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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jul 24, 2022

 

दलबदल से मतदाता  की रॉय को  धोखा दिया जाता है            

       महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार को गिराने के लिए की जिस प्रकार  की कवायद  हुई उसने पूरे राष्ट्र की उस भावना को धावस्त कर दिया की “जनता का विश्वास  छला गया हैं | क्यूंकी  द्वरा जिन लोगो ने पाला बदल किया  वह  उनकी कुर्सी की लालच को दिखाता हैं |  फिर विधान सभा  के स्पीकर की नोटिस को जिस प्रकार वर्तमान सरकार के स्पीकर द्वरा  निरस्त किया गया , वह विधान सभा में बहुमत के फेर बादल का ही नतीजा हैं |

परंतु एक सवाल यह भी हैं की जिन लोगो के मत से दल बदल  करने वाले लोगो ने सरकार  गठित की ---क्या उन्होने उन मतदाताओ के विश्वास को  धोखा नहीं दिया हैं ! पाकिस्तान  की पंजाब अससेंबली  में पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान की पार्टी  के  दिया दिया 20 सदस्यो ने  पाला बादल कर हमजा शरीफ  की मुस्लिम लीग  से हाथा मिला कर उनकी सरकार बनवा दी | परंतु वनहा के सुप्रीम कोर्ट ने उन 20 विधायकों को ‘’ अयोग्य “” करार दिया | फलस्वरूप  वनहा उपचुनाव करने पड़े !  परंतु हमारे देस  में दल बदल पर अदालते   मौन रहती हैं ! क्यू ? क्या दल बदल  मतदाता की पसंद  को धोखा नहीं हैं ?  आखिर  जन प्रतिनिधित्व  कानून  ,जिसके तहत विधान सभा और लोकसभा के चुनाव  सम्पन्न होते हैं --- उनका अर्थ यह नहीं होता क्या की जिस प्रतिनिधि को वे चुन रहे हैं ,वह एक राजनीतिक दल का उम्मीदवार हैं – वह अकेला लाखो मतदाताओ के वोट और समर्थन  को  “” अपनी मर्ज़ी से नहीं बादल सकता “” अगर उसे  अपनी निष्ठा बदलनी हैं तब उसे दुबारा अपने मतदाताओ में अपनी हैसियत  परखना चाहिए | यह कानूनी और नैतिक रूप से उचित हैं | तब किस आधार पर दल बदल  को अदालते  अनदेखा करती हैं

निर्वाचन आयोग और सर्वोच्च न्यायालय :-  महाराष्ट्र  में शिव सेना की सरकार को अपदस्थ करने के लिए जिस प्रकार संसदीय मर्यादा  का उल्लंघन किया गया ,और जिस प्रकार करोड़ो रुपये  खर्च करके  विधायकों  को गोवा और गौहाटी  के पाँच सितारा होटल में ठहराया गया -और जिस प्रकार  उनको लाने – और जाने के लिए “””हवाई जहाज “” का उपयोग किया गया  वह सर्व विदित हैं | परंतु  ना तो भारतीय जनता पार्टी ने और ना ही मुख्य मंत्री एकनाथ शिंदे  ने  इसका खुलासा किया की की दलबदल के विधायकों की खातिरदारी तथा उनके आने जाने का खर्च किसने  भुगतान किया ! ईडी  जो करोड़ो के घोटालो की जांच करती हैं  -जो चिदम्बरम और गांधी परिवार को  “”शक “” के कारण ही पूछताछ करती हैं , उसे यह “”कांड “” शायद  दिखाई नहीं पड़ता ! क्यूंकी  इसके लिए केंद्र सरकार के हाकिमों ने  जांच की इजाजत नहीं डी | वैसे बीजेपी  खुद को इस मामले से अपने को अलग रखने का रूपक  रच रही हैं | परंतु आम्जनों में  सभी को   वस्तुस्थिति  पता हैं | फिर क्यू नहीं कोई कारवाई  होती ?

                वैसे  दलबदल के लिए जिस प्रकार  पैसे और प्रभाव  का इस्तेमाल महाराष्ट्र में हुआ  वह लोकशाही के लिए चिंताजनक हैं |क्यूंकी यह  खुलेआम वोटर की मर्ज़ी का उल्लंघन हैं | क्यू नहीं पार्टी से अलग होने वाले विधायक और सांसद को  पुनः  अपने मतदाताओ का मन जान्ने  का प्रविधान होता हैं |

 

हालांकि मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने  के लिए जब ज्योतिरदितय सिंधिया के नेत्रत्व में काँग्रेस से बगावत हुई थी ---- तब जिन कोङ्ग्रेस्सी विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी , उन्होने  बीजेपी के बैनर तले उप चुनाव लड़ा था |एवं  एक महिला विधायक इमारती देवी को छोडकर शेष को उनके मतदाताओ ने पुनः अपना विश्वास व्यक्त किया था |  जिससे की मौजूदा नेत्रत्व शिवराज सिंह सरकार पर मर्यादाहिनता का आरोप नहीं लगाया जा सका |  क्यूंकी उन्होने इन विधायकों को जनता से निर्वाचित होने के बाद सदन में स्थान दिया |

                              क्या बीजेपी के  शीर्ष  नेताओ को महाराष्ट्र  में  में यह भरोसा नहीं हैं की वे शिवसेना के बागी विधायकों को  पुनः मतदाताओ का विश्वास  प्रापत करने में सफल होंगे ? शायद इसी बात को लेकर शंकित शिंदे और बीजेपी दोनों ही  शिवसेना के संगठन पर “””कानूनी कब्जा करना चाहते हैं |  वैसे अभी यह लड़ाई  चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के पाले में हैं | चुनाव आयोग ने जनहा शिंदे गुट और उद्धव ठाकरे गुट को संगठन  पर दावो को 8 अगस्त तक प्रस्तुत करने का निर्देश दिया हैं |  अब संगठन का अर्थ अगर  संसदीय और विधायक दल हैं तब शिंदे गुट का वर्चस्व  साफ हैं | परंतु यदि संगठन का अर्थ  तालुका और ज़िला स्टार पर सदस्य और पार्टी पदाधिकारी हैं तब  ठाकरे परिवार  का दबदबा  अभी वनहा हैं | केवल  ठाणे की शिवसेना इकाई ही अभी तक शिंदे के समर्थन में  खुलकर आई हैं , शेष तालुका और ज़िला इकाइयो ने ठाकरे को ही समर्थन दिया हैं |

                                         अब सुप्रीम कोर्ट भी इस विवाद को साधारण विवाद नहीं मान रही हैं | इसीलिए उसने इस मुद्दे को “”संविधान पीठ “” में भेजने की कवायद शुरू की हैं |  अब यह पीआरआरटीएच पाँच जजो की होगी अथवा उससे अधिक की यह भविष्य के गर्भ में हैं |  परंतु इतना तो साफ हैं की सर्वोच्च न्यायालय भी इस पूरे प्रकरण में   धन के और पद के प्रलोभन देखना चाहता  हैं और उस पर अपनी खरी – खरी रॉय रखना चाहता   हैं | इसीलिए उसने महाराष्ट्र  विधान सभा  के स्पीकर  को निर्देश दिया हैं की वे अभी ठाकरे गुट के विधायकों की अयोग्यता  के बारे में कोई निर्णय “”नहीं”” ले | अब सरकार भले ही बीजेपी और शिंदे की हो पर तलवार तो उनके सर पर लटक ही रही हैं |

                          जनप्रतिनिधियों  द्वरा  मतदाता की मर्ज़ी जाने बगैर  मनमानी करने का उदाहरण पड़ोसी राज्य श्री लंका में दिखाई पड़ा हैं | जनहा राष्ट्रपति गोटाबाया  को जनता के आक्रोश के आगे देश छोड़ कर भग्न पड़ा | कितनी दयनीय स्थिति हैं की की राष्ट्रपति को अपना राष्ट्र ही छोड़ कर भग्न पड़ा | अब उन्हे मालदीव और सिंगापूर की सरकारो ने “”राजनीतिक शरण “” देने से इंकार कर दिया हैं |  इसका स्पष्ट अर्थ हैं की आप तभी तक राजसिंहासन  पर हैं जब तक जनता चुप है या चाहती हैं | परंतु एक बार आप के कारनामो से जनता परिचित हो गयी तब  तब आप को भागने के सिवाय कोई चारा नहीं हैं |  यह सबक सभी नेताओ के लिए हैं |