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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 31, 2014

सामाजिक उत्थान के लिए किसान ही क्यो बलिदान करे ?सौ साल बाद भी नहीं मिला मुआवजा

                    सामाजिक उत्थान  के लिए  किसान ही क्यो  बलिदान करे  ?
                                लुटिएन की बनाई दिल्ली  मे कितने  किसानो  का मुस्तकबिल  छिना यह तथ्य  अभी हाल मे सोनीपत के  किसानो  द्वारा  2217 रुपया 10 आना 11 पैसे का मुआवजा 1912 से अब तक नहीं चुकाया गया है | सवाल उठता है क्यो ?  चलो यह मान लिया की यह ज़िम्मेदारी ब्रिटिश सरकार की थी , क्योंकि जब देश की राजधानी  कलकते से उठा कर दिल्ली लायी गयी थी अगल - बगल के  सैकड़ो गावों के लाखो किसानो को यहा से  बेघर हो कर वर्तमान हरियाणा  और पंजाब  जा कर बसना पड़ा |  राजधानी के पाश  इलाके सरदार पटेल मार्ग के पास ही है मालचा मार्ग --- एक सदी पूर्व यहा गाव हुआ करता था  जिनकी जमीने राजधानी निर्माण के लिए अधिग्रहित कर ली गयी थी | हालांकि उन्हे मुआवजा भी दिया गया था | परंतु एक परिवार को यह नहीं दिया गया | जबकि उसकी '''मालियत''' {कीमत} आँकी गयी थी  , आज यह रकम बहुत ''  छोटी''' लगे --परंतु
 गौर करे की उस जमाने मे ''एक रुपये की कीमत क्या थी ?"""  विश्वास करेंगे  2 डॉलर के समतुल्य था रुपया !! अब अंदाज़ लगाए  की आज इस रकम की '''असली कीमत क्या है """" | ?
                                                    अभी  केन्द्रीय वित्त् मत्री  अरुण जेटली ने कहा की विकास - रक्षा एवं उद्योग के लिए  भूमि अधिग्रहण को ''''सरल """ बनाया जाएगा |  उन्होने यह नहीं ''कहा की भूमि का ग्रामीण छेत्रों मे  आवंटन  भी और मुआवजा वितरण ''' को शीघ्र और सुलभ बनाया जाएगा |  क्योंकि वे कह सकते है की ''मुआवजा''' देने की ज़िम्मेदारी  राज्य सरकारो की है |  भूमि दिलाने की ज़िम्मेदारी केंद्र की और मुआवजा देने की प्रदेश की ------ कितना सुलभ और सरल रास्ता  है न ??
 
                                                मनमोहन सिंह की हो या मोदी जी की सरकार हो  देश  के विकास के यज्ञ  मे """बलि""" तो किसान के मुस्तकबिल की ही होनी है | क्या हम दूसरे नकसलबारी ऐसे विद्रोह को डावात नहीं दे रहे है ---किसानो के हितो की अनदेखी कर के ?? मलचा गाव की जमीन का सौ सालो तक भी मुआवजा न मिलना  उनके अशंतोष को चिंगारी दे सकता है |
                          

Dec 28, 2014

अल्प मतो से बनते बहुमत के बाद भी मुख्यमंत्री पद का झगड़ा

                                                                कश्मीर मे मुख्य मंत्री वैसे अब हिन्दू  नहीं होगा परंतु क्या धर्म 
    के आधार पर पर इस पद  का  फैसला होना धर्म निरपेक्षता  होगी अथवा सांप्रदायिकता ??? बड़ा सवाल है 
  की धर्म जाति हो वर्ग विशेस हो छेत्र विशेस हो क्या इन्हे आनुपातिक प्रतिनिधित्व  कहेंगे या  '''लोगो की 
  महत्वा कांछा""" को पूर्ण करना ??? 

                                      जम्मू -काश्मीर मे  भारतीय जनता पार्टी  के सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरने के बाद भी  यह विवाद उठा की  मुख्य मंत्री हिन्दू हो अथवा  परंपरागत  रूप से कोई मुस्लिम ही हो |  यह तथ्य है की इस  प्रदेश मे  मुस्लिम  आबादी बहु  संख्यक  है ,, परंतु क्या चुनाव  इस आधार पर हुए थे  की मुस्लिम  ही चुनना है ? अथवा  सबसे      बड़ी पार्टी  का उम्मीदवार मुख्य मंत्री बनेगा |   आखिर  जम्मू - काश्मीर भी तीन सन्स्क्रातियों  का समूह है |
     अगर जम्मू मे सनातन धर्मी और सिख बहुल है तो घाटी मुस्लिम बहुल और लद्दाख मे बाउध धर्म के मानने         वालों की बहुलता है | अब इन छोटे -छोटे  मतो के समूह से बना """बहुमत""" ही तो होगा | चाहे किसी भी 
     राज्य मे कोई चुनाव हो   वहा मतदान का आधार  परिवार से शुरू हो कर जाति फिर धरम और  छेत्रवाद के 
   आधार पर ही मतदान का आधार तय होता है |  वैसे प्रचार  यही किया  जाता है की" ''पार्टी ''' का घोषणा पत्र 
  ही  मतदाताओ  के सामने पहचान होता है | फिर नेताओ के भाषणो मे किए गए वादे  और दावे भी चुनाव को 
  गरमा देते है |  लेकिन  मतदाताओ को अपील  करता है ----नेताओ के  भाषणो  का पुलिंदा  जो उन्हे समझ मे 
   आता है  , परिणाम यह होता है की बात '''''जाति -धर्म'''' तक सिमट जाती |है | फिर  राजनीतिक """ पाखंड""
    उजागर हो जाता है | क्योंकि  घोषणा पत्र  और नेताओ  के भाषण को न  तो अदालत मे  चुनौती दी जा
     सकती है ---ना ही किसी अन्य निकायो के द्वारा  लागू किया जा सकता है ????

                                                                  क्योंकि अब राजनीति  सिर्फ सत्ता के लिए है ---इसलिए अगर 
  पार्टिया चुनाव के बाद  अपने """वादे """ या  कहेसे  बादल जाये तो मतदाता केवल निरीह बन कर गवाह 
  ही बन पता है | ज्यादा हुआ तो अगले पाँच वर्षो  के बाद बदला लेने की भावना से भर जाता है ,,, परंतु वह भावना भी माह -दो माह मे पिघल जाती है | 

                                                      अब मुद्दे की बात पर आते है --- झारखंड  एक आदिवासी बहुल राज्य है 
 
 वनहा पर बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद प्रश्न आया की मुख्य मंत्री किसे बनाया जाये ??? सवाल व्यक्ति 
  का नहीं वर्ण वर्ग का था | यानि सामान्य वर्ग का हो अथवा आदिवासी हो | चूंकि राज्य के निर्माण से अब तक 
  वहा आदिवासी ही मुख्य मंत्री हुए फिर चाहे वे काँग्रेस समर्थित रहे हो अथवा भारतीय जनता पार्टी  के समर्थन 
  से बने हो | भ्रस्टाचार की कहानिया पिछले पंद्रह वर्षो मे  घर घर मे सुनाई गयी | बीजेपी के नेत्रत्व के अनुसार 
  चूंकि उनकी पार्टी को सर्वाधिक समर्थन सामान्य वर्ग से मिला है  अतः  मुख्य मंत्री को भी इसी वर्ग से होना चाहिए | रगनीतिक रूप से इस फैसले का कोई संदेश हो --परंतु प्रशासनिक रूप से साफ हो गया की  आदिवासी 
 होने पर कोई विशेस लाभ नहीं मिलेगा |वही मिलेगा जो वाजिब होगा |

                                                       हालांकि कश्मीर मे बीजेपी को हिन्दू मुख्य मंत्री की मांग से कदम पीछे 
 घसीटने पड़े है ,,क्योंकि बाक़ी अन्य पार्टियो ने उनकी मांग को '''गैर वाजिब'''' माना | पी डीपी  हो या नेशनल 
 कान्फ्रेंस  दोनों ने ही मुस्लिम मुकया मंत्री के समर्थन मे रॉय व्यक्त की है | हालांकि इन शब्दो मे अपनी बात नहीं रखी--- पर परिणाम यही था |  यह घटनाए साबित करती है की राजनीतिक दलो का ''''एक ही खेल''' कैसे 
 करे कब्जा कुरशी पर | सांप्रदायिकता या धर्म निरपेक्षता  सिर्फ शब्द बचे है --- निरर्थक 

   

Dec 27, 2014

स्कूल किए बंद और पंचायत चुनाव के लिए दस्वी पास होना ज़रूरी

                                 
                                    राजस्थान प्रदेश सरकार का तुगलकी फरमान वाकई आश्चर्य  चकित करनेवाला है |
  वसुंधरा राजे सिंधिया  की सरकार बिलकुल """महारानी """ वाली स्टाइल मे चलायी जा रही है | उन्होने पहले
  तो 17000  स्कूल को बंद कर दिया ----क्योंकि  इस फैसले से  उन्हे """""राजकोष""" की बचत करनी थी |
  इसके पहले उन्होने केंद्र सरकार से सहयाता  प्राप्त  ""मनरेगा"" योजना को बंद करने की सिफ़ारिश की
   क्योंकि  प्रदेश की मिलो  मे '''सस्ते मजदूर """"नहीं मिलते थे | क्योंकि लीग अपने गाव मे रह कर मजदूरी
  करके उससे मिलने वाली कमाई से ''संतुष्ट''' थे |  फिर ग्रामीण छेत्रों  मे शिक्षा के प्रसार  से राजस्थानी  सामंती  '''' संस्क्रती''''  के अनाचार  का खुलासा  मीडिया  मे हो रहा था || इसलिए """प्रजा""" का  """अनपद """"बना रहना  एक ज़रूरी शर्त है | इस लिए स्कूल बंद किए गए |  लेकिन  चकित रह जाना पड़ता है जब  वही सरकार
  जिसने 17000 स्कूल बंद किए ---वही शासन  पंचायत के चुनावो के लिए  उम्मीदवार का ''' दसवी'''  कछा पास होना ज़रूरी  कर दिया | !!!! है न अचंभे की बात

                                       यह फरमान तब और गैर जायज हो जाता है -जब यह तथ्य  पता चले की राज्य की विधान सभा मे सत्ता धारी भारतीय जनता पार्टी के 23 विधायक भी दसवी पास नहीं है ---मतलब यह की इस
  शर्त को वे लोग ""तय "" कर रहे है जो खुद उस ""परीक्षा ''' को पास नहीं कर सके !! है न  टाजूब की बात \ इतना ही नहीं  बीजेपी के दो संसद भी दसवी पास नहीं है ,,परंतु वे नरेंद्र मोदी जी की सरकार की नीव है |  इस फरमान से लगता है की  आदिवासी छेत्रों  मे जो लोफ़ '''लोकप्रिय'' है वे दसवी पास भले ही न हो परंतु  अपने
 लोगो -और इललके मे पकड़ अच्छी रखते है | इस हथियार  से ऐसे लोग चुनाव  से बाहर हो जाएँगे \ कोई
 आदिवासी ठिकानेदार  का छोरा जो कॉलेज फ़ेल भले होगा लेकिन  चुनाव लड़ेगा ---तो लोग पुराने संबंधो
का ख्याल करके  उसे जीता देंगे | एक बार चुनाव '''जीत'''भर जाये -फिर तो वही होगा --जो पूरे देश मे हो रहा है |
 अर्थात  पाँच साल तक तो कोई रोक-टॉक नहीं होगी | यह सब इसलिए हो रहा है की राजस्थान  के लोग  आज भी  ''महारानी''' की नज़र मे प्रजा है ------नागरिक नहीं |  वे बहुमत का नहीं ---अपनी मन मर्ज़ी का शासन चाहती है | लेकिन यह घटना वनहा  पर लोकतन्त्र के नाम हो रहे नाटक का सबूत है |