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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 9, 2022

 

मोदी जी गोवा का मुक्ति अभियान के अंतराष्ट्रीय परिणाम थे !!

1961 के दिसंबर 17 को भारत सरकार ने गोवा को मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू किया | थल और सागर की ओर से भारतीय सेनो की टुकड़ियों ने ,मेजर जनरल के पी कैनडेथ की अगुवाई में भोर में अपना अभियान शुरु किया था | जो 48 घंटे में पूरा कर लिया गया | 18 दिसंबर को पंजीम में जनरल कैनडेथ ने मिलिट्री गवर्नर के रूप में 1500 वर्ग मिल छेत्रफल वाले पुर्तगाली उपनिवेश को आज़ाद करा कर भारतीय गणराज्य में मिला लिया |

2022 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कहा था "””की   अगर सरदार पटेल की तरह जूनागद और हैदराबाद का फौजी रूप से विलय कर लिया होता तो देश को "”””15 वर्ष "”” तक गोवा को परतंत्र नहीं रहना पड़ता !!!!

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का अध्ह्य्यन अधूरा ही रहता हैं , अथवा वे जान बूझ कर तथ्यो को या तो गायब कर देते हैं अथवा उनको भूल जाते हैं !

मोदी जी ने पंडित जवाहर लाला नेहरू पर अंतराष्ट्रीय सारोकारों को ध्यान में रखने और राष्ट्रिय सरोकारों की अनदेखी करने का आरोप संसद में लगाया ! जो की दो अर्थो में दुर्भाग्यपूर्ण रही | प्रथम उन्हे यह नहीं मालूम की पुर्तगाल नैटो सैन्य संधि का सदस्य था | जिसका अर्थ होता हैं की अम्रीका के नेत्रत्व में बने इस सैनिक संगठन की शर्त ही है "”” एक देश की प्रभुता पर हमला सभी सदस्यो पर हमला है "” ! इस संगठन के सदस्य अमरीका -ब्रिटेन - फ्रांस और यूरोपीय देश जर्मनी आदि थे | ऐसी स्थिति में मोदी जी राष्ट्रियता "”” का 15 वर्ष पूर्व ---गोवा को अधिकार में लेने का अर्थ होता दुनिया के बड़े राष्ट्रो की सैन्य ताकतों को चुनौती देना ! क्या एक नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र ऐसी "””मूर्खता पूर्ण राष्ट्रीय हरकत "” कर सकता था ? उत्तर होगा नहीं | बल्कि पंडित नेहरू ने इस अभियान के लिए "उचित" समय चुना |

1961 के दिसंबर माह में सोवियत रूस के राष्ट्रपति बोरिस वोरोशिलोव दिल्ली की यात्रा पर आए हुए थे | 17 दिसंबर को वे दिल्ली में ही थे | जब दुनिया को भारतीय सैन्य कारवाई की जानकारी हुई , और "”नाटो "” सैनिक संगठनो के राष्ट्रो को खबर हुई की उसके सदस्य देश पुर्तगाल की संप्रभुता वाले उपनिवेश गोवा को भारतीय सेनाओ ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया ,तब अमरीका ब्रिटेन फ्रांस और पुर्तगाल ने -इस कारवाई का सनिक "””प्रतिरोध"” करने का विचार किया | नवोदित राष्ट्र के सामने भयंकर चुनौती थी |

तब रूसी राष्ट्रपति बोरिस वोरोशिलोव ने दिल्ली से एक बयान जारी कर के भारतीय कारवाई को जायज बताया | शीट युद्ध के उस काल में रूस के राष्ट्रपति की यह चुनौती ने अमेरिका और अन्य यूरोपीय राष्ट्रो को सोचने पर मजबूर कर दिया की भारत पर सैन्य कारवाई का मतलब रूस से भी भिड़ना होगा | अनेक यूरोपीय राष्ट्रो को सामने अपनी सीमा पर तैनात रूसी टैंको का भय लगा |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभ में यह कहना की "”की अगर नेहरू जी राशत्रवादी सोच से निर्णय लेते तो गोवा को 15 साल की गुलामी नहीं भोगनी पदनी पड़ती ! “”

आज़ादी के समय रियासटो के विलय को विदेशी उपनिवेशों मसलन गोवा - दमन - डीयू और पाओण्डिचेरी के बराबर नहीं रखा जा सकता ना तो कानूनी रूप से और नाही संप्रभुता की द्राशती से |

लगता है गोवा के विलय के माले की सम्पूर्ण जानकारी विदेश मंत्री जटा शंकर अरे जय शंकर जी ने मोदी जी के भासन की जानकारी नहीं रही होगी ,अन्यथा विदेश सेवा का एक पूर्व अधिकारी इतनी गलत तथ्य सार्वजनिक रूप से लोकसभा में नहीं कहने देता | गोवा के मामले में हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी कारवाई नहीं संभव हैं क्यूंकी --- यह विदेश नीति और अंतराष्ट्रीय कूट नीति का मामला हैं | आज यूक्रेन और रूस में तनाव की जो स्थिति है और नैटो तथा रूस की सेनाए जिस प्रकार युद्ध को आमंत्रण देती दिख रही हैं , वैसा ही कुछ माहौल होता मोदी जी , तब क्या भारत इस ताक़त और स्थ्ति का मुक़ाबला कर सकेंगे ? अभी अपने दोस्त शी ज़ीन पिंग की लद्दाख की सीमाओ पर रोक भर ले | अंतराष्ट्रीय मुद्दा बन गया तो एक तिब्बत और बन जाएगा | श्रीमान कुछ जानकारी लेकर बयान दिया करे मदारी जैसे बयान से देश की समस्याए हल नहीं होती |