हार
से हताश होना गांधी परिवार
की परंपरा नहीं है --राहुल
गांधी !
लगातार
तीन बार से संसदीय और विधान
सभा चुनावो मैं मनोंकुल परिणाम
नहीं मिलने से राहुल गांधी
का हताशा मैं आवेश मैं आकर
पद त्याग कर देने का निर्णय
,
राजनीति
रूप से और सामरिक रूप से उचित
नहीं हैं |
उन्हे
अपनी दादी का इन्दिरा गांधी
का उदाहरण सामने रखना चाहिए
|
उनके
कंधो पर एक ऐसे संगठन का भार
है ---जो
उन्हे विरासत मैं मिला हैं
|उनके
इस्तीफा देने के निर्णय के
समय प्रियंका गांधी की टिप्पणी
सबसे अधिक सटीक थी "”उन्होने
कहा था की ऐसा करके हम बीजेपी
की चाल मैं फंस जाएँगे "”
| क्योंकि
बीजेपी और मोदी -
शाह
जोड़ी का शुरू से प्रयास रहा
हैं की किसी प्रकार आज़ादी के
आंदोलन से उपजी इस पार्टी की
विरासत को खतम नहीं करेंगे
,तब
तक हम भारत को हिंदुस्तान
नहीं बना पाएंगे |
इस
संदर्भ मैं नरेंद्र मोदी 2014
के
चुनावो से राहुल गांधी पर
व्यक्तिगत टिप्पणिया करते
रहे हैं |
जबकि
उनकी खरीदी सोश्ल मीडिया की
टीम पप्पू और शहजादे आदि नाम
देती रही हैं |
इसके
पूर्व चुनावो मैं प्रधानमंत्री
या मुख्य मंत्री कभी इतनी
घटिया शब्दावली का इस्तेमाल
नहीं करते थे |
लगातार
ऐसे हमलो से ही ऊतेजीत होकर
2019
के
चुनावो मैं उन्होने चौकीदार
चोर कहना पड़ा |
उन्हे
समझना होगा की संघ और बीजेपी
अपने से असहमत होने वाले और
विरोधियो से '’’
अभद्र
और असंसदीय '’
भाषा
ही प्रयोग करते हैं |
व्हात्सप्प
और फेसबूक पर इनकी टीम ऐसे
लोगो ट्रोल करती हैं |
उन्हे
हतोत्साहित करने की यह ट्रिक
कुछ सीमा तक सफल भी हुई |
परंतु
फिर कुछ उद्दार वादी लोगो ने
इंका मुक़ाबला करना शुरू किया
,
तब
इनके रणवीर मैदान छोड़ भाग खड़े
हुए |
क्योंकि
इन भक्तो को रटे रटाए संवाद
दिये जाते हैं ,
जिंका
कोई तथ्य नहीं होता ,
वे
मात्र गढी हुई अफवाहों को
'’’सबूत
के तौर पेश करते हैं '’
| तर्क
और तथ्य से अज्ञानी ऐसे भक्त
सिर्फ गाली देते हैं |
राहुल
गांधी को तमिलनाडू की राजनीति
मैं द्रविड़ कडगम और फिर द्रविड़
मुनेत्र कडगम एवं अन्न द्रविड़
मुनेत्र कडगम के सर्घष को
देखना चाहिए |
1930 से
इस संगठन ने नाम भले ही बदले
हो पर नीति नहीं बदली |
सोचिए
कितने चुनाव मैं पराजित होते
हुए भी वे तमिलनाडू मैं एक
शक्ति बने रहे |
यही
हाल पंजाब मैं शिरोमणि अकाली
दल -
का
इतिहास रहा हैं ,
वे
टूटे फिर बने और आखिर मैं सत्ता
के दावेदार हुए !
ऐसे
मैं तो काँग्रेस पार्टी भले
ही लोकसभा मैं सदन के दस प्रतिशत
सीट भी नहीं पा सकी ,
और
ऐसा दूसरी बार हुआ हैं |
इसी
संदर्भ मैं भारतीय जनसंघ फिर
भारतीय जनता पार्टी का इतिहास
भी लगातार हारने और और एक बार
तो लोकसभ मैं मात्र दो स्थान
पाने का कीर्तिमान रहा हैं |
काँग्रेस
कम से कम उस हालत मैं तो न रही
हैं ,
और
ना होगी |
क्योंकि
आज भी काँग्रेस पूरे राष्ट्र
की पार्टी हैं |
दक्षिण
के पाँच राज्यो मैं सत्तर
सालो मैं बीजेपी अपने सतत
प्रयासो के बाद सफलता नहीं
पा सकी |
तब
पचास से ज्यादा सांसदो के साथ
इतना निराश होने की क्या ज़रूरत
हैं ?
हाँ
चालीस साल से अधिक सत्ता मैं
रहने के बाद पदावनत होने की
हताशा हो सकती हैं |
वह
होनी भी चाहिए ,
क्योंकि
प्रत्येक पराजय हमेशा एक सबक
सिखाती हैं |
इस
संदर्भ मैं मैं शक्ति उपासको
की आराध्य की उपासना मैं रचित
दुर्गा सप्तशती का उदाहरण
देना चाहूँगा ,
जिसमैं
राजा सूरथ के साथ भी कोला
विध्वंशियों ने हमला करके
राजपात छिन लिया |
पराजित
राज का साथ मंत्री सेना और
आमात्यों ने भी छोड़ दिया |
तब
ऋषि मेघा के आश्रम मैं जाकर
उन्हे शांति मिली |
वनही
उन्होने ज्ञान मिला की "””तप
"”
करो
,
वैसा
करने के बाद उन्होने कोला लोगो
को पराजित किया ,और
अपना राज्य पुनः प्रपट किया
|
आज
काँग्रेस मैं समर्थक तो लाखो
मैं हैं -पर
कार्यकर्ता नहीं हैं |
कहने
का अर्थ हैं की समर्थको की
प्रथम निष्ठा अपने "”नेता
"”
के
प्रति होती हैं |
वह
उनही के कारण काँग्रेस की भीड़
मैं शामिल होता हैं |
जब
नेता पर संकट आता हैं ,
तब
वह समर्थक भी दूसरे सफल नेता
की गणेश परिक्रमा करने लगता
हैं |
यह
वैसा ही हैं जैसा मौर्य काल
मैं जनपद गणराज्यो मैं युद्ध
के समय सारे नागरिक किसान और
वयस्क हथियार लेकर सेना बन
जाते थे |
छोटी
-मोटों
लड़ाइया वे लड़ लेते थे |
परंतु
संगठित सेना का मुक़ाबला नहीं
कर पाते थे |
अजातशत्रु
ने भेद और सेना के बल पर सभी
गणराज्यो को समाप्त कर दिया
|
आज
काँग्रेस को भी संगठित रूप
से से एक ऐसा संगठन बनाना होगा
जो "”एक
चुनावी मशीन "”
के
रूप मैं हमेशा तैयार रहे |
युद्ध
मनोबल से जीते जाते हैं ,
अगर
सिर्फ खादी पहन कर गणेश परिकमा
करना और नेता के लिए भीड़ बनाना
,
निरर्थक
हैं |
दिल्ली
से हाइ कमान के नेता के जाने
पर स्वागत और फूलमाला तथा
सभा मैं भीड़ लाना राजनीतिक
"”प्रतिबद्धता"”
नहीं
हैं |
यह
एक शिस्टाचार हो सकता हैं
----परंतु
शक्ति नहीं |
जबकि
आज की ज़रूरत हैं संगठन की शक्ति
!
आज
बीजेपी के समर्थक जय श्री राम
का नारा बोल कर इसे "”राष्ट्र
निर्माण "”
का
प्रयास बताते हैं |
जबकि
यह पूरी तरह एक धर्म का नारा
हैं |
राष्ट्र
का नहीं ,
राष्ट्र
का नारा हमेशा "”जय
हिन्द "”
रहा
हैं |
आज़ाद
हिन्द फौज का यह नारा पंडित
जवाहर लाल नेहरू -
इन्दिरा
गांधी लाल बहादुर शास्त्री
और राजीव गांधी तथा नरसिम्हाराव
तक सार्वजनिक सभाओ के अंत मैं
जन समूह से लगवाते थे |
इस
उद्घोष मैं राष्ट्र की जय हैं
--किसी
समुदाय की नहीं |
जबकि
बीजेपी समुदाय विशेस को तुष्ट
करने के लिए यह नारा लगाता हैं
|
राहुल
जी आपको चाहिए की आप प्रत्येक
कांग्रेसी को निर्देश दे की
वह इस अभिवादन को अनिवार्य
रूप से सार्वजनिक रूप से अपनाए
|
जिस
प्रकार बीजेपी कार्यकर्ता
अभिवादन के रूप मैं जय श्री
राम का नारा लगते हैं -उसके
जवाब मैं जयहिंद काँग्रेस
का नारा और अभिवादन होना चाहिए
|
आखिर
नेता जी की फौज मैं तो यही
अभिवादन था |
आज
भी फौज या सशस्त्र बलो मैं
भी जयहिंद ही अभिवादन और सम्मान
का प्रतीक हैं |
इससे
आम काँग्रेस जन को सार्वजनिक
जीवन मैं अलग पहचान मिलेगी |
और
जो लोग इसमाइन ऐसा करने मैं
हिचकिचाहट हो उनकी "”
निष्ठा
"”
संदेह
के दायरे मैं होगी |
इनको
फूल छाप कोंग्रेसी समझना
चाहिए |
संगठन
के साथ ही विरोधी की रणनीति
को भी समझना होगा ,
सबसे
पहले अपने समर्थको को सदस्य
बनाना -जिसे
की वे संगठन के वफादार बने
-किसी
नेता के नहीं |
दूसरा
मुद्दा हैं मतदान मशीन का इस
पर सभी विपक्षी दल एक हैं |
उनको
साथ लेकर इस विषय पर गहरी
रणनीति बनानी होगी |
चुनाव
के समय बने पार्टियो का गठबंधन
-----परिणाम
आने के बाद बिखर से गए हैं |
उन्हे
इस मुद्दे पर एक मंच पर लाने
की पहल काँग्रेस को करना होगा
|
हाल
मैं हुए चुनावो मैं ईवी एम
मशीन को लेकर काफी विवाद रहा
हैं ,|
शंका
लोकसभा चुनावो मैं बीजेपी की
जीत के एक सप्ताह बाद हुए
स्थानीय निकाय के चुनावो मैं
बीजेपी नंबर तीन पर रही !
क्यो
?
क्या
इसे यह मन लिया जाये की मतदाता
केंद्र और स्थानीय चुनावो
मैं "”इतनी
समझदारी से प्रतिनिधियों का
चयन करता हैं ?””
कुछ
ऐसा ही उत्तर प्रदेश विधान
सभा चुनावो मैं भरी बहुमत से
जीती बीजेपी को स्थानीय निकाय
चुनावो मैं सफलता नहीं मिली
!
वनहा
नगर निगमो के चुनाव ईवीएम से
कराये गए उनमैं बीजेपी को
काफी सफलता मिली हालांकि उनहको
कुछ स्थानो पर पराजय मिली |
परंतु
नगरपालिकाओ और नगर परिसदों
के चुनाव बैलेट पेपर से कराये
गए वनहा सत्तारुड पार्टी बुरी
तरह पराजित हुई !
अब
इन परिणामो का क्या कारण रहा
हैं ,
उस
पर अनेकों लेख लिखे जा सकते
हैं |
परंतु
यह तो निर्विवाद हैं की बैलेट
पेपर से हुए चुनावो मैं बीजेपी
या संघ का जादू नहीं चला !
अब
मध्य प्रदेश -राजस्थान
और छतीसगड़ मैं स्थानीय निकायो
के चुनाव होने हैं <
वनहा
की सरकारो को इन चुनावो को
बैलेट पेपर से कराना चाहिए ,
जिससे
की लोकसभा के परिणामो को चुनौती
दी जा सके |
अन्यथा
सुप्रीम कोर्ट भी विरोधी दलो
के चुनाव याचिका को निरर्थक
करार देगा |
उसे
तो कोई सबूत चाहिए की मशीन
मैं गड़बड़ी की गयी हैं |
और
यह बैलेट पेपर से चुनाव करा
कर ही सिद्ध किया जा सकता हैं |