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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 13, 2016

विज्ञापनो के सहारे विकास की सुनहरी तस्वीर की पेशकश और अपनी उपज को सड़क पर फेने को मजबूर किसान ??

विज्ञापनो के सहारे विकास की सुनहरी तस्वीर की पेशकश
और अपनी उपज को सड़क पर फेकने  को मजबूर किसान ??

जब देश मे नोट बंदी को लेकर जगह = जगह अशन्तोष भड़क रहा हो ,बैको के सामने लाइने लगी हो --तब यह दिखाना की लोगो की जमा राशि से देश मे बहुत अधिक पूंजी बनेगी | फलस्वरूप देश मे अधिक उद्योग - धंधे लगेंगे | असंख्यों नौकरिया सुलभ होंगी | परंतु करोड़ो रुपये के सरकारी विज्ञापनो मे वर्तमान हालत का ज़िक्र कनही नहीं है ---अर्थात 8 नवंबर से अब तक 90हज़ार से ज्यादा लोग बेकार हो गए है | वह भी बाज़ार मे नकद राशि की गैर मौजूदगी से ??

विज्ञापन से विकास के दावे लोगो के मन मे झुंझलाहट ही भर देती | क्योंकि हक़ीक़त की पथरीली ज़मीन पर विकास की तस्वीर दिखाना घाव पर नमक छिड़कने जैसा है | आज भी देहातो मे किसान को बीज और खाद तथा डीजल के लिए दर - दर भटकना पद रहा है | मंडियो मे किसान अपनी उपज को "”औने--पौने "” दामो मे दलालो के हाथो मे बेचने को मजबूर है | फरुख़ाबाद के आलू बोने वाले किसान हो या मधी प्रदेश के टमाटर उत्पादन करने वाले हो अथवा सिहोर -- रायसेन के शाक भाजी उगाने वाले किसान हो | सबकी मजबूरी है की नकदी के लिए वे खेत की फसल को बेचे ---- फिर चाहे वह किसी भी दाम पर खरीदी जाये |

शर के उपभोक्ताओ को दस और बीस रुपये मे सुलभ हो रहे आलू - टमाटर और हरी मटर किसान को इतना भी पैसा नहीं देती की वह "”उचित "” दाम नहीं मिलने पर अपनी उपज को वापस ले जाये | क्योंकि इतना पैसा भी उनको नहीं मिलता है ! इसलिए किसान अपनी उपज को सड़क पर फेकने को भी मजबूर हो गए है | आखिर ऐसा क्यो की "”अन्नदाता "” इतना बेबस हो गया है ??