क्या
सीबीआई की पूछताछ-बिना
बंदी बनाए नहीं--वह
भी जो हम कहे उसे कबूल करो --तब
कानून का शासन कनहा ??
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ज्योतिष
शास्त्र में कई ग्रंथ है -जैसे
भ्र्गु संहिता और रावण संहिता
आदि |
कुछ
ग्रंथ कुंडली आधारित होते है
---कुछ
जनम तिथि से भविष्य बताने
"”काम
में लाये जाते है "”
| परंतु
सीबीआई एक लाल किताब की खोज
में है ---बताते
है की किताब तो शायद उनके कब्जे
में है परंतु वे इसे पढ नहीं
पा रहे है !!!
इसीलिए
वे राजीव कुमार को बंदी बना
कर उसमें छिपे राज जानना चाहते
है |
क्योंकि
उसमें अनेक "”पवित्र
पापी "”
भी
है ,जिनहे
केंद्र सरकार बचना चाहती है
|
जैसे
केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो
और आसाम की बीजेपी सरकार के
मंत्री हेमंत विसशरमा तथा
बीजेपी नेता मुकुल रॉय !!!
अब
जिस अफसर का नाम 2013
की
प्राथ्मिकी नहीं है उसे अचानक
"”पकड़कर
पूछताछ "”
करने
की इतनी जल्दी का कोई तो कारण
रहा होगा ??
उपलब्ध
तथ्यो और घटनाओ से साफ है की
वे अपने ||आक़ा
||
की
मर्ज़ी से ही चलते है ---जिसमें
किसी को भी अर्ज़ी लगाने की
ज़रूरत नहीं समझते है |
कलकत्ता
में पुलिस आयुक्त राजीव कुमार
से -सीबीआई
की पूछताछ को लेकर हुए विवाद
के मूल में ---
इस
सरकारी तोते का जांच के आम
नियमो का पालन नहीं करना था
|
सीआरपीसी
के अनुसार किसी भी व्यक्ति
से अपराध के संबंध में जांच
करते समय पूछताछ की जा सकती
हैं |
परंतु
यदि व्यक्ति अखिल भारतीय सेवाओ
का अफसर हैं ----तब
उन्हे संबन्धित के विभाग
प्रमुख को लिख कर देने का नियम
हैं |
क्योंकि
यह अपेक्षा की जाति हैं -की
वह अफसर फरार नहीं होगा |
दूसरे
विभाग या सरकार के मुख्य सचिव
का उस अफसर पर अनुशासनिक
नियंत्रण होता है |
अब
कलकत्ता पुलिस आयुक्त राजीव
कुमार के मामले को देखे --सरकारी
तोते उर्फ सीबीआई की हरकतों
में ईमानदारी पूरी तरह से गायब
थी !
उन्होने
ना तो बंगाल के पुलिस महानिदेशक
अथवा राज्य के मुख्य सचिव को
अपने इरादो के बारे में नहीं
सूचित किया ?
फिर
जिस समय या दिन का चुनाव किया
गया --वह
सत्तारूद दल को नीचा दिखाने
की नरेंद्र मोदी और अजित डोवाल
की चाल में इस केन्द्रीय जांच
एजेंसी का इस्तेमाल था |
इसके
पूर्व भी मोदी जी ने बंगाल
--आसाम
राजमार्ग पर सेना के जवानो
को तैनात कर आने जाने वालो को
रोक कर पूछताछ कारवाई थी !!
जबकि
सेना खुद नागरिक छेत्र में
नागरिकों से पूछताछ नहीं कर
सकती जब तक की प्रदेश सरकार
ऐसा करने का आग्रह केंद्र
सरकार से ना करे --और
रक्षा मंत्रालय ऐसे निर्देश
नहीं दे !
ऐसी
पूछताछ में भी राजया की पुलिस
की मौजूदगी "””अनिवार्य
"”
होती
है |
इस
व्यसथा के मूल मे संविधान में
राज्यो को दिये गए एक्सक्लूसिव
अधिकार ---
शांति
और व्यव्स्था का है |
बाद
में सेना के जनरल ने इसे "”
वार्षिक
कवायद "”
बताया
था !!
उन्होने
इस बाबत राज्य सरकार को सूचित
करने का दावा किया --जिसका
खंडन प्रदेश सरकार ने करते
हुए ,उनसे
इस बाबत विवरण की मांग की थी
| जो
कभी नहीं उपलब्ध करायी गयी
!!
केंद्र
सरकार के पर्सनल और ट्रेनिंग
विभाग ने राजीव कुमार को कलकता
में मेट्रो चौक में मुख्य
मंत्री ममता बनरजी के साथ
"”धरने
"
बैठे
थे -----जो
सेवा नियमो का उल्ल्ङ्घन है
और दंडनीय है !
अब
कोई केंद्र सरकार से पूछे की
, जब
मुख्य मंत्री धरणे पर बैठी
हो ---तब
उनकी सुरक्षा और व्यवस्था के
लिए इलाके के वरिस्ठ अधिकारी
को मौके पर होना अनिवार्य है
की नहीं ??
अब
इस नोटिस से तो प्रधान मंत्री
नरेंद्र मोदी जी के साथ राजनीतिक
उद्देश्य की यात्राओ में "”
जाने
वाले सुरक्षा कर्मी और उनके
अधिकारी भी ---सेवा
के इस नियम को भंग करते हैं
!! ये
नियम हैं अखिल भारतीय सेवा
नियमावली 1968
और
अखिल भारतीय सेवा {{अनुशासन
एवं अपील }
1969 का
उल्लंघन हैं |
सीबीआई
की जांच की खास बात हैं की
----यह
आश्चर्यजनक रूप से स्पष्ट
वस्तुओ घटनाओ को इतना धुंधला
बना देती है की ---
वह
अपने मालिक 'जादूगर
'’ के
इरादे को पूरा करती है <
भले
ही वह कितना ही गैर कानूनी हो
-----जैसे
व्ययपम घोटाला जिसमें सभी
अभियुक्त "”
क्लीन
चिट"”
पा
कर बाहर है और जिन लोगो ने इस
गड़बड़झाला को उजागर किया था
-वे
भागते फिर रहे है |
अभी
भोपाल में एक वाक्य हुआ अब वह
सीबीआई के नाम पर दिल्ली पुलिस
थी या कोई और वर्दिधारी गिरोह
--जिसने
इंजीनीरींग के एक छात्र को
भोपाल से "”अगवा
'’कर
लिया |
जब
पुलिस को सूचना मिली तो उन्होने
मोदी जी को दिल्ली पुलिस से
बात की तब घंटो तक संपर्क नहीं
हुआ |
पुलिस
द्वरा किए गए इस "”अपहरण
" का
कारण था की वह सोश्ल मीडिया
पर मोदी और अमित शाह की आलोचना
करता था |
कायदे
से अगर सरकार या सरकारी पार्टी
को तकलीफ थी --तो
उन्हे साइबर क्राइम में रिपोर्ट
करनी थी तब कारवाई करते |
परंतु
कानून के इस पचड़े में पड़ने से
बेहतर उन्होने खुद ही कानून
को हाथ में लिया |
जब
मौजूदा सीबीआई निदेशक ऋषि
कुमार शुक्ल से दिल्ली पुलिस
{केंद्र
सरकार आधीन }}
के
विरुद्ध अगवा करने की रिपोर्ट
लिखवाने को कहा गया ----तब
उन्होने इसे टकराव बताते हुए
-कोई
कारवाई नहीं की |
अबसीबीआई
निदेशक का पदभार लेते ही महराज
को ऐसे टकराव का मुखिया बनना
पड़ा !!!!
सारदा
चित फंड मामला में 2013
से
कारवाई सुप्रीम कोर्ट ने
कारवाई थी विशेस जांच दल से
| इसमें
अनेकों लोगो की गिरफ्तारी
हुई |
मुकुल
रॉय और बाबुल सुप्रियो तथा
आसाम के मंत्री हेमंत बिसव्शरमा
--ये
सभी इस गोरख धंधे मे अभियुक्त
थे |
परंतु
ये सभी "”पवित्र
पापी "”
थे
--क्योंकि
इनहोने त्रणमूल काँग्रेस
त्याग कर गंगा रूपिणी भारतीय
जनता पार्टी की सदस्यता ले
ली --मानो
एक सुरक्षा कवच मिल गया !!!
इन
सब से अब कोई पूछताछ नहीं |
सीबीआई
किस अनुशासन की बात करती है
---जिस
प्रकार पूर्व निदेशक को बेआबरू
कर बाहर किया ---उसकी
जासूसी आईबी से कारवाई गयी
-लोग
पकड़े गये -----क्या
हुआ ??क्या
उसकी कोई पुलिस में रिपोर्ट
लिखी गयी किसी थाने में ?
क्या
कोई कारवाई हुई ?
नहीं
क्योंकि मामला सरकार में बैठे
लोगो का था |
आलोक
वर्मा और अस्थाना ने एक दूसरे
के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई ----क्या
उसे भी फाड़ दिया गया !!!
तब
सीबीआई का या की अखिल भारतीय
सेवा के अनुशासन का नियम पानी
पीने चला गया था ??
जो
कुछ भी हो केंद्र में बैठे जिन
लोगो ने भी सुरक्षा सलहकर अजित
डोवाल के इशारे पर यह सब किया
है -----वे
कितना और कब तक कानून के हाथो
से बचे रहेंगे --देखना
होगा |