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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Aug 23, 2017

भाग एक

इन्फोसिस या संस्थान या कारपोरेट कृष्णमूर्ति और सिक्का

कौन लाभ दायक विकास मे या मुनाफा -कमाने मे ??

मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिक्का द्वारा इस्तीफा दिये जाने के बाद इन्फोसिस के शेयर मे गिरावट हुई और स्टॉक मार्केट के अनुसार 35 हज़ार करोड़ की "”” हानि''' का अनुमान लगाया गया है | संस्थापक कृष्णमूर्ति सिक्का द्वरा अपनी और अपने चार अधिकारियों के वेतन -भत्ते अंतराष्ट्रीय पैमाने के सीईओ के बराबर कर लेने पर एतराज जताया | जिस पर बाज़ार के लोगो ने मुनाफा खोने की उम्मीद जताई | ऐसा हुआ भी | पर सवाल यह था की क्या संस्थान के स्वरूप को कायम रखना ज़रूरी था अथवा रिलायंस की भांति एक मुनाफा देने वाली कंपनी बनाना ??

अगर हम इन्फोसिस की स्थापना को देखे --तो पाएंगे की उनका यह प्रयास देश को सॉफ्टवेयार के छेत्र मे नौजवानो को अवसर देना | उनके समय जो प्रशिक्षु थे वे भी संस्थान मे साइकल मे घूम कर वैसा ही वातवरण पाते थे जैसा कभी शांति निकेतन मे रहा होगा | यानहा के करमचारी प्रोजेक्ट पर काम करते थे – कुछ कर दिखने और कुछ नया सीखने की ललक हुआ करती थी |विशाल सिक्का के पूर्व के कार्यकारी अधिकारी गण ने इन्फोसिस की आत्मा और 'कल्चर '' को कायम रखा | कभी भी इन्फोसिस के इतिहास वनहा काम करने वालो के वेतन -भत्तो मे असमानता नहीं देखी गयी ----जितनी विशाल सिक्का के समय हुआ !! सैकड़ो गुना के अंतर ने --- बेरोजगारी से जूझ रहे इंजेनीयरो के मुंह सी रखे थे | अंतर-- विभागीय संवाद का स्थान सिर्फ डेड लाइन और प्रोजेक्ट पूरा करने की चुनौती हुआ करती थी | जबकि कृष्णमूर्ति का उद्देसी और व्यवहार एक गुरु की हुआ करती थी | करमचारी उनसे डरते नहीं थे ---वरन सम्मान करते थे | इस कारण नहीं की वे संस्थान के मुखिया है ------वरन इसलिए की वे सबसे "बड़े थे "” | विशाल के जमाने मे यह रिश्ता "” अफसर और मातहत का रह गया "” | संस्थान से बन गयी कंपनी अब सिर्फ मुनाफा ही देखती थी --भले ही उसके लिए कानून या नैतिकता को बाइ - बाइ करना पड़े | अमेरिका मे इन्फोसिस पर कानूनों की अवहेलना के मामले सामने आए -वे सभी विशाल सिक्का के समय के ही है | संस्थागत निवेशको को छोड़ दे तो छोटे -छोटे निवेशको ने अपनी बचत और पूंजी इसलिए लगाई थी क्योंकि उन्हे क्रष्णमूर्ति पर वैसा ही भरोसा था जैसा की शायद डॉ कलाम पर था | दोनों ही ज्ञानी तथा निजी जीवन मे नितांत सादगी और सहजता | धन के मद से कोसो दूर | अमेरिका के धनपति वारेन बफेट आज भी पाँच कमरो के फ्लॅट मे रहते है | वैसे ही कृष्णमूर्ति और उनकी पत्नी सुधा भी छोटे से फ्लॅट मे रहते है | उनकी जीवन शैली स्पष्ट कर देती है की उन्होने इन्फोसिस की शुरुआत एक उदयम के रूप की थी जनहा देश के नौजवान काम सीखे और करे ---उन्हे अफसर और मातहत का या मालिक और कर्मचारी का भाव नहीं आए | जबकि विशाल सिक्का इसे मुनाफा कमाने की मशीन बना चाहते थे | अंबानी की रिलायंस की तरह धंधे वाली कंपनी बनाना ही उनके लिए यथेष्ट था | क्योंकि उनकी प्रष्ठभूमि इसी प्रकार की थी --जनहा मालिक को मुनाफा देना ही सफलता होती है | उन्होने संस्थान के कल्चर को ही खतम कर दिया | यही कारण है की उनके जाने के बाद सिर्फ उच्च पद के ही एक आध अफसर गए | बाकी लोगो ने संतोष की सांस ली |
तमिलनाडू मे कभी खुशी -कभी गम- अन्ना द्रमुक सरकार खतरे मे

राज्यपाल विद्यासागर राव द्वरा अन्ना द्रमुक के पनीर सेलवाम और पल्लानीस्वामी गुटो मे हाथ मिलवा कर मोदी सरकार को जो दिग्विजयी खुशी 21 अगस्त को दी थी ----वह चंद घंटे ही रह पायी | क्योंकि जेल बंद शासिकला के 18 इस प्रकार विधायकों ने राज्यपाल लो पत्र लिख कर "”सरकार को दिये समर्थन को वापस लेते हुए "”” निलंबित करने की मांग की | इस पूरे ड्रामे मे राजभवन द्वरा किसी पार्टी के अंदरूनी विवादो मे हवा देने और रेफरी की भूमिका निभाने पर सवाल उठाए जा रहे है |

233 सदस्यीय विधान सभा मे दोनों गुटो के विलय के पश्चात भी 117 सदस्य ही होते है | स्पीकर इस संख्या मे नहीं है | हालांकि इस एक {{अध्यक्ष}} बहुमत से वे सरकार चला तो सकते है | परंतु वही गाँव की कहावत की अगर इज्ज़त चवन्नी से बचती है -तब बहुत ज्यादा देर तक नहीं बचेगी | अगर जैसा शशिकला गुट दावा कर रहा है की उसके पास 25 विधायकों का समर्थन है ---तब निश्चित ही विधान सभा मे सरकार को बहुमत मिलना मुश्किल है |
यू अन्नादर्मुक की अंतिम संख्या 135 दर्ज़ है |

सत्ता के इस संघर्ष को देखते हुए डीएमके ने एक बयान जारी करके राज्यपाल से विधान सभा का सत्र अविलंब आहूत करने की मांग की है | जिस से की पालनीसामी -पनीरसेलवाम सरकार के बहुमत को परखा जा सके |

भारतीय जनता पार्टी के नेता नवाब बे मुल्क की तरह दिल्ली से सारे घटना चक्र पर नज़र रखे हुए है | हालांकि उनकी पार्टी का एक भी विधायक नहीं है | परंतु वे तोड़ – फोड़ करके सरकार के दल को अपनी ओर मिलना चाहते है | क्योंकि राज्य सभा मे अडीएमके के सदस्यो को अपनी ओर लाने और बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक है | ऐसा ही लोक सभा मे भी है | यद्यपि वनहा उन्हे इतनी ज़रूरत नहीं है |

अब सारा दारोमदार राज्यपाल विद्यसागर राव पर निर्भर करता है | क्योंकि वे ही सरकार और सत्ताधारी दल को बचा सकते है | अगर उन्होने डीएमके की मांग को अनसुना कर दिया ----जैसा की राजनीतिक हलको मे कयास लगे जा रहा है तब – ना केवल एआईडीएमके की सरकार सुरक्शित रहे जीआई वरन केंद्र मे बैठे लोगो की मंशा भी पूरी हो जाएगी |





तलाक तलाक तलाक का मामला --आधी आबादी का नहीं वरन
फकत 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओ के लिए राहत है _- अभी और भी मुकाम बाक़ी है

सुप्रीम कोर्ट द्वरा पाँच सदस्यीय बेंच ने एक सांस मे अथवा एक बार मे बोल कर या लिख कर तलाक देने की रवायत को खतम करके 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओ के एक भाग को बड़ी राहत दी है | अमूमन ऐसे तलाक के मामले हर साल कुछ सैकड़ा ही सामने आते थे | परंतु फिर भी इस प्रथा से औरतों को जो दोयम दर्जे की हैसियत दी गयी थी --- वह गुलामी से कम नही थी | इस्लाम मे निकाह एक क़रार है जिसमे दो पक्ष शामिल होते है | जिसमे गवाह भी होते है | क़ाज़ी की भूमिका एक जज की मानिन्दा होती है | जो दोनों ही फरीकैन को इंसाफ मिले इसके लिए पाबंद होता है | पर इस एकतरफा फैसले के मामले मे वह भी मजबूर हो जाता था वह शौहर के फैसले को "”दीनी या शरीयत "” के किसी उसूल को तोड़ने का जिम्मेदार नहीं करार दे सकता था | वह बस एक बेबस तमाशबीन की हैसियत इन मामलो मे रखता था | वह किसी भी प्रकार की राहत ऐसी तलाक शुदा औरत को नहीं मुहैया करा सकता था | निकाह के दीगर मसलो मे भले ही वह किसी को भी पाबंद कर सकता था | क़ाज़ियत की इस सीमित हालत के लिए इतने बरसो मे कोई पुख्ता पर्सनल ला बोर्ड द्वारा नहीं की गयी | वरन इस मसले से उन्होने अपने को अलग ही रखना ठीक समझा |
इस हिसाब से मुस्लिम औरतों को जो ज़िल्लत इस कायदे से उठानी पड़ती थी ---वह अब खतम हो गयी | बाक़ी तलाक के रास्तो मे दोनों ही तरफ के लोग अपनी - अपनी बात कहने का हक़ रखते है |
कुछ लोग अब चार शादी के हक़ और हालला को भी खतम करने की आवाज़ उठा रहे है | गौर करने की बात है की यहूदी और ईसाई धर्म मे भी यह प्रथा नहीं है | फिर किस वजह से इस्लाम मे यह ज़रूरत आन पड़ी ?? कैथोलिक संप्रदाय मे तो तलाक की इजाजत ही नहीं है | ब्रिटेन मे एलीज़ाबेथ प्रथम ने जब प्रोटेस्टेंट संप्रदाय की स्थापना की और स्वयं ही उसकी प्रधान पुजारी या मठाधीश बनी तब वनहा तलाक जायज हुआ | इसी प्रकार वेदिक धर्म मे भी आज़ादी के पहले एक से ज़्यादा विवाह जायज था | हमारे अवतारो मे से एक ने कई शादिया की थी | परंतु उनसे पहले के अवतार मे "”एक विवाह "” को ही सर्वोतम बताया गया था | परंतु बाद मे परंपरा हो गयी की जमींदार और बड़े -बड़े लोग कई - कई विवाह करते थे | इसी के चलते बेमेल विवाह भी होने लगे कूलीन परिवारों मे बेटियाँ देना इज्ज़त की बात समझी जाती थी | भले ही वर और वधू की आयू मे बीस से जादा वर्ष का अंतर हो | राजपूताना और बंगाल मे यह बीमारी बहुत ज्यादा फ़ेल गयी थी | इसी लिए वनहा संपाती मे हिस्सा ना ना देना पड़े इसलिए विधवा को सती करने की प्रथा चल निकली | जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी के समय मे ही 1829 विलियम बेनटिक ने राजा राम मोहन रॉय के आंदोलन के कारण समाप्त किया | विधवा विवाह तब तक वेदिक धर्म मे व्यसथा ही नहीं थी | जैसे धर्मांतरण की कोई विधि धर्म मे है ही नहीं | इसी प्रकार सदियो की रिवयतों को मौजूदा हालत के मद्दे नज़र बदलना पड़ता है | इतना ही नहीं -दूसरे धर्मो के मर्दो के दिल जलते थे | जलते है \
के बाद जवाहरलाल नेहरू ने हिआज़ादीन्दू कोड बिल के लिए परंपरवादियों – साधु और -महंतो की आलोचना सही | उनके अनुसार जाति प्रथा - छूआछूत - सभी को मंदिर मे प्रवेश आदि सुधारो के लिए समय आ गया है | अब हिन्दू मैरिज एक्ट मे पहले की आठ पद्धतियों को खतम कर एक ही को कानूनी दर्जा दिया | इसमे यह भी बताया गया की कौन सी शादी जायज होगी कौन नहीं | दो - चार साल सफ़ेद और भगवा धारी संत और महात्माओ ने हो -हल्ला किया | फिर सभी शांत हो गए |

मेरा मानना है की भोपाल मे मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की होने वाली बैठक मे भी इस अदालती फैसले को मंजूरी मिल जाएगी |