सेंट्रल विस्टा बनाम - नयी इमारत से नया लोकतन्त्र लिखने की कवायद !!!!
दुनिया बड़े देशो में जनहा लोकतन्त्र है – उन सभी के सत्ता सूत्र उनके पारंपरिक भवनो से ही संचालित होते हैं | ब्रिटेन की संसद आज भी सात सौ साल पुराने भवन से ही संचालित होती हैं | अमेरिका का काँग्रेस भवन जिसमें हाउस ऑफ रिप्रेजेंनटेटिव और सीनेट दोनों सदन बैठते हैं वह भी लगभग सात सौ साल पुराना हैं | फ्रांस में भी उनका सदन उसी स्थान पर आहूत होता हैं ,जो क्रांति के बाद का हैं | रूस का क्रेमलिन भी 1917 के बाद उसी स्थान पर हैं जनहा ज़ार के जमाने में ड्यूमा बैठती थी | इन सब देशो ने लोकतन्त्र की परंपरा को कायम रखने के लिए कोई नयी बिल्डिंग नहीं बनवाई | यद्यपि वे सभी राष्ट्र भारत से कनही अधिक धनी और समर्थ देश हैं |
जिस वर्तमान संसद भवन को मोदी जी अपर्याप्त बता रहे है -----यह वही भवन हैं जिसमें ब्रिटिश समय मे सेंट्रल लेजिसलेटिव अससेंबली हुआ करती थी , जनहा शहिदे आजम भगत सिंह ने बम फेक कर अंग्रेज़ो के बहरे कानो में आज़ादी की आवाज़ सुनाई थी ! आज चंद सांसदो की सुविधा और आराम के लिए इस एतिहासिक भवन को "” कंडम "” करार दे रहे हैं | यह कान्हा तक उचित हैं इस पर देश के लोगो को विचार करना होगा |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वरा वर्तमान संसद को देश के लोकतन्त्र के लिए अपर्याप्त बताते हुए ही --उनकी योजना "””” आज़ाद भारत में हमारे संसद भवन उर्फ सेंट्रल विस्टा के 22000 हज़ार करोड़ की लागत से 14 माह के अंदर बन कर तैयार होने का "”कहना हैं "” | प्रधान मंत्री के इन विचारो को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चैनल को दिये गए गए वक्तव्य मे अभिव्यक्त किया था | वैसे संसद जैसी महत्वपूर्ण इमारत का भूमि पूजन हो और राष्ट्रपति तथा उप राष्ट्रपति न हो भले ही वे दौरे पर हो , कुछ अटपटा लगता हैं ! क्या आपको नहीं लगता की देश का सर्वोच्च अधिकारी को ऐसे "””महान "” महत्वपूर्ण अवसर पर मौजूद होना चाहिए ? पर अगर "” समारोह "” को आयोजित करने वाली सरकार हो तब ----उसके लिए तो सरकार का मुखिया ही सब कुछ होगा , और वही हुआ ! भूमि पूजन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हाथो सम्पन्न हुआ | यह समारोह तब हुआ जब देश का किसान आंदोलन रत है किसानो ने दिल्ली को घेरा हुआ हैं , सरकार और गृह मंत्री अमित शाह की 7वे दौर की समझौता वार्ता विफल हो गयी हैं ! पुलिस और अर्ध सैनिक बलो के साये में केंद्र सरकार की "”” तीनों क्रशि कानूनों को वापस "नहीं " लेने की ज़िद और पंजाब हरियाणा के के किसानो की राशन - पानी लेकर मांग पूरी न होने तक धरना देने की घोसणा में कौन सफल होगा कहना मुश्किल हैं |
डॉ वेद प्रताप वेदिक जी ने सेंट्रल विस्टा के निर्माण के समर्थन में लिखा हैं की "”” यह अत्यधुनिक सुविधाओ से लैस होगा "” \| पर इस सुविधा का उपयोग लोक सभा और राज्य सभा के अधिकारी और चंद सांसदो की सुविदाह के लिए इतना ज्यादा खर्चा कान्हा तक न्यायोचित हैं ? अगर यही धन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओ के लिए व्यय होता तो उचित होता | परंतु मोदी जी के लोकतन्त्र में "” बिकने वाले जन प्रतिनिधियों और पार्टी के सांसदो का ख्याल रखा जाना सर्वोच्च प्राथमिकता हैं !
इस नयी इमारत की जरूरत कितनी हैं ---इसका आंकलन वितीय द्रष्टि से और शासकीय द्रष्टि से कितना उचित हैं ---किया ही नहीं गया | लोकसभा अध्यकछ ओम बिरला के शब्दो में "” आज़ाद भारत '’ यह इंगित करता है की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पोषित – राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी ---- को अंग्रेज़ो से देश को आज़ाद करने वाली संस्था औरउससे जुड़े लोगो के प्रति "”” हिकारत "” का भाव हैं | कारण यह हैं की देश में आज भी महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू तथा इन्दिरा गांधी ऐसे जननायकों की देशवासियों के मन जो छवि है , वैसी छवि संघ या उससे जुड़े किसी भी नेता की नहीं हैं | इसलिए प्रतिहिंशा वश वे उनकी छाप को देशवासियों की स्म्रती से मिटाना चाहते हैं | कहावत हैं "”” बांधे बनिया बाज़ार नहीं लगती "” ----- इसका उदाहरण केरल में राजीव गांधी तकनीकी संस्थान में माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर की मूर्ति स्थापना को लेकर विवाद हैं |केरल सरकार ने केंद्र से मूर्ति को अन्यत्र स्थापित करने का आग्रह किया हैं ! इस प्रकार अपनी पूज्य लोगो की प्रतिमा लगाने पर विवाद भोपाल नगर निगम के चौराहो पर प्रतिमा लगाने का झगड़ा हैं | अनेक मूर्तिया इसी झगड़े के कारण कपड़े से ढकी रखी है |
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