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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 25, 2013

नगरो का अनियोजित बढता आकार यानी कैंसर का विकास

 नगरो का  अनियोजित बढता आकार  यानी कैंसर का विकास     
                                                                                     नगरो का बढता आकर , बिल्डर्स  के लुभावने विज्ञापन पुरे न हो सकने वाले वायदे और अखबारों में छपे  मन मोह लेने वाला फ्लैट या सिंग्लेक्स अथवा डुप्लेक्स की तस्वीर , आम आदमी को स्वप्न लोक में पहुंचा देते हैं । परन्तु  सच काफी  कडुआ  हैं ।  जब आम आदमी इन सब को देखता हैं ,तब  वह भ्रमित  हो जाता हैं । ज़िन्दगी की सारी -जमा  पूंजी लगा कर एक आशियाना पाने की कोशिस  कई बार  मृग -मरीचिका  साबित होती हैं । जब खुबसूरत  तस्वीर का  ज़मीन  पर कोई वजूद  ही नहीं होता । लोग कहेंगे और सरकारी  मुलाजिम भी सलाह देंगे की उपभोक्ता  संरक्षण अदालत में शिकायत करने का । परन्तु वे भूल जाते हैं की मुक़दमा लडने के लिए पैसा तो बचा नहीं हैं , क्योंकि बिल्डर  ने  सारी  पूंजी तो पहले ही खा ली होती हैं । अब खाली  जेब  वह घर चलाये  या मुक़दमा लडे  , यही तो खरीदने वाले की  मुश्किल  हैं  । अब पीडित  व्यक्ति  तो सरकार  के पास ही  जायेगा , परन्तु सरकार के पास उसे  राह्त  देने का कोई फौरी  तरीका  नहीं है ।  हाँ  मास्टर प्लान के उल्लघन  के लिए शासन  बिल्डर को  सजा दे  सकती हैं , परन्तु इस कारवाई से भुक्तभोगी को  राहत  नहीं मिलती । कारन यह हैं की  शासन की कारवाई  से या तो मकान  तोड़े जायेंगे या उन्हे  पानी - बिजली  की सुविधा  घरेलु  दर पर नहीं वरन  कमर्शियल  दर  पर मिलेगी  , जो काफी महंगी होती हैं । फ्लैट के मामलो में बिल्डर  छत पर अपना अधिकार रखता हैं  ,वह खुली  हुई ज़मीन  पर भी अपना अधिपत्य रखता  हैं । अनेको  बिल्डरों  ने तो बेचे हुये  आवासीय  इक़इयो  में तो किसी भी परिवर्तन  के लिए खरीदारों को परमीसन  लेना ज़रूरी कर रखा हैं ।  अब खरीददार  की हैसियत एक किरायेदार जैसी हो जाती हैं । 

                                                   यह हैं उन ख़ूबसूरत  विज्ञापनों का सच , जो खरीद के बाद  पता चलता हैं । अब सवाल हैं की क्या बिल्डरों को विज्ञापन  में किये गए वादे  के लिए उसे सरकार  मजबूर नहीं कर सकती ?  अभी तक  ऐसा कोई प्राविधान नहीं हैं , जिसके आधार  पर गैर कानूनी  कालोनी  के कारण  टूटने  वाले मकानों  का मुआवजा बिल्डर पर हो । पर अभी  तक ऐसा प्राविधान हैं नहीं । यही एक परेशानी हैं जिसमें विज्ञापन के धोखे  में फंसे नागरिक  को कोई  राहत  नहीं मिलती हैं  । 

                                                                      अब मास्टर प्लान बना कर  शासन एक विज्ञापन  दे   कर नागरिको को विश्वास  दिलाता हैं ,पर  वह  इस सरकारी वादे  को तोडने वालो को कोई सजा  देने में और भुक्तभोगी  को राहत  देने में  सरकार नाकाम हैं । अब इस गुत्थी का हल क्या हैं  ? यही  राह   सरकार को दिखानी होगी अपने नागरिको को ,तभी  इन गैर कानूनी  कॉलोनियो  का इलाज हो सकेगा ।  

आतंकी विस्फोट का जिम्मेदार कौन और कौन करे कारवाई

आतंकी विस्फोट का जिम्मेदार कौन और कौन करे कारवाई ?



 विस्फोट के बाद एक बार फिर राजनीतिक दलों  में ज़बानी जंग  शुरू हो गयी हैं ,की ,यह किसकी  गलती हैं और इस का जिम्मेदार कौन हैं -किसे कारवाई करनी थी ? इन प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए हमे शुरू से देखना होगा } एन  सी टी सी  क्या राज्यों के अधिकारों में हस्तछेप  हैं -क्या हमे आतंकी घटनाओ के लिए अमेरिकी  ढंग अपनाना चाहिए  ?  देखा गया हैं की जब -जब ऐसी घटनाये होती हैं तब - तब दलो  के नेता टीवी और समाचार पत्रों में  काफी कड़े बयां देते  हैं । जो अमेरिकी ढंग  अपनाने की बात करते हैं वे भी , केंद्र की सरकार को दोषी बताते हुए ""तबर्रा "" पड़ना शुरू कर देते हैं । पर उनमें कोई भी इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए उस बारे में चुप रहते हैं । टीवी पर हनी वाली  चर्चा में तो जीभ खुजाने के लिए बयां वीर काफी ऐसे सुझाव देते हैं , जिनको  आमली जामा  देना बहुत मुश्किल ही नहीं वरन नामुमकिन सा हैं । क्योंकि  वे देश की सामर्थ्य - उसकी -सीमाए  और कानून का बंधन  के कारन  आने  वाली दिक्क़तो  को नज़रंदाज़ कर देते हैं । आगे देखेंगे  की उनके कहे या -उवाच को क्यों नहीं किया जा सका । 

                         हमारे संविधान में शांति - व्ययस्था  का दायित्व  राज्यों को दिया गया हैं , फलस्वरूप  अपने- अपने  इलाकों में उनकी अलग पुलिस  हैं , , जिसका काम अपराधो रोकना और हुए  अपराधो की विवेचना कर के  अदालत में पेश करना  हैं । यह एक सच्चाई हैं की  देश की  ज़मिन पर राज्यों का हुकुम चलता हैं  ,उनका ही कब्जा हैं । अर्थात केंद्र  के पास अपना कहने  को कोई इलाका नहीं हैं -सिवाय  उसके कार्यालयों के  और वे भी  बिजली -सड़क -पानी के लिए उस स्थान की नगर निगम और प्रदेश सरकार  पर निर्भर हैं । 

                                   इन तथ्यों के प्रकाश में अब हमे आतंकी  घटनाओ की  जांच और ज़िम्मेदारी की बात करनी हैं ।  हैदराबाद  का बम विस्फोट  दंड संहिता के अनुसार  एक अपराध ही हैं ,और इसी लिए थाने में उसकी रिपोर्ट लिखी गयी हैं  । अब  कारवाई  की शुरुआत भी आन्ध्र पुलिस  ने कर दी  हैं , लेकिन इस घटना को आतंकी  कारवाई  होने के कारन इसके सूत्र  अनेक राज्यों तक फैले हुए हैं  । चूँकि हर राज्य की पुलिस  का काम करने का  तरीका  अलग हैं लिहाज़ा  कठिनाई  आ रही हैं ।  ऐसे में ज़रुरत हैं एक संस्था की जो  देश के सभी भागो में  एक साथ कारवाई कर सके -वह भी बिना किसी  अडंगे के । जैसे इनकम टैक्स की  कारवाई  सारे देश में निर्विघ्न  की जाती हैं ।  अब इसी चुनौती  से  निपटने  के लिए ही केंद्र  ने  आतंक विरोधी  केंद्र { N.C.T.C.} बनाने  का फैसला किया हैं । 

                                                                         इस फैसले  का तथ्य यह हैं  की ज़मीन  भले ही राज्यों  के अधीन हो  परन्तु आतंकी  हमले  भारत  की भूमि   पर होता हैं , उसकी   प्रभुसत्ता  पर होता हैं अतः कारवाई  भी केंद्र  को करनी होगी । पर यह कैसे हो - प्रश्न  यही हैं । अब इसी काम को अंजाम  देने के लिए आतंक विरोधी केंद्र की स्थापना  प्रस्तावित हैं । इस पहल के विरोध करने वाले भी  मांग करते हैं की अमेरिका की भांति यंहा पर भी सुरक्षा   बंदोबस्त होने चहिये , पर वे इस मांग केके विस्तार को नहीं समझते  । 

                 सर्व प्रथम  तो अमेरिका एक सुपर पॉवर हैं वह इंटरनेशनल  दबावों को  नकार सकता हैं , हम नहीं । भले ही हम टीवी पर  संसद में बयां देकर  वाह  वाही लूट लें परन्तु हकीक़त में क्या हम पाकिस्तान पर  हमला कर सकते हैं नहीं । क्योंकि अगर उसने एटॉमिक हथियारों का इस्तेमाल किया तो  क्या हम उसके लिए तैयार हैं ? दूसरा सवाल हैं की जितना धन वह  ख़ुफ़िया  तंत्र पर खर्च करता हैं  क्या हम कर सकते हैं ? कतई  नहीं , जब हम आधार मज़बूत नहीं कर सकते तो हमे वंही सुझाव या मांग करनी चाहिए  जो हमारी आर्थिक चादर के अनुरूप संभव हो । इस सन्दर्भ में  एक ज्वलंत  प्रश्न हैं राज्यों के अधिकारों का । 
                                                            अमेरिका में भी शांति व्यस्था स्थानीय निकायों और राज्यों का अधिकार हैं , परन्तु वंहा काउंटी में पुलिस होती हैं मगर गंभीर परिस्थितियों  में स्टेट फाॅर्स और नेशनल गार्ड  की भी मदद ली जाती हैं । ऐसे अपराध जिनके  सूत्र राज्यों की सीमा के ,.बाहर  हो उनकी छानबीन फेडरल ब्योरो  करता हैं । इसके लिए वह स्थानीय पुलिस  का मोहताज़ नहीं होता । वरन वह संदिग्ध व्यक्तियों को सीधे गिरफ्तार करता हैं ।  उनसे पूछताछ  करता हैं ,बाद में मुक़दमा भी राज्य की नहीं वरन  विशेस अदालतों में चलता हैं । वंहा यह अधिकार हैं ,और यंहा इसी अधिकार को राज्यों  की प्रभुता का अतिक्रमण  बताते हुए विरोध हो रहा हैं ।  ९/१ १  के बाद अमेरिकी केंद्रीय  एजेंसी  ने सैकड़ो लोगो नज़रबंद रखा  --वंहा किसी राज्य ने न तो आपति जताई न ही विरोध किया  । 
                अगर एक साथ आतंकी गुटों के खिलाफ कारवाई  करनी हैं तो  वह  केंद्रीय एजेंसी ही हो सकती हैं ,दूसरा कोई उपाय नहीं हैं । विरोध करने वाले स्वरों को  यह सत्य  जानना होगा ,और मंज़ूर करना होगा ।