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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jan 5, 2021

 

राष्ट्रवाद -बस नाम बदलो ! स्थानो के बाद अब विषेशणो का भी .

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भारत को हिंदुस्तान बनाने की पहल में धार्मिक अफीम से ग्राष्ट भीड़ ने पहले सदको के फिर इमारतों के और स्थानो के नाम बदलने की डरावनी मुहिम चलायी | काफी हद्द तक सरकार के प्रश्रया के

कारण यह पैतरा सफल भी रहा | जैसे दिल्ली की औरंगजेब मार्ग का नाम बदलना अथवा मुग़ल सराय रेल्वे स्टेशन और इलाहाबाद का नाम बदल कर ---दीनदयाल नगर और प्रयाग करना आदि | वैसे तो अभी नाम बदलने के एजेंडे में काफी कुछ बाक़ी हैं , पर क्या इससे राष्ट्रवाद उभर आएगा ?? परंतु स्थानो को छोड़े और मानवीय गुणो को "हिन्दूकरण करे तब लग्ता हैं की बात हाथ से निकलती जा रही हैं | क्योंकि सड़क या स्थानो का नाम तो किसी देश की सीमा तक ही जाने जाते हैं | परंतु मानवीय गुणो की व्यापकता समग्र संसार में रहती है | ऐसा ही एक मौका एक टीवी धारावाहिक में देखने को मिला |


अभी हाल में टीवी धारावाहिक कौन बनेगा करोडपति में सदी के महा नायक अमिताभ बच्चन ने करमवीर श्रंखला में जलपाई गुड़ी के पद्म श्री करिमुल्लाह और 90 लाख मूल्या के प्रस्थेटिक हाथ जरूरतमंदों को मुफ्त में वितरित करने वाले इंजीनीयार हर्ष का दर्शको से परिचय कराते हुए कहा इन लोगो ने इंसानियत का नहीं वरन"””” हिंदुस्तानियत "”” का परिचय दिया है !!! भले ही भक्तो और राश्त्र्वादियो तथा हिन्दू राष्ट्र के हिमायतियों को यह अच्छा लगा हो | परंतु भाषा और हक़ीक़त के अनुसार यह मानवीय संबंधो का अपमान ही हैं ! इन दोनों कर्मवीरों का कार्य अत्यंत सरहनीय हैं | क्योंकि इन दोनों ने साधारण से प्रयास से बहुत देशवासियों की अत्यंत महती सेवा की हैं | परंतु क्या मानव के प्रति सेवा का यह भाव सिर्फ भारत या "हिंदुस्तान " में ही होता हैं ? बिलकुल नहीं मानव जाती चाहे वह प्रथवि के किसी भी हिस्से में हो ऐसे लोग होते ही हैं | जो दुखी मानव समूहो को उनके कष्टो से निजात दिलाने का प्रयास करते हैं | फिर की प्रकार मानव परोपकार की इस भावना को सिर्फ "”हिंदुस्तान"”” की बाहुगोलिक सीमा में बंधा जा सकता हैं ? यह प्रयास उस कट्टरवाद का नतीजा है -जो कहता हैं की हिंदुस्तान {भारत} विश्वगुरु हैं ! हम "”सर्वे भवन्ती सुखिना सारे संतु निरमाया "” का उद घोष करते हैं | पर धरम और जाति तथा छेत्र के आधार पर सरकारे भेदभाव ही नहीं करती वरन प्रातड़ित करती हैं | संविधान की कसम खाने के बाद भी कानून को अपना न्यायपूर्ण काम नहीं करने देते !

सड्को --स्थानो और नगरो के नाम बदलना इसलिए इन राष्ट्र वादियो के लिए जरूरी हैं – की वे दिखा सके की भारत का इतिहास या तो चाणक्य का हैं अथवा देश की आज़ादी के बाद का भी है , वह भी जैसा घटा वैसा नहीं वरन जैसा वो "”बताए वैसे !! हैं न सनक और बुद्धिहीन की पराकाष्ठा !

अगर मानव की सेवा मात्र उसके एक "”इंसान "” होने नाते की जाये तो ---- उसे क्या नाम देंगे ? अगर मदद करने वाला भारतीय हैं तब उसे हिंदुस्तानियत कहेंगे और अगर सहता विदेशी व्यक्ति या संगठन से हो तो उसे "” मदद " ही कहा जाएगा !! उदाहरण के तौर पर दुनिया का सबसे बड़ा परोपकारी संगठन "”मिलिंदा बिल गेट्स फाउंडेशन "” भारत के अनेक प्रांतो में शिक्षा - स्वास्थ्य और आँय छेत्रों में कार्यरत हैं | उसे हिंदुस्तानियत नहीं कह सकते -क्योंकि यह संस्था भारतीय नहीं और ना ही इसके चलाने वाले , तब यह मात्र "” मदद "”करने वाली हैं ! स्वास्थ्य और शिक्षा के छेत्र में सैकड़ो व्यक्ति अपने दुखी देशवासियों की मदद करते हैं | उनमें एक एक चमकता सितारा हैं अभिनेता सोनू सूद --जिसने देश में तालाबंदी के दौरान लाखो लोगो को भोजन पानी और आश्रय देने के साथ ही उन्हे उनके घरो तक वापस पाहुचने के लिए हवाई जहाज --ट्रेन और बसो का सहारा लिया | इन सबका किराया उनकी टोली ने चुकाया ! वे मुंबई के अदानी या अंबानी जैसे धन कुबेर नहीं हैं , परंतु उनकी सेवा भावना ने देश के कोने कोने में उन को पूजने वाले हैं ! कर्नाटक में तो कुछ लोगो ने उनकी मूर्ति बना कर मंदिर बना दिया --अब इसे "”इंसानियत कहेंगे या हिंदुस्तानियत ? “ मुझे पूरा यकीन हैं की यह शब्द अमिताभ बच्चन जैसे गंभीर व्यक्तित्व के नहीं हो सकते , क्योंकि करोड़पति के सेट पर उनके द्वरा बोले जाने वाले डायलग अधिकतर सोनी के राइटरो द्वरा लिखे जाते हैं | जो धारावाहिक के डाइरेक्टर की नीति और दिशा से तय किए जाते हैं | केवल तात्कालिक प्रतिकृया के जो अभिनेता के स्वयं के होते हैं |

अभी तक जो सामाजिक अलगाव जमीन पर दिखाई पड़ रहा हैं , अब उसकी पहुँच भाषा तक होना -शुभ नहीं हैं | धरती पर इंसान बस्ता हैं , जो किसी ना किसी देश का नागरिक होता हैं | जिस प्रकार कोई भी अपने माता -पिता या धर्म अथवा स्थान का चुनाव जन्म के समय नहीं चुन सकता , इसलिए मजहब स्थान या जाति के आधार पर "”भेद भाव "” करना गलत हैं | अब इन हिंदुवादी कट्टर नेताओ से यही सवाल पूछे पर कोई उत्तर नहीं दे पाएंगे | सभी इंसान इस धरती पर एक समान आते हैं और एक ही प्रकार से विदा होते हैं | हाँ उनकी अगवानी और विदाई की रश्मे अलग होती हैं | यानि जो प्राकरतीक है -वह सभी के लिए समान हैं| बाक़ी मानव निर्मित परंपराए हैं | जो मानव द्वरा निर्मित हैं उसे बदला जा सकता हैं | और अगर उसके कारण किसी समुदाय को अलगाव भुगतना पड़ रहा हैं तब तो जरुरा बदलना चाहिए | उसे चुनाव का मुद्दा नहीं बनने देने चाहिए | इस संदर्भ में आचर्या चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास जिस पर फिल्म बनी थी "”घर्मपुत्र" जिसमे शशी कपूर नेनयक की भूमिका अदा की थी | उनका जनम एक मुस्लिम के घर हुआ था परंतु घटना चक्र में वे एक कट्टर हिंदुवादी बन जाते हैं , फिर हक़ीक़त जानने के बाद पश्चाताप करते हैं |