मंदिरो और मस्जिदों का गणतन्त्र – बन गया है
भारत !
आप रेल यात्रा के बाद जब कनही {अधिकतर
अवसरो पर } स्टेशन से बाहर निकलेंगे तब आप को आम तौर पर कोई ना कोई हनमान मंदिर या शिव मंदिर और कोई
मज़ार जरूर दिखाई दे जाएगी ! यह सब सरकारी जमीन पर बनाए गए हैं | जिसे अतिक्रमण कहा जाता हैं | अकेले मध्य प्रदेश में भी ऐसे अतिक्रमण कर के
बनाए गए मंदिरनुमा जगहो की संख्या हाइ
कोर्ट ने विगत आठ साल से राज्य सरकार
से बताने को कहा है -----परंतु सरकार आज
तक ऐसे निर्माणों की गिनती ही कर रही हैं
! प्रदेश की राजधानी में झुग्गी झोपड़ी का इलाका हो अथवा आईएएस
अफसरो की रिहाइश का स्थान चार इमली
या 74 बंगले हो , सभ जगह आप को मंदिर मिल जाएंगे | निश्चित ही यह भूमि खरीदा कर
और टाउन अँड कंट्री प्लाननिंग स अनुमति लेकर नहीं बनाए गए हैं | और यह सब मंत्री मण्डल और सीनियर नौकरशाहों के नाको तले ही हुआ है 1
आम
तौर पर ये उपासना स्थल सड्कों के किनारे
फूटपाथ का अतिक्रमण कर के बनाए गए होते हैं | जिसका रखवाला कोई
इलाके का दबंग होता हैं –जिसे किसी न किसी राजनीतिक नेता का संरक्षण प्रापत होता हैं | इसी कारण
पुलिस भी इस “””गैर कानूनी “” निर्माण और उसके लिए जिम्मेदार पर कारवाई नहीं करती | एक अनुमान के अनुसार इस अतिक्रमण में सनातन –मुस्लिम के अलावा जैन समुदाय के लोग बी शामिल पाये जाते हैं | भोपाल में एक अनुमान के अनुसार 60 से अधिक जैन मंदिर है –जिनमे मात्र तीन
ने ही भूमि खरीदा कर मंदिर का निर्माण किया हैं | जबकि यह मत के अनुयाई काफी अमीर
होते हैं | जिसला प्रमाण
मनुभन की टेकरी पर बने मंदिर तथा
कमलापति स्टेशन को जाने वाली रोड पर निर्माणाधीन मंदिर है | एक अनुमान के
अनुसार इस मंदिर पर 500 करोड़ से अधिक खर्च किया जा चुका है |
क्या यह धन राशि कोई अस्पताल या विद्यलय अथवा व्रध आश्रम के निर्माण में नहीं लगाई जा सकती थी ? वैसे जिसका पैसा उसका फैसला | लेकिन सवाल तो उठता
ही है , मंदिर से समाज के लोगो को दर्शन के अलावा और कौन
सुविधा मिली ? क्या गरीब विद्यारथी को फीस और किताब मिली “\? बीमारों को इलाज़ मिला ? मुसलमानो की मस्जिदों की संख्या
में इजाफा तो नहीं हुआ ---हाँ मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूर हुआ |
अभी बोहरा
गुरु सैयदना साहेब ने अपनी जमात से कहा हैं की वे अपने लोगो की सेहत की जांच के
लिए इंटेजामत करे | यह निर्देश उनके धरम के लोगो की
बेहतरी का फैसला है |
क्या अन्य धर्मो के गुरु ऐसा निर्देश नहीं दे सकते ! शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए समाज को खुद ही आगे आना होगा | सरकार के मंदिरो और मस्जिदों का गणतन्त्र – बन गया है भारत !
आप रेल यात्रा के बाद जब कनही {अधिकतर
अवसरो पर } स्टेशन से बाहर निकलेंगे तब आप को आम तौर पर कोई ना कोई हनमान मंदिर या शिव मंदिर और कोई
मज़ार जरूर दिखाई दे जाएगी ! यह सब सरकारी जमीन पर बनाए गए हैं | जिसे अतिक्रमण कहा जाता हैं | अकेले मध्य प्रदेश में भी ऐसे अतिक्रमण कर के
बनाए गए मंदिरनुमा जगहो की संख्या हाइ
कोर्ट ने विगत आठ साल से राज्य सरकार
से बताने को कहा है -----परंतु सरकार आज
तक ऐसे निर्माणों की गिनती ही कर रही हैं
! प्रदेश की राजधानी में झुग्गी झोपड़ी का इलाका हो अथवा आईएएस
अफसरो की रिहाइश का स्थान चार इमली
या 74 बंगले हो , सभ जगह आप को मंदिर मिल जाएंगे | निश्चित ही यह भूमि खरीदा कर
और टाउन अँड कंट्री प्लाननिंग स अनुमति लेकर नहीं बनाए गए हैं | और यह सब मंत्री मण्डल और सीनियर नौकरशाहों के नाको तले ही हुआ है 1
आम
तौर पर ये उपासना स्थल सड्कों के किनारे
फूटपाथ का अतिक्रमण कर के बनाए गए होते हैं | जिसका रखवाला कोई
इलाके का दबंग होता हैं –जिसे किसी न किसी राजनीतिक नेता का संरक्षण प्रापत होता हैं | इसी कारण
पुलिस भी इस “””गैर कानूनी “” निर्माण और उसके लिए जिम्मेदार पर कारवाई नहीं करती | एक अनुमान के अनुसार इस अतिक्रमण में सनातन –मुस्लिम के अलावा जैन समुदाय के लोग बी शामिल पाये जाते हैं | भोपाल में एक अनुमान के अनुसार 60 से अधिक जैन मंदिर है –जिनमे मात्र तीन
ने ही भूमि खरीदा कर मंदिर का निर्माण किया हैं | जबकि यह मत के अनुयाई काफी अमीर
होते हैं | जिसला प्रमाण
मनुभन की टेकरी पर बने मंदिर तथा
कमलापति स्टेशन को जाने वाली रोड पर निर्माणाधीन मंदिर है | एक अनुमान के
अनुसार इस मंदिर पर 500 करोड़ से अधिक खर्च किया जा चुका है |
क्या यह धन राशि कोई अस्पताल या विद्यलय अथवा व्रध आश्रम के निर्माण में नहीं लगाई जा सकती थी ? वैसे जिसका पैसा उसका फैसला | लेकिन सवाल तो उठता
ही है , मंदिर से समाज के लोगो को दर्शन के अलावा और कौन
सुविधा मिली ? क्या गरीब विद्यारथी को फीस और किताब मिली “\? बीमारों को इलाज़ मिला ? मुसलमानो की मस्जिदों की संख्या
में इजाफा तो नहीं हुआ ---हाँ मरम्मत और पुनर्निर्माण जरूर हुआ |
अभी बोहरा
गुरु सैयदना साहेब ने अपनी जमात से कहा हैं की वे अपने लोगो की सेहत की जांच के
लिए इंटेजामत करे | यह निर्देश उनके धरम के लोगो की
बेहतरी का फैसला है |
क्या अन्य धर्मो के गुरु ऐसा निर्देश नहीं दे सकते ! शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए समाज को खुद ही आगे आना होगा | सरकार के प्रयासो की निरर्थकता
हम हम देख रहे हैं और देख चुके हैं
क्यू
नजरे झुकी रहती है भंडारे और प्रसादी वितरण
में और क्यू नज़र उठा कर लंगर में भोजन पाते है !
भूखों को भोजन सम्मान के साथ देना कोई
सिखो के गुरुद्वारों के लंगर से सीखे , वे बिना किसी भेदभाव
के वेषभूषा को देखे बिना हिन्दू – मुस्लिम और ईसाइयो तक को लंगर खिलाते है | लंगर की लाइन
में बैठे व्यक्ति से उसकी शकल या पोशाक लंगर बांटने वालो का ध्यान नहीं होता है –वे
तो बस बड़े बाबा [गुरु नानक देव ] की सीख को
पूरा करते है|
इसके मुक़ाबले कभी –कभार मंदिरो में पर्व पर आयोजित भंडारे में
पूड़ी बांटने वाले लोगो की शकल और कपड़ो के आन्सर व्यवहार करते है | वे कृपा स्वरूप भोजन वितरण करते है ---कर्तव्य स्वरूप नहीं ! यही अंतर है
सनातान धरम के मंदिरो में | तिरुपति बालाजी का प्रसाद
हो या जगन्नाथ पूरी का अथ्वा मंजूनाथ जी का
भंडारा हो दक्षिण के इन मंदिरो में फिर भी
ग्रहस्थ और भूखे में अंतर नहीं करते | क्यूंकी
वनहा भी मंदिरो में चावल का प्रसाद देने की परंपरा सदियो से चली आ रही हैं |
बॉक्स
सनातन
धरम के अनुसार मंदिर के देवता उस छेत्र –या
नगर अथवा ग्राम के भी रक्षक देवता होते हैं | विवाह – यज्ञोपवीत अथवा अन्य आयोजनो में ग्राम –या
नगर देवता की पुजा इसी आशा से किजाति है की
वे यजमान के परिवार की आपदाओ से रक्षा करेंगे |
परंतु तिरुपति
बालाजी के देवस्थानम प्रबंधन ने जम्मू में भी अपने मंदिर की शाखा खोल दी है !! यह तथ्य
ओह माय गाड फिल्म के डायलग जैसा है जिसमे पात्र
बाबाओ पर व्यंग करते हुए कहता हैं की – क्या भगवान के नाम पर मंदिरो की ब्रांच खोल
ली है ! वैसे बिरला समूह द्वरा राधा – क्राइष्ण के देश के मंदिरो कोउनके देवताओ से अधिक बिरला मंदिर के नाम से ही जाना जाता हैं | इस कड़ी में कानपुर का जे के मंदिर
भी हैं | दक्षिण भारत में सदियो पहले राजवंशो द्वरा निर्मित मंदिर उनके निर्माताओ
के नाम से नहीं वरन उसके देवताओ के नाम से जाने जाते हैं |
भूखों को भोजन सम्मान के साथ देना कोई
सिखो के गुरुद्वारों के लंगर से सीखे , वे बिना किसी भेदभाव
के वेषभूषा को देखे बिना हिन्दू – मुस्लिम और ईसाइयो तक को लंगर खिलाते है | लंगर की लाइन
में बैठे व्यक्ति से उसकी शकल या पोशाक लंगर बांटने वालो का ध्यान नहीं होता है –वे
तो बस बड़े बाबा [गुरु नानक देव ] की सीख को
पूरा करते है|
इसके मुक़ाबले कभी –कभार मंदिरो में पर्व पर आयोजित भंडारे में
पूड़ी बांटने वाले लोगो की शकल और कपड़ो के आन्सर व्यवहार करते है | वे कृपा स्वरूप भोजन वितरण करते है ---कर्तव्य स्वरूप नहीं ! यही अंतर है
सनातान धरम के मंदिरो में | तिरुपति बालाजी का प्रसाद
हो या जगन्नाथ पूरी का अथ्वा मंजूनाथ जी का
भंडारा हो दक्षिण के इन मंदिरो में फिर भी
ग्रहस्थ और भूखे में अंतर नहीं करते | क्यूंकी
वनहा भी मंदिरो में चावल का प्रसाद देने की परंपरा सदियो से चली आ रही हैं |
सनातन
धरम के अनुसार मंदिर के देवता उस छेत्र –या
नगर अथवा ग्राम के भी रक्षक देवता होते हैं | विवाह – यज्ञोपवीत अथवा अन्य आयोजनो में ग्राम –या
नगर देवता की पुजा इसी आशा से किजाति है की
वे यजमान के परिवार की आपदाओ से रक्षा करेंगे |
परंतु तिरुपति
बालाजी के देवस्थानम प्रबंधन ने जम्मू में भी अपने मंदिर की शाखा खोल दी है !! यह तथ्य
ओह माय गाड फिल्म के डायलग जैसा है जिसमे पात्र
बाबाओ पर व्यंग करते हुए कहता हैं की – क्या भगवान के नाम पर मंदिरो की ब्रांच खोल
ली है ! वैसे बिरला समूह द्वरा राधा – क्राइष्ण के देश के मंदिरो कोउनके देवताओ से अधिक बिरला मंदिर के नाम से ही जाना जाता हैं | इस कड़ी में कानपुर का जे के मंदिर
भी हैं | दक्षिण भारत में सदियो पहले राजवंशो द्वरा निर्मित मंदिर उनके निर्माताओ
के नाम से नहीं वरन उसके देवताओ के नाम से जाने जाते हैं |