क्या
बाबरी मस्जिद ध्वंश का फैसला न्यायपूर्ण था ? नैसर्गिक न्याय तो नहीं जोशिमठ आपदा !
धार्मिक स्थलो
को लेकर हिंसक संघर्ष बहुत पुरातन परंपरा हैं |
इसका उदहरण हैं “” जेरूसलम”” , आज यह इसराइल के कब्जे में हैं | परंतु मध्य काल में यह मुस्लिम सेनापति सलादीन और ईसाई सेना के सेनापति ब्रिटेन के किंग रिचर्ड के युद्ध
दोनों धर्मो के लिए दुख और -सुख का
सबब हैं | लेकिन द्वितीय
विश्व युद्ध के बाद वाल्फ़ोर संधि के
तहत यहूदियो को यह भू भाग मिल गया | उनके धर्म ग्रंथो के अनुसार यही है वह भू भाग जिसे
उनके पूर्वजो ने “”प्रमिएसडी
लैंड “” हैं | आज भी मुस्लिम अपनी “”अल अक्सा मस्जिद “” और ईसाई “”ईसा मसीह “”
के स्थान और यहूदी अब्राहम के स्थान
को पूजनीय मानते हैं |
देश के गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में जाकर घोसना की हैं की इस साल राम मंदिर का निर्माण पूर्ण हो जाएगा | उन्होने यह भासन “” मोइरांग “” नमक
स्थान में किया , जनहा विश्व युद्ध के
दौरान मेटा जी सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया
था “” | परंतु आजाद
हिन्द सेना की यह अंतिम उपलब्धि थी | क्यूंकी उसके बाद जापान और जर्मनी की पराजय हुई , ये दोनों राष्ट्र ही
थे जिनकी मदद से नेता जी अपना संघराश चला रहे थे | आज अगर हम मोइरांग को देखे तो यह आज़ाद हिन्द सेना की अंतिम विजय स्थान हैं ? क्या अमित शाह जी का अयोध्या में
राम मंदिर निर्माण की घोसना ऐसे स्थान पर जाकर करना जो राष्ट्रीय पराजय का स्थान बना --- संयोग हैं अथवा दैवी संकेत ??? इतना तो साफ हैं की मोदी सरकार को अब लाग्ने लगा हैं की भगवान राम की शरण में ही जाकर हम सफल हो सकते
हैं ? परंतु उन्हे
यह मालूम होना चाहिए की बद्रीनाथ एक “”तीर्थ
हैं “” अयोध्या एक पवित्र स्थल ! बद्रीनाथ
चार धामो में एक है , अयोध्या म मथुरा आदि देश के अनेक “”पवित्र स्थलो में एक हैं
------परंतु वे तीर्थ स्थल नहीं हैं | बद्रीनाथ के दर्शम केरल के मलयाली
समाज भी करने आता हैं , एक कर्तव्य के रूप में , परंतु अयोध्या जाना “”तीर्थ
यात्रा नहीं हैं “
सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजो की बेंच ने प्रधान न्यायधीश रंजन गोगोई
की अध्यक्षता वाली बेंच ने 9नवंबर 2019 को
, इलाहाबाद हाई कोर्ट के
बाबरी मस्जिद के फैसले को रद्द करते
हुए मस्जिद ध्वंश की जमीन के तीन भाग में विभाजन को पलटते हुए
समस्त भूमि “”एक ट्रस्ट “” को दिये जाने का निर्णय दिया था | सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तत्कालीन समय में बहुत आलोचना हुई थी | क्यूंकी निर्मोही आखाडा और सुन्नी वक्फ बोर्ड और शिया वक्फ बोर्ड के हक़ को
खारिज कर दिया था | जबकि मुकदमा मस्जिद और उसकी भूमि के स्वामित्व का था | भूमि के स्वामित्व को लेकर 23 दिसंबर 1949 से शुरू हुआ विवाद , मस्जिद के ध्वंश से
मिलकर देखा जाता हैं |
बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1991 को
15000 से ज्यादा लोगो की भेद ने गिरा दिया था |
यद्यपि तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट की इस घटना के पहले एक लिखित शपथ पत्र में मस्जिद की सुरक्षा का आश्वासन
दिया था | मस्जिद गिराए जाने की घटना की
न केवल
विश्व के अनेक देशो ने भर्त्सना की
और इसे लोकतन्त्र की हत्या तक निरूपित किया | यह भी एक संयोग ही था की ध्वंश के
एक साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को शपथ भंग
करने का दोषी पाते हुए एक दिन की क़ैद की सांकेतिक
सज़ा दी थी | जो उन्होने सुप्रीम कोर्ट
के कटघरे में बिताई थी |
अब यह भी
एक दैवी संयोग ही कहा जा सकता हैं की अयोध्या की घटना के ठीक 30 साल बाद सनातन धरम के एक तीर्थ बद्रीनाथ के द्वार जोशिमठ को खाली करने की जरूरत आन पड़ी है !
आज भी लोग जुस्टिस रंजन गोगोई के फैसले को न्यायपूर्ण नहीं मानते | एक तो उसका कारण विवाद के मूल प्रश्न को नज़रअंदाज़ करते हुए सपाट रूप
से देश की बहुसंखयक आबादी को ध्यान में रखते हुए फैसला सुनाया ! गौर करने की बात है की फैसला वाले दिन गोगोई जी सुप्रीम कोर्ट में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था
करने का निर्देश सरकार को दिया था | जबकि इसके पहले महात्मा गांधी के
हत्या के मामले भी अदालत में सुरक्षा की मांग
नहीं की गयी थी | और तो और रंजन गोगोई को अवकाश प्राप्त के बाद नरेंद्र मोदी की सरकार ने उन्हे राज्यसभा
का सदस्य मनोनीत किया !!! इस फैसले ने न केवल सरकार बल्कि
म्यायपालिका की नियत पर शंका करने का मौका दिया ,आखिर किस कारण एक प्रधान न्यायाधीश
को सांसद मनोनीत क्यी गया !!