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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 28, 2021

 

विरोधी दलो से चुनाव लड़ने के बजाय आपस में ही भिड़ गए

कॉंग्रेस के धुरंधर क्यू और क्या सफल होंगे ?

आज 69 वर्ष बाद फिर से काँग्रेस में विभाजन की चुनौती दी है | अगर हम पार्टी का इतिहास देखे तो एक बात स्पष्ट नजर आती हैं की राजीव गांधी के अवसान के बाद भी हुए संसदीय चुनाव मैं काँग्रेस को काफी नुकसान हुआ था | विपक्षी सरकार दिल्ली में आसीन हुई | आखिर में 1994 के लोकसभा चुनावो में सोनिया गांधी के नेत्रत्व में काँग्रेस चुनाव में उतरी | परिणाम सब के सामने है की मनमोहन सिंह जी प्रधान मंत्री बने | 1999 में हुए चुनावो में पुनः कुछ झटका खाकर भी काँग्रेस को सोनिया गांधी की सदारत में ही चुनाव लड़ा ,और सफल हुई ----सहयोगी दलो के साथ फिर मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री बने

सवाल हैं की इन दोनों चुनावो में मतदाताओ ने किसके चेहरे को देख कर काँग्रेस का समर्थन किया था ? निश्चय ही इन नेताओ का कोई सीधा योगदान नहीं रहा हैं |

अब 2014 में नरेंद्र दामोदर दास मोदी बीजेपी की सरकार के प्रधान मंत्री बने | यह चुनाव काँग्रेस के लिए बड़ा झटका था | क्योंकि एक सौ पचास साल पुरानी पार्टी को तीन अंको में सांसद नहीं चुनवा पायी | हालत यह हो गयी की – लोकसभा में विपक्षी दल का वैधानिक स्थान नहीं मिला ----क्योंकि उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं थी !!!!

तब इन नेताओ के योगदान का आंकलन नहीं किया गया | ना ही इन नेताओ को भान हुआ ???

इन नेताओ को क्या यह सच्चाई मालूम हैं ! अथवा इन नेताओ ने किसी जन आंदोलन का नेत्रत्व किया हैं ? कभी भी सरकार के वीरुध बयान देने में अथवा नेत्रत्व के फैसले का समर्थन कर जनता के मध्य ले जाने का काम किया हैं ? इन आशंतुष्ट नेताओ द्वरा भगवा साफा बांध कर प्रैस कोन्फ्रेंस करना --आखिर क्या संकेत देता हैं ? क्या मानसिक तौर पर इन लोगो ने संघ की हिन्दुत्व विचार धारा को स्वीकार कर लिया हैं ?

एक सवाल यह भी हैं की काँग्रेस में वह कौन सा अधिवेशन था जिसमें कार्यकारिणी ---चुनाव समिति का सीधा चुनाव डेलीगेटों द्वरा हुआ था ? जनहा तक मेरी स्म्रती जाती हैं -, वह कलकत्ता में हुए अधिवेशन था | जिसमे ममता बनर्जी ने काँग्रेस से विद्रोह कर त्राणमूल काँग्रेस की स्थापना की घोसना की थी | साल था 1996 का और पार्टी आद्यक्ष थे सीताराम केसरी !

उसके बाद पार्टी के अधिवेशन तो हुए परंतु ज़िलो और -राज्यो से आए पार्टी के डेलीगेटो ने चुनाव नहीं किया -------वरन अध्यक्ष को कार्यकारिणी सदस्यो को नामांकित करने का अधिकार दिया | तब से अब तक वही चला आ रहा हैं | जम्मू में केसरिया पाग पहन कर जिन नेताओ ने “”” आंतरिक चुनाव --लोकतन्त्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की मांग “” को मुद्दा बनाया हैं -------उसमें अधिकतर पार्टी कार्यकारिणी के “””नामित सदस्य वर्षो तक रहे हैं ! राज्य सभा में भेजे जाने के मुद्दे पर भी “”प्रत्याशी चयन “”का कोई लोकतान्त्रिक तरीका टो नहीं रहा हैं !सिर्फ एक ही तथ्य “”निर्णायक रहा हैं “” नेरत्व की निकटता !

अर्थात जब तक नेत्रत्व इन लोगो के लिए लाभकारी रहा ---तब तक इन नेताओ को इन बातो का ख्याल नहीं था | अब विधान सभाओ में काँग्रेस की कम होती सदस्य संख्या होने के कारण राज्य सभा में भेजे जाने की संभावना ध्मिल होती जा रही हैं | हाल ही में मध्य प्रदेश में राज्य सभा में जाने के लिए -हुए अंत्र्द्वंद से हुए विस्फोट के कारण ना केवल काँग्रेस विधायकों ने समूहिक दल बादल किया ,जिसके फलस्वरूप काँग्रेस को सरकार भी गवानी पड़ी |

देखना होगा की कांग्रेस् के ये नेता क्यू ‘’मौसमी नेता बने “” ? क्या यह सिर्फ इस कारण हुआ की पार्टीमें आंतरिक लोकतन्त्र का अभाव हैं अथवा इन लोगो को “””पद की लालसा”” ने ही यह कदम उठाने पर मजबूर किया ?






जम्मू में कांग्रेस के जी -23 नामक गुट के कुछ नेताओ ने बैठक कर के काँग्रेस में नेत्रत्व को लेकर बैठक कर के – गांधी परिवार या पर हाइ कमान पर सवालिया निशान लगा दिया हैं | यह कोई पहली बार नहीं हुआ हैं | पहली बार भी दिल्ली में इन नेताओ ने ऐसे ही सवाल उठाए थे |

इनकी मांग हैं की पार्टी में स्वतंत्र चुनाव कराये जाये , जिससे की दल की गिरती हुई साख को रोका जा सके | परंतु यानहा एक सवाल हैं की ---क्या ये सभी नेता जनता से चुन कर आए हैं , अथवा पार्टी द्वरा नामित हो कर राज्य सभा के सदस्य बने ! सवाल यह हैं की जब इन नेताओ ने मतदाता का सामना नहीं किया हैं | तब किस आधार पर पार्टी को "”जमीनी स्तर " पर मजबूत कर सकते हैं ?

यानहा कुछ सवाल हैं --- 1--- क्या इन नेताओ ने जनहा -जनहा इन लोगो को संगठन की ज़िम्मेदारी दी गयी --वनहा पार्टी को कितनी सफलता दिलाई ? अब इन नेताओ में से एक राज बब्बर उत्तर परदेश में पार्टी मुखिया रहते हुए कुछ भी नहीं कर सके | यानहा तक की छेत्रों का दौरा |

2- कपिल सिब्बल – का ध्यान अपनी वकालत पर ज्यादा हैं , उनके आफिस में पार्टी कार्यकर्ताओ की शिकायतों के लिए ना तो कोई अमला हैं ना ही व्यसथा |

3 - विवेक तंखा-- जी मध्य प्रदेश के बारे में गाहे - बगाहे बयान देकर सुर्ख़ियो मेन आ जाते हैं , बस |

4- मनीष तिवारी और आनंद शर्मा ---भी एकला चलो है ,जनहा तक पार्टी के कार्यकरम और सरकार के वीरुध जनमत बनाने का हैं |

5--गुलाम नबी आज़ाद --- की जमीन काश्मीर में हैं , वे वनहा मुख्य मंत्री रह चुके हैं | परंतु अभी ब्लॉक स्तर पर हुए चुनावो में --उनके समर्थको को ज्यादा स्थान नहीं मिले |

अब जमीनी हालत तो इन नेताओ की कमोबेश ऐसी हैं , तो किस आधार पर पार्टी तोड़ेंगे ? अगर तोड़ा तो तो ये भी निजलिंगगप्पा की सिंडीकेट काँग्रेस बन के रह जाएंगे |

Feb 26, 2021

 

ब्रेख़्त की एक कविता की लाइने हैं--की शासक अब अपनी प्रजा चुन ले


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केंद्र द्वरा सोशल मीडिया और ओटिटी पर नियंत्रण का निर्देश



लगता हैं की जनता से त्रस्त शासक अब दमन और भय के बाद लोगो को बदलने में नाकाम रहने के बाद अब ऐसी "”व्यवस्था रचना चाहता हैं ,जिसमें उसके साथी - समर्थक और जी हुजूरिए ही रह सके ! कोई भी ऐसा न हो जो जो सवाल पुछे या हक़ीक़त का आईना उसे दिखाये ! क्योंकि वह अब हारा हुआ हैं --और हिंसा की भाषा ही जानता हैं | जो राज्य और राजा का अंतिम हथियार हैं | वरना क्या बात थी की चीफ़ मेट्रोपलिटन माजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा के फैसले के बाद "””अभिव्यक्ति की आज़ादी "” को नियंत्रित करने के लिए 24 घंटे में ही मोदी सरकार के दो -दो मंत्री ,कानून और जन संचार मंत्रियो को सोशाल मीडिया पर उठ रहे सरकार के विरोध के स्वर को नियंत्रित करने के लिए ओ टी टी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के व्हात्सप्प और फेसबूक तथा इन्स्टाग्रम पर किए जा रहे संवाद अथवा अभिव्यक्ति को "””राजद्रोह "” तो नहीं --लेकिन उसके नजदीक ला कर सरकार के विरोध में लिखने और उठने वाले स्वरो को "”अपराध "” की श्रेणी में लाया जा सके !


पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को राजद्रोह के मामले में ,जिस प्रकार भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल की भी दलील को अमान्य करते हुए , मजिस्ट्रेट धर्मेन्द्र राणा ने पुलिस की कारवाई पर टिप्पणी की "” सरकार के ज़ख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए ,देशद्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते "” | “” ने सरकार में बैठे जी हुजूरियों के कान खड़े कर दिये | क्योंकि जब सुप्रीम कोर्ट में मंदिर का मामला हो या शाहीन बाग का हो अथवा जे एन यू और जामिया मिलिया के छत्रों का आंदोलन हो ----इन सबमें सरकार और पुलिस को ही फाइदा हुआ | दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगे में अदालत को एनडीटीवी चैनल के वीडियो रिपोर्ट के आधार पर आरोपियों को मुक्त कर दिया | जिससे यह साफ हो गया की पुलिस द्वरा बनाए गए सबूतो में सत्या नहीं है ---केवल धरम के आधार पर लोगो मारा -पिता गया और गिरफ्तार किया गया | वह भी बिना किसी ठोस सबूत के ! अदालत से रिहाई के आदेश के बाद भी , पाँच दिन बाद जेल से आरोपियों की रिहाई -----पुलिस और जेल प्रशासन की व्यव्स्था की नियत और कारवाई पर सवालिया निशान लगता हैं |


2-----क्यू यह सोशल मीडिया को नियंत्रित करने की जल्दी ?

2014 में संघ और बीजेपी के साइबर रन बाकुरो ने तत्कालीन सरकार की छोटी -चुको को रबड़ की भांति इतना फैलाया था की जैसे "”गौ हत्या का पाप "” हो गया हो | अन्न हज़ारे के आंदोलन को भी रामलीला मैदान में जगह दी गयी | प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने आन्दोलंकारियों का पानी और - सार्वजनिक सुविधा सुलभ कराई थी , शीला दीक्षित सरकार ने लोक तंत्र में विरोध के स्वर की मर्यादा का सम्मान रखते हुए ना तो मैदान के चारो ओर भाले और कील लगवाए थे ना ही आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया था |

3---- अभिव्यक्ति और आंदोलन की संविधान प्रदत्त आज़ादी के सहारे ही 2014 में नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता नशीन हुए थे | नेट के जरिये साइबर दुनिया में ऐसा इंद्र जाल रच दिया गया था की लोग पंडित जवाहर लाल नेहरू के पूर्वजो और उनके धरम के बारे नयी जानकारी विकिपेडिया और व्हात्सप्प से मिलती थी | तब मनगड़ंत तथ्य ऐसे प्रस्तुत किए गए -------मानो लिखने वाला तत्कालीन समय को देखने की दिव्य द्राशटी रखता हैं |

आज ऐसी उल्जलूल तथ्यो को "” प्र्स्तवित नियमो द्वरा दंडनीय "” बनाए जाने का प्रावधान हैं |

जो लोग मोदी की आलोचना को संघ के वीरुध अपराध बताते हैं और मर्यादा हीं निरूपित करते हैं -----वे अपने बड़े नेताओ के भाषणो को पड़े और सुने – पंडित नेहरू और इन्दिरा गांधी जी के प्रति उन्होने कैसे -कैसे "”सद वचन "” सार्वजनिक रूप से उच्चरित किए हैं ! वैसे दिल्ली विधान सभा चुनावो के दौरान केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद वर्मा के कथनो पर तो निर्वाचन आयोग भी कारवाई करने में "””असमर्थ "””रहा ! जबकि उनके कथनो के वीडियो चैनलो में भी प्रसारित हुए थे !!

4---- इस संबंध में जारी एडवाईजारी में कहा गया हैं की यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे के बारे में "”टिप्पणी करता है {{तारीफ नहीं }} जिसे उसका सीधा संबंध नहीं ----तो वह "”वांछनीय "” नहीं होगा | अब निर्वाचित जन प्रतिनिधि इस श्रेणी में आएंगे क्या ? नगर निगम – जल विभाग और राजस्व विभाग तथा पुलिस के अधिकारियों और उनके द्वरा किए गए कार्यो पर टिप्पणी की जा सकेगी ? जन सुविधाओ की कमी या उनके रझ -रखाव में लापरवाही के बारे लिखा जा सकेगा ?


5----संप्रभुता और अखंडता को हानि : - अब कोई भी टिप्पणी जो केंद्र सरकार के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाली टिप्पणी को भी इस श्रेणी में डाला जा सकता है क्या ? ट्रम्प की बुराई और उनके भारत दौरे के समय की घटनाओ का ज़िक्र और उसकी आलोचना को भी क्या देशद्रोह नहीं माना जाएगा ? क्योंकि जब दिशा रवि का ग्रेटा थानबारग को किया गया ट्विट्ट --जो किसान आंदोलन के समर्थन के लिए था -------उसे दिल्ली पोलिस ने देश द्रोह करार दे दिया | अब वे "””बाबू "””लोग ही तो तय करेंगे की संदेश और ट्विट्ट में की गलत हैं ? भले ही वे यह बताने लायक नहीं होगे ---की इस संदेश की "”” भाषा ---और भाव "”” क्या होगी | क्योंकि व्याकरण की जानकारी और भाषा विज्ञान नहीं जानने से काफी दिक्कत होने की संभावना हैं |

अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा की इन निर्देशों का अनुपालन क्या गुल खिलाएगा

Feb 25, 2021

 

किसान आंदोलन -दिशा रवि पर राजद्रोह और अदालत का न्याय !

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एक तो मियां बावरे ता पर पी ली भंग की कहावत किसान आंदोलन और दिशा रवि की जमानत पर फिट बैठती हैं |

राजधानी के चौहद्दी को घेर कर बैठे हजारो किसान तो मोदी सरकार के लिए परेशानी का सबब थे ही , ऊपर से दिशा रवि को जमानत देते हुए चीफ मेट्रोपॉलिटन माइजिस्ट्रेट ध्रमेन्द्र राणा का फैसला और चुभन दे गया | अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को परिभासित करते हुए उन्होने कहा की व्हात्सप्प ग्रुप बनाना या टूलकित को एडिट करना कोई अपराध नहीं हैं | जबकि पुलिस ने इसी आधार पर पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया था | उसने ग्रेटा थोन्बेर्ग से किसान आंदोलन के लिए समर्थन मांगा था | जज ने कहा की 22 साल की लड़की जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं -उसे इसलिए जेल में डाल दिया जाये की वह सरकार की नीतियो से असहमति रखती हैं | सरकार का विरोध करने का नागरिक अधिकार भारतीय संविधान के अनुछेद 19 में दिया गया हैं |

गत मंगलवार 23 फरवरी को दिये इस फैसले के बाद केंद्र सरकार का हर पुर्जा हरकत में आ गया | क्योंकि दिशा की राजद्रोह के अपराध में गिरफ्तारी की हक़ीक़त सार्वजनिक हो गयी थी |साथ ही वे कारण भी और पुलिस की कारवाई की वैधता भी सामने आ गयी थी | अदालत के कथन की"” सरकार के ज़ख्मी गुरूर पर मरहम लगाने के लिए देशद्रोह के केस नहीं थोपे जा सकते "”| इससे यह साबित हो गया की केंद्र सरकार के इशारे पर पुलिस किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले किसी भी व्यक्ति को जेल में रखना चाहती हैं < भले ही इसके लिए छल या झूठ का सहारा लेना पड़े !


विधान सभा चुनाव और किसान आंदोलन :- हालांकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह उत्तर पूर्व के उन राज्यो में फिर वही फार्मूला अपना रहे हैं की -----””-हम तुम्हें अच्छे दिन देंगे -बस तुम हमारी सरकार बनवाने लायक एमएलए चुनवा दो ! “” वैसे बीजेपी चुनाव जीत कर ही नहीं -----वरन दल बादल कराकर सरकार बनाने में "”माहिर "” हैं | फिर इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सीबीआई --इन्कम टैक्स -ईडी आदि का भी स्टेमल किया जाता हैं | अभी हाल में हरियाणा में इस्तीफा देने वाले विधायक कुंडु के घर - दुकान पर छापा ताज़ा उदाहरण हैं | बंगाल में जिन लोगो ने त्राणमूल काँग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए है ----वे सब भी किसी न किसी "””घोटाले "” {बक़ौल बीजेपी नेताओ के } में फंसे थे | बस गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होने बीजेपी रूपी राजनीतिक वाशिंग मशीन में अपने को डाल दिया | और वाह वे गंगा के समान साफ होकर निकाल आए , जिन एजेंसियो ने उन्हे आरोपी बनाया था वे सभी ----उन्हे वादा माफ गवाह बनाने के लिए कहने लगी !

दिशा रवि के जमानत आदेश से केंद्र सरकार को यह पता चल गया की --अब पुलिसिया हथकंडे से अपने विरोधियो और आलोचको के मुंह नहीं बंद किए जा सकते हैं | इसके लिए ---मंगलवार की रात23 फरवरी को ही तैयारी शुरू हो गयी | यह कोशिस तीन मंत्रालययो के स्तर पर हुई --- 1- गृह मंत्रालय 2- संचार मंत्रालय और 3- विदेश मंत्रालय | गृह मंत्रालय द्वरा जारी "”निर्देशों "” में कहा गया की किसी भी वेबिनोर में अगर शासकीय अधिकारी शामिल होते हैं ----तो उन्हे अपने कथन और सबुतो की '’पूर्व जांच '’ करानी होगी | विशेश कर अगर चर्चा का विषय भारत की रक्षा या सार्वभौमिकता से जुड़ा हो ---तब सम्पूर्ण विषय वस्तु पर रछा और विदेश मंत्रालय की सहमति आवश्यक हैं | अगर कोई शोध भी इस विषय पर हैं जिस पर विदेशी विद्वानो से चर्चा की जानी है , तब भी इन मंत्रालयोकी पूर्व सहमति जरूरी हैं |

मतलब यह की अब अगर कोई अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस को भारत में नागरिकों के अधिकारो की स्थिति के बारे में बताना या लिखना चाहता है तो उसे भी --- भारत सरकार से पूर्व सहमति लेनी होगी ! क्योंकि इस कदम से मोदी सरकार की बदनामी जुड़ी हुई हैं ! मतलब यह हुआ की भले ही घटना या बात सत्य औरतथ्य परक हो वह तब तक दुनिया को नहीं बताई जाएगी -----जब तक मोदी सरकार उसको बताने की मंजूरी नहीं दे देती !


गृह मंत्रालय की वेब साइट पर इस संबंध में विस्तरत जानकारी उपलब्ध हैं |


इन दिशा निर्देशों में यानहा तक है की अगर कोई सरकार के निर्देशों का पालन नहीं करता ---तो उसकी सूचना भेजने वाले से संबन्धित कोई भी व्यक्ति शासन को इस बारे में बता सकता हैं | अर्थात अब आप को सिर्फ सतर्क ही नहीं वरन अपने को सुरक्शित रखने पर भी विचार करना होगा , अन्यथा हो सकता है आप भी संकट में पड जाये |

Feb 24, 2021

 

किसान आंदोलन में सुराख करने -अब संघ मैदान में !

80 दिनो से ज्यादा वक़्त से दिल्ली पर घेरा डाले किसानो के आंदोलन को मोदी सरकार खतम करने में जब सफल नहीं हुई , तब उसने अपने मदर संगठन राष्ट्रीय स्वम सेवक संघ से मदद की गुहार लगाई हैं | यह खबर आरएसएस के आनुषंगिक संगठन भारतीय किसान संघ के सूत्रो से निकली हैं | आरएसएस ने अपने 1 लाख स्वयं सेवको को 50 हज़ार गावों में उतार ने का दावा किया हैं | उनके अनुसार दो - दो की टोली बनाकर स्वयं सेवक गावों में जाकर मोदी सरकार के तीनों क्रशि कानूनों के फायदे किसानो को बता रहे हैं , ऐसा दावा किया गया हैं ! संघ को चिंता हैं की ,जिस प्रकार किसान जगह जगह पर पंचायत करके कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं ---उससे बीजेपी की जमीन खिसकती जा रही हैं | जिससे संघ चिंतित हैं | राम मंदिर आंदोलन से जो फिजा देश में हिन्दू राष्ट्र की संघ और उसके 70 से अधिक आनुसंगिक संगठनो देश में बनाई थी ,वह अब खतम होती लग रही हैं | क्योंकि धरम के आधार पर जिस प्रकार बीजेपी अपना वोट बैंक बना रही थी ----उसे किसान आंदोलन ने धो दिया हैं ! क्योंकि किसानो में हिन्दू - मुसलमान और सिख तथा जाट सभी शामिल हो रहे हैं | इससे बीजेपी और संघ की धरम आधारित राजनीति असफल हो रही हैं | इसका उदाहरण मुजफ्फरनगर में हुई पंचायत में बालियान खाप के नेता टिकैत ने मंच से मुस्लिम भाइयो से सांप्रदायिक दंगो के लिए माफी मांगी थी | उन्होने यह भी कहा की हमने आरएलडी के नेता जयंत चौधरी को हारा कर गलती की | इस बयान से संघ को अंदेशा हो गया की अब वह कट्टर हिन्दू वाद की राजनीति से चुनाव नहीं जीत सकती | क्योंकि किसानो में सभी धर्मो और जातियो के लोग शामिल हैं | जो सामाजिक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं |

उधर संघ के सर संघ चालक डॉ भागवत ने पुनः महात्मा गांधी को याद करते हुए कहा की "”हिन्दुत्व सत्य के सतत खोज हैं | सवाल हैं की किसान आंदोलन के समय भागवत जी को महात्मा की याद क्यू आई ? जिस महा पुरुष ने चंपारण के नील बोने वाले किसानो को अंग्रेज़ो की आर्थिक गुलामी से मुक्त करने के लिए आंदोलन चलाया ,और पहली बार जेल गए , क्या वे आज किसानो की मांग का विरोध करते ? क्योंकि यह सर्वविदित हैं की इन कानूनों को देश के दो बड़े उद्योगपतियों को लाभा पाहुचने के लिए लाया गया हैं | उनके लिए सभी नियम खतम कर दिये गए हैं | इन कानूनों के समर्थन में जो तर्क सरकार द्वरा दिये जाते हैं ----उनको व्यवहार में ना तो किसान को और नाही उपभोक्ता को लाभा मिलने वाला हैं | इन पूंजीपतियों का व्यापार बाजार में प्रतिद्वंदीता के आधार पर नहीं वरन सरकार द्वरा प्रदत्त एकाधिकार से होगा | जो उनके लिए "” सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमाने का जरिया होगा !

जो संगठन पथ संचालन और भीड़ एक्टर करने की महारत रखता हो , उसे अब गाव -गाव कार्यकर्ता भेजना पड़े ---समझ में नहीं आता | रही बात किसानो के आंदोलन में "”सेंध "” लगाने की तो वह काम साम - दाम - दंड और भेद का इस्तेमाल कर के मोदी सरकार थक चुकी हैं | वह किसानो को बांटने के लिए उन्हे कभी खालिस्तानी - कभी आतंकवादी कह कर बदनाम कर चुकी हैं |

अभी हाल में बंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा को टूलकिट के नाम पर राजद्रोह का आरोप लगा कर गिरफ्तार किया | उसे जमानत देते हुए विद्वान जज राणा ने साफ कहा की "””सरकार के अहंकार पर मरहम लगाने के लिए किसी की आज़ादी छीनी नहीं जा सकती | वे यही नहीं रुके वरन कहा "” की सरकार का विरोध करना कोई देशद्रोह नहीं हैं , वेदिक काल से हमारे ऋषियों मुनियो ने ऋग्वेद में कहा हैं की "” सब तरफ से नवीन विचारो को आने दे , बिना बाधित हुए उन् विचारो को समाज में आने दिया जाए "”

इस प्रकार मोदी सरकार की ताकत को आईना दिखाने का काम न्यायले ने किया | जिससे लोकतन्त्र बचा हुआ हैं |


क्या संघ किसानो की भांति इतना जन समर्थन जुटा सकता हैं ---और उनही की भांति अपने दम पर दोमाह तक धरना दे सकते हैं ? जिस संगठन को अपनी राष्ट्रीय सम्मेलन करने के लिए अपनी सरकारो की सहायता लेनी पड़ती हो , क्या वह इतने दिनो तक जन समर्थन से खाना -पीना बंदोबस्त कर पाएंगे ? जिन लोगो को बैठक --भोजन और विश्राम की दिन चर्या हो वे जन समर्थन के लिए खुले मैदान में नहीं आएंगे | हाँ उनके लोग कभी गाय और कभी जातीय संघर्स के नाम पर सरकार के समर्थन से "””कुछ लोगो को "” पप्रताड़ित कर सकते हैं |

अंत में देखना होगा की क्या दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने का दावा करने वाले संघ की परीक्षा किसान रैली में होगी -------जब वे 40 लाख ट्रैक्टर लेकर दिल्ली कूच करेंगे | वही टेस्ट होगा संघ बनाम किसान का !



Feb 23, 2021

 

परंपरा ---करमकांड किसकी ? राष्ट्र की या धरम की ?



क्या ऋषिकेश की गंगा को कानपुर की मैली गंगा


में भी शुद्ध रखा जा सकता हैं ? वर्षो से केंद्र की काँग्रेस और


अब मोदी सरकार कोशिस करती रही हैं , पर परिणाम वही


ढाक के तीन पात रहे | नदी किनारे की बस्तियो को सिवेज


को शुद्ध करने के लिए प्लांट लगाने के लिए पैसा सरकारो



द्वरा दिया गया हैं परंतु नौकरशाही और अफसर शाही ने "”नदी की सफाई के मूल काम "” से अधिक अपने कारकुनों के लिए आफिस - निवास और गाड़ी खरीदने में खर्च किया हैं | अब डॉ मोहन भागवत जी गंगा को निर्मल बनाने के लिए राम मंदिर जैसा अभियान चलाने का आवाहन कर रहे हैं | इसके पूर्व उन्हे पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती के बयानो को जान लेना चाहिए और केंद्र द्वरा इस कार्य हेतु दिये गए धन के आवंटन और उसके उपयोग का निरीक्षण करना चाहिए ! क्योंकि उनका उद्देश्य सर्वथा स्वागत योग्य हैं | लेकिन अफसरशाही ने इस मद में काफी खेल किया हैं , उसकी जांच होनी चाहिए |



राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने पाँच राज्यो में विधान सभा चुनावो के पूर्व अनेक मुद्दे सार्वजनिक छेत्र में डाल रहे हैं --जो बीजेपी के लिए हिन्दू मतदाताओ का चुनावी मुद्दा बनाने में सहायक हैं | ये मुद्दे ऐसे हैं जो उनके मन को छूते हैं |

1:- उन्होने बयान दिया की गंगा को साफ करने के लिए -राम मंदिर ऐसे अभियान की जरूरत हैं | जिस प्रकार राम मंदिर लिए बाबरी मस्जिद को धावश्ट किया गया , फिर उसके लिए जिस प्रकार अदालत में दावे और शोध प्रस्तुत किए गए – उन पर भी अब सवाल उठ खड़े हुए हैं | तब पुरातत्व विभाग के बड़े बड़े अफसरो ने खुदाई के समय इस्लामी वस्तुओ के अवशेस पाये जाने का दावा किया था | जो तत्कालिन मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के दावे को पुष्टि हेतु बताए गाये थे | परंतु अभी जब मंदिर निर्माण के लिए भारत सरकार ने टाटा और एल अँड टी को सौपा , तब नीव खुदाई के समय बीस फूट पर ही सरयू की जलधारा होने का प्रमाण मिला | जिससे यह सिद्ध हो गया की मस्जिद के नीचे किसी भी प्रकार की इमारत का होना संभव ही नहीं जब की मीडिया प्रचार में इस मुद्दे को पूरी तरह से नकार दिया गया | इससे जनहा मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने के दावे पर संदेह होता हैं वनही - तत्कालीन पुरातत्व वेत्ताओ के निष्कर्षो के तथ्यात्मक होने का भी संदेह होता हैं |

दूसरा मुद्दा हैं गंगा को साफ करने का ----- जब उमा भर्ती केंद्रीय मंत्री थी तब उन्होने खुद माना था की नदी की सफाई के लिए जितनी धनराशि सरकार द्वरा खर्च की गयी ----वह वास्तव में प्रबंधन के लिए सुविधा जुटाने में व्यय की गयी हैं | उनके अनुमान के अनुसार जितना धन का आवंटन गंगा की सफाई के लिए दस से अधिक वर्षो में ख़रच किया गया हैं , उसकी तुलना में नदी की सफाई "””नहीं हुई हैं "”| भागवत जी अगर चाहे तो वे केंद्र सरकार से हिसाब ले सकते हैं की विगत वर्षो में गंगा सफाई अभियान की मद में मोदी सरकार द्वरा कितना -कितना आवंटन किया गया | उमा भर्ती जी द्वरा हरिद्वार में की गयी एक पत्रकार वार्ता में कहा गया था की गंगा के ऊपरी हिस्से में उसकी सहायक नदियो में जल विद्युत बनाने के संयंत्र नहीं बनने चाहिए | क्योंकि यह नदी के स्वरूप और स्थिति को खतरनाक बनाएगा | उनका कहना अभी ऋषि गंगा पर हुए जल प्लावन से सिद्ध होता हैं | जब तक उत्तरा खंड में गंगा की सहायक नदियो पर संयंत्र लगते रहेंगे और सड़क निर्माण होता रहेगा तब तक गंगा के निर्मल होने की संभावना कम ही होगी |

फिर चाहे आप राम मंदिर जैसा अभियान चलाये कोई फल नहीं मिलने वाला हैं | क्यूंकी गंगा की सफाई के लिए नदी के किनारे की बस्तियो का सिवेज और गंदा पानी उसमें जाता रहेगा तब तक -----ऋषिकेश की गंगा कानपुर आते आते मैली हो ही जाएगी !

2:------ दूसरा बयान उन्होने हिन्दू परम्पराओ को हिकारत से देखे जाने की हरकत की निंदा की हैं | उन्होने कहा की आज भी शिक्षा संस्थाओ में "” कलावा "”पहनने या माथे पर तिलक लगाने को हेय निगाहों से देखा जाता हैं | सवाल यह हैं की सर में शिखा और माथे पर तिलक और कांधे पर यज्ञोपवीत और दूसरे कांधे पर अंगवस्त्रम तथा धोती पहने हुए को ही --राष्ट्रीय पहचान माना जाए ? अथवा कलाई पर कलावा को हेय द्र्श्ति से देखने वाले को क्या कहेंगे और उसका क्या करेंगे ?? क्या अरब मुल्को की भांति महिलाओ को अबाया या बुर्का नहीं पहनने पर कोड़े से मारा जाये ? क्योंकि इन देशो में लोकतन्त्र नहीं हैं | दूसरा राजतंत्र में धरम का पालन प्रजा से करवाना भी राज शाही का कर्तव्य होता हैं | परंतु भारत समाजवादी लोकतन्त्र देश हैं | यानहा सभी को अपनी आस्था के अनुरूप उपासना का अधिकार हैं | सरस्वती शिशु मंदिरो में प्रार्थना से लेकर राष्ट्र वंदना के गीत सभी गाते हैं फिर भले ही वे मूर्ति पूजक हो अथवा निराकार ईश्वर के उपासक हो | मिशनरी संस्थानो में प्रार्थना होती हैं जो उनके आस्था के अनुसार होती हैं | अङ्ग्रेज़ी संस्थानो में भी यज्ञोपवीत धारी बालक पड़ते हैं |मुझे मालूम हैं की एक विद्यार्थी तो शिखा रखा कर ऊंची गरदन कर के क्लास में जाता था | किसी ने अगर उसका मखौल उड़ाने की कोशिस की तो उसका उत्तर होता था --की आप नहीं शिखा रख सकते क्योंकि आप को इसकी महत्ता नहीं मालूम |

हाँ कुछ मिशन स्कूलो में लड़कियो के चूड़ी पहनने और मांग में सिंदूर डालने पर कालेज प्रबंधन ने एतराज़ जताया था , जिस पर अति हिन्दू वादी संगठनो विरोध किया | मुश्किल यह थी की कालेज में भर्ती के समय यह लिखित में देना होता हैं की वे प्रबंधन के नियमो का पालन करेंगे | अब सरकारी स्कूलो में तो यह प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता , परंतु निजी स्कूलो में तो उनके ही नियम मानी होंगे | अब ईसाई स्कूलो में कलावा और शिखा तथा तिलक पर एतराज़ को शैताननियत तो नहीं कह सकते हैं | हम सभी समुदायो के लोगो पर वे करमकांड नहीं लागू कर सकते------जिनहे हम हिन्दू मानते हैं |