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All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Sep 22, 2013

संविधान के संशोधन की पहल समता के मूल अधिकार को खंडित करने वाला प्रयास होगा

 संविधान  के संशोधन  की पहल समता के मूल अधिकार  को खंडित करने वाला प्रयास होगा           
                           सजायाफ्ता और जैल मे निरूढ़  व्यक्तियों  को  चुनाव के लिए अपात्र   घोसित  किए जाने के सूप्रीम कोर्ट के फैसले से आहत राजनीतिक दलो ने  अब संविधान मे संशोधन का मन बनाया हैं |   इस मुहिम मे संसद के सभी राजनीतिक दल  '''एकमत '''' हैं | एक -दूसरे को पानी पी- पी कर  कोसने वाले दल भी सहमत हैं की यह '''ठीक''' नहीं हैं | भले ही महत्वपूर्ण और ज़रूरी बिल कानून न बन पाये क्योंकि लोकसभा मे लगातार हँगामा होने के कारण  विधायी  काम काज ही नहीं हो पा रहा हैं | परंतु  अपराधियो को चुनाव लड़वाने के लिए भरपूर प्रयास इसलिए हो रहे  चूंकि वे """ जिताऊ""" कैंडिडैट  होते हैं | 

                                         संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार  भारत के सभी नागरिकों को ''विधि '' के  सम्मुख समानता का अधिकार हैं |  परंतु इसको नियन्त्रित करने के लिए संसद कानून बना सकती हैं | सवाल यह हैं  की राजनीति को अपराधी करण से ''मुक्त'' करने की बात सभी दल करते हैं , फिर वो काँग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी हो  वामपंथी दल हो | छेतरीय दलो मे शिव सेना - समाजवादी - बहुजन समाज -  द्रमुक हो या अन्न द्रमुक - इतेहादुल मुसलमिन - हो या मजलिसे  मुसावरात  सभी मे ''दागी'' यानि सजायाफ्ता  नेताओ की ख़ासी संख्या हैं | सबसे ज्यादा दागी  संसद और विधायक काँग्रेस मे फिर भारतीय जनता पार्टी मे उसके बाद समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी मे  हैं , परंतु प्रतिशत के अनुसार समाजवादी और बहुजन मे इन लोगो की बहुतायत हैं | 

                       प्रस्तावित संशोधन के अनुसार ""अपील  के अंतिम अवसर तक किसी व्यक्ति को चुनावो मे भाग लेने  का अधिकार रहेगा , "" | यदि कोई  सजायाफ्ता  व्यक्ति समय सीमा मे निचली  अदालत के फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं करता हैं , तब वह चुनाव के लिए अपात्र हो जाएगा |आम आदमी अगर सजयाफ़ता हैं तो वह न तो सरकारी नौकरी के लिए योग्य होता हैं ना ही वह पासपोर्ट बनवा सकता हैं | अनेक स्थानो पर आने जाने के अथवा काम पाने के लिए आवेदनो मे भी सज़ा  याफ़्ता होने के कारण काम नहीं मिलता हैं | ऐसा आदमी समाज के लिए उपयोगी नहीं हो पता हैं | भले ही सज़ा के दौरान उसने ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली हो जिस से वह समाज मे अपनी भूमिका निभा सकता हो | 

        अब ऐसी परिस्थित्यों मे एक विधायक या संसद सदस्य का चुनाव लड़ सकते हैं वरन  वे जिम्मेदार पदो पर रह भी सकते हैं सिर्फ मंत्री बनने के |पद  पर नियुक्त नहीं हो सकते क्योंकि  उसमे  शपथ  लेनी होती हैं ''जिसमे कहना होता हैं की बिना राग या द्वेष ......के ''' अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा | एक अभियुक्त या सजायाफ्ता के लिए यह शर्त निभाना आसान नहीं होगा |    

                        यह प्रस्तावित संशोधन संविधान की मूल भावना को आहत करेगा , परंतु सभी राजनीतिक दल  इस के पक्ष मे हैं क्योंकि उन्हे लगता हैं की ''जनप्रतिनिधि ''' और कॉमन मैन''' मे काफी फर्क हैं | अब इस सोच को क्या कहे जो चुनने वालों को चुने जाने वालों से कमतर मानता हैं | यह स्थिति ही इस मांग को बल प्रदान करती हैं की इन एम एल ए और एम पी को अपने छेत्र की जनता के प्रति जवाबदेह बनाया जाये | परंतु दिक्कत यह हैं की इस मांग को अमली जमा कैसे पहनाया जाये ? सरकार की ओर से कह दिया जाता हैं की हर बार मतदान कराने का खर्च बहुत ज्यादा हैं | अतः यह  जनप्रतिनिधि को जवाबदेह बनाने का बहुत खर्चीला समाधान हैं | बस बात यही पर थप हो जाती हैं | हालांकि  मध्य प्रदेश मे स्थानीय संस्थाओ  मे प्रतिनिधि को वापस बुलाने  का ''प्रविधान'' हैं और उसका प्रयोग भी कई बार हो चुका हैं | जब ताक़ कोई किफ़ायती और सहज उपाय नहीं खोज लिया जाता हैं तब तक तो हालत को भुगताना  ही मतदाता की मजबूरी हैं |