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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 2, 2013

नाबालिग दुराचार अथवा नाबालिगो का दुराचार ?


 नाबालिग  दुराचार अथवा नाबालिगो का दुराचार  ?
                                                                        दामिनी  बलात्कार  कांड के बाद केंद्र ने जस्टिस वर्मा को घटना के समस्त पहलुओ पर रिपोर्ट देने  के लिय अधिकृत किया । महीनो में  रिपोर्ट देने की चुनौती अगर समिति ने पूरी की ,तो केंद्र ने भी  तुरत -फुरत में अध्यादेश ल कर अपने कहे को पूरा किया । उधर वेंकाया  नायडू  की संसदीय  समिति  ने अपनी रिपोर्ट  भी सरकार को दे  दी हैं । अपनी रिपोर्ट में समिति ने न तो  बलात्कारियो  के लिए फांसी की सजा की सिफारिश की ,और ना       ही"किशोर " अवस्था को कम करके सोलह साल साल किये जाने की सिफारिश की । हाँ एक बात उन्होने सन्दर्भ  से बाहर  जा कर यह  कहा हें की बलात्कार  के मामले में     दया याचिका को मंज़ूर नहीं किया जाए । दया याचिका  के बारे में यह भी सिफारिश की हैं की  राष्ट्रपति  के यंहा कोई भी याचिका तीन माह से ज्यादा  लंबित नहीं रहना   चाहिए । अब यह सिफारिश राष्ट्रपति के विवेकधिकारो  पर पाबंदी जैसी हैं । अगर अदालतों में मुक़दमें  के फैसले में  सालो लग जाते हैं तो याचिका के निपटारे  के लिए  सिर्फ तीन माह कोई  उचित समय नहीं हैं । 
                                                           हालांकि  संसदीय समिति  ने यह माना हैं की ५ ४ % बलात्कार के अपराधी दुबारा  फिर जुर्म करते हैं । अब   ऐसे अपराधियों  के लिए यह कहना की इन्हे सजाए मौत  ना दिया जाए  , कुछ समझ में आने वाली बात नहीं हैं । जब जब ऐसे अपराधी दुबारा  यही जुर्म करते हैं तो  उसमें भुक्तभोगी  की हत्या कर दी जाती हैं ।  सवाल  यह उठता हैं की यह कहना की ''बिरले मामले में ही '' सजाए  मौत   दी जानी चाहिये ।    
                         सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों में कहा हैं की ''बिरले मामलो ही फांसी  की सजा दी जानी चाहिए , इसी को समिति ने शायद आधार माना हैं  । लेकिन यंहा प्रश्न हैं की किशोर या नाबालिग  क्या बलात्कार ऐसा जघन्य  अपराध कर सकता हैं ?अगर  ऐसा कर सकता हैं तो क्या उसे ''किशोर  '' कहा जा सकता हैं ? यही सवाल आज के आलेख का भी हैं । 
                                 समिति की रिपोर्ट में कहा गया की पति - पत्नी के संबंधो  में ''बलात्कार ''को इसलिए नहीं माना जा सकता की पत्नी की सहमति  नहीं हैं । हालाँकि महिला संगठन  इस सिफारिश  से नाराज़ हैं ।  लेकिन असली मुद्दा  की ''क्या नाबालिग '' को गंभीर अपराधो में संलिप्तता  को  छोटा या माफ़ी देने लायक ''कृत्य''  हैं ?