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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 12, 2019


अभिव्यक्ति पर देशद्रोह जब लगता है तब भारत का संविधान रोता हैं और खान्-पान पर भीड़ जब हत्या करती है तब संविधान की हत्या होती हैं !!

देश में विगत चार वर्षो से समाज को धर्मो के नाम पर विभाजित करने की संन्गठित प्रयासो से सरकार के विरोध को देशद्रोह की संज्ञा पुलिस द्वरा की गयी है – वह वास्तव में अभिव्यक्ति पर हमला है | राजस्थान - उत्तर प्रदेश और हरियाणा में जिस प्रकार गाय की हत्या की नाम पर गौ रक्षको ने मुसलमानो से मारपीट कर उनकी हत्या की है – उसे सुप्रीम कोर्ट के न्ययाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इनहि शब्दो में व्यक्त किया हैं | अभी दो दिन पूर्व न्यायाधीश सीकरी ने भी मीडिया द्वरा मामलो का ट्राइल किए जाने पर छोभ व्यक्त किया है | उन्होने कहा की प्राथमिक अदालत के फैसले पर अपील में संशोधन किए जाने अथवा उसे निरष्ट किए जाने  जजो पर व्यक्तिगत जीवन पर आछेप किए जाते हैं | भेद या एक वर्ग एक खाश निर्णय नहीं होने पर हम लोगो की निष्ठा पर प्रश्न खड़े करते है | संभवतः मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उनके विश्व हिन्दू परिषद द्वरा जिस प्रकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन के आदेश को निरस्त किया ----तब पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लोगो ने मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेप्फ़ के वीरुध कोङ्ग्रेस्सी मानसिकता होने का आरोप लगाया था| जैसे न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन को निरष्ट करने का कोई यह पहला मामला था | ज्ञात हो एनटी रामाराव की सरकार को हटाने के लिए तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने यह किया था \ तब भी अदालत ने उस आदेश को निष्प्रभावी करार दिया था | फलस्वरूप तत्कालीन राज्यपाल रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा था | तब तो किसी ने न्यायालय के फैसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिस नहीं की थी ---- यह प्रथा विगत चार वर्षो में ही उपजी है – मोदी सरकार या संघ के किसी आदमी {{ संघ में सदस्यता नहीं शिष्यता होती हैं }} पर कानून की कारवाई की जाती है तब केंद्रीय सरकार तक हिल जाती हैं | केरल के कुन्नूर में आपसी लड़ाई में एक स्वयंसेवक की हत्या हुई --कहा जाता है की वह सीपीएम के एक कार्यकर्ता की हाती के मामले में अभियुक्त था | तब केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वनहा के राज्यपाल और मुख्य मंत्री से जवाब तलब किया था | इतनी फुर्ती उन्होने बुलंदशहर में विश्व हिन्दू परिषद की भीड़ द्वरा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या में नहीं दिखाई -जबकि यह उनके गृह राज्य का मामला था !! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चुनावी मूड में गैर बीजेपी राज्यो मे कानून -व्यसथा को "”अराजकता ही बताते हैं "” | वे भूल जाते है की उनका पद सारे देश के राज्यो के लिए समान है | वे सिर्फ अपनी सरकार के निर्णयो को {{ भले ही वे अतिरंजित रूप में प्रस्तुत किए गए हों }} ही विगत 60 वर्षो में स्वर्णिम काल बताते घूमते हैं
बाम्बे हाई कोर्ट के जुस्टिस देसाई मेमोरियल भाषण माला में बोलते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ की व्यथा मुंबई के कार्टूनिस्ट को प्रधान मंत्री का कार्टून बनाने पर देशद्रोह का अभियुक्त बनाने और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के तीन छात्रो कनहिया कुमार - अनिरवन तथा उमर पर देश द्रोह का मुकदमा चलये जाने से संभवतः उपजी होगी | हालांकि बाद में पहले मामले में मुकदमा वापस लेना पड़ा | जे एन यू के मामले में तीन वर्ष पूर्व हुई तीनों की गिरफ्तारी में पुलिस नब्बे दिन में चार्ज शीट नहीं दाखिल कर पायी इसलिए इन तीनों को उच्च न्यायालय से जमानत मिल गयी | अब तीन साल बाद जब अदालत में चार्ज शीट दायर करने पटियाला कोर्ट पहुंची तब जज ने इस आरोप में सरकार की आवश्यक अनुमति के बारे में पूछा -----तब पता चला की पूरा केस बिना सरकार की मंजूरी के {{ किसी ऊपर वाले के निर्देश पर }} ही अंजाम दिया गया हैं !

स्त्री - पुरुष समानता का हवाला देते हुए उन्होने कहा की सबरीमाला में सिर्फ एक वर्ग की महिलाओ के प्रवेश पर निषेध क्यो ? धार्मिक अधिकार तो दोनों के बराबर हैं | अगर किसी महिला को उसके अधिकारो से वंचित किया जाता हैं -तो यह संविधान के अनुछेद 14 15 का उल्लंघन हैं | यानहा यह याद रखने की बात है की सुप्रीम कोर्ट द्वरा सभी आयु की महिलाओ को सबरीमाला में प्रवेश दिये जाने के फैसले का कुछ दक्षिण पंथी संगठनो और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था की "” अदालतों को भी धार्मिक रिवाजो में दखलंदाज़ी नहीं करनी चाहिए | क्योंकि यह करोड़ो लोगो की मानीता सरकार के मधी का सवाल हैं "”” | अब सबरीमाला देवस्थानम द्वरा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को स्वीकार करने पर अमित शाह क्या बोलेंगे ???
कर्नाटक में और महाराष्ट्र में कलबूरगी और गौरी लंकेश की की हत्या के पीछे गोवा की सनातन संस्था का हाथ होने के शक पर भी जशटिश चंदचूड ने कहा की समजाइक कुरीतियो के खिलाफ आवाज उठाने वालो और लिखने वालो की आवाज को दबा देना ---संविधान का अपमान है | बदलते समय में हमारे मूल्यो मे बदलाव आएगा | जो सामाजिक और सान्स्क्रतिक स्तर पर होगा |

मोदी और बंगाल सरकार के मध्य चल रही रस्साकशी में सीबीआई की कारस्तानी का जवाब वनहा की पुलिस और सुप्रीम कोर्ट के फैसलो से मिल रहा है :-

1:- जिस सारदा चित फंड घोटाले में पूछताछ के लिए कलकत्ता पुलिस कमिसनर राजीव कुमार और कुनाल घोष से तीन दिनो से शिलांग में सवाल -जवाब किए जा रहे हैं | उसमें सीबीआई ने दो लोगो मोहता और एमपी सिंह को हिरसत में लिया हुआ हैं | सिंह की 240 करोड़ की संपाती को भी कुर्क कर लिया हैं | हालांकि अभी ऐसे कोई आदेश अदालत से नहीं हुए हैं | इसी मामले में पूर्व आईपीएस अफसर भारती घोष ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी की उन्हे दुश्मनी के कारण ममता सरकार फंसा रही है | इसलिए न्याय हिट में इस मामले की जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट खुद करे | उनकी इस प्रार्थना को प्रधान न्यायधीश गोगोई की बेंच ने ठुकरा दिया | भारती ने सप्ताह भर पूर्व ही भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता दिल्ली में ली थी |

2:--बाम्बे हाइ कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की याचिका को खारिज कर दिया है | गौरतलब है की वे मालेगाव बम कांड में मुखी आरोपी हैं | मोदी सरकार ने उन पर इतने गंभीर आपराधिक मुकदमें के बावजूद उन्हे सेना मे वापस भेज दिया था | उन्होने अदालत से प्रार्थन की थी की पुलिस द्वरा उनके वीरुध दर्ज़ एफ आई आर को निरष्त कर दें | जिस पर अदालत ने कोई राहत नहीं दी | और उच्च न्यायालय में अपील दाखिल करने पर भी रोक लगा दी|

3:- त्रन्मूल काँग्रेस के सांसद रहे मुकुल रॉय , जो सारदा चित फंड घोटाले में एक अभियुक्त है -और जी वर्तमाना में भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी है | उनसे सीबीआई द्वरा पूछताछ नहीं किए जाने पर कई बार सवाल उठाए गए | परंतु सीबीआई ने इसे रूटीन बताया | लेकिन वनही बंगला पुलिस ने अब उन्हे त्राणमूल विधायक बिस्वास की हत्या में अभियुक्त बनाया हैं ! अब सीबीआई की गिरफ्त से तो भाजपा में जाने से बचे थे ---पर बंगाल पुलिस से कैसे बचेंगे ??

4:- भारतीय जनता पार्टी को कलकत्ता हाइ कोर्ट ने ममता सरकार के आदेश के वीरुध याचिका पर नसीहत देते हुए कहा है ---सरकार ने छत्रों की परीक्षा के कारण फरवरी से मार्च के माह में लाउड स्पीकर के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है | जो बच्चो के जीवन के लिए महत्व पूर्ण है | उन्होने बीजेपी की इस दलील को नामंज़ूर कर दिया की इस प्रतिबंध से लोकसभा चुनावो पर बहुत असर पड़ेगा | अदालत ने कहा की चुनाव प्रचार से ज्यादा महत्वपूर्ण परीक्षाए है " और बीजेपी को एक और पराजय का सामना करना पड़ा |


संभवतः मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उनके विश्व हिन्दू परिषद द्वरा जिस प्रकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन के आदेश को निरस्त किया ----तब पहली बार भारतीय जनता पार्टी के लोगो ने मुख्य न्यायाधीश के एम जोसेप्फ़ के वीरुध कोङ्ग्रेस्सी मानसिकता होने का आरोप लगाया था| जैसे न्यायालय द्वरा राष्ट्रपति शासन को निरष्ट करने का कोई यह पहला मामला था | ज्ञात हो एनटी रामाराव की सरकार को हटाने के लिए तत्कालीन काँग्रेस सरकार ने यह किया था \ तब भी अदालत ने उस आदेश को निष्प्रभावी करार दिया था | फलस्वरूप तत्कालीन राज्यपाल रामलाल को इस्तीफा देना पड़ा था | तब तो किसी ने न्यायालय के फैसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिस नहीं की थी ---- यह प्रथा विगत चार वर्षो में ही उपजी है – मोदी सरकार या संघ के किसी आदमी {{ संघ में सदस्यता नहीं शिष्यता होती हैं }} पर कानून की कारवाई की जाती है तब केंद्रीय सरकार तक हिल जाती हैं | केरल के कुन्नूर में आपसी लड़ाई में एक स्वयंसेवक की हत्या हुई --कहा जाता है की वह सीपीएम के एक कार्यकर्ता की हाती के मामले में अभियुक्त था | तब केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वनहा के राज्यपाल और मुख्य मंत्री से जवाब तलब किया था | इतनी फुर्ती उन्होने बुलंदशहर में विश्व हिन्दू परिषद की भीड़ द्वरा एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या में नहीं दिखाई -जबकि यह उनके गृह राज्य का मामला था !! प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने चुनावी मूड में गैर बीजेपी राज्यो मे कानून -व्यसथा को "”अराजकता ही बताते हैं "” | वे भूल जाते है की उनका पद सारे देश के राज्यो के लिए समान है | वे सिर्फ अपनी सरकार के निर्णयो को {{ भले ही वे अतिरंजित रूप में प्रस्तुत किए गए हों }} ही विगत 60 वर्षो में स्वर्णिम काल बताते घूमते हैं |
उनके इस प्रयास को और उनकी यात्राओ को [[जो बताई जाती हैं --सरकारी , भले ही उनमें चुनाव प्रचार हो }} कितना उचित माना जाये --यह प्रश्न पाठको पर छोडता हूँ |