट पड़ा जब इंदौर के एक संस्थान के प्राचार्य बोले सर हम ढाई लाख नहीं काशन मनी लेते हम तो बस 2 लाख 30 हज़ार ही लेते है | अब यह बयान इन संस्थानो की मन की स्थिति बताता है | भोपाल के एक संस्थान के मालिक बोले की हमारी बिल्डिंग ही 100 करोड़ की है ! इन सब स्पसटीकरणों से यह तो साफ हो गया की---------- वे छात्रों के परीक्षा परिणाम या अन्य उपलब्धियों के बारे मे बताने लायक उनके पास कुछ भी नहीं था | वे अपनी भौतिक हैसियत और पन्चतारा सुविधाओ का विज्ञापन कर रहे थे |

वर्तमान समय मे दस्वी और बारहवि कछा के परीक्षा परिणाम आज भी केन्द्रीय विद्यालयो का सर्व श्रेष्ठ है | लेकिन वनहा ना तो मेनू का मील है और नाही एयर कंडीशन बसे है छात्रों को लाने और ले जाने के लिए |इन फर्जी चमक - दमक वाले संस्थान सेवा के नहीं वरन व्यापार का साधन है तभी तो दूसरे उद्योगो और व्यापार वाले लोग अपनी पत्नियों और बच्चो के लिए शिक्षा की दूकान लगा रहे है | खेल -साहित्य --संगीत के छेत्र मे भी इन संस्थानो की कोई खास उपलब्धि नहीं है |

इस पूरे प्रकरण मे राजनीतिक नेत्रत्व की मंशा पर सवालिया उंगली उठ रही है | ऐसा नहीं की सरकार मे बैठे लोग जनता - जनार्दन की तकलीफ़ों को और स्कूल प्रबन्धको के शोषण से अंजान है | परंतु उनके कहे को ज़मीन पर उतारने वाली नौकरशाही उन्हे बार - बार असफल कर देती है | हालांकि मंत्री विजय शाह जी ने वादा तो किया है की बसो का किराया --और यूनिफ़ोर्म तथा किताबों की संख्या और उपलब्धता को सरल बनाएँगे | अब देखिये क्या होता है सरकार की चलती है या अफसरशाही की चलती है जनता को तो भुगतना ही है |