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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 24, 2021

 

किसान आंदोलन में सुराख करने -अब संघ मैदान में !

80 दिनो से ज्यादा वक़्त से दिल्ली पर घेरा डाले किसानो के आंदोलन को मोदी सरकार खतम करने में जब सफल नहीं हुई , तब उसने अपने मदर संगठन राष्ट्रीय स्वम सेवक संघ से मदद की गुहार लगाई हैं | यह खबर आरएसएस के आनुषंगिक संगठन भारतीय किसान संघ के सूत्रो से निकली हैं | आरएसएस ने अपने 1 लाख स्वयं सेवको को 50 हज़ार गावों में उतार ने का दावा किया हैं | उनके अनुसार दो - दो की टोली बनाकर स्वयं सेवक गावों में जाकर मोदी सरकार के तीनों क्रशि कानूनों के फायदे किसानो को बता रहे हैं , ऐसा दावा किया गया हैं ! संघ को चिंता हैं की ,जिस प्रकार किसान जगह जगह पर पंचायत करके कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं ---उससे बीजेपी की जमीन खिसकती जा रही हैं | जिससे संघ चिंतित हैं | राम मंदिर आंदोलन से जो फिजा देश में हिन्दू राष्ट्र की संघ और उसके 70 से अधिक आनुसंगिक संगठनो देश में बनाई थी ,वह अब खतम होती लग रही हैं | क्योंकि धरम के आधार पर जिस प्रकार बीजेपी अपना वोट बैंक बना रही थी ----उसे किसान आंदोलन ने धो दिया हैं ! क्योंकि किसानो में हिन्दू - मुसलमान और सिख तथा जाट सभी शामिल हो रहे हैं | इससे बीजेपी और संघ की धरम आधारित राजनीति असफल हो रही हैं | इसका उदाहरण मुजफ्फरनगर में हुई पंचायत में बालियान खाप के नेता टिकैत ने मंच से मुस्लिम भाइयो से सांप्रदायिक दंगो के लिए माफी मांगी थी | उन्होने यह भी कहा की हमने आरएलडी के नेता जयंत चौधरी को हारा कर गलती की | इस बयान से संघ को अंदेशा हो गया की अब वह कट्टर हिन्दू वाद की राजनीति से चुनाव नहीं जीत सकती | क्योंकि किसानो में सभी धर्मो और जातियो के लोग शामिल हैं | जो सामाजिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं |

उधर संघ के सर संघ चालक डॉ भागवत ने पुनः महात्मा गांधी को याद करते हुए कहा की "”हिन्दुत्व सत्य के सतत खोज हैं | सवाल हैं की किसान आंदोलन के समय भागवत जी को महात्मा की याद क्यू आई ? जिस महा पुरुष ने चंपारण के नील बोने वाले किसानो को अंग्रेज़ो की आर्थिक गुलामी से मुक्त करने के लिए आंदोलन चलाया ,और पहली बार जेल गए , क्या वे आज किसानो की मांग का विरोध करते ? क्योंकि यह सर्वविदित हैं की इन कानूनों को देश के दो बड़े उद्योगपतियों को लाभा पाहुचने के लिए लाया गया हैं | उनके लिए सभी नियम खतम कर दिये गए हैं | इन कानूनों के समर्थन में जो तर्क सरकार द्वरा दिये जाते हैं ----उनको व्यवहार में ना तो किसान को और नाही उपभोक्ता को लाभा मिलने वाला हैं | इन पूंजीपतियों का व्यापार बाजार में प्रतिद्वंदीता के आधार पर नहीं वरन सरकार द्वरा प्रदत्त एकाधिकार से होगा | जो उनके लिए "” सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमाने का जरिया होगा !

जो संगठन पथ संचालन और भीड़ एक्टर करने की महारत रखता हो , उसे अब गाव -गाव कार्यकर्ता भेजना पड़े ---समझ में नहीं आता | रही बात किसानो के आंदोलन में "”सेंध "” लगाने की तो वह काम साम - दाम - दंड और भेद का इस्तेमाल कर के मोदी सरकार थक चुकी हैं | वह किसानो को बांटने के लिए उन्हे कभी खालिस्तानी - कभी आतंकवादी कह कर बदनाम कर चुकी हैं |

अभी हाल में बंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा को टूलकिट के नाम पर राजद्रोह का आरोप लगा कर गिरफ्तार किया | उसे जमानत देते हुए विद्वान जज राणा ने साफ कहा की "””सरकार के अहंकार पर मरहम लगाने के लिए किसी की आज़ादी छीनी नहीं जा सकती | वे यही नहीं रुके वरन कहा "” की सरकार का विरोध करना कोई देशद्रोह नहीं हैं , वेदिक काल से हमारे ऋषियों मुनियो ने ऋग्वेद में कहा हैं की "” सब तरफ से नवीन विचारो को आने दे , बिना बाधित हुए उन् विचारो को समाज में आने दिया जाए "”

इस प्रकार मोदी सरकार की ताकत को आईना दिखाने का काम न्यायले ने किया | जिससे लोकतन्त्र बचा हुआ हैं |


क्या संघ किसानो की भांति इतना जन समर्थन जुटा सकता हैं ---और उनही की भांति अपने दम पर दोमाह तक धरना दे सकते हैं ? जिस संगठन को अपनी राष्ट्रीय सम्मेलन करने के लिए अपनी सरकारो की सहायता लेनी पड़ती हो , क्या वह इतने दिनो तक जन समर्थन से खाना -पीना बंदोबस्त कर पाएंगे ? जिन लोगो को बैठक --भोजन और विश्राम की दिन चर्या हो वे जन समर्थन के लिए खुले मैदान में नहीं आएंगे | हाँ उनके लोग कभी गाय और कभी जातीय संघर्स के नाम पर सरकार के समर्थन से "””कुछ लोगो को "” पप्रताड़ित कर सकते हैं |

अंत में देखना होगा की क्या दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करने वाले संघ की परीक्षा किसान रैली में होगी -------जब वे 40 लाख ट्रैक्टर लेकर दिल्ली कूच करेंगे | वही टेस्ट होगा संघ बनाम किसान का !