अदालत का
आदेश तो हो गया पर फैसला सवाल छोड़ गया
सुप्रीम कोर्ट के नोटबंदी मामले में बहुत से बिन्दुओ का ज़िक्र ही नहीं !
नोटबंदी के मामले में सुप्रीम
कोर्ट में दायर दर्जनो याचिकाओ को अदालत ने खारिज करने का आदेश तो सुना दिया , पर
याचिकाओ में उठाए सवाल जो जन – जन के
मन में थे उनका जवाब अदालती आदेश से नहीं
मिला ! विधि शास्त्र का डिकटम है की सुप्रीम कोर्ट का फैसला ,अंतिम हैं , और इसकी अपील नहीं की जा सकती , परंतु यह सत्य और तथ्य पर आधारित न्यायपूर्ण हो ,ऐसा जरूरी नहीं हैं | अदालत के फैसले के दो भाग होते हैं , जजमेंट और डीसीजन , जिसे वर्डिक्ट भी कहते हैं |
याचिकाओ में नोटबंदी के संबंध में प्रक्रिया सम्मत अनेक आपतिया उठाई गयी थी | जिन पर सुप्रीम कोर्ट ने विवेचना नहीं की
| जैसे
नोटबंदी के मोदी सरकार के फैसले पर देश के
सेंट्रल बैंक से सहमति लेना आवश्यक होता हैं
| फिर इस
अहम मुद्दे पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक का नोटिस कब निकाला ! और कब यह मंत्रिपरिषद द्वरा
मंजूर किया गया ?
जिस प्रकार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को अपना फैसला सुनाया था
, उसके पहले क्या रिजर्व बैंक ने बाजार में
“”नकदी” की स्थिति का आंकलन किया था ?
क्या बंकों में जमा राशि का अंकलन किया गया था , एवं नोट बदलने की कोई उचित योजना बनाई गयी थी ? क्यूंकी इस सरकारी फैसले से लाखो लोगो को अप्रतिम तकलीफ हुई थी , लोग घंटो – दिनो तक लाइन में लग कर अपने
नोट बदलवाने के लिए परेशान होते रहे |
अगर ऐसी राष्ट्रव्यापी घोसना की थी
तो सरकार का फर्ज़ बंता हैं की - इस फैसले से
उत्पन्न होने वाली स्थिति का भी बंदोबस्त करती
| परंतु
नोट बंदी और लाक डाउन ऐसे फैसले सरकार की अहंकार की ही पुष्टि करते है | जिसमे भुक्तभोगी जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता हैं |
नोटबंदी का एक पहलू जो आम आदमी की नजर में “”पूरी
तरह गैर कानूनी था “” वह था रिजर्व बैंक के गवर्नर
ऊर्जित पटेल की नियुक्ति :- उनके हस्तकछार
वाले नोट उनकी नियुक्ति से पहले ही छापने लगे थे !! अब बिना
वैधानिक नियुक्ति के उनके दस्तखत को विधिक
रूप से किसने एप्रूव किया था ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस बिन्दु की ओर कोई टिप्पणी नहीं की ! नोट बंदी के उद्देश्य को लेकर भी ----अदालत ने एक सपाट सा आदेश
दिया की “”राष्ट्रहित में नोट बंदी जायज़ था “”
अब जिस कालेधन को खतम करने का दावा
मोदी सरकार द्वरा किया गया था , वह बाद के समय में सरकार की ईडी और सीबीआई के छापो में बहुत
बड़ी राशि बरामद हुई |
सरकार ने कहा की नए नोट सिर्फ बैंक
से खातेदारों को दिये जाएँगे ----- नोटबंदी के हफ्ते भर बाद काश्मीर में एक आतंकी मुठभेड़ में मारे
गए लश्कर के लोगो के पास से नए दो हज़ार के नोटो की गद्दी बरामद हुई थी ! इतना
ही नहीं अनेक छापो में भी दो हज़ार के नोटो
की गडडिया बरामद हुई ! आखिर यह कैसे हुआ ?
पूर्व रिज़र्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन
का यह कथन बिलकुल सटीक हैं “” एक हज़ार के नोट
की जगह दो हजार के नोट छापने से देश से काला बाजारी किस प्रकार कम हो सकती है , कोई बताए ?
उनकी बात ना केवला तर्क्स्ङ्गत है वरन इस पूरे फैसले की वैधता और आवश्यकता को ही सवाल के घेरे में खड़ा करती हैं | परंतु लगता है जुस्टिस बी वी नगरतन्ना का कहना ही सही था , जो की अल्पमत था ,की इतना बड़ा फैसला लेने से पहले संसद को भरोसे में लेना चाहिए था | हालांकि मोदी भक्त कहेंगे की इससे तो काला बाजारी करने वाले सतर्क हो जाते
, और उद्देश्य
ही असफल हो जाता ! सवाल यह हैं की नोटबंदी के बाद बाजार में “”नकदी”” का चलन ज्यादा
हो गया और जीतने पुराने नोटो को वापस आना चाहिए था , उससे काही अधिक बंकों में पहुँच गाये
!!!! आखिर यह कैसे संभव हुआ !
बॉक्स
आखिर सुप्रीम कोर्ट क्यू कार्यपालिका से दबा
-दबा सा लगता हैं
? इसका कारण है की विधि मंत्री
ऋजुजु बहुत साफ तौर पर राज्य सभा में सदन को
बता चुके हैं , सुप्रीम कोर्ट में जजो के स्थान को भरने के लिए कालेजियम द्वरा भेजे गए नामो पर सरकार विचार कर रही हैं |
मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट में संभवतः 14 स्थान रिक्त है |
यही नहीं देश के 24 उच्च न्यायालयाओ में फिलहाल 331 जजो के स्थान खाली हैं ! जिसमे से विभिन्न उच्च न्यायालयो के लिए संबन्धित हाइकोर्ट ने 148 नाम की संस्तुति अपने न्यायालयों के लिए
सुप्रीम कोर्ट को भेजी हैं |
गौर तलब
हैं है की देश के व्भिन्न न्यायालयों में करोड़ो
मामले लंबित हैं | ज़िला और हाइ कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में ही 15 लाख से जुयादा मामले लंबित हैं | इनकी अवधि औसत रूप से पाँच से दस साल हैं
| परंतु
कुछ तो 20 से 25 वर्षो से अदालतों में लम्बित हैं |
दूसरी ओर देश की जेलो में कैदियो
की संख्या से जयदा अभियुक्तों की हैं | जो जमानत के अभाव में जेल से बाहर नहीं आ पा रहे हैं , क्यूंकी उनके पास पैसा नहीं हैं और नाही कोई उनका सगा
-संबंधी |
अब ऋजुजु जी
इस स्थिति को निराकरन के लिए कोई
कदम नहीं उठाएंगे | वे तो बस यही चाहते हैं की न्यायपालिका “””सरकार
के साथ मिलकर चले “” अब इसका क्या अरथ हैं यह तो पाठक खुद ही निकाले |