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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Nov 30, 2021

 

कुछ तो गड़बड़ है - तीनों कानूनों की वापसी में जल्दबाज़ी क्यू ?


दुनिया के आंदोलनो में अहिंसक रूप से एक साल तक किसानो द्वरा धरना देने की मिसाल अप्रतिम हैं | आज़ादी की लड़ाई में भी कोई आंदोलन साल भर तक नहीं चला था - जबकि ब्रिटिश हुकूमत गिरफ्तारी और लाठी चार्ज जैसे उपायो से आंदोलन को कुचलने का काम करती थी | वैसे किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा सरकार ने लाठी चार्ज और गिरफ्तारी की थी | कहा जाता हैं की बीजेपी और चौटाला की सरकार ने यह सब बीजेपी पार्टी के केन्द्रीय नेताओ के इशारे पर आंदोलन को तोड़ने के लिए किया था | हजारो किसानो पर गैर जमानती धाराओ में मुकदमें दर्ज़ हुए | उन मुकदमो की वापसी किसान संगठनो द्वारा पेश एक शर्त है , आंदोलन की वापसी के लिए |

पंजाब में ऐसे कानून का 104 साल पूर्व ब्रिटिश शासन द्वरा कानून लाये गए थे | उसमें भी किसान को उसकी भूमि से अधिकार से वंचित करने की कोशिस की गयी थी | उस समय कांग्रेस्स के नेता लाला लाजपत रॉय और भगत सिंह जी के चाचा अजित सिंह ने इन कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई थी और बंदी बनाए गए थे | किसानो के गुस्से का प्रतिरोध ब्रिटिश सरकार नहीं कर पायी थी | उसने किसान नेताओ को बंदी बनाया था | पर आंदोलन के उग्र रूप को देखते हुए कानून को वापस लिया गया था | इस बार भी कुछ ऐसा ही मोदी सरकार ने निरसत किए गए कानूनों से करना चाहा था | तब भूमि पर अंग्रेज़ सरकार नियंत्रण चाहती थी | इस बार सरकार उद्योगपतियों को वही "”अवसर देना चाहती थी |

गौर करने की बात हैं मोदी जी की सरकार ने जिस स्पीड से अध्यादेश लायी फिर उसे बहुमत की मदद से संसद से पारित करने के लिए ताबड़तोड़ कारवाई की गयी| वह ना केवल संसदीय प्रणाली के विपरीत थी वरन वह लोकसभा में अपने बहुमत का दुरुपयोग ही था | इस बार जब इन विवादित कानूनों को प्रधान मंत्री मोदी ने अपने राष्ट्र व्यापी सम्बोधन में इन कानूनों को वापस लेने के लिए "” अपनी तपस्या में कमी को बताया " तब एकबारगी लगा की वे इन कानूनों के लिए छमा मांग रहे हैं | पर सोमवार को जिस प्रकार से क्रशि मंत्री नरेन्द्र तोमर ने लोक सभा और राज्य सभा से इन बिलो को निरस्त करने की कारवाई की वह चिंता जनक हैं | लगता हैं मोदी जी इस वापसी के इस प्रस्ताव की के समय सदन में गवाह नहीं बनना चाहते थे | इस स्थिति के गवाह नहीं बनना चाहते थे | क्यूंकी उनका यह "”अबाउट टर्न "” इनके भक्तो को बहुत बुरा लग रहा हैं |

इस जल्दबाज़ी को उत्तर प्रदेश और पजाब में होने वाले विधान सभा चुनावो के पूर्व ,, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट हिन्दू और मुसलमानो के मध्य हुई एकता को तोड़ना चाहते हैं | क्यूंकी पश्चिम उत्तर प्रदेश के 10 जाट और गुजर बाहुल छेत्र में 100 से अधिक विधान सभा सीटे हैं | जिन पर नज़र और सेंध लगाने के लिए देश के गृह मंत्री अमित शाह जिनहे थैली शाह भी कहा जाता हैं , उनकी ड्यूटी लगाई हैं की वे "” बूथ" को नियंत्रित करे | अब इनको आंदोलनकारी किसानो का गुस्सा सहना पड़ेगा | वैसे अमित शाह बंगाल और दिल्ली विधान सभा में अपने करतब से कुछ नहीं कर पाये थे | बंगाल में दलबदल का जो खेल उन्होने किया था , वह तो उनकी असफलता की मिसाल हैं | अब चुनाव की जमीन बहुत "”गरम "” हैं | ऐसे में वे कौनसा हथकंडा अपनाएँगे यह तो समौ बताएगा | अब दल बदल का खेल तो हो नहीं पाएंगे | हो सकता कुछ "””भूतपूर्व विधायक "” उनकी चाल में आजाए और बीजेपी में शामिल होने के "”भव्य आयोजन में मंच पर बैठने का सुख प्राप्त करे | परंतु आशंका हैं की वे अपनी सभाओ में एक बार फिर से दिल्ली वाली चाल अपनाए और मतदाता को हिन्दू बनाए और मुस्लिमो के खिलाफ भडकाएंगे | पर यह चाल कितनी सफल होगी|

क्यूंकी अब इस पैंतरे को बंगाल और दिल्ली की असफलता ही पुख्ता करेगी |

राज्य सभा मे सरकार की सहयोगी पार्टियो और बीजेपी को मिला कर भी यह निरसन विधेयक सत्ता के अल्पमत होने कारण चर्चा करनी पड़ती | इस बाधा को पार करने के लिए सभापति और उप राष्ट्रपति वेंकिया नायडू ने 12 सदस्यो को "””सम्पूर्ण सत्र के लिए निकाल दिया | जिससे सत्ताधारी दल को विधेयक पारित कराने में सहूलियत होगी | अब इस तरह बिना चर्चा के विधेयक पारित कराने को मोदी सरकार की विफलता ही कहा जाएगा |

2- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बयान दिया की "” सरकार सभी मुद्दो पर "”चर्चा "” कराने के लिए तैयार हैं | जिस दिन किसानो से संबन्धित तीनों बिलो के द्वरा निरसन की कारवाई हुई , उस समय दोनों सदनो में विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा कराने की मांग कर रहे थे | और पीठासीन अधिकारी सरकारी पक्ष के लिए सब कुछ कर रहे थे | सरकार द्वरा चर्चा से बचने की राजनीति भी उसके इरादो को संदेहास्पद बनाती है |

3--- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा सभी मुद्दो पर चर्चा कराने का वक्तव्य उनकी पार्टी और सरकार द्वरा झुठला दिया गया हैं |

इसे प्रधान मंत्री का "”पाखंड "” ही कहेंगे की एक ओर वे संसदीय प्रणाली के आधार, वार्तालाप और चर्चा से बच रहे हैं | दूसरी ओर वे एक डिक्टेटर की भांति अपने मंत्रियो से निरस्त कानूनों को किसान के लिए लाभकारी बता रहे हैं | निरसन बिल के प्रस्ताव में भी यही दुहराते हैं – की निरसन बिल से किसानो को लाभ ही होता | परंतु वे किसानो को समझा नहीं पाये ! यह "””दुरंगी " चाल किसानो की शंका को मजबूत करती हैं ,की विधान सभा चुनावो के बाद एक बार इन विधेयकों को कानुन बना कर प्रधान मंत्री अपने उद्योगपति मित्रो "”उपक्रत"” करने का वादा निभाएंगे | इसीलिए उन्होने भी "” न्यूनतम मूल्य "” और किसानो के ऊपर लगे मुकदमो को वापस लेने की भी मांग की हैं | हालांकि दस पुराने ट्रैक्टर को "” रद्दी "” किए जाने और किसानो के लिय बिजली की दरो में कमी आदि ऐसी मांग आंदोलनकारी किसान उठा रहे हैं | इसलिए यह तो साफ लग रहा हैं की , राष्ट्रपति के दस्तखत हो जाने के बाद भी किसान अपनी जगह छोडने वाले नहीं हैं |

प्रधान मंत्री की गुहार -किसान अपने - अपने घरो को जाये , व्यर्थ जाएगी | उधर काँग्रेस छोड़ अपनी अलग पार्टी बनाने ,वाले पंजाब के भूतपूर्व मुख्य मंत्री सरदार अमरिंदर सिंह भी बीजेपी के सुर में सुर मिलकर अपील कर रहे हैं की अब किसान घरो और खेतो की ओर रुख करे | पर पटियाला राज के ध्वजवाहक के रूप में भी अमरिंदर सिंह को आंदोलन कारी "”भाव "” नहीं दे रहे हैं |

दो तथ्य साफ हैं की किसान अपनी सभी मांगो को पूरा कराये बिना हटने वाले नहीं -----और मोदी जी ने विधान सभा चुनावो के मद्दे नज़र ही इन कानूनों को "””फिलहाल "” के लिए टाल दिया हैं | किसान भी इस बात अच्छी तरह से समझ रहे हैं | इसी लिए वे अपनी साल भर की मेहनत को व्यर्थ नहीं जाने देंगे | यह किसान यूनियन अच्छे से समझ रहे हैं की आंदोलन की वापसी के बाद सत्ता अपना खेल खेलेगी | इसी कारण वे खेती से संभन्धित सभी मुख्य मुद्दो को एकबारगी में ही पूरा करना चाह रहे हैं | अब यह तो विधान सभा चुनावो के बाद ही साफ होगा की – कौन सिकंदर है और कौन पोरस !~!!



Nov 26, 2021

 

किसानो के अलावा अपने दल के लोगो को भी नहीं समझा पाये मोदी जी ?------------------------------------------------------------------------------

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्र के नाम संदेश में स्वीकार किया था की वे क्रशि कानूनों के फायदे किसानो को नहीं समझा पाये | परंतु उनके मंत्री और साथी भी नहीं समझ सके ! क्यूंकी चाहे राज्यपाल कालराज मिश्रा हो या प्रदेशों के मंत्री भी बयान दे रहे हैं की "”” उचित समय "” पर ये कानुन वापस लाये जाएँगे ? अब सत्तारूद पार्टी के मंत्री और संवैधानिक पदो पर बैठे व्यक्ति भी इस बारे में भ्रम फैला रहे है | जिससे आंदोलन कारी किसान प्रधान मंत्री के वचनो को "”सत्या "” नहीं मान रहे | अगर साल भर तक चले किसान आंदोलन के लोग सार्वजनिक रूप से अविश्वासनीय बता रहे हैं | उनके अनुसार राज्यो में होने वाले विधान सभा के चुनावो के मद्दे नज़र किसान वर्ग को "” संतुष्ट "” करना चाह रहे हैं | उनका कहना हैं की फसलों के न्यूनतम मूल्य का कानूनी निर्धारण और आंदोलन के दौरान शहीद हुए 700 किसानो को मुआवजा और आंदोलन करियों के खिलाफ पुलिस द्वरा दर्ज़ मुकदमे भी वापस करना उनकी मांगो में हैं | जिसे केंद्र सरकार को राज्यो में अपनी सरकारो से मानने का निर्देश देना पड़ेगा | तभी शायद किसान अपने घरो को वापस जाएँ |

2- प्रधान मंत्री के वादे पर भरोसा न करने का एक कारण और है ------वह हैं की जिस ताबड़तोड़ तरीके से इसे पारित करवाने में स्वर्गीय अरुण जेटली ने काम किया था , उसी से सरकार की नीयत पर संदेह हुआ था | विपक्ष की बारंबार मांग पर की इसे सिलैक्ट कमेटी में विचार करने भेजा जाये , को सरकार ने ठुकरा दिया | इसे वित्त विधेयक की तरह नहीं वरन साधारण विधेयक की भांति पारित कराया था | जो की संसदीय नियमो के विपरीत था | लोकसभा में बीजेपी के नेत्रत्व वाले बहुमत ने "”””नियमो को तोड़ कर "”इस विधेयक को संकरी गली से पारित कर दिया था ! राज्य सभा में भी बहुमत नहीं होते हुए सरकारी पार्टी ने "””तिकड़म :: लगा कर वनहा से पारित कराया ! आखिर क्यू इतनी जल्दबाज़ी ? बाद में यह तथ्य सामने आया की गौतम अदानी की कंपनियो को अधिकार और सुविधा देने के लिए ही यह सब प्रपंच सरकार ने किया , क्यूंकी मोदी जी की और अदानी जी के गहरे संबंधो की जानकारी समस्त देश को हैं | मोदी समर्थक इसे देश के लिए वरदान मानते हैं जबकि मोदी विरोधी इसे सत्तारूद दल की दुधारु गाय मानते हैं |

3----- इसीलिए जब हरियाणा में किसानो को इस विध्यक की शक्तियों के बारे में बताया गया , तब किसान चेते | उन्होने जमीन जाने के भय से इस कानून का विरोध करना शुरू किया | बड़ी संख्या में पंजाब - हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानो ने भारतीय किसान यूनियन सहित तेरह से भी ज्यादा किसान संगठनो ने दिल्ली में डेरा डाला | उसके बाद उनकी जद्दोजहद चलती रही ----और साल भर से कुछ कम दिनो तक तक यह आंदोलन चला | तब प्रधान मंत्री जी को किसान आंदोलन की सुध आई | इस दौरान 700 से अधिक इंसान अपने घरो से दूर अंतिम साँस लेने पर मजबूर हुए | इस दौरान मोदी जी के शोक संदेश सैकड़ो लोगो की प्र्क्रतिक मौत पर शोक संदेश भेजते रहे , परंतु इन किसानो की मौत पर केंद्र सरकार अथवा उसके मंत्रियो ने शोक व्यक्त करने की ज़हमत नहीं उठाई | फिर कौन सी ऐसी घटना घाटी जिसने सीधे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्र के नाम माफीनामा देना पड़ा ! परंतु न तो किसान और ना ही जनता समझ पायी की इतना बड़ा "”अबाउट टर्न "” किस कारण हुआ ?? यह कहना की मोदी जी सदाशयता हैं ? जो की उनके व्यक्तित्व से नहीं झलकती | फिर लोगो को समझ में आया की उप चुनावो में बीजेपी की पराजय और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनावो के मद्दे नज़र ही यह फैसले हैं ! पेट्रोल की कीमतों में कमी – और खेती से जुड़े "”तीनों कानून "” को वापस लिया गया हैं | इसलिए यह वक़्त की मांग ही थी जिसने मोदी जी को झुकने पर मजबूर कर दिया |

4----- किसानो की मांग के बाद ताबड़तोड़ तरीके से श्रम कानूनों में संशोधन अथवा यह कहे की प्रस्तावित विधेयक काम की घंटे में व्रधी – नौकरी पर रखने और निकालने की मालिक को "””अबाध"” शक्ति देना एवं मुआवजा निर्धारण के आधार में नियोक्ता को खुली छूट देना आदि | मोदी जी और उनकी पार्टी को अब यह एहसास हो गया की साड़े सात साल में उनकी "” तोडफोड की और दल बादल की राजनीति से ज्यदा लोक कल्याण करना होता हैं | परंतु अम्रीका के विवादास्पद राष्ट्रपति ट्रम्प की भांति , इनके समर्थक भी रिटायर अफसर और बेरोजगार युवक ही हैं | जिनहे राजनीति के नाम पर या तो हिन्दू और मुसलमान का विवाद करना और मुसलमानो को नफरत का शिकार करना | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जो 32 संगठनो की आत्मा हैं , जिसमें भारतीय जनता पार्टी भी एक हैं । जो विगत के इतिहास से टुकड़े - टुकड़े में निकाल कर उन्हे अपनी तरह से "””परिभाषित "” करते हैं | और मूल उद्देश्य होता है देश की वर्तमान समस्याओ से जनता का ध्यान भटकाना |

5--- उपरोक्त कारणो से आंदोलनकारी किसान अभी भी दिल्ली मे जमे रहेंगे ,ऐसी उम्मीद हैं | यह भी सुना जा रहा हैं की श्रमिक यूनियन से हाथ मिलकर किसान आंदोलन अब आम आदमी की समस्याओ के हल निकालने की कोशिस कर सकते हैं |

जिस प्रकार मोदी जी ने पेट्रोल की कीमतों में कमी की फिर सरकार केआर रिजेर्व कोटा से तेल निकाल कर बाजार में डालने की भी घोसना की हैं | उससे यह पक्का हो चला हैं की विधान सभा चुनावो की घंटी सत्तारूद दल को परेशान किए हैं | लेकिन केंद्र सरकार को "”लोक कल्याण "” के लिए अभी कई फैसले लेने होंगे अन्यथा मोदी जी की कुर्सी भी हिल सकती हैं |

Nov 23, 2021

 

कानूनों के वापस का बयान - संसद से निरस्त होने तक भरोसा नहीं

साल भर चले अहिंसक किसान आंदोलन को मोर्चा तब तक नहीं स्वीकार करेगा ,जब तक उन्हे संसद द्वरा निरस्त नहीं किया जाता | एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य 32 फसलों का कानून के रूप में नहीं बनता ! इस दौरान मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक का कथन स्थिति को स्पष्ट कर देता हैं , की सिख और जाट जल्दी नहीं भूलते | वे अकेले पदासीन नेता हैं जिंका बीजेपी से कोई संबंध नहीं हैं | फिर भी मोदी जी उनके कटु वचनो से नाराज़ हो कर इस्तीफा नहीं लेते ? वे दो - तीन महीनो से सरकार को सलाह दे रहे थे की किसान आंदोलन पर बल प्रयोग करना "”अत्यंत घातक होगा और निराश हो कर वे वापस नहीं जाएंगे अतः उन्हे संतुष्ट कर के ही वापस करना होगा ! “” जिस प्रकार राज्यपाल के पद पर होते हुए मलिक सरकार विरोधी और किसान समर्थक बयान दे रहे हैं ----- वह शंका व्यक्त करता हैं ,की मोदी जी नरम हो गए हैं | वरना पहले एक राज्यपाल को जो संघ के ही थे उन्हे पद की मर्यादा के वीरुध बयान देने पर पद छोडना पड़ा था | उन्होने भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात काही थी |

सतपाल मलिक ने इन्दिरा गांधी के बारे में कहा की उन्होने अकाल तख़त पर फौजी कारवाई की थी ,तब उन्हे अरुण नेहरू ने बताया था की इन्दिरा जी को एहसासा था की सिख उनकी हत्या कर देंगे | जो फलित हुआ | इसलिए अगर मोदी जी कुछ वैसा ही करेंगे तो परिणाम भयंकर हो सकता हैं | उनकी बात में दम है क्यूंकी दिल्ली के द्वार पर साल भर के धरने के दौरान बल प्रयोग नहीं किया | इसलिए यह कहना की मोदी जी ने उदारता वश कोई बल प्रयोग नहीं किया ,कहना सही और उचित नहीं होगा | अहिंसक आंदोलन पर बल प्रयोग छुब्ध लोगो को हिंसा करने पर प्रेरित कर सकता था | मोदी भक्तो का यह कहना की सरकार साम -दाम - दंड और भेद से आंदोलन को असफल कर सकती हैं , सही नहीं हैं | मोदी सरकार ने आंदोलन में फूट डालने की समय - समय पर कोशिस की ,जिसका एक उदाहरण लालकिले की घटना हैं | जिसे आन्दोलंकारियों की कारस्तानी बताया गया था |


कहावत है की जाट मरा जब जानिए जब तेरही हो जाये , उसी तर्ज़ पर जाट जब तक यह नहीं निश्चित कर लेता है की काले कानून वापस निरस्त नहीं हो जाते उसे प्रधान मंत्री का बयान "””जुमला "” भर लगता हैं ||भले ही मोदी भक्त और गोदी मीडिया इसे मास्टर स्ट्रोक बताए की मोदी जी ने विपक्ष से चुनावी मुद्दा चीन लिया हैं | परंतु सिख और जाटो के नेत्रत्व में किसानो की इस लड़ाई ने सरकार को हिला दिया हैं | वास्तव में लखीमपुर खीरी की घटना ने योगी सरकार और मोदी जी की बैक फूट पर खड़ा कर दिया हैं |

कंगना राणावत और सुधीर चौधरी तथा अंजना ओम कश्यप जैसे प्रस्तोता इस आंदोलन को विदेशी साजिश बताते हैं | उनके अनुसार जब क्रशि के तीनों कानुन अदालत द्वरा स्थगित किए गए हैं तब उनके प्रभाव का आंकलन कैसे किया गया ? उनके अनुसार कानूनों की वापसी के बाद न्यूनतम मूल्य का कानून तथा उसके बाद नागरिकता कानून को भी वापस लेने की मांग उठेगी | बीजेपी नेता अभी भी सार्वजनिक बयानो में कह रहे हैं की "””कानुन का क्या दुबारा फिर ले आएंगे चुनावो के बाद " “ राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा ने भी कहा हैं की बाद मे { चुनाव के बाद } फिर कानून को लाया जा सकता हैं | इन बयानो के चलते किसान नेता टिकैत ने लखनऊ की पंचायत में कहा की "””अब लगता हैं की मोदी जी का बयान , कोई प्लॉट हैं | बिना वार्ता के जिस प्रकार एक तरफा बयान आया हैं , वह या तो बीजेपी की चुनावो में पराजय के डर से आया हैं | इसलिए वे इस बयान से अपनी संभावित हार से बचना चाहते हैं |

लखीमपुर खीरी कांड में जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी पुलिस के प्रति शंका व्यक्त की है और सीबीआई को जांच देने से इंकार किया , उससे भी जन मानस में पुलिस के खूंखार और एक तरफा जांच की ही पुष्टि होती हैं | कानपुर के व्यापारी की गोरखपुर में जिस प्रकार पुलिस ने हत्या की हैं , उस मुकदमें को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में सुने जाने का आदेश दिया हैं | खीरी कांड की जांच पहले ही हाइ कोर्ट के अवकाश प्रापत जज द्वरा जांच करने के निर्देश दिये हैं | यह जज हरियाणा के हैं |

अदालत के फैसलो को बीजेपी और उनकी सरकारे राजनीति प्रेरित नहीं कह सकती हैं | जब जनता के मन में सरकार की ईमानदारी और निसपक्षता पर विश्वास नहीं हो तब सरकारे भी "”हिलने लगती हैं "” | मीडिया में मोदी भक्तो द्वरा काले कानूनों को वापस लिए जाने के प्रधान मंत्री के बयान को "””उनकी सदाशयता और उदारता बताए जाने को "”” आम आदमी विश्वास नहीं करता | जिस प्रकार बंगाल चुनावो के पहले पेट्रोल डीजल के दाम बदने से रुक गए थे , उसी प्रकार उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले इस बयान को भी भरोसे लायक नहीं मान रहे हैं |

जनता का कहना हैं की पहले मोदी सरकार कहती थी की पेत्र्ल और डीजल के दाम घटाना उसके अधिकार में नहीं हैं | फिर हिमाचल और उप चुनावो में मिली पराजय के बाद एक दम से सरकार द्वरा उनको कम करना सरकार के पाखंड को उजागर करता हैं |

दरअसल इस बार हालत के लिए पुरानी सरकारो पर दोष नहीं लगा सकते ,क्यूंकी घटनाए मोदी जी के समय में हुई हैं | वैसे मोदी द्वरा कानूनों को वापस लेने से उनके कट्टर भक्तो में बड़ी हताशा हैं | उनके मन की मूरत में तो नरेंद्र मओडी "”सर्वशक्तिमान " के रूप में बिराजते हैं , फिर वे कुछ देश द्रोहीयों के सामने आतम समर्पण कैसे कर सकते हैं | अनेक भगवा धारी स्त्री - पुरुषो ने तो इस बयान पर बड़ी व्यथा व्यक्त की हैं |


Nov 20, 2021

 

एक अहिंसक आंदोलन ने एक प्रधान मंत्री को घुटने पर बैठा दिया




साल में सात दिन कम लगे - पर केंदीय सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी को दूसरी बार "अपना" फैसला बदलने पर मजबूर किया ! जिन मोदी जी ने साल भर चले किसान आंदोलन को "परजीवी" और कुछ स्वार्थी और राजनीतिक तथा देशद्रोही ताकतों द्वरा प्रेरित ,संसद में कहा था , उनही ताकतों की मांगो को स्वीकार करने पर मजबूर होना पड़ा ! आखिर क्यू , जवाब हैं जिन दो औद्यगिक घरानो के अंधाधुंद लाभ के लिए मोदी जी ने करोड़ो किसानो के हितो की अनदेखी की थी , वे किसान अब विधान सभा चुनावो में उनकी पार्टी को पराजय दिलाने की शक्ति बन गए थे ! यह फैसला क्र्षी सुधार के नाम पर थैलिशाहो के लिए था | साल भर में किसानो ने पंचायते कर के इसका खुलासा किया तब देश के अनेक प्रांतो में किसान जाग उठा | दिल्ली में किसानो को रोकने के लिए जैसी "कीले गाड़ी गयी काँटेदार लगाए सड़क खोद कर दीवाल खड़ी की " पीने के पानी जिसे दिल्ली की केजरीवाल भेज रही थी उसे रोका गया | इन सब मुसीबतों सहते हुए किसानो ने तीनों मौसम की मार खाते हुए लगभग 700 साथियो की शहादत दी तब उनकी मांग मानी गयी | पर किसान नेता टिकैत ने कहा की हम कहने मात्र से "” अपने घरो को नहीं लौटने वाले , जब तक यह तीनों कानून संसद द्वरा निलंबित या खारिज नहीं किए जाते और फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य का कानून नहीं बनता तब तक आंदोलन जारी रहेगा |यानि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का ब्यान उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता हैं | प्रधान मंत्री के कथन को अविसवासनीय मानने का कारण भी हैं | विगत में उन्होने चुनावो में जो जो वादे किए वे जमीन पर कभी नहीं पूरे हुए ,हाँ विज्ञापनो में उनका दावा किया जाता रहा |

2- प्रधान मंत्री की माफी और तपस्या में कमी बनाम 700 किसानो की मौत तथा साल भर तक सड़क पर धरना देते सर्दी -बारिश और गर्मी सहते किसानो का दर्द !

आंदोलन के दौरान किसानो के लंगर और उनके निवास की सुविधाओ को लेकर संघ और बीजेपी के केंद्रीय और राज्यो के मंत्री तथा छुटभैये नेता जिस प्रकार के अपमानित लांछन लगाते थे और उनकी सह्यता के लिए आतंकियो के पैसे के इस्तेमाल का आरोप लगते थे __ क्या आज वे अपना चेहरा दिखयेंगे ? संघ और बीजेपी के लोग सरकार के संरक्षण में जिस प्रकार भीड़ बना कर "सावरकर के समर्थन में और वियक्षी डालो के वीरुध दो घंटे का जुलूस निकलते थे उसे वे जन समर्थन कहते थे "” |

पर उत्तर प्रदेश में हाल में हुई अमित शाह और नरेंद्र मोदी की सभाओ में करोड़ो रुपये खर्च कर बसो से भीड़ जुटाई गयी , उसके मुक़ाबले समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की रथ यात्रा में उमड़े जन सैलाब ने इनको जमीनी हक़ीक़त बता दी | उदाहा काँग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने महिला श्सक्तिकरण की मुहिम में चालीस फीसदी सीट महिलाओ के ऐलान ने महिलाओ को एक नेत्रत्व दिया | एवं लखीमपुर खीरी कांड में उनकी पहल ने भी किसानो औए जन सामान्य में उनकी पैठ बनाई हैं |

इन विपक्षी नेताओ की सभा और रैलियो में जो जन सैलाब उमड़ा वह स्व स्फूर्त था | बसो लाया गया नहीं ! बस यही एक तथ्य हैं जिसने पार्टी और उसकी सरकार की जनता में गायब होती छवि का मूल्यांकन कर दिया था | जिससे घबराकर पार्टी अध्याकाश जे पी नड़ड़ा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा अमित शाह को बूथ इंचार्जों का जिम्मा दिया हैं ! अब चुनाव में इस क़द के लोग दौरा और सभाए करते हैं | पर ऐसे जिम्मेदार नहीं बनये जाते हैं | बहुत हुआ तो उन्हे चेतत्र विशेस की ज़िम्मेदारी होती हैं |

परंतु जिस प्रकार यह दायित्व दिया गया हैं ,वह बीजेपी नेताओ के भयभीत होने का प्रमाण हैं |

3- विदेशो में मोदी सरकार की बदनामी और किसानो के समर्थन में होते आंदोलन और निकलते जुलूस

साल भर चले इस किसान आंदोलन को न केवल देश में वरन ब्रिटेन -कनाडा - अमेरिका - न्यूजीलैंड - आयर लैंड में निकालने वाली रैलियो से भारत सरकार और गगग्न विहारी प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की छवि पर बदनुमा दाग बन रही थी | मोदी समर्थको द्वरा प्रायोजित लोग भी धीरे धीरे उत्साह खो रहे थे | विदेशो में आपको आंदोलन या जुलूस के उद्देश्यों और कारणो में आस्था होना

जरूरी है | जो मोदी के गुजरती समर्थक ,जो अधिकतर व्यापारी है , उन्हे पैसा लगाकर धूमधाम करना तो आता हैं पर वे किसानी के बारे में कोई जानकारी नहीं होने से विदेसी लोगो को अपने मोदी समर्थन का कारण नहि बता पा रहे थे |

दूसरा विदेशी मीडिया लगातार इस आंदोलन के लगातार चलने और इसमें शामिल लिसानों के रहने - और खाने के बंदोबस्त को लेकर चकित था | सबसे आधी वे लगातार चल रहे आंदोलन में महिलाओ और बच्चो की सहभागिता से भी चकित थे | वे इन सब बातों को लगातार अपनी बुलेटिन और अखबार में स्थान दे रहे थे |

इतना ही नहीं ब्रिटिश हाउस ऑफ कोममन्स हो या कनाडा की संसद अथवा अमेरिकी काँग्रेस में भी किसान आंदोलन की गूंज उठी | वे सर्वाधिक प्रभावइत थे की साल भर चले इस आंदोलन का रूप पूरी तरह अहिंसक रहा | इससे भी प्रधान मंत्री चिंतित थे |

4- मोदी के कुछ परम भक्तो ने प्रधान मंत्री के इस फैसले को लोकतन्त्र की परिपक्वता बताया है ! हमेशा से इन "”परम"” लोगो का काम रहा हैं की "”” पहले ऐसा हुआ था तो अब हुआ तो क्या हुआ "” वे अभी भी इसी बात की रट लगाए हैं की ये कानून जमीन पर आए ही नहीं तब कैसे इनके बारे सही स्थिति पता चल सकती हैं | वैसे इन परम भक्तो यह नहीं मालूम की "”” सात सालो में यह दूसरा अवसर हैं जब मोदी सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा "” पहला मौका था जब सरकार "”भूमि अधिग्रहण कानून "” के वर्तमान मुआवजा के नियम बदलना चाहता था , क्यूंकी उनके औद्योगिक दोस्तो को किसानो की जमीन का मुआवजा बहुत ज्यादा देना पड़ता था | परंतु इस कानून का विरोध बीजेपी के अंदर ही होने लगा | क्यूंकी सभी के इलाके में किसानो की बहुलता थी \ और इस बदलाव से किसान की रोजी -जमीन भी जाती और उसे ठीक मुआवजा भी नहीं मिलता | परिणाम स्वरोप वे चुनाव में पराजित होते | इसी भय से सरकार ने उसे वापस लिया | इस बार फिर वही स्थिति हैं ----पर एक मजबूत तरीके से | दूसरे उत्तर परदेश में पराजय का मतलब मोदी की गद्दी का खिसकाना |

एक परम भक्त ने किसान आंदोलन की तुलना 2011 के अन्न के आंदोलन से करते हुए "” विश्वास जताया की उस आंदोलन को भी सरकार ने कुचला था \मोदी चाहते तो किसान आन्दोलन को भी कुचल सकते थे | उन्हे अन्ना आंदोलन के कारणो का ज्ञान नहीं हैं | अन्ना हजारे का आंदोलन सरकार में व्याप्त भ्रस्ताचार को मिटाने को लेकर था | और उनकी मांग थी एक ऐसा "””लोकपाल "” होना चाहिए जो सिर्फ जनता के प्रत जवाबदेह हो |पारा उसका चुनाव कैसे हो और उसके अधिकार क्या हो इसको लेकर कोई निश्चित रॉय नहीं थी | अब इस संविधान से इतर मांग को कोई भी सरकार कैसे पूरा कर सकती हैं ? दूसरा उनका आरोप है की इस आंदोलन में सरकार ने रामलीला मैदान में पुलिस एक्शन लेकर बाबा रामदेव को स्त्री के कपड़े पहन कर भागना पड़ा | इसे वे सरकार की हिंसा बताते हैं |

उनका विश्वास है की मोदी जी चाहते तो "”साम - दाम - दंड - भेद से आंदोलन को खतम करा सकते थे ! तब क्या मोदी सरकार ने ऐसा प्रयास किया नहीं ? कितनी ही बार चोरी छुपे लोगो को धन का लालच देकर तोड़ने की कोशिस की | लेकिन जिस व्यक्ति के साथ यह प्रयास किया गया उसने मंच से अपनी बीटी सबको बताई | दंड की कोशिस कई बार हुई ,पर दंड के लिए किसान सामूहिक रूप से तैयार बैठे थे | उनका कहना था की "””या तो कानून वापस होगा या हमारी लाश घर जाएगी " क्यूंकी जमीन के बिना तो किसान वैसे ही मारा हुआ समझो | दूसरा जिन सेना के जवानो के नाम और कुर्बानी पर मोदी जी वोट कबाड्ते थे वे भी किसानो के साथ कंधा से कंधा मिलकर खड़े थे | मोदी जी ने 90% मीडिया को किसान आंदोलन की हक़ीक़त दिखने से ना केवल मना कर दिया था ,वरन उनको बदनाम करने के लिए बीजेपी की आईटी सेल नाते नए बयान अपने नेताओ को सुलभ कराती थी , जिसे " गोदी मीडिया '’’ नमक मिर्च लगा कर दिखाता था | चार - पाँच एकर तो विख्यात हो गए थे "””मोदी के सिपहसालार "” | तो मिश्रा जी को यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए की मोदी सर्वशक्तिमान हैं , वे झुक नहीं सकते | यह तो उनकी बड़ाप्पन हैं की अपनी अधूरी तपस्या की माफी मांग रहे हैं | वैसे उनके यानहा तो माफी मांगने वालो को भी वीर कहते हैं |




Nov 10, 2021

 

सच क्यू नहीं स्वीकार करते सरकार ? मौत तो मौत होती हैं !

प्रदेश की राजधानी के प्रमुख अस्पताल हमीदिया अस्पताल के शिशु वार्ड में लगी आग से असमय काल -कवलित हुए माँ के लालों का दुख उनकी जननी और जनक के लिए तो असह्य ही हैं | अब सरकार यही कहे की चार बच्चे अग्निकांड का शिकार हुए ,-- अथवा पीड़ितो के अनुसार दस अथवा चौदह ,की गिनती अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही और सरकार की "”अनदेखी "” का ही तो परिणाम हैं | यू तो मुख्य मंत्री और स्वास्थ्य शिक्षा मंत्री अस्पताल अक्सर ही जाते -रहते हैं , परंतु बस मीडिया के लिए खबर बनाने के लिए | अगर कभी वनहा की साफ -सफाई , दवा और मेडिकल सुविधाओ की जांच करते तब उन्हे वार्डो में लटकते बिजली के तार और मेडिकल यंत्रो की खराब हालत के बारे में जानकारी होती | इसके उलट अधीक्षक या डीन पद अथवा वनहा के अध्यापको की नियुक्ति की राज नीति में "””मेरा और तेरा'’’ ही करते रहे | ऑक्सीज़न प्लांट लगा तो उसका श्रेय लेने के लिए अखबारो में सरकार का जनसम्पर्क विभाग से फोटो छपवाने का ही उद्देश्य रहता हैं |

यह पहली बार नहीं हैं , कोरोना महामारी के दौरान जब तड़ातड़ मौते हो रही थी , और शमशान घाटो में शवो को जलाने की संख्या तथा कब्रिस्तान में दफनाये जाने वाली लाशों का बाकायदा रेकॉर्ड होने के बावजूद भी राज्य सरकार उनकी "”गिनती"” को असत्य बता रही थी !! अब अगर इन स्थानो के दस्तावेज़ो को कानून की मान्यता है तब सरकार कैसे कह सकती है की यह आंकड़े सती नहीं हैं | हाँ सरकार ने एक "” फरमान जरूर जारी किया था की अस्पताल रोगियो की मौत के दस्तावेज़ में म्र्त्यु का कारण कोरोना नहीं लिखा जाये ! इस आदेश को क्या कहेंगे की सरकार मौतों को छुपाने के लिए प्रयास कर रही हैं !! आखिर इस कवायद से सरकार क्या दिखाना चाहती हैं ? जिनके परिजन बीमारी में खो गए उन बच्चो और सम्बन्धियो को कोई राहत मिलेगी ? अब मरने वालो की लिस्ट में उन लोगो के नाम हो अथवा नहीं हो , इससे कोई अंतर उन हजारो प्र्भवितों को नहीं पड़ता | हाँ एक करोड़ लोगो को कोरोना की एक डोज़ लगी या दोनों डोज़ लगी यह प्रचार भी अतिरंजित रूप से किया जा रहा हैं | यानहा तक की "”रेकॉर्ड बनाने के लिए टीका करण की संख्या भी घटाई - और बड़ाई जाती रही | अब इससे नेता जी भले हुंकार भरकर संख्या बताए ,पर उससे कोई फर्क आम जनता को नहीं पड़ता , सिवाय अंधभक्तों के लिय जो पान की दुकान और चाय की तपरो और अन्य जघो पर इस संख्या को "””राजनीतिक उपलब्धि "”” बताते फिर रहे हैं |

इस देश में बड़ी - बड़ी दुर्घटनाए और महामारिया आई और चली गयी , उनका इतिहास बस मौतों की संख्या बन कर रहा जाता हैं | पर जिस समय यह घटनाए अथवा आपदाये घटती है उस समय सरकार और शासन का रुख जनता के और भुक्तभोगियों के प्रति कैसा रहा यह लोगो की यादों में बस जाता हैं | इसलिए सरकार अपना "” आज "” ठीक करने के लिए सच न बताए परंतु निश्चित ही वह अपना भविष्य तो खराब ही कर रही है |