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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 16, 2019


एक देश -एक चुनाव
मोदी सरकार संसद को संविधान सभा मैं परिवर्तित कर नया निज़ाम ला रही हैं !



संविधान की संघीय आत्मा को जिस प्रकार नरेंद्र मोदी सरकार विभिन्न कानूनों मैं संशोधन कर के एकात्मक रूप मैं बदलती जा रही हैं , उससे निश्चय ही देश राज्यो के अधिकारो पर कुठराघात होगा | वह इन्दिरा गांधी द्वरा आपात स्थिति लागू करने से ज्यादा भीषण होने की आशंका हैं ! क्योंकि इन्दिरा गांधी ने तो संविधान प्रदत्त अनुछेद 352 --360 के प्रविधानों का पालन किया | अब उस के अनुपालन मैं क्या गलतिया हुई --वह तो शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट मैं लिखा हैं |
पर मोदी सरकार की भारतीय जनता पार्टी और संघ तथा उसके आनुसंगिक संगठन एक देश -एक चुनाव की आड़ मैं ---न केवल संविधान के संघीय ढांचे को खतम करने की नीयत रखते हैं | वरन वे संसदीय प्रणाली को राष्ट्रपति प्रणाली मैं बदलने की नियत रखते हैं | क्योंकि 2019 के चुनवो मैं जिस प्रकार केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने मोदी जी के दौरो को ध्यान मैं रखते हुए दो माह तक देश को चुनावी फीवर से ग्राष्ट रखा ---वह ईमानदारी तो नहीं थी | फिर आयोग ने जिस प्रकार सत्ता पक्छ के वीरुध अनियमितताओ की शिकायतों – पर क्लीन चिट दी न और आयोग के एक सदस्य की आपति और असहमति को "”अनदेखा ही नहीं किया वरन -उसे छुपाने की भी सफल कोशिस की | अब ऐसे चुनाव आयोग से क्या उम्मीद की जाये ? उधर विपक्ष के विधायकों मैं "”” जिस प्रकार अंतरात्मा की आवाज जाग उठी हैं --की थोक के भाव वे बीजेपी मैं शामिल होते जा रहे हैं ! गोवा मैं परिकर सरकार मैं रहे गोवा डेमोक्रेटिक पार्टी के उप मुख्य मंत्री और उनके साथियो को मंत्रिमंडल से बाहर किया गया ---- उस पर यह शेर फिट बैठता हैं "”” बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले {निकाले } “” | कर्नाटक मैं भी दल - बादल का नाटक चल ही रहा हैं , बताते हैं की एक विध्यक की कीमत बीस करोड़ से लेकर अससो करोड़ तक हैं !! सवाल है की एनफोरस्मेंट --इनकम टैक्स और सीबीआई सिर्फ गैर बीजेपी नेताओ के लिए हैं , बीजेपी के नेता इतना नक़द रुपया कान्हा से ल रहे हैं ? चेक़ से तो भुगतान नहीं हो रहा हैं ? तो यह हैं सत्तधारी पार्टी और सरकार की नैतिकता और न्याय प्रियता ? अभी तक कोई बीजेपी का धन्न सेठ नकदी के और काले धन के मामले मैं नहीं पकड़ा गया | क्या गंगा ऐसी पवित्र पार्टी है { वैसे गंगा की पवित्रता -अब मानने योगी नहीं रह गयी , क्योंकि उसकी सफाई पर भी उमा भारती मंत्री रहते हुए मंजूर कर चुकी थी की कानपुर के बाद अब उसका पानी पीने लायक नहीं बचा है}} वैसे बंगाल हो या उड़ीसा कर्नाटक हो या आंध्र , सभी जगह के धन सम्राट ,जिन पर कर चोरी से लेकर धोखा धड़ी के मामले थे -----वे सभी उनके बीजेपी मैं शामिल होते ही खतम हो जाते हैं !!

| परंतु वर्तमान सरकार तो संविधान की आत्मा को कुतर - कुतर कर के उसे खतम ही करती दिख रही हैं | संविधान मैं "”समवर्ती सूची " के विषय पर केंद्र और राज्यो दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार हैं | उन मैं शिक्षा - क्रषी -सिंचाई आदि अनेर्क विषय हैं | परंतु 2019 मैं पदासीन होने के बाद चाहे वह राज्यो के कराधान का मामला हो अथवा शिक्षा का हो सब मैं केंद्र ने अपने "”माडल " पेश कर दिये हैं | यह सभी को को मालूम हैं की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वर्तमान संविधान और उस मैं "”नागरिकों के बराबरी के अधिकार "” से देश के तिरंगे झंडे से और राष्ट्रीय गान --जन गण मन से वित्रष्णा हैं | संघ के नागपुर मुख्यालय पर तिरंगे के ऊपर भगवा ध्वज को तरजीह दी जाती हैं | वे भगवा को ही प्रणाम करते हैं --- तिरंगे को नहीं ! उनका "”राष्ट्रवाद बिस्मार्क और एडोल्फ़ हिटलर का राष्ट्रवाद हैं | जनहा नारे से लेकर --वेश भूषा तक एक समान होने की कल्पना हैं | बिस्मार्क का सपना अपनी रियासत को बचाने का था --जिसे उसने दस अन्य रियासटो तथा हिंडनबर्ग क समय हिटलर ने "”चुनाव जीत कर आस्ट्रिया को भी कब्जा किया | उसकी लालसा ने उसके देश को कान्हा पहुंचा दिया ------की आज प्रत्येक जर्मन हिटलर के लिए शर्मिंदा होता हैं ! कनही मोदी सरकार के किए की सज़ा सारे देश की शर्मिंदगी न बन जाये |
आज जिस तरीके से संविधान के अनुछेद 14 से 35 तक नागरिकों के मूल अधिकारो की राज्य और उसकी संस्थाओ से रक्षा का वचन दिया गया हैं , वह मौजूदा सरकार और उसके संगी साथियो को ठीक नहीं लग रहा हैं |
देश के विभाजित मानस मैं एका करे -चुनाव तो लोकतन्त्र का बस साधन है :-
धरम और भाषा की विविधता , जो हमारी गंगा -जामुनी तहज़ीब की निशानी है , वही आज समुदायो मैं कट्टरता के कारण नफरत का कारण बन गयी हैं | देश मैं पनप रहे , अशांति को दूर कर के एकता का भाव लाना ज्यादा महत्वपूर्ण हैं | परंतु सत्ताधारी दल तो "”चुनाव रूपी साधन को ही लोकतन्त्र का साध्य मान कर देश मैं बस एक साथ सभी विधान सभाओ और लोक सभा के चुनाव करने की रट लगाए हैं | यह कोशिस उनकी आलोकतांत्रिक इच्छा का ही संकेत हैं | जिस प्रकार देश मैं विरोधी दलो के नेताओ पर सीबीआई और ईडी के छापो से उन्हे बदनाम करने का सतत प्रयास हो रहा हैं --- वह देश के लिए अमंगलकारी ही हैं | फिर अभी कर्नाटक और गोवा मैं काँग्रेस के विधायकों से दल -बदल कराया गया है , उसके पीछे किसका हाथ हो सकता हैं , यह सहज मैं ही जानने की बात हैं |

सबसे पहले तो यह जानना जरूरी हैं की राज्यो मैं विधान सभा के और देश मैं लोक सभा के चुनाव नियत अवधि मैं कराने का संविधान मैं साफ प्रविधान हैं | राज्यो मैं अथवा केंद्र मैं सरकार के बहुमत खो देने पर मध्यावधि चुनाव का संवैधानिक विकल्प हैं | अब अगर कर्नाटक मैं बहुमत को लेकर जो रस्साकशी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची हैं , वह सदन और प्रदेश कए मतदाताओ की इछाओ का अपमान ही कहा जाएगा | दल बदल का इतिहास 1967 से शुरू हुआ ,जब उत्तर प्रदेश -बिहार -उड़ीसा मैं नेत्रत्व से नाराज़ काँग्रेस विधायकों ने – जन काँग्रेस पर्तरी का गठन किया था | उत्तर प्रदेश मैं चौधरी चरण सिंह और बिहार मैं महामाया प्रसाद सिन्हा तथा उड़ीसा मैं विस्वनाथ दास मुखी मंत्री बने | उत्तर प्रदेश और बिहार मैं इन सरकारो मैं जनसंघ { भारतीय जनता पार्टी की जनक } के साथ कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग भी मंत्री बने थे ! परंतु यह कवायद सत्ता मैं बैठने की ही थी ! बस ! जैसा आज कर्नाटक मैं हो रहा हैं | गोवा मैं जिस प्रकार परिकर की गठबंधन की सरकार मै छेतरीय दल भागीदार बने थे , उन्हे काँग्रेस के दस विधायकों के दल -बादल के बाद सत्ता की मलाई से मक्खी की भांति निकाल बाहर किया गया ! अब यही राजनीति बची हैं |

अव्वल तो राज्यो मैं अगर गैर बीजेपी सरकारो को अस्थिर करने के लिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह का यही हथकंडा सत्ता को लपकने का नमूना हैं , तब देश मैं लोकतन्त्र को खतरा ही हैं | जिस प्रकार 1917 मैं रूस मैं बोलोशेविक { पार्टी का प्रभुत्व } और मोनोशेविक { जन भागीदारी } को लेकर विवाद हुआ , उसमे लेनिन और स्टेलिन जैसे एकल पार्टी प्रणाली के हामियों ने हिंसा और हत्या के बल से पार्टी को सुप्रीम बना दिया | भले ही हजारो विरोधियों की हत्या हुई | पर अंत मैं सोवियत रूस की क्रांति का सत्तर साल बाद पतन ही हुआ !! आज भी वनहा "”नकली लोकतन्त्र "” हैं ! जिस मैं सत्ता की आलोचना और विरोध का भरी मुली चुकाना पड़ता हैं ,अक्सर जान देकर | परंतु जन विरोध का सामना तो शक्तिशाली चीन को भी हागकांग मैं दस लाख लोगो के विराट आंदोलन के रूप मैं भुगतना पद रहा हैं | पेकिंग मैं त्येंमाइन स्कावायर मैं फौज के टैंक और गोलियो से कितने लोग मारे गए ---यह पता नहीं चला | परंतु हांकांग मैं चीन सरकार ऐसा नहीं कर पाएगी | भले ही आजीवन राष्ट्रपति बने जी शीन पिंग कुछ भी कर ले | क्या भारत मैं भी लोकसभा मैं बहुमत के आधार पर ऐसा प्रयोग कर सकते हैं ? संभव हैं | क्योंकि संविधान की आत्मा को अगर भूल कर -सिर्फ उसे अपने मतलब से ओड़ा - मरोड़ा गया तब यह संभव हैं |
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसके आनुसहगिक संगठन जिस प्रकार वेतन भोगी कार्यकर्ताओ को भारतीय युवा पार्टी और बजरंग दल मै भर्ती कर रहा हैं ----- उससे यह तो साफ हैं की बीजेपी के इरादे लोकतन्त्र को आईएएस जैसी सेवाओ मैं बदलने के हैं | तब क्या धन से कमजोर दल चुनाव लड़ने लायक बचेंगे ?? अभी हाल मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने पाँच पूर्णकालिक सवैतनिक महिला कार्यकर्ताओ को संगठन मैं प्रचार के लिए भर्ती किया हैं | अब अगर विद्यार्थी संगठनो मैं वेतन भोगी लोग काम करेंगे ------तब छत्रों को बरगलना ज्यादा आसान होगा | जिसका उत्तर कोई अन्य पार्टी नहीं दे पाएगी | क्योंकि जब देश मैं चुनावी चंदे का 90 प्रतिशत सत्तधारी को जाएगा और शेस मैं देश के अन्य दल बचेंगे , तब परिणाम सहज मैं समझा जा सकता हैं |