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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 18, 2013

अब अल्पमत और बहुमत नहीं बल्कि सर्व-मत की ज़िद्द हैं -राजनीति मे


अब अल्प्मत और बहुमत नहीं बल्कि सर्व-मत की ज़िद्द हैं -राजनीति मे
जिन देशो मे सरकार चुनने का हक़ जनता -जनार्दन के पास होता हैं उसे ही व्याहरिक उद्देस्यों के लिए प्रजातन्त्र या जनतंत्र मानते हैं | मसलन ब्रिटेन जहा तकनीकी रूप से राजशाही हैं लेकिन सरकार चुनने का अधिकार जनता के पास हैं -राजा के पास नहीं | ऐसे ही एक राष्ट्र हैं थाईलैन्ड वहा भी यही स्थिति हैं | बहुमत द्वारा सरकार का गठन ही जनतंत्र का आधार है , परंतु विपक्ष सदन मे बैठ कर दायित्व निर्वहन के बजाय अगर सड़क पर प्रदर्शन और हिंसात्मक तरीके से सरकार को हटाने का प्रयास करे अथवा अपनी मांगे मनवाने का प्रयास करे तो उसे क्या कहेंगे ? लोकतन्त्र या भीडतन्त्र ? अब चाहे यह वाक्य दिल्ली का हो या बैंकॉक या काठमांडू का अथवा ढाका का क्योंकि इन सभी स्थानो पर सरकार अथवा बहुमत का विरोध सदको पर हो रहा हैं -वह भी चुनाव के उपरांत ! हैं न अजीब बात , परंतु सत्य हैं |

थायलैंड मे शिंवात्रा की चुनी हुई सरकार के विरोध मे राजधानी बैंकॉक मे लगभग दो लाख लोगो ने सदको पर घोर प्रदर्शन किया जिसमे उन्होने गड़िया भी फूंकी और पुलिस मुख्यलाय को भी घेरा तथा पहले उनकी मांग थी की प्रधान मंत्री शिंवात्रा इस्तीफा दे कर चुनाव कराएं | कई डीनो के विरोध प्रदर्शन के उपरांत शिनवात्रा ने चुनाव करने की घोसना की | परंतु प्रदर्शन कारी इस मांग से संतुष्ट नहीं हुए , उन्होने नई मांग राखी की चुनाव एक गैर निर्वाचित निकाय की देखरेख मे कराये जाये जिस से निसपक्ष चुनाव सम्पन्न हो सके | यानहा सवाल उठता हैं की जब विगत निर्वाचन के परिणाम स्वरूप सरकार का गठन हुआ तब क्यो विरोधी डालो ने उसे स्वीकार किया ? फिर गैर निर्वाचित निकाय का प्रजातन्त्र मे क्या स्थान हैं ? परंतु नहीं वनहा गुथी अभी भी नहीं सुलझी हैं |

कुछ ऐसा ही माहौल पड़ोसी देश बंगला देश मे भी बना हुआ हैं | प्रधान मंत्री शेख हसीना की सरकार ने चुनाव करने की प्रक्रिया शुरू की --तब भी विरोधी दल आरोप लगाते रहे , मीरपुर के कसाई मुल्लाह को वार ट्राइबुनल ने फांसी की सज़ा सुनाई और उन्हेफांसी की सज़ा दे दी गयी | जिस को लेकर मीरपुर सिल्हट आदि मे काफी हिंसात्मक घटनाए हुई , पुलिस ने शांति स्थापित करने के लिए गोली चलायी लोग मारे गए | जिसके बाद तो फिर वही मांग दुहराई गयी की चुनाव किसी गैर निर्वाचित निकाय की अधीनता मे सम्पन्न हो | एक बार वनहा प्रधान न्यायादीष की आद्यक्षता मे चुनाव कराये गए थे - जिसमे शेख हसीना की अवामी पार्टी को बहुमत मिला था | इस बार चूंकि निर्वाचन प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी इसलिए विरोधी डालो की मांग को मंजूर करना संभव नहीं था | परिणाम स्वरूप उन्होने चुनाव के बहिसकार की घोसना करते हुए अपने को जन तांत्रिक प्रक्रिया से अलग कर लिया फलस्वरूप अवामी पार्टी के गठबंधन के उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित घोसित किए गए | अब इसका क्या परिणाम होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा |

तीसरा उदाहरण नेपाल का हैं -जहा पिछली बार की सत्तारूद पार्टी माओवादियो को करारी पराज्य का सामना करना पड़ा | राजशाही के अंत के उपरांत सरकार बनाकर संविधान निर्माण की प्रक्रिया सालो चली फिर चुनाव हुए , जिसमे ''प्रचंड'' तो पराजित हुए काठमाण्डू से और उनकी पार्टी हारी सारे नेपाल मे !अब हताश प्रचंड आरोप लगा रहे हैं की चुनव मे धांधली हुई है | परंतु जब उनकी बातों को उनसुना किया गया तब उन्होने फिर से हथियार उठाने की धम्की दी | जब उसपर भी किसी ने कोई परवाह नहीं की तब उन्होने नया राग अलापा की ""राष्ट्रिय सरकार बनाई जाये जिसमे उनकी पार्टी को भी हिस्सा दिया जाये | सीधा सा उनका मतलब था की शासन की प्रक्रिया मे उन्हे शामिल करें | सवाल हैं जब आपको और आपकी पार्टी को जनता ने नकार दिया तब किस आधार पर सरकार मे आपकी भागीदारी हो ? परंतु नहीं ज़िद्द हैं की हुमे भी सरकार मे लो |

इन तीन घटनाओ से प्रजातन्त्र मे निर्वाचन के परिणामो को व्यर्थ करने का प्रयास ही हैं | एक दल के रूप आप को चुनाव मे सफलता नहीं मिली तब आप को विपुक्ष मे बैठना होता हैं | चुनाव मे सफल होने का मतलब तुरंत सरकार मे भागीदारी नहीं होती | उसके लिए ""बहुमत"" चाहिए , जैसे मतदाता के बहुमत से प्रतिनिधि चुने जाते हैं वैसे ही बहुमत से ही सरकार बनती हैं | जिस प्रकार पराजित प्रत्याशी घर बैठता हैं वैसे ही अल्पमत की पार्टी सरकार से बाहर रहती हैं ----यही प्रजातन्त्र हैं | परंतु अब राजनीतिक दलो मे इतना धैर्य नहीं बचा की वे शासन से बाहर रह कर राजनीति करें | दिल्ली मे अरविंद केजरीवाल की पार्टी को बहुमत प्रपट नहीं हैं | ऐसे मे आम तौर पर गठबंधन की सरकार बनाई जाती हैं | परंतु राजनीति मे ""आप"" पार्टी सभी दूसरी पार्टियो को ""अछूत"" मानती हैं इसी लिए कहती हैं '''न हम किसी से समर्थन लेंगे न देंगे """ | अब उन्होने सरकार गठन के सवाल पर 25 लाख लोगो की रोयशुमारी करने का फैसला किया हैं | यह प्रक्रिया सरकार द्वारा तब की जाती हैं जब किसी मुद्दे पर जो विवादित हो उस पर जनता की प्रतिकृया ली जाती हैं | सरकार के गठन के लिए चुनाव हुए तब फिर किस बात की रॉय ले रहे हैं ? उनके अनुसार वे काँग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को मतदाताओ के सामने एक्सपोज करना चाहते हैं | अर्थात वे यह बताना चाहते हैं की वे ही ""ईमानदार और श्रेस्थ हैं """ परंतु उनसे अधिक स्थान विधान सभा मे भारतीय जनता पार्टी को मिला हैं ,जो यह साबित करता हैं की आप पार्टी से ज्यादा लोकप्रियता उनकी हैं | इस सत्या को वे शायद मंजूर नहीं कर प रहे हैं | यही हैं अल्पमत की दादागिरी !