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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Mar 27, 2023

 

अदालत—अस्पताल में होती “”अति”” –आज का सच !

 

     अदालत की अति का परिणाम  आज देश में राजनीतिक  हलचल का परिणाम है |  सत्ता दल इसे जिस प्रकार अपने विरोधी के राजनीतिक भविष्य का अंत ,देख रही है , वनही देश में विरोधी दलो का राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त किए जाने को , सत्ता का बुलडोजरी  कारनामा  बता रही है | सूरत के चीफ जुडीसियल मजिस्ट्रेट द्वरा  सुनाई गयी सज़ा भले ही न्यायिक कारवाई हो , परंतु जिस प्रकार याचिकाकारता ने पहले अपने प्रार्थना पत्र पर सुनवाई को स्थगित कराया , और साल भर बाद उसकी सुनवाई की अर्ज़ी दी , वह याचिका कर्ता की नियत पर संदेह व्यक्त करता है !

                      फिलहाल इस घटना ने जिस प्रकार राष्ट्रिय और छेतरीय दलो को मोदी सरकार के विरूध एक कर दिया हैं , वह अनेकों दलो के प्रयास से भी संभव नहीं हो रहा था | परंतु इस घटना ने सभी गैर बीजेपी  दलो के मन में यह आशंका  भर दी है की कोई भी मोदी सरकार के निशाने पर आ सकता हैं |  जो उनके राजनीतिक यात्रा को समाप्त करसकता हैं | ऐसा निर्णय पहले कभी भी नहीं देखा गया हैं |  आज आम भारतीय  इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहा है { सिर्फ मोदी भक्तो को छोडकर } की इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी की परंपरा का वंशज  देश द्रोही हो सकता है !  जिस परिवार ने पाकिस्तान को दो बार युद्ध में घुटने चटाये , जिसने बंगला देश का निर्माण कराया  उनका पोता देशद्रोही ! और राजीव गांधी  जिनहोने देश में वर्तमान कम्प्यूटर  क्रांति का जनक होने का सौभाग्य हैं उनका पुत्र  विदेश में जा कर देश के वीरुध बोलेगा ! जवाहरलाल नेहरू से लेकर इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी  तक ने विदेशो मे अनेक गणमान्य संस्थाओ में उद्बोधन किया है , उतना प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नहीं किया हैं | उन्होने भर्ता की तर्ज़ पर अनिवाशी भारतीयो की भीड़ को ही संभोधित किया हैं | चाहे  ट्रम्प के समर्थन में रैली हो या ब्रिटेन में , मोदी जी “”टकसाली “” भासन हर जगह लगभग एक ही सुर मे होता था --- 2014 के बाद ही भारत में विकास हुआ हैं ! इसके पहले भ्र्स्तचर  ही हुआ करता था | वैसे  उनकी खूबी यह हैं की वे सिर्फ अपनी या अपने मन की बात ही करते हैं , दूसरों को “”सुन “” नहीं सकते ! यही कारण हैं की हिंदन्बेर्ग  रिपोर्ट

में देश की सत्ता की मशीनरी  के घालमेल का आरोप लगाने पर  ही राहुल गांधी की सदस्यता  समाप्त  की गयी |  इतना ही नहीं मोदी जी और  गौतम अदानी के संबंधो को लेकर उनके सवालिया  भासन को लोकसभा की कारवाई  से “” विलोपित “” कराया जाना भी इशारा करता हैं की ---कुछ तो है जिसको सरकार छुपना चाहती है |

     मोदी सरनेम  केवल पीएचडी जातियो का नहीं होता हैं | देश की आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश के पहले  राज्यपाल सर होमी मोदी , पारसी  थे | स्वतंत्र पार्टी के सांसद पिलु मोदी भी पिछड़ी  जाती के नहीं थे | मोदिनगर के  संस्थापक राय बहादुर गूजरमल मोदी भी वणिक थे |  अब नरेंद्र मोदी अगर  पिछड़ी जाती के है  तो यह कोई छेतरीय कारण होगा |  इसलिए यह कहना की सभी मोदी पिछड़ी जाती के होते हैं , सही नहीं है | उदाहरण  के लिए  शर्मा  सरनेम  ब्रांहनों  के लिए हैं |  पुजा के समय  सभी ब्रामहन  अपने गोत्र के साथ जब अपना नाम लेते हैं   तब उन्हे नाम के पश्चात शर्मा लगाना अनिवार्य है |   परंतु आज  पिछड़ी जातियो के बढई आदि भी शरमा उपाधि का प्रयोग करते हैं !  आजकल सूर्यवंशी  राम के वंसज नहीं है , नाही च्ंद्र्वन्शी  श्री क्रष्ण के | अभी तक ऐसा कोई विधान देश में नहीं हैं की कुछ खास “”सरनेम”” कुछ निश्चित जातियो के लोगो द्वरा ही लगाया जा सकेगा !

    अब उदाहरण के लिए महाभारत  के नायक भीष्म , जिनहे आदरपुर्वक  पितामह का संभोधन ही दिया जाता हैं | पितरो के तर्पण में अपने पूर्वजो के बाद , और सूर्य को अघर्य के पूर्व  “”शांतनु पुत्र  प्रिय व्रत “” को वर्मा सरनेम  से संभोधित किया जाता हैं | अब  छत्रियों  में यह सरनेम इस्तेमाल नहीं होता | केवल केरल के राजवंश  में वर्मा सरनेम का प्रयोग हुआ है | जिसका उदाहरण  एष के सर्वाधिक  प्रसिद्ध चित्रकार  राजा रवि वर्मा  हैं | आज देश में जीतने भी देवी – देवताओ  अवतारो  के रूप हैं वे सभी  उनही की तूलिका का चमत्कार हैं |

     अब वर्मा को कायस्थ भी प्रयोग करते है और  कलार या जाइसवाल भी नाम के साथ लगाते  हैं | अब क्या सरनेम से जाति का बोध कसौटी है ? शायद नहीं | क्यूंकी  किसी सरनेम  का इस्तेमाल करने पर कोई कानूनी  प्रतिबंध नहीं है |

 तब कोई कैसे कह सकता है की मोदी कहने से पिछड़ो

का अपमान हुआ हैं ?

अदालत और अस्पताल में होता कहर :-  मध्य प्रदेश की अदालतों में विगत पंद्रह दिनो से कोई काम काज नहीं हो रहा है ----वजह वकील साहबान ने हरताल कर रखी है !

कारण यह है की उच्च न्यायालया ने  अदालतों से कहा हैं की वे  25 मुश्किल मुकदमो को  तीन माह में  निर्णायक स्थिति में लाये | मतलब यह की मुकदमेन की सारी कारवाई  इस अवधि में पूरी कर के अदालत फैसला सुना दे | 

             अब वकील साहबों का कहना हैं की इतने कम दिनो में  मुकदमो का फैसला की स्थिति में पाहुचना “”संभव”” नहीं हैं |  बहुट से  कागज और दस्तावेज़  लगानी होते हैं | उसके लिए टाइम लगता हैं |   हक़ीक़त यह हैं की वकील साहब  अपने मुवक्किल से हर पेशी  के हिसाब से अपनी फीस लेते है | जितना लंबा मुकदमा चलेगा  उतनी ही उनको आम्दानी होगी !  अब तीन माह की अवधि से उनकी आम्दानी बहुत घाट जाएगी |

     हाइ कोर्ट ने बार असोशिएशन  की हड़ताल को अवैध करार दिया हैं | परंतु  वकीलो का संगठन  ज़िद्द पर अड़े है -----आखिर पापी पेट का सवाल है !

 

2- - राजस्थान  में गहलौट सरकार के  जनता को स्वास्थ्य सुविधा सुलभा कराणे के लिए  एक कानून लाये हैं | जिसमें निजी अस्पतालो को भी  क्रिटिकल मरीजो को चिकित्सीय सुविधा सुलभ कराना  “”अनिवार्य “” किया है | इस प्रावधान से निजी अस्पतालो द्वरा  दुर्घटना अथवा बीमारी की हालत में लाये जाने वाले  मरीजो की चिकित्सा  नहीं करने पर दंड का प्रविधान हैं | अब निजी अस्पताल तो “” नोट देख कर ही इलाज़ करते हैं “” ऐसे में  उनका गंभीर मरीजो से पैसा वसूलने का उद्देश्य तो सरकार के कानून के आगे धरा रह जाएगा |

 बस काले कोट और सफ़ेद कोट की हड्ताल  का कारण फीस भर है ----ना वादकारी को न्याय दिलाना और नाही मरीज को मर्ज से निजात दिलाना !!