कोरिया
को
जापान
विजेता जनरल मैकार्थर – का
वॉटर लू कहे या – फौजी जनरल
की विजय आकांछा को नागरिक
प्रशासन द्वारा लगाम लगाना
कहे ??
दूसरे
महायुद्ध की परछाई 68
साल
बाद भी विश्व को डराए हुई थी
, जब
उत्तर कोरिया के तानशाह कॉम
जोंग उन ने 38
देशांतर
को लांघ कर ---
दक्षिण
कोरिया के राष्ट्रपति मून जे
इन से हाथ मिलाया |
इस
मुलाक़ात के बाद अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रम्प और उत्तर
कोरिया के उन के बीच ""तू
- तू
मै- मै
"" की
धमकियो से आण्विक युद्ध के
खतरे का जो माहौल दुनिया मे
बना था | वह
समाप्त हो गया |
विश्व
युद्ध मे जापान को "
आत्म
समर्पण "
करने
पर मजबूर करनेवाले जनरल डगलस
मैकार्थर को ,
जापान
के उपनिवेश कोरिया मे युद्ध
के दौरान ही "”
अमेरिकी
राष्ट्रपति ट्रूमन द्वरा 11
अप्रैल
1951 को
"” बड़े
बेआबरू से हटाया गया |
वास्तव
मे कोरिया की दास्तान जर्मनी
की भांति है |
दूसरे
महा युद्ध के बाद मित्र देशो
मे भी खेमेबाजी हो गयी |
समाजवादी
रूस एक ओर था -और
दूसरी ओर ब्रिटेन -
फ़्रांस
तथा अमेरिका |
जिस
प्रकार जर्मनी को पूरब और
पश्चिम मे बाँट दिया था <
उसी
प्रकार कोरिया जो जापान का
उपनिवेश था ,
उसे
भी उत्तर दक्षिण मे बाँट दिया
गया |जर्मनी
मे
बर्लिन
दीवार – की ही भांति 38
समानान्तर
को कोरिया को दो भागो मे बांटने
वाली विभाजक रेखा बन दिया गया
| भूगोल
का ऐसा प्रयोग राजनीति मे
बिरले ही देखने को मिलता है
|
शुक्रवार
27 अप्रैल
2018 दुनिया
के लिए राहत भरा यादगारी दिवस
रहेगा | जब
दूसरे विश्व युद्ध की विभिषिका
का अंतिम अध्याय लिखा गया |
परंतु
इस विश्वव्यापी घटना के पीछे
एक अमेरिकी जनरल डगलस मैकार्थर
की भूमिका को नजरंदाज नहीं
किया जा सकता |
15 अगस्त
1945 को
जापान का सरेंडर स्वीकार करने
के बाद , उन्होने
जापान की राजवंश की ||
दैविक
सत्ता || को
समाप्त कर दिया |
उन्होने
सम्राट हिरोहितों को शाही
परकोटे से निकाल कर जापान के
दूर - दराज़
इलाको मे घूमने पर मजबूर किया
| जापान
मे हजारो साल तक यह परंपरा रही
थी की सम्राट अपने परकोटे से
नहीं निकलते थे और "आम
आदमी "” को
उनसे मिलने लगभग लेट कर जाना
पड़ता था | वे
ही थे जिनहोने एक ओर युद्ध के
अपराधियो को "”
वार
ट्राईबुनल "”
से
सज़ा दिलाई |
वनही
उन्होने जापानी राजवंश को
युद्ध का अपराधी घोषित किए
जाने के ---ब्रिटेन
-फ्रांस
और
अमेरिका
की कोशिसों का विरोध किया और
आखिर मे सफल रहे |
जब
वे जापान का नया संविधान लिखवा
रहे थे – उसी दौरान चीन और रूस
की शह पर उत्तरी कोरिया की
सेनाये --दक्षिणी
कोरिया की सीमा {{
38वी
देशांतर }} को
पार किया |
संयुक्त
राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद
ने अमेरिका को सैनिक कारवाई
करने के लिए संयुक्त राष्ट्र
सेना बल भेजने का प्रस्ताव
दिया | इस
मुहिम के लिए सर्व सम्मति से
सभी संबन्धित राष्ट्रो ने
मैकार्थर के नाम पर मंजूरी
दी | तत्कालीन
राष्ट्रपति ट्रूमन ने जापान
स्थित अमेरिकी फौज को लेकर
कोरिया की मुहिम को जाने को
कहा |
इस
अमेरिकी जनरल की ज़िंदगी भी
पराजय और -विजय
की कहानी है |
युद्ध
के दौरान फिलीपींस मे कब्जा
करने के बाद ,
मैकार्थर
पहले अमेरिकी जनरल थे जिनहे
"”फील्ड
मार्शल " की
पदवी दी गयी |
यह
जानना जरूरी होगा की अमेरिका
और ब्रिटेन मे ''
बोस्टन
टी पार्टी "
विद्रोह
के बाद सान्स्क्रतिक रूप से
छत्तीस का आंकड़ा बन गया था |
अगर
फौजी पहचान को ले तो ब्रिटेन
के उलट सिपाही के पद चिन्ह
अमेरिका मे होते है |
चूंकि
ब्रिटिश आर्मी मे फील्ड मार्शल
का पद होता है ----इसलिए
अमेरिकन फौज मे वह पद नहीं
होता | वनहा
सर्वोच्च फौजी पद //अलकरण
जनरल ऑफ द आर्मी होता है |
ब्रिटिश
फरमेशन मे मेजर जनरल -लेफ्टिनेंट
जनरल और फिर जनरल और अंतिम पद
फील्ड मार्शल होता है |
पुनः
कोरिया पर आते है ,
उत्तर
कोरिया की फौजी कोशिस को विफल
करने के लिए डगलस ने प्रारम्भिक
कुछ लड़ाइयो मे चीन और उत्तरी
कोरिया की संयुक्त सेना को
धकेल दिया |परंतु
बाद मे चीन की लाल सेना ने
गुरिल्ला युद्ध मे अमेरिकी
फौज के हजारो जवान मारे गए |
काफी
नुकसान उठाने के बाद जब मैकार्थर
ने "”निर्णायक
युद्ध के लिए आण्विक हथियार
"” का
सुझाव रखा तो राष्ट्रपति
ट्रूमन के मंत्रिमंडल और चीफ
ऑफ स्टाफ ने इस विकल्प को
मैकार्थर की "”विजय
आकांछा''' करार
देते हुए उन्हे बुलाने का आदेश
देने की सलाह दी |
परंतु
अमेरिकी सेनाधिकारियों और
राष्ट्रपति मे यह साहस नहीं
हो रहा था ---की
वे एक जनप्रिय जनरल को बीच
युद्ध से बुला ले |
परंतु
काँग्रेस के निचले सदन मे एक
सदस्य ने मैकार्थर का राष्ट्रपति
को भेजा पत्र पढा-जिसमे
उनहो ने कहा था की साम्यवाद
यूरोप के रास्ते दुनिया मे
नहीं आएगा ,
वरन
वह एशिया के कमजोर देशो मे
पैर फैलाएगा |
उनकी
उस सलाह का आधार चीन की फौजी
ताकत {{
संख्या
मे गुण मे नहीं }}
थी
| जिस
प्रकार चीन ने थोड़े से समय मे
करीब तीन लाख की सेना भेज कर
दक्षिण के अनेक हिस्सो पर
कब्जा किया ----वह
पश्चिमी राष्ट्रो के लिए
चेतावनी थी |
आज
68 साल
बाद के हालत देखे तो पाएंगे
की "”छोटे
से उत्तर कोरिया ने महाशक्ति
कहे जाने वाले ---दुनिया
के अंतर्राष्ट्रीय दारोगा
की भूमिका निभाने वाले अमेरिका
को "”
हड़का
कर रखा "”
यह
दुनिया ने देखा |
और
अब चीन के राष्ट्रपति शी जिस
प्रकार अपने देश के दूसरे
"माओत्से
तुंग बन कर अंतिम सांस तक पदासीन
रहना चाहते है ---वह
विश्व के शक्ति संतुलन को
बिगाड़ सकता है |
शीत
युद्ध की समाप्ती का कारण रूस
का विघटन था जिससे दुनिया –
एक ध्रुविय हो गयी थी |
मिखाइल
गोरबाचेव के ग्लास्नोस्त
ने रूस के संघीय स्वरूप को खतम
कर दिया |
आज
वनहा भी अघोषित रूप से तानाशाही
है | जैसा
की चीन मे है |
दोनों
ही राष्ट्र लोकतन्त्र के लिए
खतरा है |
अभी
रूस द्वरा अमेरिकी चुनावो मे
जिस प्रकार चुनावो को प्रभावित
किया गया उसकी जांच चल रही है
| फ्रांस
के राष्ट्रपति चुनावो मे भी
रूस ने यही हरकत की थी |
परंतु
जैसा की फ्रांस के अमेरिका
स्थित राजदूत ने सीएनएन से
कहा था की ---
रूस
की इस चालबाजी को फ्रांस के
मतदाता समझते है |
और
वाकई मे वैसा ही हुआ |
रूस
समर्थित साम्यवादी रुझान
वाली राष्ट्रपति की उम्मीदवार
की बुरी तरह पराजय हुई |
यह
स्थिति बताती है की डगलस
मैकार्थर की समझ अपने समय से
कितने आगे तक की थी |
उन्होने
कितना समझा था |