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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 15, 2021

 

नेता -नीति के अनुपालन पर सवाल लोकतन्त्र में जरूरी है -द्रोह नहीं



आजकल स्वीडन की बस निर्माता कंपनी स्कीनिया से ऑर्डर देने के एवज़ में "” उपक्रत"” होने के आरोप पर परिवहन मंत्री गडकरी जी पर आरोप लगे हैं |उन्होने भी इन रिपोर्टों पर "”मानहानि का नोटिस कंपनी को भेजा हैं | वास्तव में यह तथ्य स्कीनिया की वार्षिक रिपोर्ट में उसके सीईओ ने उजागर किया हैं | इस पर विपक्ष की आलोचना को देश का अपमान बताया जा रहा हैं ! उन लेखको को याद दिलाना होगा की बोफोर्स तोप मामले भी इसी देश से अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप लगा था | यानहा तक की समाचार पत्रो ने तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के परिवार को इस कांड में सम्मिलित होने का आरोप लगाया था ! परिणाम लोकसभा चुनाव में काँग्रेस को बहुमत नहीं मिला ! बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सारे मामले की कानूनी जांच की और इन आरोपो को शरारत पूर्ण बताया और गांधी परिवार को "”क्लीन चिटदी "” तब क्या किसी विरोधी दल ने उन रिपोर्ट को "”देश को बदनाम करने वाला नहीं बतया था "” खासकर संघ और बीजेपी नेताओ ने | अगर तब देश का अपमान नहीं था तब किस पैमाने से आज यह राष्ट्र का अपमान हो गया ???

अभी मैं कुछ पुरानी किताबे देख रहा था – एक ब्रिटिश पत्रकार जिनहोने बाद में उपन्यास भी लिखे और वे सांसद भी बने | सत्तर के दशक मे "”कोल्ड वार"” पर आधारित उनके कई उपन्यास बेस्ट सेलर रहे हैं | उनही का उपन्यास है "”ओड़ेस्सा फाइल "” जो दूसरे विश्व युद्ध के यहूदी नर संहार के जिम्मेदार हिटलर के नाजी एसएस अफसरो की खोज में निकला हैं | लेखक पत्रकार की भूमिका में हैं , वह एक जर्मन हैं दोषियो को सज़ा दिलाने की खोज में उसे हिटलर के लोग --- समझाते हैं की तुम एक आर्यन हो जर्मन हो तुम अपने देश वासियो को क्यू सज़ा दिलाना चाहते हो ??

उसका जवाब होता है हम जर्मन अनुशासन प्रिय लोग हैं - एक शासक्त नेता {हिटलर } के कहे अनुसार हम चलते रहे | जब उसके फौजी दस्तो ने बेगुनाह यहूदियो को लारियो में भर भर कर यंत्रणा शिविरो में ले जाने लगे , तब उनके जर्मन मित्र - मालिक और मजदूर उस अन्याया को देखते रहे | इसलिए कितना भी शक्तवन नेता हो ---उसकी नीति और फैसलो पर न्याय और अन्याया की कसौटी पर परखा जाना चाहिए | ऐसा जर्मन नागरिकों ने नहीं किया , जिसका परिणाम हैं की दुनिया के देशो में गैर यहूदी भी हम पर थूकते हैं | हमारा सर लज्जा से आज दुनिया के सामने झुका हैं | हमारे पूर्वजो ने हमे विरासत में एक भ्रष्ट नेता के लज्जाजनक निर्णयो की नफरत साहनी पद रही हैं | यह बात हर उस लोकतान्त्रिक देश पर लागू होती हैं जनहा सरकार और राष्ट्र को एक समझ लिया जाता है अथवा समझा दिया जाता हैं | कुछ -कुछ ऐसा ही भारत में हो रहा हैं | जनहा पुलिस किसी के इशारे पर "”देशद्रोह "” का मुकदमा 21 साल की लड़की और 80 साल के व्रद्ध को इसी आरोप में बंद कर दिया जाता हैं | अदालतों के बार बार कहने पर भी सरकार से असहमति अथवा उसके फैसलो की आलोचना देशद्रोह नहीं हैं | परंतु फिर भी "”भक्त गण "” किसी भी व्यक्ति की सरकार के फैसलो की आलोचना को सोशल मीडिया पर देशद्रोही बताना शुरू कर देते हैं !

एक अमेरिकी संस्था जिसको वनहा की काँग्रेस {संसद|} द्वरा वितिय सहाता दी जाती हैं | ,और जो उनके सांसदो के लिए शोध का भी काम करती हैं | उसने भारत को "” एकतंत्र "” यानि भ्रष्ट लोकतन्त्र की श्रेणी में रखा हैं | अब स्वयंभू देशभक्तों को लगता हैं की प्राइम हाउस की की रिपोर्ट "” भारत एक आंशिक आज़ाद देश " की श्रेणी में हैं ! क्या यह तथ्य नहीं हैं की आज़ादी के बाद देशद्रोह के जितने मुकदमें 2014 से अब तक दायर हुए हैं , उतने 1947 से 2014 के मध्य भी नहीं हुए थे , क्या तब देश में चुनी हुई सरकार नहीं थी ? क्या नोटबंदी से उन लछयों को प्रपट किया जा सका ---जिसका वर्णन प्रधान मंत्री मोदी ने राष्ट्र के सम्बोधन मेन किया था ? क्या काला धन बाहर आ गया ? हाँ विमुद्रीकरण से ग्रामीण छेत्रों में महिलाओ के बचत को भी इस फैसले बर्बाद कर दिया | कितने लोगो को लाइनों में लगना पड़ा ? कोई डाक्टर -वकील और व्यापारी को इन लाइनों में नहीं देखा गया ? तो क्या काला धन उस गरीब मजदूर की कमाई थी जिसे उसने बंकों में जमा नहीं किया ? एक अरब की आबादी वाले देश में लखपतियों -और करोडपतियों को तो मुद्रा सुलभ होती रही ----पर कान्हा से और कैसे ? क्या सरकार बताएगी ?

अब कोरोना के कारण की गयी देश व्यापी लाक डाउन में मरने वाले सैकड़ो भारतीयो की जान इतनी सस्ती थी की ----मोदी सरकार ने उनका लेखा -जोखा ही नहीं रखा ? अपने निर्णयो के परिणामो की संभावना सोचना – शायद मोदी जी और उनके सहयोगी अमित शाह जी की आदत नहीं ? क्यूंकी अगर परिणाम की चिंता होती तब --- राज्यो की सीमा पर भूखे -प्यासे लोगो की यंत्रणा दिखाई पड़ती , पर ऐसा नहीं हुआ |

देश के नागरिक को एकतंत्र की प्रजा बनाने के लिए न्यायपालिका , अगर सरकार मुखपेक्षी होगी तो नागरिक -नागरिक नहीं रह जाएगा | ब्रिटेन में प्रधान मंत्री बोरिस जानसन द्वरा हाउस ऑफ कामन का सत्रावसान करने के फैसले को व्नह के सुप्रीम कोर्ट ने उलट दिया और सदन का सत्र बुलाने का आदेश दिया | जबकि सत्रावसान के आदेश पर महारानी के भी दश्तख़त हो चुके थे ! अमेरिका में भी राष्ट्रपति ट्रम्प के अनेक सनक भरे फैसलो को फेडरल कोर्ट नें "”अमान्य"” कर दिया था ,उसमे मेकसिको सीमा पर बच्चो को उनके मटा -पिता से अलग किए जाने का ब निर्मम फैसला भी था |

मोदी जी संविधान में किए गए वादे की देश में "””लोक कल्याङ्कारी व्यवास्था करेंगे "” की पूरी तरह से अनदेखी कर रहे हैं | वे अपनी समझ को जनता के भूख -प्यास -और बेरोजगारी से दूर रख कर , बस येन केन प्रकारेंण परदेशो की सरकारो को अस्थिर करने और विरोधी डालो के विधायकों को खरीदने में व्यस्त रहते हैं | यानहा तक की कोरोना के लाक डाउन की घोसना तब की गयी जब मध्य प्रदेश की काँग्रेस की सरकार को गिरने की कवायद पूरी नहीं हो गयी | तत्कालीन विधान सभ अध्याकाश ने कोरोना के कारण सत्र को बाद में बुलाने को कहा था | परंतु स्वर्गीय राज्यपाल लाल जी टंडन ने उनके अनुरोध को ठुकरा दिया | बाद में बहुमत साबित करने के लिए इसी कोरोना का कारण बताया गया !!!

फ्रीडम हाउस ने नागरिक स्वतन्त्रता के हनन की जो बात काही हैं ------ उसका उदाहरण भीमा कोरे गाव्न मामले के आरोपी हैं | जिसमे एक मात्र सबूत राष्ट्रीय जांच एजेंसी एन आई के पास एक मात्र सबूत लैपटाप में पाये गए कुछ संदेश थे | जिनकी जांच अमेरिका की एक कंपनी ने बारीकी से की ------तब पाया गया की लप तोप को हेक करके उन संदेशो को डाला गया हैं | अर्थात आरोपियों की आलोचना से घबराकर सरकार ने इन 8 लोगो को क़ैद में डाल दिया | और आज तक केस को कोर्ट में पेश नहीं किया | इसी प्रकार जे एन यू के वाम्पंथी नेता डॉ कनहिया कुमार के तर्क पूर्ण भासनों से दुखी हो कर आरएसएस --विद्यरथी परिषद भारतीय जनता युवा मोर्चा और बीजेपी ने उन पर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज़ कर दिया | पर मामले में कोर्ट में जाने लायक ,पुलिस के पास सबूत अभी तक नहीं मिले | पर दिल्ली दंगो के गैर भाजपाई लोगो जिम्मे हिन्दू बहुल है ----उनको छूआ भी नहीं और मुस्लिमो को जेल में डाल दिया | इतना तो तय हैं की जिस तरह से मोदी सरकार अभी तक चली है ----उसके आधार पर निश्चित रूप से कहा जा सकता हैं की फाइव ट्रीलियन अर्थ व्यसथा स्विस बंकों से काला धन लाकर बाटने जैसा "””जुमला ही साबित होगा "””