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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 25, 2020

 

राज्यपालों और पुलिस की कारवाई से उभरता --मोदी सरकार का पाखंड !


गयी 24 दिसंबर को देश की राजधानी में तीन आंदोलन हुए , पर तीनों में पुलिस प्रशासन का व्यवहार ---शक्ल देख कर हुआ | एक ओर दिल्ली की सीमाओ पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान तथा पंजाब और हरियाणा के हजारो किसान के धरणे का 28 व दिन था | वनहा पुलिस अपनी कम संख्या को देख कर "”मूक दर्शक "” बनी रही | वनही किसानो की मांगो के समर्थन में देश भर से एक करोड़ हस्ताक्षर की याचिका देने जा रहे काँग्रेस कार्यकर्ताओ को ना केवल रोका , वरन उन्हे गिरफ्तार भी किया |क्योंकि शायद उन्हे अंदाज़ था की वे अपनी ताक़त से इन लोगो को काबू कर लेंगे | हुआ भी यही , केवल कोङ्गेस्स नेता राहुल गांधी और उनके दो अन्य साथियो को राष्ट्रपति भवन जाने दिया ! तीसरी घटना वनहा से कुह दूर पर बीजेपी सदस्यो द्वरा दिल्ली जल संस्थान पर किया जा रहा आंदोलन था | शायद उपरोक्त दोनों आंदोलनो के मुक़ाबले इन बीजेपी समर्थको की संख्या सबसे कम थी | परंतु इन मोदी - शाह समर्थको ने ना केवल सरकारी भवन के बाहर प्रदर्शन किया वरन तोड़ - फोड़ भी की | अध्यक्ष राघव चढ़ा को गलिया देते हुए कार्यालय के फाटक पर भी चढ गए | जनहा राष्ट्रपति को जन याचिका देने जा रहे लोगो गिरफ्तार किया गया ,जबकि उन्होने कोई हिंसात्मक कारवाई नहीं की थी | उसके मुक़ाबले दिल्ली जल संस्थान के कार्यालय पर प्रदर्शन कर तोड़ - फोड़ करने वाली भीड़ का कोई सदस्य गिरफ्तार नहीं हुआ | योगी आदित्यनाथ का इलाका होता तो बीजेपी वालो से नुकसान की भरपाई का नोटिस पहुँच जाता ! क्या वाकई ऐसा होता ? शायद नहीं , क्योंकि आंदोलनकारी तो उनही के बंदे -चेले हैं !

इसका उदाहरण हैं मुजफ्फरनगर के हिन्दू - मुस्लिम दंगे ! इन दंगो को भड़काने का आरोप तीन बीजेपी विधायकों - सुरेश राणा और संगीत सोम तथा कपिलदेव अगरवाल के खिलाफ अदालत की चार्जशीट में था | इनके अलावा "कट्टर हिंदुवादी महिला साध्वी प्राची पर भी था " | घटना के सात साल बाद जब प्रतीत होने लगा की इन बीजेपी रन बांकुरों की भूमिका के लिए अदालत कनही सज़ा ना दे दे , तब उत्तर प्रदेश सरकार ने इन महानुभावों के खिलाफ मुकदमें वापस लेने की अर्ज़ी लगा दी !!! हैं ना भगवा धारी योगी नामधारी मुख्य मंत्री का अज़ाब न्याय ? इस नर संहार की कहानी कुछ यूं हैं की सितंबर 2013 को जिले के नगला मंदौर गाव में हिन्दू जातियो की महा पंचायत या कनहे "”बड़ी खाप "” की बैठक हुई | उसमें तीनों बीजेपी विधायकों और साध्वी नामधारी प्राची ने मुयलमानों के खिलाफ लोगो भड़काया | यानहा तक कहा गया की मुसलमान इलाके में गाय काटते हैं | परिणाम स्वरूप एक भीड़ ने दर्जनो गावों में मुसलमानो की हत्या की और उनकी बहू बेटियो को बेइज़्ज़त किया | दो दिन तक चले इस नर संहार में 65 लोग मारे गए | लगभ्गा 40 हज़ार से ज्यादा लोग अपने घर छोड़ कर भागने पर मजबूर हो गए | इस मामले में पुलिस ने 510 मामले दर्ज़ किए | जिसमें सात साल बाद भी मात्र 175 मामलो में ही चार्ज शीट अदालत में दाखिल हो पायी !! अब सात साल बाद भी इस दंगे के अपराधियो को सज़ा अथवा पीड़ितो को न्याय मिलने की जगह सत्ता का इस्तेमाल कर आरोपियों को निर्दोष साबित करने की कोशिश हो रही हैं !!! योगी - मोदी एवं शाह का यह है न्याय या कनहे सरकारी पाखंड ? उधर बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने योगी सरकार के इस फैसले के मद्दे नज़र मांग की हैं की "”जब राजनीतिक विद्वेष से बीजेपी नेताओ के प्रति दायर मुकदमें सरकार वापस ले रही हैं , तब अन्य राजनीतिक दलो के नेताओ और कार्यकर्ताओ के वीरुध दायर मुकदमे भी वापस ल्ये जाने चाहिए "” | अब इस मांग से योगी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता | क्योंकि वे बीजेपी विध्यकों के खिलाफ मुकदमें सुशासन या न्याय के लिए वापस नहीं ले रहे हैं , वरन कट्टर वादी हिन्दू सोच के कारण ऐसा कर रहे हैं | जो भले ही न्याय ना हो परंतु भगवा धारी योगी जी के लिए "”””राजनीतिक रूप से सही लगता हैं !!!” |

अगर बंगाल में नड्डा और कैलाश विजय वर्गीय की गाड़ी पर एक पत्थर पड़ जाये ----- तो बंगाल सरकार का प्रशासन "”पंगु "” हैं , राष्ट्रपति शासन लगना चाहिए , तब उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर तो योगी को बर्खास्त कर देना चाहिए | पर ऐसा न्याय होगा नहीं --क्योकि केंद्र सरकार का पाखंड उजागर हैं !


अब मोदी राज में राज्यपालों की भूमिका पर नज़र डाले तो पाएंगे की केंद्र सरकार के ये कारिंदे अपनी संवैधानिक मर्यादाओ को किनारे कर चुके हैं | इस कड़ी में पहला नाम मध्य प्रदेश के राज्यपाल स्वर्गीय लाल जी टंडन का हैं | जिनहोने तत्कालीन मुख्य मंत्री कमलनाथ के आग्रह के बावजूद की "”प्रदेश में कोरोना का खतरा हैं , ऐसे में विधान सभा का सत्र बुलाना उचित नहीं होगा | परंतु राज्यपाल ने उन्हे सप्ताह भर के अंदर विधान सभा बुला कर अपनी सरकार का बहुमत साबित करें | सत्र आहूत हुआ और कमलनाथ ने इस्तीफे की घोषणा की | उसके बाद शिव राज सिंह ने सरकार बनाई | दल बादल करने वाले काँग्रेस विध्यकों को इस्तीफा देना पड़ा | उप चुनाव हुए और बीजेपी को सदन में बहुमत हासिल हुआ |

वनही राजस्थान में जब मुख्य मंत्री अशोक गहलौट ने पाइलट के इस्तिफा देने के बाद , जब विधायकों को बीजेपी द्वरा दल बादल कराकर गहलौत सरकार को मध्य प्रदेश की तर्ज़ पर गिराना चाहते थे | तब गहलौत ने राज्यपाल कालराज मिश्रा को विधान सभा सत्र आहूत करने का आग्रह किया |जिससे की वे विधान सभा में अपनी सरकार का बहुमत साबित कर सके | तब राज्यपाल महोदय ने कोरोना संकट का तर्क देते हुए सत्र बुलाने से इंकार कर दिया | क्योंकि तब तक बीजेपी नेत्रत्व पर्याप्त संख्या में काँग्रेस विध्यकों को अपने पाले में लाने सफल नहीं हुआ था | दो बार मंत्रिमंडल के आग्रह को ठुकराने के बाद मुख्य मंत्री को राज भवन में धारणा देना पड़ा | मामला सुप्रीम कोर्ट गया जनहा यह फैसला हुआ की कोरों संबंधी नियमो का पालन करते हुए सत्र बुले जाए | मजबूर राज्यपाल कालराज मिश्रा को सत्र बुलाना पड़ा | यानि टंडन जी बीजेपी के लाभ के लिए विधान सभा आहूत की , जिससे की सरकार के बहुमत को पाखा जा सके | दूसरी ओर राजस्थान में राज्यपाल मुख्य मंत्री द्वरा बहुमत सिद्ध करने के लिए सदन बुलाना , चाहते थे तब राज्यपाल को कोरोना का भय था |

अब केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद खान विजयन सरकार द्वरा विधान सभा का सत्र आहूत करने की प्रार्थना ठुकरा चुके हैं | कारण --- राज्य सरकार केंद्र द्वरा लाये गए तीन क्र्शी कानूनों का विरोध करना चाहती हैं | परंतु राज्यपाल इसके लिए राजी नहीं | क्योंकि वे केंद्र के प्रतिनिधि जो हैं !! तीन राज्यपाल जो गैर बीजेपी सरकारो वाले राज्यो में नियुक्त ----उनमें से एक ने चुनी हुई सरकार को गिराने का बंदोबष्ट किया | दूसरे ने ऐसी ही असफल कोशिस की और तीसरे उन कानूनों का राज्य सरकार के विरोध का अवसर नहीं दे रहे है -------जिनके विरोध में देश के लाखो किसान आंदोलनरत हैं | राष्ट्रीय राजधानी इन किसानो द्वरा घेरी जा चुकी हैं | मोदी सरकार सात बार आंदोलनकारियों से बात कर चुकी हैं | बीजेपी ने इस आंदोलन पर अनेक आक्षेप लगाए हैं | संघ की ट्रोल टोली भी इन्हे राष्ट्र द्रोही - आतंकवादी - खालिस्तानी आदि अनेकों उपाधियों से नवाज़ चुकी हैं | परंतु छह माह का राशन पानी लेकर धरणे पर बैठे इन आंदलन करियों का कहना हैं की कानूनों के वापस होने तक वे यानही हैं , वे जाएंगे नहीं ! अब मोदी सरकार और उनके मंत्रियो के बयानो में बेचैनी और चिंता झलक रही हैं | केंद्र सरकार और बीजेपी सरकारो का पाखंड इन घटनाओ से उजागर हैं |||||||||

Dec 20, 2020

 

दिल्ली बिहार के चुनावो को बंगाल में दुहराते गृह मंत्री अमित शाह !!!!!



बंगाल में विधान सभा के चुनावो में बीजेपी ही नहीं वरन केंद्र सरकार भी ममता बनर्जी की त्रणमूल सरकार के खिलाफ चुनाव अभियान चला रही हैं ! जिस प्रकार बीजेपी अध्यक्ष की बुलेट प्रूफ कार पर एक पत्थर के लाग्ने से केंद्र और राज्यपाल ने सम्पूर्ण बंगाल की शांति व्यसथा पर सवालिया निशान लगते हुए बंगाल के मुख्य सचिव और डीजीपी को वापस बुला लिया हैः , उससे लगता हैं की मोदी और शाह को बंगाल के चुनावो को लेकर बड़ी चिंता हैं है ! क्योंकि साल की शुरुआत में दिल्ली क विधान सभा के चुनावो में जिस प्रकार केंद्रीय गृह मंत्री लाजपत नगर की सड्को में घर -घर समर्थन मांगने निकले थे , कुछ वैसी ही हताशा मिदनापुर और वीरभूमि के दौरो में दिखाई पड रही हैं | हालांकि चुनाव राजनीतिक दल लड़ते हैं ---- पर नरेंद्र मोदी के राज में केंद्रीय अमला और सरकार के साथ बीजेपी भी चुनाव मैदान में है ! इस अनीति का फल क्या होगा यह तो बंगाल के मतदाता ही बताएँगे | वैसे दिल्ली के चुनावो में भी सरकार और सत्ता धारी पार्टी चुनाव लड़ रही थी , तथा केंद्रीय चुनाव आयोग निर्वाचन नियमो की धज्जिया उड़ाए जाने पर मौन बैठा था ! दिल्ली के चुनावो में भी धरम को लेकर शाहीन बाग के धरणे को मुद्दा बना कर मुसलमानो के खिलाफ केंद्रीय मंत्री के नारे को भी अनदेखा कर दिया था | लेफ्टिनेंट गवर्नर को भी दिल्ली की केजरीवाल की सरकार को परेशान करने की सारी कोशीशे की गयी थी -----परंतु परिणाम सत्ता धारी पार्टी और केंद्रीय सरकार को निराश करने वाले ही रहे ! इसी प्रकार बिहार में भी अपने सहयोगी दल नितीश कुमार के जेडीयू को खतम करने के लिए चिराग पासवान के सहारे की जरूरत पड़ी | परंतु फिर भी तेजस्वी यादव की आर जे डी को नुकसान पाहुचने में ज्यड़ा सफल नहीं हुए | लाख कोशिसों के बावजूद भी बीजेपी को मिली जुली सरकार बनाने पर मजबूर होना पड़ा |

अब अमित शाह वही पुराने नारे दुहरा रहे हैं की बंगाल में विकास रुक गया हैं ---बीजेपी शासित राज्यो में विकास हुआ हैं आपने सभी को पार्टियो को सरकार बनाने का मौका दिया हैं 5 साल हमे भी दीजिये ! वैसे देश ऐसे ही वादे को भुगत रहा हैं की एक मौका हमे भी दीजिये | अब तो लगता हैं की चुनाव अगर ये पराजित हो गए तो कनही मोदी जी के दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प की भांति गद्दी छोडने से ही इंकार कर दे और भक्त जन देश में मार्शल ला लगाने की मांग करने लंगे | ,लाक डाउन के बाद बीजे शासित उत्तर परदेश और बिहार के निवासियों को जो अनुभव देश की जनता ने देखे वे अमित शाह के दावो को झूठा सिद्ध करते हैं | विरोधियो को राष्ट्र द्रोही और खुद को जनता का पालन हार मानने वाले मोदी और शाह ने :-

1- देश को नोटबंदी में बांध दिया , फल स्वरूप घरेलू बचत से चलने वाले बाजार की अर्थ व्यसथा को बर्बाद कर दिया | वादा किया था की इस कदम से काला धन बाहर आएगा ----परंतु मोदी जी सनक ने भांति - भांति के रंगो के नए नोट छ्प्वा कर ,गैर जरूरी खर्चा सरकार पर लाड़ दिया | पर न काला धन बाहर आया और नाही आतंकवादी गतिविधिया रुकी | जैसे चुनाव के पहले स्विट्जरलैंड के बैंको से काला धन लाकर सभी देश वासियो को 15 लाख देने का चुनावी वादा किया था , वैसे ही नोटबंदी झूठी साबित हुई | बाद में अमित शाह ने इसे "””जुमलेबाजी"” कहा था !

2 --जीएसटी लगा कर एक ओर राज्य सरकारो के बिक्री कर कराधान के अधिकार को अपने हाथ में ले लिया , बदले में राज्य सरकारो को मुआवजा देने वादा किया | परंतु वित्त मंत्री निर्मला सितारामन ने जीएसटी वसूली में कमी होने के कारण राज्यो को मुआवजे की राशि के बराबर रिजर्व बैंक से क़र्ज़ लेने पर मजबूर किया ! यानहा भी मोदी और शाह झुठे निकले | छोटे व्यापारियो को कागजी कारवाई में उलझा कर व्यापार को और कठिन बना दिया |

3-- प्रशासन का राजनीतिकरण ---- का आरोप लगाते हुए अमित शह के मन्त्र्लया ने बंगाल काडर के तीन अफसरो को राज्य सरकार की सहमति के बिना वापस बुला लिया | अपने राजनीतिक विरोधियो के खिलाफ इन्कम टैक्स के एंफोर्समेंट विंग द्वरा छापे मरवाना -जैसे कर्नाटक में काँग्रेस के नेय शिव कुआर के यानहा | बिहार चुनावो के पहले अभिनेता सुशांत द्वरा आतम हत्या किए जाने की घटना में सुप्रीम कोर्ट द्वरा महाराष्ट्र सरकार की असहमति के बावजुद सीबीआई और एनसीबी से जांच करवाना , जिससे की ठाकरे सरकार को बदनाम कर गिराया जा सके , जैसा मध्यप्रदेश में किया | किसान आंदोलन के चलते ईडी ने पंजाब के मुख्य मंत्री के सुपुत्र पर छापा मारा | अब किसान आंदोलन को समर्थन देने वाले आदतियों को छापे की मार झेलनी पद रही हैं |

4---- अमित शाह ने ममता बनेरजी पर राजनीति का अप्राधिकारण का आरोप लगाया हैं | परंतु उन्हे उत्तर प्रदेश में बांगर मऊ के बीजेपी विधायक द्वरा अनुसूचित जाती की युवती से बलात्कार किए जाने और उसकी कार को ट्रक से दुर्घटना करवाने को भूल गए ! सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में बलात्कार की गयी युवती को न्याया नहीं मिलने की संभावना पर ही इस मामले की सुनवाई दिल्ली में करने का आदेश दिया | शाहजहान्न्पुर के पूर्व बीजेपी सांसद और भूतपूव मंत्री पर भी बलात्कार का आरोप लगा ! बिहार में महिला सुरक्षा गृह में दर्जनो संवासनियों के गर्भवती होते और गायब कर दिये जाने की आरोपी महिला मंत्री को फिर नितीश मंत्रिमंडल में स्थान मिलना < क्या यह राजनीति का अपराधी कारण नहीं हैं ?

5 ----- शाह ने आरोप लगाया की ममता दीदी ने भ्रस्ताचर को संस्थागत रूप दे दिया हैं ! इस संदर्भ में मध्य परदेश में कमलनाथ की सरकार को गिराने के लिए विधायकों की जो खरीद -फरोख्त हुई "”वह उनका ह्रदय परिवर्तन था "” अथवा बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय का बयान -जिसमें उन्होने कहा था की कमलनाथ की सरकार को मोदी जी ने गिराने का आदेश दिया था ? शायद यह भ्रस्ताचर नहीं हैं ? क्योंकि देश की राजधानी में अनावश्यक रूप से भवनो के निर्माण कार्य ---- जरूरत के कारण किए जा रहे हैं ? सरकारी मुलाज़मीन की संख्या में कमी की जा रही हैं , पर कार्यालय की जगह बड्ति जा रही हैं | सेंट्रल विस्टा की क्या जरूरत हैं ? दुनिया के विकसित राष्ट्रो में सत्ता के केंद्र 400 से लेकर 800 साल पुराने भवनो में चल रहे , पर प्रधान मंत्री कहते हैं वर्तमान संसद भवन को विश्राम चाहिए ! जैसे उन्होने अपने से सीनियर बीजेपी नेताओ को विश्राम देने के लिए "”मार्गदर्शक मण्डल " बनाया हैं | हालांकि इसकी कोई बैठक आज तक नहीं हुई हैं |

अमित शाह जी बंगाल को "”सोनार बांग्ला "” बनाने के लिए कवि गुरु रवीद्र नाथ टैगोर का नाम लेते हैं , ---- उनके भासन लिखने वालो को मालूम होना चाहिए टैगोर का सपना "” बंगाल सिंध गुजरात मराठा ,द्रावीण उत्कल "” था | उनकी द्र्श्ति संकुचित नहीं थी | जिस संदर्भ में शाह "”आमर सोनार बांग्ला देश "” बांग्ला देश का राष्ट्रीय गान है --और उसके लेखक कवि नज़रुल इस्लाम हैं ! और मुसलमानो के प्रति बीजेपी और संघ का रुख जग ज़हीर हैं | वे कहते हैं की नड़ड़ा की कार पर हमला "”लोकतन्त्र पर हमला हैं ?”” उन्हे मालूम होना चाहिए की लोक तंत्र में व्भिन्न मतो का आदर होता हैं , जो बीजेपी नहीं मानती | उन्हे मालूम होना चाहिए की देश की प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी पर 9 फरवरी 1967 को भुवनेश्वर की काँग्रेस की चुनाव सभा में किसी "विरोधी " ने पत्थर मारा था जिसे उनकी नाक पर चोट लगी और खून बहने लगा | उन्होने आपा नहीं खोया और कहा था की हिशा का लोकतन्त्र में कोई स्थान नहीं | और यानहा कार में पत्थर लाग्ने से लोकतन्त्र खतरे में पड़ गया ! वाह कितना कमजोर है बीजेपी की लोकतन्त्र की परिभाषा !

 

आपरेशन ब्लू स्टार – फेरुमान का अनशन -और जलियाँवाला बाग



उपरोक्त तीनों घटनाए पंजाब के आंदोलनो के हिंसक परिणाम की निशानी है | जलियाँवाला बाग में हजारो निहथे लोग अंग्रेज़ो की गोली से मारे गए | परिणाम उधम सिंह ने लंडन में जनरल ओ डायर को गोली मार कर हया की | दर्शन सिंह फेरुमन भाषा के आधार पर पंजाबी सूबे की मांग करते हुए आमरण अनशन किया था , सरकार ने उनकी अनसुनी की परिणाम स्वरूप उनकी मौत हुई ,और हिंशा हुई , आखिर कार वर्तमान पंजाब बना | इसी संदर्भ में भिंडरनवाले ने स्वर्ण मंदिर पर कब्जा कर खालिस्तान का झण्डा लगाया | संत लोंगोवाल की कट्टर वादियो द्वरा हत्या कर दी गयी | आखिर में आपरेशन ब्ल्यू स्टार में सेना ने भिंडरणवाले को मार कर स्वर्ण मंदिर मुक्त कराया | परिणाम स्वरूप तत्कालीन सेना अध्यक्ष जनरल वैद्य की पूना में गोली चलायी गयी , और प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षक द्वरा हत्या कर दी गई |कहने का तात्पर्य यह है की पंजाब के सिखो का विश्वास जितना जरूरी है | वादा खिलाफी कोई करे चाहे व्यक्ति हो या सरकार परिणाम घातक ही होता हैं | इस लिए इस आंदोलन को अगर मोदी और अमित शाह काश्मीर की तर्ज़ पर दबाने की कोशिस करेंगे तो परिणाम भयंकर हो सकते हैं |


हक़ के लिए कुर्बानी की दास्तान के लिए "”खालसा "” मशहूर हैं | इस लिए दिल्ली के घेरे को हटाने के लिए मोदी - शाह और उनके सलाहकारो ने अगर इस "”अहिंसक आंदोलन को हटाने या दबाने के लिए पुलिस या सेना की मदद अगर लिया तब परिणाम भयंकर हो सकते हैं | जैसा ऊपर लिखा जा चुका हैं | आखिर 25 दिन के आंदोलन के दौरान 20 किसानो की शहादत और कर्नल के के नानकसर गुरुद्वरा के प्रमुख बाबा राम सिंह की इन कानूनों के खिलाफ,, पिस्तौल द्वरा आत्महत्या करने की घटना से अंदर ही अंदर आक्रोश पनप रहा हैं | अगर सरकार ने सावधानी स काम नहीं लिया और पंत प्रधान मोदी जी अपनी ज़िद्द पर अड़े रहे तो परिणाम घातक हो सकते हैं | क्योंकि सेवा निव्र्त फौजियो द्वरा अपने पदको को लौटन की घोसना करना आर्मी में आशंतोष की चिंगारी सुलगा सकता हैं | आपरेशन ब्ल्यू स्टार के बाद अनेक सीख पलटनों ने विद्रोह कर दिया था | कनही वह स्थिति बन गयो तो भगवान ही मालिक हैं


किसान आंदोलन की सरकार द्वरा अनदेखी और अनसुनी करने की कवायद कनही इन आन्दोलंकारियों को हिंसा का शिकार ना बना दे | यह आशंका इसलिए है की ऊपर लिखे जन आंदोलनो की सरकार द्वरा लंबे समय तक उपेक्षा किए जाने के बाद भी जब आंदोलन कारी नहीं झुके ,, तब तब हुकूमत ने हिनशा का सहारा लिया , जिससे बहुत अधिक जन -धन की हानि हुई हैं | अब सरकार की ज़िद्द के सामने पंजाब के सिख किसान अनिश्चित काल तक आंदोलन चलाने के लिए तैयार हो कर आए हैं | उन्हे हरियाणा - राजस्थान और उत्तर प्रदेश से देश की लगती सीमाओ पर अर्ध सैनिक बलो की भरपूर तैनाती और उनकी वक्तन फवक्तन गिरफ्तारी से माहौल अब गरमाने लगा हैं | सत्ताधारी दल द्वरा किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए प्रधान मंत्री से लेकर -मंत्री और बीजेपी मुख्य मंत्री तरह -तरह से आंदोलन को कुचलने की तरकीब कर रहे हैं | इससे देश में किसानो को लेकर दो फाड़ हो गया हैं | कुछ शहर के लोग जिनहे यह भी नहीं मालूम की गन्ने की लंबाई और अरहर की लंबाई में अंतर है या नहीं , वे भी सोशल मीडिया पर अपनी रॉय /विचार बता रहे हैं | गावों का जिनहोने मुंह नहीं देखा , उन्हे आन्दोलन्करियों के जीन्स और जाकेट पर आश्चर्य हो रहा हैं | सरकार और मोदी भक्तो को स बात पर ज्यादा गुस्सा हैं की ये सिख और जाट किसान अपने साथ खाने पीने का समान लेकर आए हैं , नाश्ते में दूध और मक्खन खाते हैं , गरम पानी से नहाने की व्यवस्था हैं | उनके कपड़े भी वाशिंग मशीन में धूल रहे हैं , इसलिए कुछ नादान यानहा तक लिख रहे हैं की ये लोग फसल छोड़ कर "”पिकनिक " माना र्हए हैं ! इन नासमझो को नहीं मालूम की 8 डिग्री तापमान में जब वे घर के अंदर हीटर और वारमर लगा केआर सोते हैं तब ये लोग ठंड से बचने का इंतजाम करते हैं |

अक्सर आंदोलनो में सरकार बिजली - पानी की आपूर्ति बंद कर लोगो को मजबूर कर दिया करती थी | परंतु इस बार मोदी सरकार को एक ऐसे विरोधी से पाला पड़ा हैं जो आंदोलन के लिए अपनी सप्लाइ का बंदोबस्त कर के आए हैं | अक्सर चैनल वाले पुछते हैं की की आप कितने दिनो का खाना -पानी लेकर आए हो ? तब इंका जवाब होता हैं 550 साल से तो हमारा लंगर चला आ रहा हैं ,आगे नानक की मर्जी |

जिस प्रकार बीजेपी और उनके आरएसएस तथा विसव हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के आंदोलन में धरम और राजनीति को मिला कर सरकार बनाई , अब उसी का जवाब हैं की सिख काश्तकार अपने धरम और और और अपनी मांग {{ तीनों क्रशी कानूनों का वापस लेने }} के लेकर राजधानी को घेर कर बैठे हैं | इतना ही नहीं सरकार और बीजेपी तथा भक्तो के कु प्रचार के जवाब के लिए किसान पुत्रो ने नयी वेब साइट बना ली हैं ,जिसके द्वरा वे सरकारी नेताओ के खोखले दावो का भन्दा फोड़ कर रहे हैं |

जिस प्रकार पहले इस मसले को सुलझाने के लिए क्रशी मंत्री तोमर किसानो के साथ बैठक करते रहे , फिर सरकार में नंबर 2 अमित शाह मैदान में आए पर बात बनी नहीं | फिलहाल अमित शाह बंगाल के विधान सभा चुनावो के लिए सभी वाजिब और गैर वाजिब हथकंडे अपना कर ममता बनेरजी की सरकार को हटाना चाहते हैं अगर ऐसा न हो पाया तो उनका निशाना राष्ट्रपति शासन लगा कर अपने अधिकारियों की मददा से चुनाव जितना हैं | वैसे यह हथकंडा दिल्ली के चुनावो मीन बुरी तरह फ़ेल हुआ हैं | लेकिन जिस प्रकार मध्य प्रदेश में दल बादल कराकर सरकार गिराई ---उसका भी प्लान तैयार हैं |


प्रधान मंत्री के कहे पर विश्वास नहीं :- किसानो का कहना हैं की जब तक सरकार किसान से संभण्डित तीनों कानून वापस नहीं लेती हमारा आंदोलन चलता रहेगा | यह आंदोलन अंग्रेज़ो के खिलाफ वैसा ही हैं -जैसा गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में किया था | आज देश का किसान अपनी सब्जी की फसल को मिट्टी के भाव बेचने पर मजबूर हैं | केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने एक चैनल को बताया की कैसे उन्होने मुजफ्फरपुर के गोभी उत्पादक को दस रुपया किलो का भाव दिल्ली के व्यापारी से दिलवाया | परंतु उसी किसान ने दूसरे चैनल को बताया की थोड़ा सी फसल को जरूर दिल्ली वाले लेगाए | परंतु बाकी फसल के लिए हम तीन दिन से इंतज़ार कर रहे हैं !!! इस प्रकार आचमन द्वरा स्नान करने के इस कर्मकांड से सरकार की किरकिरी ज्यादा हुई | भले ही रविशंकर प्रसाद अपने प्रयास के गुण गाये 

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नरेंद्र मोदी जी बार बार कह रहे हैं की विरोधी दल इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं , पर वे भूल जाते है की मनमोहन सिंह के समय जब पेट्रोल 40 रुपए से बढा कर 45 रुपए हुआ था तब समूची बीजेपी पार्टी देश में आंदोलन किया था ! घरेलू गॅस के दामो में व्रधी पर तो श्रीमति ईरानी और हेमा मालिनी जी ने सिने पर तख्ती टांग कर सदको जाम किया था | यानहा तो देश के अन्नदाता का मामला हैं , और इस आंदोलन में कोई भी राजनाइटिक पार्टी को आंदोलनकारी किसान अपना मंच नहीं दे रहे हैं | जैसे अन्न हज्जारे के आंदोलन के समय हुआ था , तब पतंजाली सेठ भी मंच पर थे | जैसे अब अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए एक बार फिर भ्ग्वधारियों को कटोरा हाह में देकर घर -घर चंदा मांगने के लिए प्रेरित किया जा रहा हैं |

हालांकि अशोक सिंघल के समय राम जन्म भूमि न्यास के लिए देश से एकत्र किए गए 140 करोड़ रुपये का हिसाब हिन्दू महा सभा के पाधिकारी मांग रहे ,जिसे बताने के लिए कोई तैयार नहीं |

जब देश का प्रधान मंत्री सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना कर सेंट्रल विस्टा का भूमि पूजन करे , जो बंगाल मे राज्य सरकार को अस्थिर करने के लिए अपनी पार्टी के आद्यकश और ग्राहमन्त्री को बार बार भेजे , उसके कथन पर कौन विश्वास करेगा ???

Dec 11, 2020

 

एक पत्थर भाजपा की गाड़ी पर – छुई मुई सी दहली -शाह का बंगाल दौरा !

बंगाल के विधान सभा चुनावो के पूर्व माहौल को गरमाने के लिए बीजेपी के राष्ट्रीय आद्यक्ष जेपी नड़ड़ा और कैलाश विजयवर्गीय के मशहूर इलाके डायमंड हार्बर में "” समर्थको और विरोधियो "” की नारे बाज़ी के दौरान एक पत्थर से गाड़ी के "”काँच " टूटने की घटना ने , केंद्रीय ग्राहमन्त्री अमित शाह को बंगाल का दौरा करने पर विवश कर दिया हैं ! इतना ही नहीं इस घटना के बाद राज्यपाल धनखड़ ने तो बंगाल की सरकार के अस्तित्व को ही शर्म नाक बता दिया | इतना ही नहीं उन्होने मुख्य मंत्री ममता बनर्जी को "”चेतावनी दी की वे आग से ना खेले "” ! भाजपा शासित राज्यो के मुख्य मंत्री और नेताओ ने तो तो इस घटना को लेकर --- बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग भी कर डाली !

अब जरा दिल्ली की केंद्र शासित पुलिस की मौजूदगी में दिल्ली सरकार के उप मुख्य मंत्री सिसौदिया के घर में बीजेपी कार्यकर्ताओ द्वरा घुस कर तोड़ - फोड़ किए जाने की घटना पर , अमित शाह जी की चुप्पी इस संदेह को जनम देती हैं की -----बीजेपी का मूल मंत्र हैं की हम चाहे जो करे वह सही हैं --- तुम वही करो तो पाप ! केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस की इस नालायकी के लिए ना तो लेफ्टिनेंट गवर्नर से पूछ -परख की , आखिर क्यू यह भेदभाव ? यह सौतेला व्यवहार हाए गैर भाजपाई सरकार के साथ हैं |

एक तथ्य है की जबसे मोदी सरकार सत्तासीन हुई हैं , तब से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी तथा बजरंग दल ऐसे कट्टर वादी संगठनो के मेम्बरान राजनीति के नंबुदरी ब्रामहन बन गए हैं | जो आम मानवो से ऊपर और देवताओ से नीचे का स्थान रखते हैं ! इसलिए वे पूज्य हैं ! इसीलिए जब इन भगवा देवताओ की मनमानी पर "”प्रतिरोध "” करता हैं , तब दिल्ली का इंद्रासन डोलने लगता हैं | केरल में संघ के एक कार्यकर्ता की आपसी रंजिश में हुई मौत पर राज्यपाल और दिल्ली सरकार ने विजयन सरकार से जवाब तलब किया | अब कलकत्ता में पार्टी के जुलूस के लोगो और विरोधियो में गुथमगुथा होने पर "” कनही से एक पत्थर ने विजयवर्गीय जी की कार के शीशे तोड़ दिया !

सवाल है की प्रदेश के राज्यपाल का सार्वजनिक रूप से अपनी सरकार की आलोचना --- मोदी काल की संवैधानिक परंपरा ही कनही जाएगी ! असहमति में भी संवाद की सलाह देने वाले मोदी जी को क्या एक पत्थर से टूटे काँच को "” लोकतन्त्र में प्रदेश की समग्र सरकार की असफलता बताना चाहिए ?

हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को इन्दिरा गांधी से सीख लेनी चाहिए , हालांकि वे तो उन्हे आपातकाल लगा कर प्रजातन्त्र को समाप्त करने का ही टकसाली आरोप लगाएंगे | पर वे इस बात का जवाब नहीं दे पाएंगे की क्या उन्होने संविधान प्रदत्त अधिकारो का उल्ल्ङ्घन किया था ? ये पाकिस्तान और चीन "” आँख से आँख मिला कर भी बात नहीं कर सकते "!

उनही इन्दिरा गांधी की भुवनेश्वर की चुनाव सभा में 9 फरवरी 1967 को किसी ने उनको पत्थर मारा जिससे उनकी नाक पर घाव हो गया | उस समय उड़ीसा में स्वतंत्र पार्टी की सरकार थी , जिसके मुख्य मंत्री राजेंद्र नारायण सिंघदेव थे | पर इन्दिरा गांधी ने इस हमले के लिए प्रदेश सरकार को दोष नहीं दिया ! ना ही उड़ीसा में राष्ट्रपति शासन लगाने की धम्की सत्तारूद दल द्वरा की गयी ! यानहा नड़ड़ा जी तो बुलेटप्रूफ कार में सवार थे , और बीजेपी महामंत्री विजयवर्गीय जी की कार का शीशा ही टूटा ! तब क्यू इतना हँगामा बरपा हैं ?

कहते हैं जो सामने दिखता हैं -वह हमेशा सत्य या वास्तविकता नहीं हुआ करती | वैसे ही बार - बार बीजेपी नेताओ या मंत्रियो का बंगाल दौरा और उनके काफिले पर हर बार होने वाला पथराव कुछ और ही कहानी कहता हैं ! ऐसी ही कोशिस दिल्ली विधान सभा चुनावो के समय हिन्दू - मुसलमान को लेकर बीजेपी नेताओ ने लिखी थी | शाहीन बाग का धरना चल रहा था , और केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर सार्वजनिक रूप से नारा लगवा रहे थे – देश के गद्दारो को -गोली मारो सालो को ! दिल्ली के बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने तो दिल्ली वासियो को देश के मुसलमानो को - अफगानी तालिबान बताते हुए चेतावनी दी थी अगर बीजेपी चुनाव में पराजित हुई ---तो दिल्ली के हिन्दुओ की बहन -बेटियाँ का बलात्कार होगा ! इन बयानो की केंद्रीय चुनाव आयोग से शिकायत हुई , पर सत्ता के इन भगवा नंबुदरी ब्रांहनों को बस चेतावनी देकर हाथ झाड लिए !!!


अब गृह मंत्री अमित शाह के मंत्रालय ने बंगाल सरकार से "पथराव की घटना की रिपोर्ट मांगी हैं " उधर राज्यपाल धनखड़ ने भी अपनी हर 15 दिन वाली खुफिया रिपोर्ट भी इस बारे में भेजी हैं ! शायद मामले "””को गंभीर"” मानते हुए अमित शाह खुद बंगाल जा कर हालत का जायजा लेंगे ! क्या इसे केन्द्रीय सरकार की चिंता समझा जाये अथवा बंगाल विधान सभा चुनावो की तैयारी ??



मोदी सरकार की इस चिंता को देख कर उनके इरादो का पाखंड समझ में आ जाता हैं ,, की दिल्ली के चारो ओर जब लाखो किसान आंदोलनकारी बैठे हो और सरकार से 6 दौर की वार्ता असफल हो गयी | तब अमित शाह दिल्ली की चिंता छोड़ कलकत्ता भाग रहे हैं | इससे उनकी प्राथमिकता समझ में आती हैं | केंदीय सरकार को देश में विधि - व्यवस्था की चिंता से ज्यादा चुनावी समीकरणों की हैं |इसीलिए मैंने लिखा हैं की मोदी सरकार एक पत्थर से दहली !!!




Dec 9, 2020

 

सेंट्रल विस्टा बनाम - नयी इमारत से नया लोकतन्त्र लिखने की कवायद !!!!

दुनिया बड़े देशो में जनहा लोकतन्त्र है – उन सभी के सत्ता सूत्र उनके पारंपरिक भवनो से ही संचालित होते हैं | ब्रिटेन की संसद आज भी सात सौ साल पुराने भवन से ही संचालित होती हैं | अमेरिका का काँग्रेस भवन जिसमें हाउस ऑफ रिप्रेजेंनटेटिव और सीनेट दोनों सदन बैठते हैं वह भी लगभग सात सौ साल पुराना हैं | फ्रांस में भी उनका सदन उसी स्थान पर आहूत होता हैं ,जो क्रांति के बाद का हैं | रूस का क्रेमलिन भी 1917 के बाद उसी स्थान पर हैं जनहा ज़ार के जमाने में ड्यूमा बैठती थी | इन सब देशो ने लोकतन्त्र की परंपरा को कायम रखने के लिए कोई नयी बिल्डिंग नहीं बनवाई | यद्यपि वे सभी राष्ट्र भारत से कनही अधिक धनी और समर्थ देश हैं |

जिस वर्तमान संसद भवन को मोदी जी अपर्याप्त बता रहे है -----यह वही भवन हैं जिसमें ब्रिटिश समय मे सेंट्रल लेजिसलेटिव अससेंबली हुआ करती थी , जनहा शहिदे आजम भगत सिंह ने बम फेक कर अंग्रेज़ो के बहरे कानो में आज़ादी की आवाज़ सुनाई थी ! आज चंद सांसदो की सुविधा और आराम के लिए इस एतिहासिक भवन को "” कंडम "” करार दे रहे हैं | यह कान्हा तक उचित हैं इस पर देश के लोगो को विचार करना होगा |

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा वर्तमान संसद को देश के लोकतन्त्र के लिए अपर्याप्त बताते हुए ही --उनकी योजना "””” आज़ाद भारत में हमारे संसद भवन उर्फ सेंट्रल विस्टा के 22000 हज़ार करोड़ की लागत से 14 माह के अंदर बन कर तैयार होने का "”कहना हैं "” | प्रधान मंत्री के इन विचारो को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चैनल को दिये गए गए वक्तव्य मे अभिव्यक्त किया था | वैसे संसद जैसी महत्वपूर्ण इमारत का भूमि पूजन हो और राष्ट्रपति तथा उप राष्ट्रपति न हो भले ही वे दौरे पर हो , कुछ अटपटा लगता हैं ! क्या आपको नहीं लगता की देश का सर्वोच्च अधिकारी को ऐसे "””महान "” महत्वपूर्ण अवसर पर मौजूद होना चाहिए ? पर अगर "” समारोह "” को आयोजित करने वाली सरकार हो तब ----उसके लिए तो सरकार का मुखिया ही सब कुछ होगा , और वही हुआ ! भूमि पूजन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हाथो सम्पन्न हुआ | यह समारोह तब हुआ जब देश का किसान आंदोलन रत है किसानो ने दिल्ली को घेरा हुआ हैं , सरकार और गृह मंत्री अमित शाह की 7वे दौर की समझौता वार्ता विफल हो गयी हैं ! पुलिस और अर्ध सैनिक बलो के साये में केंद्र सरकार की "”” तीनों क्रशि कानूनों को वापस "नहीं " लेने की ज़िद और पंजाब हरियाणा के के किसानो की राशन - पानी लेकर मांग पूरी न होने तक धरना देने की घोसणा में कौन सफल होगा कहना मुश्किल हैं |

डॉ वेद प्रताप वेदिक जी ने सेंट्रल विस्टा के निर्माण के समर्थन में लिखा हैं की "”” यह अत्यधुनिक सुविधाओ से लैस होगा "” \| पर इस सुविधा का उपयोग लोक सभा और राज्य सभा के अधिकारी और चंद सांसदो की सुविदाह के लिए इतना ज्यादा खर्चा कान्हा तक न्यायोचित हैं ? अगर यही धन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओ के लिए व्यय होता तो उचित होता | परंतु मोदी जी के लोकतन्त्र में "” बिकने वाले जन प्रतिनिधियों और पार्टी के सांसदो का ख्याल रखा जाना सर्वोच्च प्राथमिकता हैं !

इस नयी इमारत की जरूरत कितनी हैं ---इसका आंकलन वितीय द्रष्टि से और शासकीय द्रष्टि से कितना उचित हैं ---किया ही नहीं गया | लोकसभा अध्यकछ ओम बिरला के शब्दो में "” आज़ाद भारत '’ यह इंगित करता है की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पोषित – राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी ---- को अंग्रेज़ो से देश को आज़ाद करने वाली संस्था औरउससे जुड़े लोगो के प्रति "”” हिकारत "” का भाव हैं | कारण यह हैं की देश में आज भी महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू तथा इन्दिरा गांधी ऐसे जननायकों की देशवासियों के मन जो छवि है , वैसी छवि संघ या उससे जुड़े किसी भी नेता की नहीं हैं | इसलिए प्रतिहिंशा वश वे उनकी छाप को देशवासियों की स्म्रती से मिटाना चाहते हैं | कहावत हैं "”” बांधे बनिया बाज़ार नहीं लगती "” ----- इसका उदाहरण केरल में राजीव गांधी तकनीकी संस्थान में माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर की मूर्ति स्थापना को लेकर विवाद हैं |केरल सरकार ने केंद्र से मूर्ति को अन्यत्र स्थापित करने का आग्रह किया हैं ! इस प्रकार अपनी पूज्य लोगो की प्रतिमा लगाने पर विवाद भोपाल नगर निगम के चौराहो पर प्रतिमा लगाने का झगड़ा हैं | अनेक मूर्तिया इसी झगड़े के कारण कपड़े से ढकी रखी है |