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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Dec 5, 2023

 

विधान सभा चुनाव  परिणाम बनाम  महाभारत  की द्यूत क्रीडा  !

 

        जब कुछ ऐसा घटित होता हैं  जो असामान्य  या असंभावित हो तब – तब  शकुनि के पाँसो की चमत्कार  की याद आती है !  जिस प्रकार  जुए  में हार –जीत होती है  , परंतु यदि एक पक्ष  की ही विजय हो तब कुछ असंभव को संभव कला  का संदेह  होता हैं |   जिस प्रकार पांडवो  की लगातार द्यूत में  शकुनि के “” मंत्र अभिसिक्त “ पाँसो ने अपने “मालिक “ के कहे को सत्या किया ---कुछ उसी प्रकार  चुनावो में शायद  

ईवी एम मशीनों ने भी चुनाव परिणाम उगले है |  क्यूंकी विरोधी दलो उम्मीदवारों को उनके ही गाँव  में फक्त  40 से 50 वोट मिलना  आश्चर्य की बात है !

      परंतु जब  गंगा पुत्र  भीष्म  जिस प्रकार कौरव सभा में मजबूर हो गाये थे इस अन्याय को रोकने में  उसी प्रकार भारतीय  न्यायालया  भी मजबूर दिखाई दिये | आखिर वे कर भी क्या सकते थे राजसत्ता के सामने |, जैसे महामहिम  होने के बाद भी वे ना तो शकुनि और दुर्योधन  के षड्यंत्र को  नहीं रोक सके , और अपनी आंखो के सामने द्रौपदी  का चीर हरण  होने दिया कुछ – कुछ वैसा ही   विपक्ष के साथ ईडी और सीबीआई का अत्याचार  देखते रहने  का दुर्भाग्य भी भारतीय अदालते  देखती रही --- कानून का हवाला दे कर  भी वे “” न्याय “ नहीं कर सके |  द्रोणाचार्य  जैसे अनुशासन  की मूर्ति  भी   चुनाव आयोग  के समान ही थे | जो सिर्फ  कमजोर भील बालक का अंगूठा  गुरु दक्षिणा मे लेकर  अपने शिष्यो के प्रतिद्व्न्दी  को खतम  किया –कुछ वैसा ही हमारे  निर्वाचन  आयोग ने किया |  सत्ता के पक्ष में वे सदैव  ही खड़े रहे –भले ही वह न्याययोचित  रहा हो अथवा नहीं |  जिस प्रकार चुनाव प्रचार के दौरान  प्रधान मंत्री और गृह मंत्री द्वरा  राजस्थान और छतीसगरह  में वनहा की सरकारो को  बदनाम करने के प्रयास  हुए , वह कुछ कुछ  एक्लवय  से गुरु दक्षिणा  में हाथ का अंगूठा  काट कर मांगने जैसा ही था | परंतु जो भी हो  द्यूत क्रीडा में पराजित  “”पांडवो  को वनवास झेलना पड़ा था , कुछ – कुछ वैसा ही  अब वर्तमान राजनीतिक परिद्र्श्य  दिखाई पद रहा है |   उससे यह  भान होता है की मशीनी मतदान  के चमत्कार से स्टारूद दल को ही सफलता मिलेगी | जब तक कोई  बरबरिक  इस व्यव्स्था  को धराशायी न कर दे और मानवीय  मतदान  से देश और सत्ता सूत्र का निश्चय ना हो !

         परंतु इसके लिए महाभारत  ही होना पड़ेगा , अन्यथा  वनवास और अज्ञातवास  ही झेलना होगा !  आखिर क्या उपाय हो सकता है जिसमे इस असामान्य  स्थिति को  सामान्य किया जा सके जिसमे  सत्तारूद दल  भी दूसरे राजनीतिक दलो की बराबरी  से ही रतियोगिता में उतरे ------उसके विशेसाधिकार  उससे छिन जाये ?  अभी तो कोई  समीकरण सामने नहीं है –परंतु कुछ तो करना होगा , अन्यथा संसद के बहुमत  के रोड रोलर के तले  लोकतन्त्र पिस्ता ही रहेगा | एवं एकतंत्र  को ओर  बदता रहेगा |