Bhartiyam Logo

All Articles & Concept by:Vijay. K. Tewari

Feb 22, 2022

 

विधान सभा सचिव के अर्ध शासकी पत्र 16481 दिनक 25 --10 --21

विषय त्रैमासिक शोह पत्रिका विधायनी हेतु आलेख लिखने बाबत

----------------------------------------------------------------------------------- शीर्षक विधान सभा अध्यक्ष की संवैधानिक स्थिति


किसी भी सदन या संस्था अथवा संस्थान में अध्यछ न केवल उस निकाया की पहचान होता हैं वरन वह सम्पूर्ण संस्था के अधिकारो से समाहित होता हैं | भारत का संविधान , जो राज्यो के संघ से बना है | उसमें 29 राज्य और 9 केंद्र शासित छेत्र थे | जम्मू -कश्मीर के विभाजन के बाद अब 28 राजय रह गए | इन सभी प्रदेशो में सभी में विधान सभा का अस्तित्व है | आज़ादी के पूर्व जिन राज्यो में 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के समय दो विधायी सदन थे ,वनहा दूसरे अथवा उच्च सदन को विधान परिषद कहा जाता है | जिसका संचालन सभापति करता है |

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 178 से लेकर 217 तक के प्रविधान अध्यक्ष के अधिकारों और कर्तव्यो का वर्णन है | परंतु यह प्रविधान "अध्याछ" के सदन के अनुमानित कार्यो और दावीत्वों के बारे में ही हैं | परंतु वास्तविकता परम्पराओ में है | हमने लोकतन्त्र के संसदीय प्रणाली को ब्रिटेन के वहाइट हाल सिस्टम से लिया हैं | वनहा लोवर हाउस अथवा जन प्रतिनिधियों के सदन या हाउस ऑफ कामन्स के "” अध्याकछ " को ही स्पीकर कहते है | मध्य काल में मैगना कारटा से नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकार परिभाषित हुए थे | प्रशासक और नागरिक के संबंधो में सम्मानजनक रिश्ते की शुरुआत हुयी | जो बाद में देशो के नागरिकों के लिए मूल आधिकारों का आधार बना |राजा या सम्राट के सामने नागरिकों के अधिकारो पर हो रहे अत्याचार को कहना ही तब उसका कर्तव्य हुआ करता था | चूंकि वह सदस्यो और नागरिकों के अधिकारो के लिए राज सत्ता के सामने ले जाकर कहने के कारण ही "””स्पीकर " नाम मिला | ग्रेट ब्रिटेन के संसद में हाउस ऑफ कामांस के स्पीकर ही अपने सदस्यो की आवाज़ सम्राट तक ले जाने का कर्तव्य निभाते हैं | आज भी यह परंपरा सदन के शुरुआत में निभाई जाती हैं |

यह सब बताने का मतलब आज की संसदीय परंपरा में जनता के प्रतिनिधि के सदन का सर्वोतम अधिकारी होता हैं | वह ना केवल सम्पूर्ण सदन की आवाज़ होता हैं , वरन वह सदन के सदस्यो को अनुशासन में रखने का भी जिम्मेदार होता हैं | वह सदन के नियमो की मर्यादा का भी रखवाला होता हैं | उत्तर प्रदेश विधान सभा में 60 के दशक में एक व्यक्ति ने दर्शक दीर्घा से कुछ पर्चे फेंके और कूद गए | इस हरकत को सदन की अव मानना मानते हुए अध्याकछ मदन मोहन वर्मा ने सदन में में दोषी को एक माह की क़ैद की सज़ा दी | दोषी के वकील सलोमन ने इलाहाबाद हाइ कोर्ट में हैबियस कार्पस याचिका दायर करते हुए विधान सभा अध्याकक्ष के विरोध कारवाई की प्रार्थना की | तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश नसरुल्ला बेग ने पुलिस को बंदी को हाजिर करने का आदेश दिया | लखनऊ के वारिस्ठ पुलिस अधिक्षक पियरसन ने अदालत के आदेश को विधान सभा अधकष को दिया | दूसरे दिन विधान सभा का सत्र आहूत होने पर संसदीय कार्य मंत्री ने मुख्य मंत्री सुचेता कृपलानी के निर्देश पर हाइ कोर्ट के निर्णय करने वालो को सदन की अवमानना मानते हुए , उन्हे सदन में बुला कर प्रताड़ित करने का वारंट पुलिस वारिस्ठ अधीक्षक को दिया की वे न्यायाधीशो को सदन में पेश करे | इन हालत में पुलिस के लिए वारंट तामिल करना मुश्किल हो गया | खबर चीफ़ जुस्टिस नसरुल्ला बेग तक भी पहुँच गयी | उनके सहयोगी जजो ने इस अनदेखी -अनसुनी समस्या के लिए इलाहाबाद में "”फुल कोर्ट "” में विचार कर आगे की कारवाई करने का विचार किया | सभी 7 या 8 जज मोटर से इलाहाबाद गए | राजय में माहौल गरम हो गया था ,बात दिल्ली में प्रधान मंत्री तक पहुंची | विधान सभा अध्यछ मदन मोहन वर्मा ने अपने फैसले को विधान सभा का सर्वानुमती का फैसला बताते हुए , मुल्तवी करने से इंकार करते हुए इस्तीफा देने का प्रस्ताव तक रख दिया | जिसे तत्कालीन मुख्य मंत्री सुचेता कृपलानी ने नामंज़ूर कर दिया | देश की विधान सभा के इतिहास में मदन मोहन वर्मा , अध्यक्ष के रूप में सभी राजनीतिक दलो के सम्माननिय बने | उन्होने इसके बाद चुनाव ही नहीं लड़ा | अंततः विधान सभा और उच्च न्यायालय की रस्साकशी में राष्ट्रपति का हस्तछेप हुआ और दोनों निकायो को एक -दूसरे के अधिकारो का सम्मान करते हुए ,टकराव की स्थ्ति से बचने की सलाह दी गयी | तब से अब तक विधान सभा और उच्च न्यायालय एक दूसरे को बचा कर चलते हैं |

परंतु विधान सभा अध्यछ की अनुशासन की शक्ति पर भी अनेकों फैसलो में सवाल उठे हैं | जैसे राज्यपालों की शक्तियों पर भी अनेक बार अदालत ने सवाल उठाते हुए उनके फैसलो को नामंज़ूर कर दिया | निज्लिंगप्पा के मामले में भी सरकार का बहुमत साबित करने के राज्यपाल के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने भी अमान्या कर दिया था | अभी हाल में महाराष्ट्र विधान सभा के 20बीजेपी विधायकों को साल भर के लिए सदन से निलंबित करने के के फैसले को भी, सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों के लोकतान्त्रिक कर्तव्यो से वंचित करने वाला निरूपित किया |

अध्याकाछ का निर्वाचन – चूंकि सदन के बहुमत से होता है अतः उस का झुकाव सरकार के प्रति होना स्वाभाविक हैं | वह मूलतः एक पार्टी का विधायक ही होता हैं , जिसे सत्तारूद दल इस पद के लिए नामित करता हैं | अनेकों बार ऐसा हुआ है की पद ग्रहण करने के बाद अध्यकष ने दल की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया हैं | वे अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार में भी भाग नहीं लेते है | यह इसलिए किया जाता हैं की "”पीठ"” पर पक्ष पात का आरोप न लगे | उसका आसान भी सदन के "” लेफ्ट और राइट के मध्य में ही होता हैं , जो इंगित करता हैं की वह किसी भी पक्ष में नहीं हैं |

अध्यक्ष की भूमिका -शक्ति और दायित्व ---- वह दुनिया के समक्ष सदन का प्रतिनिधित्व करता हैं , एवं अपने परिसर का स्वयंभू स्वामी होता हैं | प्रदेश में भले ही सरकार का डडा बजता हो , परंतु विधान सभा परिसर तो अध्यकष की ज़िम्मेदारी हैं वनहा उसका ही राज चलता हैं | परिसर में प्रवेश तक उसकी अनुमति के बगैर नहीं हो सकता | सिर्फ राज्यपाल ही इसका अपवाद हैं |

उसका प्रथम कर्तव्य है की सरकार द्वरा सदन में लाये गए विधायन कार्य को सम्पन्न कराये ,और सभी सदस्यो के अधिकारो की सुरक्षा करे | विधायकों की पुलिस द्वरा गिरफ्तारी किए जाने के बाद उसकी सूचना सदन के माध्यम से उसे दी जाती हैं |

सदन का विघटन और अध्यकष ----------- राष्ट्रपति द्वरा सदन को किनही भी कारणो से विघटित किए जाने की हालत में जनहा सभी विधायक -पद हिन होजते हैं , परंतु अध्यकष ही एक मात्र पद हैं जो अगली विधान सभा के गठित होने तक रहता हैं | जब राज्यपाल सदस्यो को कसम खिलाने के लिए "””प्रो टेम " स्पीकर की नियुक्ति करता हैं तब अध्यकष पद मुक्त होता हैं |

अध्यकष की राजनीतिक दल की सदस्यता ------------ यूं तो अध्यकष को निस्पकछ माना जाता हैं | परंतु वर्तमान में दलीय सिस्टम में वह भी मूल रूप में तो एक विधायक ही होता हैं | उसे पार्टी द्वरा ही चुना जाता हैं | और उसे दुबारा भी चुनाव लड़ना होता हैं | ऐसी स्थिति में उसका निर्विवाद होना संभव नहीं |

हाँ -यदि हम ग्रेट ब्रिटेन के हाउस ऑफ कॉमन्स की परंपरा को स्वीकार करे तब जरुर यह पद पक्ष पात से ऊपर हो जाएगा | वनहा जो भी अद्यक्ष चुन लिया जाता है , तब सभी राजनीतिक दल उसके वीरुध कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करते | यद्यपि कोई भी व्यक्ति उनके वीरुध चुनाव में खड़ा हो सकता हैं | परंतु बिरले ही ऐसा होता हैं | वह जब तक चाहता है पद पर बने रह सकता हैं | जैसे अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज के अवकाश प्राप्ति की कोई आयु नहीं होती | वह म्रत्यु पर्यंत पद पर आसीन रहता हैं |