विधान सभा
चुनाव परिणाम बनाम महाभारत की द्यूत क्रीडा !
जब कुछ ऐसा घटित होता हैं जो असामान्य या असंभावित हो तब – तब शकुनि के पाँसो की चमत्कार की याद आती है ! जिस प्रकार जुए में
हार –जीत होती है , परंतु यदि एक पक्ष की ही विजय हो
तब कुछ असंभव को संभव कला का संदेह होता हैं | जिस प्रकार पांडवो की लगातार द्यूत में शकुनि के “” मंत्र अभिसिक्त “ पाँसो ने अपने “मालिक
“ के कहे को सत्या किया ---कुछ उसी प्रकार चुनावो में शायद
ईवी एम मशीनों
ने भी चुनाव परिणाम उगले है | क्यूंकी विरोधी दलो उम्मीदवारों को उनके ही गाँव
में फक्त 40 से 50 वोट मिलना आश्चर्य की बात है !
परंतु जब गंगा पुत्र भीष्म जिस
प्रकार कौरव सभा में मजबूर हो गाये थे इस अन्याय को रोकने में उसी प्रकार भारतीय न्यायालया भी मजबूर दिखाई दिये | आखिर वे कर भी क्या सकते थे राजसत्ता के सामने |, जैसे
महामहिम होने के बाद भी वे ना तो शकुनि और
दुर्योधन के षड्यंत्र को नहीं रोक सके , और अपनी आंखो
के सामने द्रौपदी का चीर हरण होने दिया कुछ – कुछ वैसा ही विपक्ष के साथ ईडी और सीबीआई का अत्याचार देखते रहने का दुर्भाग्य भी भारतीय अदालते देखती रही --- कानून का हवाला दे कर भी वे “” न्याय “ नहीं कर सके | द्रोणाचार्य जैसे अनुशासन की मूर्ति भी चुनाव
आयोग के समान ही थे | जो सिर्फ कमजोर भील बालक का अंगूठा
गुरु दक्षिणा मे लेकर अपने शिष्यो के प्रतिद्व्न्दी को खतम किया
–कुछ वैसा ही हमारे निर्वाचन आयोग ने किया | सत्ता के पक्ष में वे सदैव ही खड़े रहे –भले ही वह न्याययोचित रहा हो अथवा नहीं | जिस प्रकार चुनाव प्रचार के दौरान प्रधान मंत्री और गृह मंत्री द्वरा राजस्थान और छतीसगरह में वनहा की सरकारो को बदनाम करने के प्रयास हुए , वह कुछ कुछ एक्लवय से
गुरु दक्षिणा में हाथ का अंगूठा काट कर मांगने जैसा ही था | परंतु जो भी हो द्यूत क्रीडा में
पराजित “”पांडवो को वनवास झेलना पड़ा था , कुछ
– कुछ वैसा ही अब वर्तमान राजनीतिक परिद्र्श्य
दिखाई पद रहा है | उससे यह
भान होता है की मशीनी मतदान के चमत्कार से स्टारूद दल को ही सफलता मिलेगी | जब तक कोई बरबरिक इस व्यव्स्था को धराशायी न कर दे और मानवीय मतदान से
देश और सत्ता सूत्र का निश्चय ना हो !
परंतु इसके लिए महाभारत ही होना पड़ेगा , अन्यथा वनवास और अज्ञातवास ही झेलना होगा ! आखिर क्या उपाय हो सकता है जिसमे इस असामान्य स्थिति को सामान्य किया जा सके जिसमे सत्तारूद दल भी दूसरे राजनीतिक दलो की बराबरी से ही रतियोगिता में उतरे ------उसके विशेसाधिकार
उससे छिन जाये ? अभी तो कोई समीकरण सामने नहीं है –परंतु कुछ तो करना होगा , अन्यथा संसद के बहुमत के रोड रोलर
के तले लोकतन्त्र पिस्ता ही रहेगा | एवं एकतंत्र को ओर बदता रहेगा |