शिक्षा की दूकाने या ज्ञान प्रदान का ????????????
वेदिक काल मे प्रत्येक गाव मे एक स्कूल होता था , जो शिक्षक के घर मे ही होता था | वनही अध्यापक उन्हे
गणित और भाषा तथा सामान्य व्यवहार का ज्ञान देते थे | फीस के नाम पर होने वाली फसल का एक भाग अध्यापक जी
के हिस्से मे जाता था | समय बदला ऋषियों के आश्रम और गुरुजनों का घर ज्ञान देने का स्थान नहीं रहा , मुस्लिम काल मे
यह व्यवस्था टूट सी गयी | सन्स्क्रत और फारसी पढने के लिए अलग -अलग स्थान होने लगे | क्योंकि फारसी राज दरबार और
शासन की भाषा बन चुकी थी | काशी और अन्य धर्म स्थल पर वेदिक संस्कारो और कर्मकांडो की शिक्षा दी जाती थी | दूर से
लोग यंहा शिक्षा लेने आते थे | फारसी की शिक्षा मौलवी लोग देते थे , दरबार मे स्थान पाने के लिए लोग इनके पास आते थे |
अङ्ग्रेज़ी कंपनी बहादुर का शासन आने पर लॉर्ड मैकाले ने एक नीति बनाकर अङ्ग्रेज़ी भाषा और दुनिया का इतिहास पदाने की
कोशिस शुरू की | आज की शिक्षा व्यवस्था उसी के खडहर पर खड़ी है | अनेक भारतीय संगठन इस शिक्षा व्यवस्था के घोर
विरोधी है | वे शिक्षा के छेत्र मे आमूल चूल परिवर्तन चाहते है |
1980 के बाद केंद्र सरकार ने शिक्षा के छेत्र मे निजी पूंजी को बड़ावा देने
की नीति के तहत देश मे निजी इंजीन्यरिंग और मेडिकल कॉलेज खुले | उम्मीद थी की निजी छेत्रों मे और सार्वजनिक छेत्रों मे प्राविधिक ज्ञान के स्नातको की भरपाई होगी | परंतु इंजीन्यरिंग कालेजो की भीड़ ने “”’मांग से कई गुना ज्यादा इंजीनियर पैदा कर दिये “”” फलस्वरूप इन डिग्री प्राप्त लोगो की भीड़ सदको पर भटकने लगे –जो आज भी देखे जाते है | डिग्री लेकर भी उसके ज्ञान से वंचित छोटी –छोटी नौकरियों के लिए तरसते है | आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? सरकार की नीति जिसमे इस भेड़चाल को रोकने की “””ताकत”” और हैसियत ही नहीं है |