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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Apr 3, 2018


सर्वोच्च न्यायालय द्वरा अनुसूचित जाति - जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम मे परिवर्तन किए जाने के विरोध मे उपजे आंदोलन पर खंड पीठ द्वरा पुनरीक्षिण याचिका पर की   गयी टिप्पणियों का सार क्या है ??

सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ ने केंद्र दावरा दायर "”पुनरीक्षण "”याचिका की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की आन्दोलंकारियों ने फैसला नहीं पढा -निहित स्वार्थी तत्वो ने उकसाया "” !! अब आम आदमी को ज़िला अदालत मे न्यायिक अधिकारी के यानहा से फैसला निकलवाने मे तन का पसीना और जेब का धन दोनों निकाल जाते है ! अब ऐसे मे जो कुछ अखबारो मे या मीडिया से उन्हे पता चला वही उनका "”सत्य"” था | वैसे आमतौर पर बड़ी अदालते --कोर्ट परिसर के बाहर की घटनाओ का "”नोटिस '' नहीं लेती है , यह पहली बार हुआ है की देश की सबसे बड़ी अदालत ने "”जन आंदोलन "” को स्वार्थी तत्वो द्वरा प्रेरित बताया है ! यह अद्भुत है ! कुछ ऐसे ही भाव भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी कहा जा रहा था | की फैसले की आड़ मे राजनीतिक दल अपना एजेंडा चला रहे है | जबकि प्रापत तथ्यो के अनुसार - प्रकाश अंबेडकर और मायावती की ओर से ना तो इस आंदोलन को आहूत किया गया और नाही उनके चिरपरिचित चेहरे इसमे दिखाई पड़े | जैसे दिल्ली मे निर्भया कांड मे  जन आक्रोश "”बिना किसी संगठित नेत्रत्व के दिखाई पड़ा था -----कुच्छ =कुछ वैसा ही इस आंदोलन मे भी हुआ है |

अब 8अप्रैल को आरक्षण विरोधी संगठनो ने देशबंद का नारा दिया दिया है , अब उस आंदोलन को क्या बहुत ही "”पवित्र "” उद्देस्य से किया जाएगा ? यानहा तो दलित और आदिवासी "”अपने सुरक्षा कवच "” के कमजोर किए जाने के विरोध मे आंदोलित थे ---पर 8 अप्रैल के आयोजक तो संविधान के ही संशोधन की मांग कर रहे है "” तब ?
एक तकलीफ़देह तथ्य यह भी है की दलित अत्याचार मामलो की जांच भी सवर्ण वर्ग के अधिकारी द्वरा की जाती है | और अदालत मे भी सुनवाई गैर अनुसूचित वर्ग के लोगो द्वरा की जाती है | अब ऐसे मे शत - प्रतिशत जांच और -सुनवाई भलीभाँति होती होगी --ऐसा मानना  ही पड़ेगा | परंतु आंदोलन से जुड़े लोगो का आरोप है की - जिन रसूख वाले लोगो द्वरा हमारा उत्पीड़न किया गया उनके ही "जाति धर्म "” के लोग हमारी तकलीफ को ठीक से नहीं सुनते | वे बस खाना पूरी करते है | अब इस दशा मे जांच एजेंसियो और अदालतों से "”टूटा विश्वास बहुत खतरनाक होगा "” | आखिर बस्तर मे क्यो नक्सलवादी पनपे ?? यह सोचना होगा |


      2 अप्रैल को दलित संगठनो द्वरा किए गए आंदोलन मे अब तक सात लोगो के मारे जाने की अधिकरत जानकारी है | मध्य प्रदेश मे सर्वाधिक लोगो की आंदोलन के दौरान माउट हुई | राजस्थान मे दलित विधायक और पूर्व दलित मंत्री के घरो मे आग लगा दी गयी | आगजनी और तोडफोड की भी काफी घटनाए हुई | प्रशासन को ग्वालियर -भिंड एवं मुरैना मे कर्फ़्यू लगाना पड़ा | डबरा और अनेक जिलो मे भी प्रतिबंधात्मक आदेश लगाए गए | राजधानी मे पुलिस का फ्लैग मार्च किया गया |
तीन अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय की खंड पीठ के न्यायमूर्ति एके गोयल और यू यू ललित ने देश व्यापी हिंसा का ज़िक्र करते हुए टिप्पणी की "” जो लोग आंदोलन कर रहे है उन्होने कौर्ट का आदेश "” सही ढंग से नहीं पढा है | उन्हे निहित स्वार्थी तत्वो ने उकसाया है "” !! महाधिवक्ता वेणुगोपाल की दलील पर की अदालत के आदेश से पुलिस अब रिपोर्ट नहीं लिखेगी ? इस पर जज साहबान का कहना था की "झूठी शिकायत पर कोई बेगुनाह जेल नहीं जाना चाहिए | जेल जाना भी एक दंड है !संविधान के अनुछेद 21 मे "”जीवन और स्वतन्त्रता के अधिकार पर विचार करते हुए अदालत ने बेगुनाहों को बचाने के लिए अदालत ने फैसला दिया था !

   न्यायालय की इस टिप्पणी से अनेकों सवाल खड़े होते है – प्रथम -यह की शिकायत के झूठी होने का प्रमाण क्या है ? क्या अभियुक्त के बाइज्जत बरी हो जाने से उसके खिलाफ लगे आरोप "”झूठे साबित "” हो जाते है ? इस तर्क से तो पुलिस मे जांच करने वाले अधिकारी बहुत बड़ी संख्या मे – झूठी शिकायत के दायरे मे आएंगे ?? क्योंकि उनके द्वारा  दायर  किए गए मामलो मे मात्र एक तिहाई मे ही अभियोगी को सज़ा मिल पाती है !! और फिर दौरान मुकदमा अभियोगी का जेल मे रहना भी दंड है | यह सही है की की अगर अभियोगी दोषी सिद्ध होता है तो --जेल मे रहने की उसकी अवधि को "”सज़ा "” से घटा दिया जाता है | परंतु अन्य के लिए क्या होगा ?

  कानून के दुरुपयोग के संबंध मे दी गयी दलील पर न्यायधीश की टिप्पणी की "” कानून का दुरुपयोग कोई भी कर सकता है -पुलिस भी कर सकती है | इसीलिए "”छन्ना"” लगाया गया है | अब सवाल यह भी है की यह “”चलनी “” क्या दूसरे मामलो भी लगाई जाएगी ? जैसे यौन शोषण – अपराधो मे या सरकारी अफसरो द्वरा अपने दावित्व के निर्वहन मे असफल अथवा जानबूझ कर लटकाने के मामले मे ?? दहेज उत्पीड़न मे भी ऐसी ही “”चलनी “” सुप्रीम कोर्ट द्वरा लगाई गयी -उसको लेकर ना तो कोई आंदोलन हुआ और नाही याचिकाए दायर की गयी !! क्यो ? ऐसा इसलिए हुआ चूंकि अधिकतर मामलो मे लड़की के घर वाले “”कुपित और शोक संतप्त हो कर उसके ससुराल वालो को “” दंडित करने के इरादे से सभी घरवालो को नामजद अभियुक्त बना देते थे “” | यद्यपि बहुतायत मे ऐसे मामलो मो “”” दोष सिद्ध नहीं हो पाता था और दो - चार सालो तक कचहरी के दालत के चक्कर काटने के पश्चात वे मुक्त होते थे | एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य यह भी रहा की दहेज के मामलो मे "”दोनों ही पक्ष ''' सवर्ण होते है | क्योंकि दलितो मे दहेज ऐसी बीमारी के मरीज हजारो मे एक -आध ही होंगे | इसलिए जनहा सुप्रीम कोर्ट के दहेज वाले मामले मे "”रिपोर्ट के पहले जांच और अभ्युक्तों को जमानत की सुविधा दी गयी उसको लेकर कुछ नारी संगठनो के अलावा कोई ज्यादा ''हाय तोबा'' नहीं दिखाई पड़ी | परंतु वर्तमान मामले मे समाज के दलित जिनके अधिकारो को सरकारी अमले और समाज के दबंगों द्वरा कुचला जाता है – उनमे आक्रोश भर गया | क्योंकि अभी तक दबंग भी यह समझते थे की दलितो पर की गयी ज्यादती - कनही उन्हे "”जेल"” न पहुंचा दे | पर अब वह डर समाप्त हो जाएगा |

   सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने कहा की झूठी शिकायत के आधार पर कोई महाधिवक्ता पर आरोप लगा दे तब क्या होगा ?? सरकारी कर्मचारी कैसे काम कर पाएंगे ?? मुझे आश्चर्य होता है की "”अपराध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के द्वारा सभी शासकीय कर्मियों को उनके द्वरा किए गए कार्य को "दायित्व निर्वहन "” मान कर अभियोजन से संरक्षण दिया गया है | ऐसे मे अगर कोई महाधिवक्ता पर आरोप लगाया जाएगा --तो उनके उच्चाधिकारी की अनुमति के बिना ---मुकदमा नहीं चलाया जा सकता | अब इस प्रविधान का ख्याल अगर न्यायमूर्तियों को नहीं आया तो यह दुखद ही कहा जाएगा |

    जंहा तक "जेल "” रहना भी दंड है ---तो हमे सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ द्वरा हाल ही मे सुनाये गए फैसले को ध्यान मे रखना होगा --जिसमे राज्यो को निर्देश दिया गया है की वे जेल की "” छंमता से अधिक बंदी नहीं रखे जाये "” | यह निर्देश ही पर्याप्त है की जेलो मे विचारधीन बंदियो की संख्या सज़ा पाये क़ैदियो से कनही ज्यादा है | ऐसे बंदी सालो से बंदीगृह मे पड़े हुए है | न तो उनके मामलो की सुनवाई हो रही है और ना ही उन्हे जमानत मिल रही है | वैसे भी जमानत के लिए भी अदालती खर्चा इतना अधिक है की नब्बे फीसदी विचारधीन बंदी उसको करने मे असमर्थ है |