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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 3, 2015

2 जी 3 जी कामन वैल्थ से लेकर कोल गेट तक व्याप्त भृष्टाचार मे आरोपो का सत्य महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट के आधार पर उपरोक्त सभी मामलो मे वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगे थे | जिसकी जांच सीबीआई द्वारा की गयी | इन सभी मामलो मे तत्कालीन सरकार से जुड़े कांग्रेसी नेताओ को बेईमान आरोपित किया गया था | परंतु दिल्ली के सीबीआई के विशेष जज ब्रजेस गर्ग ने छह लोगो को सज़ा दी है | जिनमे कोई भी नेता नहीं है |इस से यह तो साबित हो गया की ये सब आरोप भी बोफोर्स की तरह नकली है | यह पहला मामला है , कामनवेल्थ मे गड़बड़ी के दस मामले दर्ज़ किए गए थे जिनमे यह पहला मामला था| अब बाक़ी के मामलो मे क्या होता है देखने की बात होगी | क्योंकि इन मामलो मे दिल्ली की तत्कालीन मुख्य मंत्री शीला दीक्षित तथा आयोजन समिति के अध्यक्ष कलमाड़ी और कई अन्य नेताओ के नाम भी घसीटे गए थे | परंतु नियंत्रक की रिपोर्ट मे इन नेताओ को आरोपित नहीं किया गया था | बेवजह किसी भी मामले मे सरकार को दोषो बताना तथा बेईमानी का आरोपी बनाने का रिवाज हो गया है | सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले मे अभी कहा है की यदि आरोपी जांच मे सहयोग कर रहे तो उनको गिरफ्तार करनेसे जांच एजेंसियो को बचना चाहिए | न्यायमूर्ति ए के सिकरी और आर एफ नरीमन की बेंच ने टिप्पणी की “”लोग दोषी ठहराए जाने के बाद की गिरफ्तारी और , दोष सिद्ध होने के पूर्व की गिरफ्तारी के अंतर को नहीं समझते है | गिरफ्तारी के कई गंभीर नतीजे होते है ---जिसका असर ना केवल आरोपी वरन उसके परिवार तथा समाज पर प्रतिकूल असर डालती है | उन्होने हिरासत और क़ैद का अंतर आम लोगू द्वारा नहीं समझे जाने के कारण ,, सामाजिक प्रतिस्ठा की हानि अपूरणीय होती है | जिसकी भरपाई नहीं हो सकती |

2 जी 3 जी कामन वैल्थ से लेकर  कोल गेट  तक व्याप्त भृष्टाचार मे आरोपो का सत्य

         महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट के आधार पर उपरोक्त सभी मामलो मे वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगे थे | जिसकी जांच  सीबीआई द्वारा की गयी | इन सभी मामलो मे  तत्कालीन सरकार से जुड़े कांग्रेसी नेताओ को बेईमान आरोपित किया गया था | परंतु दिल्ली के सीबीआई के विशेष जज ब्रजेस गर्ग ने छह लोगो को सज़ा दी है | जिनमे कोई भी नेता नहीं है |इस से यह तो साबित हो गया की ये सब आरोप भी  बोफोर्स की तरह नकली है |
         यह पहला मामला है , कामनवेल्थ मे गड़बड़ी के दस मामले दर्ज़ किए गए थे जिनमे यह पहला मामला था| अब बाक़ी के मामलो मे क्या होता है देखने की बात होगी | क्योंकि इन मामलो मे  दिल्ली की तत्कालीन मुख्य मंत्री शीला दीक्षित तथा आयोजन समिति के अध्यक्ष कलमाड़ी और कई अन्य नेताओ के नाम भी घसीटे गए थे | परंतु नियंत्रक की रिपोर्ट मे इन नेताओ को आरोपित नहीं किया गया था |

             बेवजह किसी भी मामले मे सरकार को दोषो बताना तथा बेईमानी का आरोपी बनाने का रिवाज हो गया है | सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले मे अभी कहा है की यदि आरोपी जांच मे सहयोग कर रहे तो उनको गिरफ्तार करनेसे जांच एजेंसियो को बचना चाहिए | न्यायमूर्ति  ए के सिकरी और आर एफ नरीमन की बेंच ने टिप्पणी की  “”लोग दोषी ठहराए जाने के बाद की गिरफ्तारी और , दोष सिद्ध होने के पूर्व की गिरफ्तारी के अंतर को नहीं समझते है | गिरफ्तारी के कई गंभीर नतीजे होते है ---जिसका असर ना केवल आरोपी वरन उसके परिवार तथा समाज पर प्रतिकूल असर डालती है |  उन्होने हिरासत और क़ैद का अंतर आम लोगू द्वारा नहीं समझे जाने के  कारण ,, सामाजिक प्रतिस्ठा की हानि अपूरणीय  होती है | जिसकी भरपाई नहीं हो सकती |