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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Jun 7, 2018


राज्यपाल संघ के नहीं वरन "”केंद्र सरकार के प्रतिनिधि है क्या ?
राज्यपालों के सम्मेलन मे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह तो यही कहती है !


4 जून को हुए
देश के राज्यपालों और उप राज्यपालों के वार्षिक सम्मेलन मे राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने जनहा संवैधानिक दायित्यों के अनुपालन की सलाह प्रांतो के संविधानिक प्रमुखो को दी वनही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उद्बोधन मे राज्यपालों को केंद्र की योजनाओ की सफलता की कहानी को सार्वजनिक करने के लिए ,उन स्थानो और लोगो से मिलने की हिदायत दी -- जो केंद्र की योजनाओ के हितग्राही है | उन्होने आए हुए राज्यपालों को यह भी याद दिलाया की वे शिक्षा के छेत्र मे काफी प्रभावी कदम उठा सकते है ।क्योंकि वे राज्य मे स्थित सभी विश्व विद्यालयों के "कुलाधिपति " होते है |
संघ और राज्यो के रिश्ते मे राज्यपाल की भूमिका संविधान मे ,कुछ ही मौको पर है |परंतु यदि कोई राज्यपाल "” अपने छेत्र मे सक्रिय भूमिका निभाने लगे ---तब दिल्ली और पॉण्डिचेरी जैसी स्थिति बन जाएगी | जनहा जनता की चुनी हुई सरकार के काम और निर्णयो मे केंद्र के ये "”पहरुये"” अपने आकाओ यानि की "”केंद्र सरकार के निर्देशों पर काम करना और फैसला लेने लगते है " | जैसा की कर्नाटक मे सरकार के गठन के समय हुआ |

प्रधान मंत्री का राज्यपालों से आग्रह भी ,उनकी सीमाओ का उल्ल्ङ्घन है | क्योंकि भले ही केंदीय सरकार की सिफ़ारिश पर राज्यो के "”गवर्नरों "” की नियुक्ति राष्ट्रपति करते है , परंतु यह भी तथ्य है की राज्यपाल वैधानिक रूप से राष्ट्रपति के अधीन है | मोदी जी के आग्रह ने संवैधानिक पद और राजनीतिक सरकार के मध्य "”जो झीना सा पर्दा होता है "” उसे भी तार-तार कर दिया है | अब अगर राज्यपाल केन्द्रीय योजनाओ की प्रदेश मे चल रही योजनाओ का "” जायजा "” यानि की मोनोटेरींग करने लगेगे ---तब जनता की चुनी सरकार ,जो मात्र विधान सभा के माध्यम से जनता के प्रति जवाबदेह है , तब उसे केंद्र के : प्रतिनिधि की भी दखलंदाज़ी सहनी होगी ! फिर मुख्य मंत्री के ऊपर एक "” सुपर मुख्य मंत्री "” काम करने लगेगा | अभी भी राज्यपाल अधिकारियों से "”राज़ - काज "” के बारे जानकारी लेते है | आम तौर यह जानकारी "””शांति -व्यसथा के बारे मे होती है "” अथवा किसी विशेस घटना अथवा दुर्घटना के बारे जानकारी मांगा सकते है | आम तौर पर राज्यपाल आईएएस अधिकारियों को बुला कर तफसील लेते है | जिसे वे अपनी "” पाक्षिक रिपोर्ट "” मे केंद्रीय गृह मंत्रालय को अवगत कराते है |

परंतु केंद्र की योजनाओ की सफलता को "””नापने या मापने "” का आग्रह करने का अर्थ है की सिंचाई और सड़क निर्माण जैसी योजनाओ की "”उपयुक्तता "” पर सवाल कर सकते है । ऐसे मे मंत्री द्वारा दिये गए निर्देशों का क्या होगा ? झारखंड --मध्या प्रदेश और आंध्र तथा महाराष्ट्र मे और उत्तर पूर्व के सात राज्यो मे जनहा आदिवासी जन जातियो की आबादी काफी है ---- वनहा पर अनेकों केंद्रीय योजनाए लागू है --जैसे शिक्षा - स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के छेत्र मे , अब प्रधान मंत्री की सलाह के मद्दे नज़र अंतिम निर्णय भले मंत्रिमंडल का हो | परंतु "” मानीटरिंग तो राज्यपाल "” के हाथ मे आजाएगी ! इन इलाको मे वादी और माओ वादी आंदोलनो के कारण हिनसा का माहौल है | अब मंत्रिमंडल या मुख्य मंत्री चुनावी राजनीति के कारण इन इलाको मे योजना का लाभ --अधिकारियों की पोस्टिंग आदि कई ऐसे मसले है जो बहुत पारदर्शी नहीं होते ऐसे मे अधिकारी यह आज़ादी ले सकते है की वे जिस मंत्रिमंडल के निर्देश से छुब्ध है , उसकी व्याख्या ऐसे रूप मे करे की राज्यपाल साहब को सब कुछ "”गड़बड़ ही लगे !! तब क्या गवर्नर साहब मंत्री अथवा मुख्य मंत्री से जवाबतलब करेंगे ?? और क्या ऐसा करना प्रशासनिक रूप से "” संविधान सम्मत होगा "”?

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा की शिक्षा के छेत्र मे काफी सक्रिय भूमिका राज्यपाल निभा सकते है ! देश के विश्व विद्यालयो की स्थिति यह है की वे राजनेताओ के वर्चस्व का अझड़ा बन गए है | उदाहरण के लिए बिहार की अंबेडकर विश्व विद्यालया --- है विगत चार सालो से स्नातक अथवा स्नाकोतर विषयो की परीक्षा ही नहीं हुई हुई है !! इसका कारण है राज्य की जातीय राजनीति ! मध्य प्रदेश मे भी बारह माह के कोर्स की परीक्षा सोलह से अठारह माह तक नहीं हो पाती !! भोपाल की बरकतुल्लाह विश्व विद्यालय मे छात्र अपनी अंक सूची और --प्रमाण पत्र तथा मिग्रेशन सेर्टिफिकेट के लिए कुलपति -डीन अथवा परीक्षा नियंत्रक के महीनो तक चक्कर लगाते है । कारण है की कोई शीशा मंत्री का चहेता है तो कोई मुख्यमंत्री का जातिभई है तो कोई किसी मंत्री विधायक का नाते रिश्तेदार है | इस कुनबेबाजी और मेरा -तेरा मे नियमो की धजज़िया उद रही है | ऐसे मे कोई राज्यपाल क्या कर सकेगा ??


कहने लिखने का तात्पर्य यह है की केंद्र सरकार "” अपने प्रचार -प्रसार के लिए कुछ भी करने के लिए आतुर है | विज्ञापनो से टीवी से रेडियो से डिजिटल माध्यमों से केंद्र की सरकार का कम और प्रधान मंत्री की वाह -वाही ज्यादा हो रही है ! परंतु प्रचार की इस "” कार्पेट बंबारदिंग"” से क्या जनता का भरोसा जीत पाएंगे ??