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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 11, 2018

बैंको की 73 लाख करोड़ रुपये डूबंत राशि के लिए देश कभी भी काँग्रेस को माफ नहीं करेगा ---- लोकसभा मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी

परंतु प्रधान मंत्री जी आपकी सरकार के आंकड़ो के अनुसार ही -यूपीए सरकार ने तो 2014 मे सिर्फ 52 लाख करोड़ की ही राशि का गडडा छोड़ा
जो पिछले तीन सालो मे 73 लाख करोड़ रुपया कैसे हो गया ??

वैसे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी को अक्सर तथ्य याद नहीं रहते , इसका सबूत उनके भाषणो मे "”यत्र -सर्वत्र '' मिलते है | कर्नाटक मे चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था की "”की राज्य की सात लाख पंचायतों मे कोई विकास नहीं हुआ "” वे भूल गए उनके 'राज मे '{{ सम्पूर्ण देश मे }} मे भी इतनी ग्राम सभाए नहीं है !!
कुछ इसी प्रकार जब वे अपने पसन्द् के टापिक यानि नेहरू - इंदिरा और राजीव के नाम पर तबर्रा पढ रहे थे ,, उसी के बीच मे उन्होने यह जुमला बोला था की काँग्रेस को कभी देश माफ नहीं करेगा !! मोदी के पहले भी मोरारजी देसाई -चरण सिंह -चंद्रशेखर सिंह - विश्व नाथ प्रताप सिंह - अटल बिहारी वाजपेयी - एचडी देवगौड़ा - इंद्र कुमार गुजराल साउथ ब्लॉक की उसी कुर्सी पर बैठ कर काम कर चुके है जिस पर वे आज आसीन है "” |इनमे से अनेकों ने काँग्रेस के नेताओ की आलोचना सार्वजनिक रूप से की है | परंतु कभी भी उनके स्वर ''' शालीनता और पद की गरिमा के विपरीत नहीं हुए "”' जैसा की प्रधान सेवक जी कर रहे है "” |

इन 21 लाख करोड़ से कौन से उद्योगपति लाभान्वित हुए है यह कौई छुपी बात नहीं है | जनहा क़र्ज़ से डूबे किसान आतम हत्या कर रहे है वनही अंबानी बंधुओ और गौतम अदानी तथा रूईया घराने की इकाइयो को कितनी सबसिडी दी गयी इसका खुलासा मंत्रालय नहीं केआर रहा है | इतना ही नहीं सरकारी संस्थानो और सार्वजनिक बैंको से इन पर वर्तमान मे कितना क़र्ज़ बकाया है " यह भी मोदी सरकार नहीं बता रही है | सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान रिज़र्व बैंक से "” डूबंत क़र्ज़े का विवरण मांगा था "” बैंक ने वह तफसील एक लिफाफे मे बंद कर के अदलत को सुलभ करा दी | परंतु उनसे बैंक तथा केंद्र सरकार के वकीलो ने यह प्रार्थना की इसको सार्वजनिक नहीं किया जाये ----अन्यथा देश की अर्थ व्यवस्था को नुकसान होगा "” लिहाजा यह हक़ीक़त भी लिफाफा बंद हो गयी "”
21 लाख करोड़ की डूबंत राशि का मोदी सरकार के दौरान होना काफी "”भयावह "” है | क्योंकि 52 लाख करोड़ की राशि "”तो साथ साल के काँग्रेस काल मे हुई "” इस हिसाब से काँग्रेस के काल मे प्रति वर्ष औसतन बैंको के क़र्ज़ जो "”डूबंत खाते मे डाले गए '' वह राशि एक लाख करोड़ से कम की हुई ||
जबकि 2014 मे नरेंद्र मोदी सरकार के पदारूढ होने के बाद 2017 तक की घाटे की इस राशि मे 21 लाख करोड़ और जूड गए | 2014 से 2017 के मध्य के आंकडो के अनुसार मोदी सरकार के समय मे प्रति वर्ष डूबंत कर्ज़ो की राशि 7 लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष "”है "” !!

अब यह तो देश को जानना होगा की आखिर डूबने वाले ऐसे कर्ज़ो से किसको लाभ पहुंचा ? किसानी के छेत्र मे तो कोई लाभ हुआ नहीं - उल्टे सुलभ आंकड़ो तो चौंका देते है है की औद्योगिक घरानो को दिये गए "”डूबंत क़र्ज़ की राशि का एक तिहाई भाग ही देश के किसानो का सहकारिता समितियों के माध्यम से है !!!!

आंध्र प्रदेश के साथ अन्याय की तेलगु देशम की लड़ाई --क्या राजनीतिक पाखंड नहीं ? आखिर संसद मे उनके सांसदो का विरोध नूरा कुश्ती जैसा नहीं

एनटी रामाराव द्वरा तेलगु बिडडा का नारा दिये जाने के बाद स्थापित हुई तेलगु देशम पार्टी ने राज्य मे कई दशको तक राज किया है | भारतीय जनता पार्टी के नेत्रत्व मे बने राष्ट्रिय मोर्चे मे वर्तमान मुख्य मंत्री अपनी पार्टी समेत सदस्य बने | उन्हे मंत्रिमंडल मे जगह तो नहीं मिली -फिर भी वे साझीदार की भूमिका वफादारी से निभाते रहे |

परंतु हाल ही मे वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वरा प्रस्तुत बजट मे आंध्र प्रदेश को "”विशेष दर्जा की मांग की अनदेखी '''' किया जाने से नाराज़ उनके समर्थक मोदी सरकार और बीजेपी से संबंध तोड़ देने की मांग करने लगे थे | हैदराबाद मे पार्टी की संसदीय बैठक मे जब बहुमत बीजेपी सरकार के खिलाफ था - और लग रहा था की अब एनडीए के बिखरने की शुरुआत होने वाली है | तभी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की ''प्रार्थना पहुंची ''' की जल्दबाज़ी मे कोई फैसला नहीं ले | मिल बैठकर समस्या का हल खोज लेंगे |

तब मुख्य मंत्री एन चन्द्र बाबू नायडू ने अपने सांसदो और विधायकों सामने अमित शाह की बात रखी| परंतु जनता को किए गए चुनावी वादो को ध्यान मे रख कर जन प्रतिनिधियों ने सवाल किया की हम कैसे लोगो को बताए की हम उनकी मांगो के लिए "”केंद्र सरकार "” से लड़ रहे है | क्योंकि तीन सालो मे जनता धैर्य खो चुकी है | अगर कुछ नहीं करेंगे तो हम अपने कार्यकर्ताओ और समर्थको को खो देंगे |

इस समस्या के निदान के लिए चन्द्र बाबू नायडू ने सांसदो को तरकीब सुझाई की वे संसद के दोनों सदनो मे सरकार द्वरा आंध्र के साथ की जरही नाइंसाफी के बारे मे आवाज़ उठाए | उसी का परिणाम है की टीडीपी के सांसद प्रतिदिन संसद परिसर मे विभिन्न प्रकार से विरोध प्रदर्शन कर रहे है | परंतु सदन मे वे सरकार से अपनी मांगो को पूरा किए जाने की मांग को प्रस्ताव अथवा आँय प्रकार से नहीं उठा रहे है | इसका मक़सद केवल इतना है की ---- जनता को यह लगे की उनके प्रतिनिधि उनके हक़ की लड़ाई जोरों से लड़ रहे है "| जबकि हक़ीक़त इसके उलट है , नायडू मोर्चे भी रहना चाहते है परंतु जन साधारण की आकांछाओ की पुरतू भी छटे है | आंध्र के लोग हैदराबाद को तेलंगाना को दिये जाने से नाखुश है "| क्योंकि नयी अथवा प्रस्तावित राजधानी अमरावती के निर्माण मे अभी सालों लाग्ने है
इसीलिए चन्द्र बाबू नायडू ने यह पाखंड रचा है की ---जनता को लगे की ज़ंग जारी है परंतु जिनके खिलाफ ज़ंग है उनसे मैत्री भाव भी बना रहे |